मित्रों!
शुक्रवार चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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कहाँ सरक गया रेगिस्तान!
बचपन में रेत के टीले हमारे खेल के मैदान हुआ करते थे, चारों तरफ रेत ही रेत थी जीवन में। हम सोते भी थे तो सुबह रेत हमें जगा रही होती थी, खाते भी थे तो रेत अपना वजूद बता देती थी, पैर में छाले ना पड़ जाएं तो दौड़ाती भी थी और रात को ठण्डी चादर की तरह सहलाती भी थी। लेकिन समय बीतता रहा और रेत हमारे जीवन से खिसक गयी...
अजित गुप्ता का कोना
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ढलती धूप के अंतिम प्रहर में -
बीतते जाते प्रहर निःशब्द ,
नीरव नाम लेकर
कौन अब आवाज़ देगा!
खड़ी हूँ अब रास्ते पर मैं थकी सी पार कितनी
दूरियाँ बाकी अभी हैं. बैठ जाऊँ बीच में थक कर
अचानक अनिश्चय से
भरी यह मुश्किल घड़ी है...
प्रतिभा सक्सेना
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भारत में संसद और विधानसभा के सत्र
हर देश के विकास में संसद और विधानसभा का बहुत महत्व होता है, वैसे ही भारत में संसद और विधानसभा के सत्र का महत्व है। सांसद १५ लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, और वैसे ही विधायक अपने क्षैत्र का प्रतिनिधित्व करता है। हमारी संसद ३६५ दिन में केवल ७० दिन कार्य करती है, और...
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----- ॥ टिप्पणी १५ ॥ -----
खेद का विषय है कि
सत्तर वर्ष व्यतीत होने के पश्चात भी
गांधी-नेहरू से किसी विपक्ष नहीं पूछा कि
भारत विभाजन का उद्देश्य क्या था...
NEET-NEET पर
Neetu Singhal
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कविता:
मैं भीड़ बनकर जी रहा हूँ ज़िन्दगी की तलाश में...
जीवन की है श्रोत नादियाँ ख़ुद ही बेसुध प्यास में...
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जिन्होंने जन्म देकर, ‘रूप’ को नाजों से पाला है
जवाब देंहटाएंकभी माँ-बाप की कीमत, चुकायी ही नहीं जाती
छिपा लेते हैं सब कमियां हमारे हर चरण की ,
कभी माँ बाप की करजी चुकाई ही नहीं जाती
बेहतरीन भाव की ग़ज़ल कही है मान्यवर शास्त्री जी ने।
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गुमज़ुबां अब और रहा न गया
हालांकि कुछ ख़ास कहा न गया
जड़ें कुतरते वो मिले समझा जिनको मित्र ,
जवाब देंहटाएंजीवन में हमने जीये रिश्ते बड़े विचित्र।
तरह तरह के लोग थे ,गिरगिट बदले रंग ,
कोई ढंग का न मिला देखे सबके ढंग।
बढ़िया भाव और अर्थ आज के जीवन की झरबेरियों की चुभन एक ही दोहे में पूरी भर दी आपने मनोज अ -(सुबोध जी ).
जड़ें कुतरते वो मिले समझा जिनको मित्र ,
जवाब देंहटाएंजीवन में हमने जीये रिश्ते बड़े विचित्र।
तरह तरह के लोग थे ,गिरगिट बदले रंग ,
कोई ढंग का न मिला देखे सबके ढंग।
बढ़िया भाव और अर्थ आज के जीवन की झरबेरियों की चुभन एक ही दोहे में पूरी भर दी आपने मनोज अ -(सुबोध जी ).
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सचमुच ये भारत में रहने वाले मुसलमान ज़रूर हैं लेकिन खुद को मुस्लिम फस्टर्स कहलवाने में बड़े गौरवान्वित होते हैं। हैं ये मुस्लिम।
जवाब देंहटाएंवीरुभाई
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>> सत्तर वर्ष व्यतीत हो गए किन्तु गांधी-नेहरू से किसी विपक्ष ने प्रश्न नहीं किया कि यदि अभारतीय मुसलमानों को ही राज देना था तो अंग्रेज क्या बुरे थे.....
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा मंच की प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंसादर
https://mysayaribck.blogspot.com/2018/11/blog-post_15.html?m=1
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