मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मित्रों!
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ग़ज़ल
"प्रारब्ध है सोया हुआ"
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रिश्ते...........
डॉ. रति सक्सेना
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कश्मीर को नई शुरुआत का इंतजार
जिज्ञासा पर
pramod joshi
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जिज्ञासा पर
pramod joshi
बेपर्दा रूहें
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मन ने थामी तृष्णा की डोर..
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हाईकू
भोर का गीत
मीठा मधुर गीत
है यही रीत
प्रातः बेला में
कोकिला का संगीत
मधुर होता...
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पाकिस्तान का आर्थिक संकट
और कट्टरपंथी आँधियाँ
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आओ इस धरती को स्वच्छ बनाएँ,
हरे भरे पेड़ लगाकर इसे बचाएँ |
आओ हाथ इसमें लगाओ,
हर यादगार दिन में पेड़ लगाओ...
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हिन्दुस्तानी खाने में बड़ा चक्कर है| फुलका, रोटी, चपाती, परांठा, नान में फ़र्क करना भी बड़ा मुश्किल है|तवा परांठा और तंदूरी रोटी खाने के बाद तंदूरी परांठा हलक से नीचे उतारने में दिल्लत होती है| आखिर तंदूरी परांठा परांठा कैसे हो सकता है भरवाँ तंदूरी रोटी होना चाहिए...
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हरे भरे पेड़ लगाकर इसे बचाएँ |
आओ हाथ इसमें लगाओ,
हर यादगार दिन में पेड़ लगाओ...
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हिन्दुस्तानी खाने में बड़ा चक्कर है| फुलका, रोटी, चपाती, परांठा, नान में फ़र्क करना भी बड़ा मुश्किल है|तवा परांठा और तंदूरी रोटी खाने के बाद तंदूरी परांठा हलक से नीचे उतारने में दिल्लत होती है| आखिर तंदूरी परांठा परांठा कैसे हो सकता है भरवाँ तंदूरी रोटी होना चाहिए...
...आज भी ऐसा ही हुआ |लेकिन तभी देखा, कोई पचास कदम पर दो बलिष्ठ लंगूर टावर से उतरकर दीवारों और पेड़ों पर नहीं, निधड़क सड़क पर चहलकदमी करते हुए हमारी ओर आ रहे हैं | हमें देखकर वे और उन्हें देखकर हम रुक गए |लंगूर तो सहज थे लेकिन हमारी और तोताराम की टाँगें काँप रही थीं...
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कार्टून :-
चुनाव जीतने का शर्तिया इलाज
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कफ की समस्या है :
दूध पीने से नहीं होगा नुक्सान
Virendra Kumar Sharma
Virendra Kumar Sharma
शुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंचर्चामंच की बेहतरीन प्रस्तुति, मेरी रचना को कोना देने के लिए, आप का सह्रदय आभार
सादर
नीड़ में सबके यहाँ प्रारब्ध है सोया हुआ
जवाब देंहटाएंकाटते वो ही फसल जो बीज था बोया हुआ
खोलकर गठरी न देखी, दूसरों की खोलताबढ़िया
गन्ध को है खोजता, मूरख हिरण खोया हुआ
कोयले की खान में, हीरा कहाँ से आयेगा
मैल है मन में भरा, केवल बदन धोया हुआ
अब तो माली ही वतन का खाद-पानी खा रहे
इस लिए आता नज़र सुरभित सुमन रोया हुआ
खोट ने पॉलिश लगाकर "रूप" कंचन का धरा
पुण्य ने बनकर श्रमिक अब, पाप को ढोया हुआ
बढ़िया भाव बोध की दार्शन संसिक्त ग़ज़ल प्रारब्ध को कर्म भोग फल को समझाती हुई ग़ज़ल हरेक शैर बहुत ख़ास
nanhemunne.blogspot.com
veerujan.blogspot.com
vaahgurujio.blogspot.com
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
जवाब देंहटाएंबढ़िया भाव बोध की दार्शन संसिक्त ग़ज़ल प्रारब्ध को कर्म भोग फल को समझाती हुई ग़ज़ल हरेक शैर बहुत ख़ास
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बढ़िया रचना पढ़ने को मिली अनीता सैनी जी की ,बधाई !
दिन को सुकून न रात को चैन ,
कुछ पल बैठ, क्यों बेचैन ?
मन बैरी रचता यह खेल,
तन बना कोलू का बैल !!
मन की दौड़ समय का खेस ,
ओढ़ मनु ने बदला भेस !!
मन की पहचान मन से छुपाता,
तिल तिल मरता, भेस बदलता !!
मनु को मन ने लूट लिया,
जीवन उस का छीन लिया !!
बावरी रीत परिपाटी का झोल,
तन बैरी बोले ये बोल !!
तन हारा !!
समय ने उसको खूब लताड़ा,
बदले भेस जीवन को निचोड़ा !!
मन चंचल !!
सुलग रही तृष्णा की कोर ,
थका मनु न छूटी डोर !!
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर...
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
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