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शनिवार, नवंबर 03, 2018

"भारत की सच्ची विदेशी बहू" (चर्चा अंक-3144)

शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।   
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।   
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')  
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दोहे  

" मात-पिता गुरुदेव को, जो करते हैं प्यार"  

( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )

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इक्तेफाक-  

The coincidence 

डॉ. अपर्णा त्रिपाठी  
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समन्दर जानता है - 

राकेश रोहित 

दो शब्द पर राकेश रोहित  
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भारत की सच्ची विदेशी बहू,  

जिसे देश ने भुला दिया 

आज के दौर में जब गांधी परिवार की एक विदेशी बहू को भारत की बहू साबित करने की कोशिश होती है, भारत की उस असली बहू का जिक्र भी जरूरी है, जिसके बारे में कम लोगों को ही पता है। जो कांग्रेस पार्टी कोशिश करती है कि आज भी ईसाई परंपराओं का पालन करने वाली सोनिया गांधी को भारत के लोग बहू का दर्जा दें, खुद उसी ने उस विदेशी बहू को नकार दिया था, जिसने सही मायनों में भारत के लिए अपना सबकुछ छोड़ दिया था। हम बात कर रहे हैं नेताजी सुभाषचंद्र बोस की पत्नी एमिली शेंकल की। ऑस्ट्रिया की रहने वाली एमिली शेंकल और सुभाषचंद्र बोस का विवाह 1937 में हुआ था... 
Virendra Kumar Sharma  
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अल्पना दिखती नहीं 

आपसी दुर्भावना है, एकता दिखती नहीं
रूप तो सुन्दर सजे हैं, आत्मा दिखती नहीं।।

घोषणाओं का पुलिंदा, फिर हमें दिखला रहे
हम गरीबों की उन्हें तो, याचना दिखती नहीं... 

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साईकिल पर कोंकण यात्रा  

भाग ७:  

कोस्टल रोड़ से कुणकेश्वर भ्रमण 


Niranjan Welankar  
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दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही .... 

निदा फ़ाज़ली

yashoda Agrawal  
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बैठ के सुबह शाम को मैं लिखता रहा , 

tHe Missed Beat पर 
dr.zafar  
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एक ग़ज़ल :  

एक समन्दर मेरे अन्दर--- 

मेरे अन्दर शोर-ए-तलातुम बाहर भीतर 
एक तेरा ग़म पहले से ही और ज़माने का ग़म उस पर  
तेरे होने का ये तसव्वुर तेरे होने से है बरतर... 

आनन्द पाठक  
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कभी तो मुस्कुराओ  तुम 

कभी तो गुनगुनाओ तुम 

कभी तो मुस्कुराओ  तुम
रहो गुमसुम न तुम हरदम 
पिया अब गीत गाओ तुम ... 
Ocean of Bliss पर 

Rekha Joshi 
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प्रकाशन  

"दबी हुई कस्तूरी होगी"  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक') 

11 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    शानदार चर्चाएक से बढ़कर एक रचनाये हैं
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह !सूरत से सीरत भली ,रंग नहीं तासीर ,
    गुरु का संग न छोड़ना मुश्किल में रे बशीर।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह !सूरत से सीरत भली ,रंग नहीं तासीर ,
    गुरु का संग न छोड़ना मुश्किल में रे बशीर।
    veeruji05.blogspot.com
    blogpaksh.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  4. गेयता माधुर्य और अर्थ से सिंचित श्रेष्ठ रचना शास्त्री जी की आप भी पढ़िए गुनिए :

    महक रहा है मन का आँगन,
    दबी हुई कस्तूरी होगी।
    दिल की बात नहीं कह पाये,
    कुछ तो बात जरूरी होगी।।

    सूरज-चन्दा जगमग करते,
    नीचे धरती, ऊपर अम्बर।
    आशाओं पर टिकी ज़िन्दग़ी,
    अरमानों का भरा समन्दर।
    कैसे जाये श्रमिक वहाँ पर,
    जहाँ न कुछ मजदूरी होगी।
    कुछ तो बात जरूरी होगी।।

    प्रसारण भी ठप्प हो गया,
    चिट्ठी की गति मन्द हो गयी।
    लेकिन चर्चा अब भी जारी,
    भले वार्ता बन्द हो गयी।
    ऊहापोह भरे जीवन में,
    शायद कुछ मजबूरी होगी।
    कुछ तो बात जरूरी होगी।।

    हर मुश्किल का समाधान है,
    सुख-दुख का चल रहा चक्र है।
    लक्ष्य दिलाने वाला पथ तो,
    कभी सरल है, कभी वक्र है।
    चरैवेति को भूल न जाना,
    चलने से कम दूरी होगी।
    कुछ तो बात जरूरी होगी।।

    अरमानों के आसमान का,
    ओर नहीं है, छोर नहीं है।
    दिल से दिल को राहत होती,
    प्रेम-प्रीत पर जोर नहीं है।
    जितना चाहो उड़ो गगन में,
    चाहत कभी न पूरी होगी।
    कुछ तो बात जरूरी होगी।।

    “रूप”-रंग पर गर्व न करना,
    नश्वर काया, नश्वर माया।
    बूढ़ा बरगद क्लान्त पथिक को,
    देता हरदम शीतल छाया।
    साजन के द्वारा सजनी की,
    सजी माँग सिन्दूरी होगी।
    कुछ तो बात जरूरी होगी।।
    veeruji05.blogspot.com
    vaahgurujio.blogspot.com
    blogpaksh.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  5. veeruji05.blogspot.com
    vaahgurujio.blogspot.com
    blogpaksh.blogspot.com
    नहीं
    हिन्दी गजल -

    आपसी दुर्भावना है, एकता दिखती नहीं
    रूप तो सुन्दर सजे हैं, आत्मा दिखती नहीं।।

    घोषणाओं का पुलिंदा, फिर हमें दिखला रहे
    हम गरीबों की उन्हें तो, याचना दिखती नहीं।।

    हर तरफ भ्रमजाल फैला, है भ्रमित हर आदमी
    सिद्ध पुरुषों ने बताई, वह दिशा दिखती नहीं।।

    संस्कारों की जमीं पर, उग गई निर्लज्जता
    त्याग वाली भावना,करुणा, क्षमा दिखती नहीं।।

    भ्रूण में मारी गई हैं, बेटियाँ जब से "अरुण"
    द्वार पर पहले सरीखी, अल्पना दिखती नहीं।।

    रचनाकार - अरुण कुमार निगम
    आदित्य नगर, दुर्ग
    छत्तीसगढ़
    आज की वेदना से भरपूर शुद्ध साहित्यिक रूपकों से संसिक्त रचना 'निगम 'अरुण जी की सचमुच आप कविता निगम ही हैं।

    जवाब देंहटाएं
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    जवाब देंहटाएं

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