मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मित्रों!
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ग़ज़ल
"जिन्दगी जिन्दगी पे भारी है"
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किसने कह दिया
‘उलूक’
कि पागलों को
प्रयोग करने के लिये
मना किया जाता है
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सूरज तुम जग जाओ न.....
श्वेता सिन्हा
धुँधला धुँधला लगे है सूरज
आज बड़ा अलसाये है
दिन चढ़ा देखो न कितना
क्यूँ न ठीक से जागे है
छुपा रहा मुखड़े को कैसे
ज्यों रजाई से झाँके है...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
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धुँधला धुँधला लगे है सूरज
आज बड़ा अलसाये है
दिन चढ़ा देखो न कितना
क्यूँ न ठीक से जागे है
छुपा रहा मुखड़े को कैसे
ज्यों रजाई से झाँके है...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
'तूँ प्रकाशो दा मुंडा वें ?''.......
मेरे पंजाब की बात ही कुछ और है
सोचता हूँ क्या है यह ? कौन सा अपनत्व है ?
कौन सा लगाव है ? कौन सी ममता है ?
कौन सा रिश्ता है जो वर्षों बाद मिले
दूर-दराज के रिश्ते के लोगों को भी गले लगा,
अपना वात्सल्य उड़ेलने को तत्पर रहता है...
कुछ अलग सा पर
गगन शर्मा
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सोचता हूँ क्या है यह ? कौन सा अपनत्व है ?
कौन सा लगाव है ? कौन सी ममता है ?
कौन सा रिश्ता है जो वर्षों बाद मिले
दूर-दराज के रिश्ते के लोगों को भी गले लगा,
अपना वात्सल्य उड़ेलने को तत्पर रहता है...
कौन सा लगाव है ? कौन सी ममता है ?
कौन सा रिश्ता है जो वर्षों बाद मिले
दूर-दराज के रिश्ते के लोगों को भी गले लगा,
अपना वात्सल्य उड़ेलने को तत्पर रहता है...
कुछ अलग सा पर
गगन शर्मा
अस्ताचल
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हाइकु
मेरा भारत
अनेक भाषाभाषी
रहते यहां।
पालते धर्म
बिना भेदभाव के
करते कर्म...
मन के वातायन पर
Jayanti Prasad Sharma
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मेरा भारत
अनेक भाषाभाषी
रहते यहां।
पालते धर्म
बिना भेदभाव के
करते कर्म...
अनेक भाषाभाषी
रहते यहां।
पालते धर्म
बिना भेदभाव के
करते कर्म...
मन के वातायन पर
Jayanti Prasad Sharma
एक कन्हैया भारतीय राजनीति का अपशब्द है ,
एक अद्भुत शिशुपाल का राजनीतिक अवतरण है
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एक दोहा
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उखड़े हुए पेड़ पर
हर कोई कुल्हाड़ी मारता है
मक्खन की हंड़िया सिर पर रखकर धूप में नहीं चलना चाहिए
बारूद के ढ़ेर पर बैठकर आग का खेल नहीं खेलना चाहिए...
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मक्खन की हंड़िया सिर पर रखकर धूप में नहीं चलना चाहिए
बारूद के ढ़ेर पर बैठकर आग का खेल नहीं खेलना चाहिए...
बारूद के ढ़ेर पर बैठकर आग का खेल नहीं खेलना चाहिए...
मेघ-दूत :
आर्थर रैम्बो की कविताएँ :
अनुवाद मदन पाल सिंह
समालोचन पर arun dev
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समालोचन पर arun dev
लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का आभाव
आतंकवाद को मदद पहुंचाता है
अनिल सिन्हा
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झुग्गियो मे सर्द रातें
रो रहा है हिन्दुस्तान ....
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कालपात्र की तरह
खानदान को उखाड़ने का समय
चन्द्रिका को तो एलजाइमर था इसलिये वह सारे परिवार को भूल गयी लेकिन उसका बेटा अमोल बिना अलजाइमर के ही सभी को भूल गया! मोदी को अलजाइमर नहीं है, वे अपने नाम के साथ अपने पिता का नाम भी लगाते हैं, राजीव गांधी को भी अलजाइमर नहीं था, फिर वे अपने पिता का नाम अपने साथ क्यों नहीं लगाते थे? राहुल गाँधी अपनी दादी का नाम खूब भुनाते हैं लेकिन दादा का नाम कभी भूले से भी नहीं लेते! यह देश लोकतंत्र की ओर जैसे ही बढ़ने लगता है, वैसे ही इसे राजतंत्र की ओर मोड़ने का प्रयास किया जाता है। बाप-दादों के नाम का हवाला दिया जाता है, देख मेरे बाप का नाम यह था, बता तेरे बाप का...
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किताबों की दुनिया -
205
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नीरज पर नीरज गोस्वामी
नीरज पर नीरज गोस्वामी
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर...
खुद जिनके किरदार में भांति -भांति के छेद ,
जवाब देंहटाएंवे हमको समझा रहे ,भले बुरे का भेद।
बढ़िया भाव अभिव्यक्ति
veerujan.blogspot.com
बढ़िया भाव अभिव्यक्ति शास्त्री जी की :
जवाब देंहटाएंजिन्दगी जिन्दगी पे भारी है
हाड़ धुनने का काम जारी है
क्या करें जीने की लाचारी है ,
ये आदतन ही खेल ज़ारी है।
उम्र सारी ही यूं गुज़ारी है ,
कोई तो है जो हम पे तारी है।
veerujan.blogspot.com
kabirakhadasaraimen.blogspot.com
शुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंचर्चामंच की सुन्दर प्रस्तुति 👌
सादर
सुन्दर मंगलवारीय चर्चा। आभार आदरणीय 'उलूक' के प्रयोग को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मंगलवारीय चर्चा प्रस्तुति। मेरी रचना शामिल करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं