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शुक्रवार, नवंबर 27, 2015

"सहिष्णुता का अर्थ" (चर्चा-अंक 2173 )

आज की चर्चा में आपका हार्दिक अभिनन्दन है।  
सहिष्णुता का अर्थ है सहन करना और असहिष्णुता का अर्थ है सहन न करना। सब लोग जानते हैं कि सहिष्णुता आवश्यक है और चाहते हैं कि सहिष्णुता का विकास हो। विचार इस पर करना है कि कहां अवरोध है? सहिष्णुता एक भावनात्मक शक्ति है।इन दिनों देश में सहिष्णुता-असहिष्णुता को लेकर बड़ी बहस चल रही है। साहित्यकारों के बाद इसमें बॉलीवुड अभिनेता भी कूद पड़े हैं। शाहरुख खान के बाद अब बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान ने भी इस पर बयान दिया है।भारत एक अधिक सहिष्णु और उदार समाज है। यहां सांस्कृतिक मूल्यों में सह-अस्तित्व की भावना है और भारत ने असहिष्णुता को हमेशा खारिज किया है।
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रवीश कुमार 
कल देर रात तक टार्च की रौशनी में खोजता रहा
पुकारता रहा ज़ोर ज़ोर से
कहाँ हो, कहाँ हो ये तो बता दो
असहिष्णुता
किसी ने कहा वो थी तो पहले थी
अब है न होगी
उनके दौर में थी तो सब सहिष्णु थे
हमारे दौर में है तो सब असहिष्णु हैं
टार्च की मोटी दूधिया रौशनी में ढूँढता रहा
असहिष्णुता को
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ऋषभ शुक्ला
आजकल चर्चा है इसी बात पर की,
ज़माना असहिष्णु होता जा रहा है |
कोई वापस देता तमगा है,
तो कोई घर छोड़ जा रहा है ||
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वन्दना गुप्ता 
जब चुक जाएँ संवेदनाएं
रुक जाएँ आहटें
और अपना ही पतन जब स्वयमेव होते देखने लगो
मान लेना
निपट चुके हो तुम
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फ़िरदौस खान 
हमारा हिन्दुस्तान एक ऐसा मुअज़िज़ मुल्क है, जहां हर शख़्स को अपनी अक़ीदत के मुताबिक़ इबादत करने की इजाज़त है... लोग अपने अक़ीदे के साथ मंदिर में पूजा कर सकते हैं, मस्जिद में नमाज़ पढ़ सकते हैं, चर्च में प्रार्थना कर सकते हैं, गुरुद्वारा में मथ्था टेक सकते हैं...
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यशवंत यश 
धर्म! वह नहीं
 जो हम समझते हैं 
सदियों की चली आ रही
 रूढ़ियों से।
रमाजय शर्मा 
क्यूं ढूंढता है ऐ दोस्त मोहब्बत दगाबाज़ों में
ये अनमोल शै मिलती थी कभी बालिहाज़ो में
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सडकों में नपती हैं शहरों की दूरियां 
दिल के रिश्तों में कहाँ कमती दूरियां 

अहसासों को बाँध लेते गर सीमाओं में 
फिर कहाँ सालती हमारे बीच की दूरियां 

टूट जाता है सब्र का सैलाब कभी- कभी 
बारिशों में जब जिय जलाती हैं दूरियां
वीरेन्द्र  कुमार शर्मा 
Megalomania बोले तो सत्ता उन्माद एक प्रकार का मनोविकार होता है जिससे ग्रस्त व्यक्ति बेहद का सत्ता स्वाद ,सत्ता का लुत्फ़ उठाता है। और ज्यादा लोगों पर शासन करने उनसे जीहुज़ूरी करवाने की उसकी भूख बढ़ती ही जाती है। एक प्रकार की भ्रांत धारणा उसे अपने काबू में किये रहती है। ऐसा व्यक्ति मेज को ग़ज़ल कह सकता है। रस्सी में सांप देखना तो इल्यूज़न है लेकिन यहां बात डिल्युश्जन की हो रही है।
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 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
फूल हो गये ज़ुदा, शूल मीत बन गये।
भाव हो गये ख़ुदा, बोल गीत बन गये।।

