मुझे मालूम नहीं, किस शै का नाम है वफ़ा तूने जो भी किया, हम तो उसी को वफ़ा कहें।
ख़ुद को मिटाना होता है प्यार पाने के लिए राहे-इश्क़ के बारे में बता और क्या कहें।
क्यों हम इस ख़ूबसूरत ज़िंदगी को सज़ा कहें आओ प्यार को इबादत, महबूब को ख़ुदा कहें।
मुश्किलों को देखकर माथे पर शिकन क्यों है हम ज़ख़्मों को इनायत, कसक को दवा कहें।
ख़ुद को बदलो, लोगों की फ़ितरत बदलेगी नहीं चलो ज़माने से मिली हर बद्दुआ को दुआ कहें।
माना तुझसे ‘विर्क’ निभाई न गई क़समें मगर तुझे महबूब कहा था, अब कैसे बेवफ़ा कहें। क्यों जिस्म के किस्से इश्क जिस्मानी कहें , आओ कुछ इश्क हकीकी रूहानी कहें। ये जिस्म ही काबा काशी है , अयोध्या का इसे रामलला कहें। इसमें परवरदिगार का वासा है। बेहतरीन ग़ज़ल कही है विर्क साहब ने। satshriakaljio.blogspot.com
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मुझे मालूम नहीं, किस शै का नाम है वफ़ा
जवाब देंहटाएंतूने जो भी किया, हम तो उसी को वफ़ा कहें।
ख़ुद को मिटाना होता है प्यार पाने के लिए
राहे-इश्क़ के बारे में बता और क्या कहें।
क्यों हम इस ख़ूबसूरत ज़िंदगी को सज़ा कहें
आओ प्यार को इबादत, महबूब को ख़ुदा कहें।
मुश्किलों को देखकर माथे पर शिकन क्यों है
हम ज़ख़्मों को इनायत, कसक को दवा कहें।
ख़ुद को बदलो, लोगों की फ़ितरत बदलेगी नहीं
चलो ज़माने से मिली हर बद्दुआ को दुआ कहें।
माना तुझसे ‘विर्क’ निभाई न गई क़समें मगर
तुझे महबूब कहा था, अब कैसे बेवफ़ा कहें।
क्यों जिस्म के किस्से इश्क जिस्मानी कहें ,
आओ कुछ इश्क हकीकी रूहानी कहें।
ये जिस्म ही काबा काशी है ,
अयोध्या का इसे रामलला कहें। इसमें परवरदिगार का वासा है। बेहतरीन ग़ज़ल कही है विर्क साहब ने।
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आभार.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाऐँ
सादर..
सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंगोवर्धन पूजा की शुभङकामनाएँ।
आपका आभार आदरणीय दिलबाग सिंह विर्क जी।
सुन्दर गुरुवारीय चर्चा प्रस्तुति में 'उलूक' के सूत्र को भी स्थान देने के लिये आभार दिलबाग जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं सभी को
सुन्दर सार्थक मनभावन सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार आपका दिलबाग जी !
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