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है दीवाली-मिलन में ज़रूरी 'नज़ीर' .....
नजीर बनारसी
घर की किस्मत जगी घर में आए सजन
ऐसे महके बदन जैसे चंदन का बन
आज धरती पे है स्वर्ग का बाँकपन
अप्सराएँ न क्यूँ गाएँ मंगलाचरण ...
ऐसे महके बदन जैसे चंदन का बन
आज धरती पे है स्वर्ग का बाँकपन
अप्सराएँ न क्यूँ गाएँ मंगलाचरण ...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
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एक प्रतिमा विशाल भी होगी ...
खेत होंगे कुदाल भी होगी
लहलहाती सी डाल भी होगी
धूप के इस तरह मुकरने में
कुछ तो बादल की चाल भी होगी...
Digamber Naswa
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चालाक बुनकर
मकड़ी एक चालाक बुनकर है
बुनती रहती है जाल फंसाती रहती है
उस जाले में कीड़े मकोडों को
जो फंसकर गँवा बैठते हैं अपनी जान
वे बेचारे कीडे़ मकोडे़...
प्यार पर
Rewa tibrewal
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होते हैं दिखते नहीं, होते कई हजार
होते हैं दिखते नहीं, होते कई हजार।मन के भीतर के बने, तोरण वाले द्वार।।तोरण वाले द्वार,सहज होकर खुल जाते।मन के जो शालीन, मार्गदर्शक बन आते।कहे ऋता यह बात, व्यंग्य से रिश्ते खोते।हवा गर्म या सर्द, नहीं दिखते पर होते।।
मधुर गुंजन पर
ऋता शेखर 'मधु'
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शुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,बेहतरीन रचनाएँ, मुझे स्थान देने के लिये आभार आदरणीय
सादर
सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को "चर्चा मंच"में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
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