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मंगलवार, नवंबर 13, 2018

"छठ माँ का उद्घोष" (चर्चा अंक-3154)

शनिवार चर्चा में आपका स्वागत है।   
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।   
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')  
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है दीवाली-मिलन में ज़रूरी 'नज़ीर' ..... 

नजीर बनारसी 

जखीरा, साहित्य संग्रह | Jakhira, literature Collection | urdu hindi shayari collection
घर की किस्मत जगी घर में आए सजन 
ऐसे महके बदन जैसे चंदन का बन 
आज धरती पे है स्वर्ग का बाँकपन  

अप्सराएँ न क्यूँ गाएँ मंगलाचरण ... 
yashoda Agrawal  
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एक प्रतिमा विशाल भी होगी ... 


खेत होंगे कुदाल भी होगी
लहलहाती सी डाल भी होगी

धूप के इस तरह मुकरने में
कुछ तो बादल की चाल भी होगी... 
Digamber Naswa  
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चालाक बुनकर 

मकड़ी एक चालाक बुनकर है  
बुनती रहती है जाल फंसाती रहती है  
उस जाले में कीड़े मकोडों को  
जो फंसकर गँवा बैठते हैं अपनी जान  
वे बेचारे कीडे़ मकोडे़... 

प्यार पर 
Rewa tibrewal  
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होते हैं दिखते नहीं, होते कई हजार 

होते हैं दिखते नहीं, होते कई हजार।मन के भीतर के बने, तोरण वाले द्वार।।तोरण वाले द्वार,सहज होकर खुल जाते।मन के जो शालीन, मार्गदर्शक बन आते।कहे ऋता यह बात, व्यंग्य से रिश्ते खोते।हवा गर्म या सर्द, नहीं दिखते पर होते।। 

ऋता शेखर 'मधु' 
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शीर्षकहीन 

आनन्द वर्धन ओझा - 
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किताबों की दुनिया -  

203 

नीरज पर 
नीरज गोस्वामी 
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3 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात आदरणीय

    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,बेहतरीन रचनाएँ, मुझे स्थान देने के लिये आभार आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को "चर्चा मंच"में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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