काफ़िला बना नहीं, पथ कभी मिला नहीं,
वर्तमान थे कभी, अब अतीत बन गये।

देह थी नवल-नवल, पंक में खिला कमल,
लफ्ज़ तो ज़ुबान की, बातचीत बन गये।
विजय कुमार 
दोस्तों , मेरी ये नज़्म , उन सारे शहीदों को मेरी श्रद्दांजलि है , जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर , मुंबई को 26 / 11 को आतंक से मुक्त कराया. मैं उन सब को शत- शत बार नमन करता हूँ. उनकी कुर्बानी हमारे लिए है ............!!!
मेरे देशवाशियों
जब कभी आप खुलकर हंसोंगे ,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी नही हँसेंगे...
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शांतनु सान्याल
राज़ ए तबस्सुम न पूछ 
हमसे ऐ दोस्त,
अनकहे 
अफ़सानों के उनवां नहीं 
होते। यूँ तो बिखरे
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राजपूत 
लोग चबाते रहते हैं ,
शब्दों को दिन-रात,
आदि हो गए है चबाने के,
कोई एक जन,
किसी के हलक से.... 
तो कोई.....
तुषार राज रस्तोगी 
अभी तारे नहीं चमके 
जवां ये शाम होने दो
 लबों से जाम हटा लूँगा
 बहक कर नाम होने दो
 मुझे आबाद करने की 
वजह तुम ढूंढती क्यों हो?
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प्रबोध कुमार गोविल 
आज हमारे पास टीवी देखने के लिए ढेर सारे चैनल्स हैं। इनमें बहुत विविधता भी है। कहा जाता है कि आप जो कुछ देखना चाहें वही उपलब्ध है। मनोरंजन की दुनिया में यह उपलब्धि ही है। 
लेकिन यह भी सत्य है कि आज मनोरंजन के ये स्टेज भी विचारधाराओं से ग्रसित हैं।
सुशील कुमार जोशी 
भाई ‘उलूक’ 
लिखना लिखाना है 
ठीक है लिखा करो
खूब लिखा करो 
मस्त लिखा करो 
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वर्षा 
खुशबू का यह अंक दो आत्माओं के उस मिलन को समर्पित है जिसे हम ब्याह कहते हैं। शादी, ब्याह इस दिव्य संबंध को चाहे जिस नाम से पुकारा जाए जब दो जिंदगियां साथ चलने का फैसला करती हैं तो कुदरत दुआ देती ही मालूम होती है।
रश्मि शर्मा
जब कहतेे हो , याद रखूंगा 
ये ढलती शाम, घेरती ठंड
और जलती रौशनी के संग 
संझा के दीप की टि‍मटि‍माती 
लौ के पीछे 
तुम्‍हारा दि‍पदि‍पाता चेहरा
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ममता जोशी 
सोचती हूँ पर्वत बन जाऊं ,
अविचलित,अखंड , आकर्षक ,
धवल सफेद, 
आसमान को छूते पर्वत ,
तूफानों का रुख मोड़ दूं ,
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कुलदीप ठाकुर 
देख लिया है
अजमाकर उन को
जो राजा है
बहलाकर हम को।
हम भूल गये थे
अब तक खुद को
समझे थे आजादी
केवल शोषण को।
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हो लगा तड़का अगर तकरार का
ख़ूबसूरत है फ़साना प्यार का

आँधियों में जब उड़ा पत्ता वो ज़र्द
सब कहे जाने दो है बेकार का

ठीक है वो हैं तगाफ़ुल कर रहे
होगा ये उनका तरीक़ा प्यार का
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धन्यवाद , आपका दिन मंगलमय हो। 

1 टिप्पणी:

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