सुधि पाठकों!
बुधवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
संस्कृत पर दोहे
( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
थोड़े शब्दों में बने, संस्कृत के सब वाक्य। घर में जाकर कीजिए, आप सदा शालाक्य ।।
फोर्ब्स मैगजिन बोलते, संस्कृत को उपयुक्त। बोलचाल में कीजिए, इसको भी प्रयुक्त...
फोर्ब्स मैगजिन बोलते, संस्कृत को उपयुक्त। बोलचाल में कीजिए, इसको भी प्रयुक्त...
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उर्दू अदब में बहुत बड़ा नाम है
शीन काफ़ निज़ाम,
आज इनके जन्मदिन पर पढ़िए
उनकी गजलें
Alaknanda Singh
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शीर्षक :
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,
हवा में सनसनी घोले हुए हैं :
जी ज़नाब
देश में आपात काल जैसे हालात हैं -
श्री यशवंत सिन्हा जी
Virendra Kumar Sharma
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सजाई महफिलें
जो प्रेम की
खामोश पायल ने ...
सजाई महफिलें जो प्रेम की खामोश पायल ने
मधुर वंशी बजा दी नेह की फिर श्याम श्यामल ने...
Digamber Naswa
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नीले आसमान पर
लिखता मन पढता तन
सफ़र में एक परिंदा
पेड की शाख पर बैठा
इंतजार करता भोर की...
हमसफ़र शब्द पर
संध्या आर्य
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"एक फुट के मजनूमियाँ"
आदरणीया रश्मि प्रभा जी की नज़र से
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विधाता की अनमोल कृति
हंसती मुस्कुराती चंचल सी मन को भाती मनमोहिनी सी यह प्रकृति का अनुपम उपहार बेटियां हैं घर का श्रृंगार अपने कोमल निर्मल मन से करती शोभित दो-दो घर माँ-बाप के दिल का यह टुकड़ा सुंदर इनका चाँद सा मुखड़ा करती शोभित घर पिया का करती रोशन नाम पिता का प्रभू की यह अनमोल कृति है ...
anuradha chauhan at
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कविता :
मनुष्यता की आशा
बढ़ती इस दुनियां में कुछ ढूँढ रहा हूँ, लोक मनुष्यता का कुछ आश | सरल से स्वभाव को, मन का आज़ाद हो | दिल का हो स्नेह बहार, हौशलों से उड़े आसमान से परे, कुछ कर जाए वे ऐसा | किसी को भी मालूम न हो, उस कारनामा का पता न हो ...
सुंदर चर्चा आज की
जवाब देंहटाएंआभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए ...
शुभ प्रभात आदरणीया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चामंच का संकलन 👌
सह्रदय आभार आदरणीया, मेरी रचना को स्थान देने के लिए
सादर
नारी की तो कथा यही है
जवाब देंहटाएंआदि काल से प्रथा रही है
पली कहीं तो, फली कहीं है
दुनिया के उन्मुक्त गगन में
कितने सपने देखे मन में
नारी का एक चित्र बांधती प्यारी प्यारी सी ये रचना
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जवाब देंहटाएंveeruji05.blogspot.com
संस्कृत पर दोहे
थोड़े शब्दों में बने, संस्कृत के सब वाक्य।
घर में जाकर कीजिए, आप सदा शालाक्य ।।
फोर्ब्स मैगजिन बोलते, संस्कृत को उपयुक्त।
बोलचाल में कीजिए, इसको भी प्रयुक्त।।
उपयोगी होती बहुत, है शब्दों की खान।
शब्दकोश इसका बड़ा, इतना लेना जान।।
सन् सत्तर में छप गया, संस्कृत में अखबार।
सुधर्मा के नाम से, जग में हुआ प्रचार।।
लिक्खे संस्कृत में यहाँ , सारे वेद पुराण।
जिन से मिलता है यहाँ , मानव को परित्राण।।
संस्कृत भाषा सीखकर, होता तेज दिमाग।
इससे ही है बन गए, सारे राग विराग।।
कम्प्यूटर पर खरी उतरती है ये भाषा ,एक एक शब्द के नौ नौ दस दस अर्थ यहां हैं। बढ़िया प्रयोग धर्मी भाषा और उतनी ही भाव पूर्ण रचना राधे तिवारी राधा जी की (राजस्थानी में बणीठणी की )
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआभार।
जब इंदिराजी को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में लाया गया था वे ब्रेन डेड थीं लेकिन उनकी मृत्यु की घोषणा तक उन्हें क्लिनिकली लाइव रखा गया था। मृत्यु के मुख से आये लोगों के अनेक किस्से हैं एक ढूंढों हज़ार मिलेंगे।गूगल पिटारे में सब कुछ है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी मानवीय पहलु का स्पर्श करता हुआ जनकल्याण कारी आलेख आदरणीय डॉ.तिरलोकी (त्रिलोकी )सिंह दराल साहब का।
veeruji05.blogspot.com
Veeru Sahab1 second ago - Shared publicly
जवाब देंहटाएंGood job
ये कैसी नस्ल है अपने बड़ों से
बग़ावत की इजाजत चाहती है
बजा तुम ने लहू पानी किया है
मगर मिटटी मुहब्बत चाहती है
veeruji05.blogspot.com
बहुत सुंदर रचनाएं सुंदर संकलन मेरी रचना को
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच में स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत
धन्यवाद राधा जी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत सुन्दर सूत्र एवं बेहतरीन रचनाएं !मेरी ब्लॉग पोस्ट को भी सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार राधा जी ! सस्नेह वन्दे
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक्स आज की |
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