सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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निकाय चुनाव
चन्डूखाना और गणित
शहर की चैन की साँसों के
अंतिम पड़ाव की शाम
आँसू बहा रही है
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती
कल शाम दफ्तर से लौट कर हेयर कटिंग करवाने चला गया. पहले से फोन पर एप से रिजर्वेशन करा लिया था तो तुरंत ही नम्बर आ गया. दिन भर दफ्तर की थकान, फिर लौटते वक्त ट्रेन में भी कुछ ज्यादा भीड़ और उस पर से बरफ भी गिर रही थी तो मोटा भारी जैकेट. जैकेट उतार कर जरा आराम मिला नाई की कुर्सी पर बैठते ही और नींद के झौके ने आ दबोचा. इस बीच कब वो बाल काटने आई, उसने रिकार्ड से पिछली बार के कटिंग की पर्ची निकाल कर कब पढ़ा कि....
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वो एक रात के अतिथि --
संस्मरण -
जनवरी 1996 की बात है |कडकडाती ठंड में उस दिन बहुत जल्दी धुंध बरसने लगी थी और चारों तरफ वातावरण धुंधला जाने से थोड़ी सी दूर के बाद कुछ भी साफ दिखाई नहीं देता था | इसी बीच हमारे दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी तो देखा एकअत्यंत बूढ़े बाबा खड़े थे जिनकी पीठ पर एक गट्ठर लदा था | बाबा ठंड से ठिठुरते हुए मानों पीले पड़ चुके थे और उनके मुंह से कोई बात नहीं निकल पा रही थी...
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हम नहीं थे इनके
हम नहीं थे इनके नहीं थे उनके,
सबके ही हम खास रहे।
नहीं किसी से दूर रहे,
सबके ही हम पास रहे।
जो मिला उसे अपना समझा,
जो नहीं मिला उसे सपना समझा।
रूठे अपने टूटे सपने,
नहीं रोये नहीं उदास रहे...
सबके ही हम खास रहे।
नहीं किसी से दूर रहे,
सबके ही हम पास रहे।
जो मिला उसे अपना समझा,
जो नहीं मिला उसे सपना समझा।
रूठे अपने टूटे सपने,
नहीं रोये नहीं उदास रहे...
मन के वातायन पर
Jayanti Prasad Sharma
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ईश्वर को पत्र
वर्तमान परिस्थिति पर शिकायत किस् से करें ? सो ईश्वर को पत्र लिख दिया | ईश्वर को पत्र हे ईश्वर ! संसार से जो निराश होते हैं वह तेरे द्वार आते हैं | हम भी निराश हैं, जनता से, सरकार से | तू निर्विकार है, निराकार है, अदृश्य अमूर्त है| फिर भी भ्रमित लोग अपनी इच्छा अनुसार कल्पना से तेरी मूर्ति बनाकर, आस्था की दुहाई देकर आम जनता, सरकार, यहां तक की अदालत को भी मजबूर कर देते हैं..
कालीपद "प्रसाद"
अच्छे लिंकों के साथ पठनीय चर्चा।
जवाब देंहटाएंआभार।
धन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए |
जवाब देंहटाएंसुन्दर सोमवारीय चर्चा में 'उलूक' के निकाय चुनाव और चन्डूखाने की खबर को स्थान देने के लिये आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत ही सुन्दर चर्चा मंच की प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लाग की पोस्ट को चर्चामंच पर स्थान देने हेतु धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।मेरी रचना शामिलकरने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं'ईश्वर को पत्र ' काली प्रसाद जी लिखते हैं :ज़वाब कोई भी दे सकता है क्योंकि वह सबमें हैं आकार निराकार सगुण - निर्गुण ,राजा -रंक ,दुर्योधन -युधिष्ठिर भी वही है। राम -रावण भी सब कुछ जो दीखता है उसी की लीला का विस्तार है।
जवाब देंहटाएंसगुण मीठो खाँड़ सो ,निर्गुण कड़वो नीम ,
जाको गुरु जो परस दे ,ताहि प्रेम सो जीम।
जाकी रही भावना जैसी,
प्रभ मूरत देखि तिन तैसी।
जिन खोजा तिन पाइयाँ ,गहरे पानी पैठ।
जो बौरी डूबन डरी , रही किनारे बैठ।
असली सवाल है आस्था ,श्रद्धा ,प्रेम। क्या हम उसे प्रेम करते हैं जानते हैं उसे या सुना सुनाया दोहराते हैं ?
साँच कहूँ सुन लेओ सभै ,
जिन प्रेम कियो ,तिन ही प्रभ पायो।
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सगुण मीठो खाँड़ सो ,निर्गुण कड़वो नीम ,
जाको गुरु जो परस दे ,ताहि प्रेम सो जीम।
'ईश्वर को पत्र ' काली प्रसाद जी लिखते हैं :
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शीतल धरा और शीतल गगन है
कड़ाके की सरदी में, ठिठुरा बदन है
ग़ज़ल शास्त्री की ठुमकती बहुत है ,
हवाओं का आँचल उड़ाती बहुत है।