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बुधवार, मार्च 31, 2010

“ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने के उपाय” (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक - 105
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक
आइए आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं-
आज मुझे ये लिंक्स बहुत ही अच्छे लगे-
सबसे पहले आज नन्ही पाखी
पाखी की दुनिया में अण्डमान निकोबार के मौसम का हाल सुना रही हैं- 
अंडमान में रिमझिम-रिमझिम बारिश
रिमझिम-रिमझिम बारिश तो मुझे बहुत भाती है. आज इन्तजार पूरा हुआ. अंडमान में पहली बारिश आज हुई. कल रात को भूकंप और आज दोपहर में बारिश. भूकंप के समय तो मैं बिस्तर पर कूद रही थी, मुझे लगा कि मेरे कूदने से बिस्तर हिल रहा है. पर कुछ ही क्षण में पता चला कि यह भूकंप जी हैं, जो हमें झूला झुला रहे हैं...फिलहाल बारिश की बातें. अभी तो यहाँ भी थोड़ी-थोड़ी गर्मी पड़ने लगी थी, पर अब बारिश इसी तरह हुई तो मजा आ जायेगा. बारिश में यहाँ घूमने में भी मजा आयेगा. नो गर्मी, नो टेंशन. खूब घुमूंगी और मस्ती करूँगीं !!……
और अब पढ़िए यहाँ एक मजेदार धारावाहिक कहानी का रोचक मोड़-
ये किस मोड़ पर ?
Author: वन्दना | Source: एक प्रयास
निशि की सुन्दरता पर मुग्ध होकर ही तो राजीव और उसके घरवालों ने पहली बार में ही हाँ कह दी थी . दोनों की एक भरपूर , खुशहाल गृहस्थी थी . राजीव का अपना व्यवसाय था और निशि को लाड-प्यार करने वाला परिवार मिला. एक औरत को और क्या चाहिए . प्यार करने वाला पति और साथ देने वाला परिवार. वक़्त के साथ उनके दो बच्चे हुए . चारों तरफ खुशहाल माहौल . कहीं कोई कमी नहीं . वक़्त के साथ बच्चे भी बड़े होने लगे और परिवार के सदस्य भी काम के सिलसिले में दूर चले गए . अब सिर्फ निशि अपने पति और बच्चों के साथ घर में रहती ...
संगीता पुरी जी बता रही हैं
फलित ज्योतिष : सच या झूठ
'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष' की खोज : 
ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने के उपाय
हजारो वर्षों से विद्वानों द्वारा अध्ययन-मनन और चिंतन के फलस्वरुप मानव-मन-मस्तिष्‍क एवं अन्य जड़-चेतनों पर ग्रहों के पड़नेवाले प्रभाव के रहस्यों का खुलासा होता जा रहा है , किन्तु ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने हेतु किए गए लगभग हर आयामों के उपाय में पूरी सफलता न मिल पाने से अक्सरहा मन में एक प्रश्न उपस्थित होता है,क्या भविष्‍य को बदला नहीं जा सकता ? किसी व्‍यक्ति का भाग्यफल या आनेवाला समय अच्छा हो तो ज्योतिषियों के समक्ष उनका संतुष्‍ट होना स्वाभाविक है, परंतु आनेवाले समय में कुछ बुरा होने का संकेत हो तो उसे सुनते ही वे उसके निदान के लिए इच्छुक हो जाते हैं। हम ज्योतिषी अक्सर इसके लिए कुछ न कुछ उपाय सुझा ही देते हैं……..
शरद कोकास जी बता रहे हैं-
जनाब! इनकी भी तो कुछ इज्जत है-
हम सब इज़्ज़तदार हैं......
हम सब इज़्ज़तदार लोग हैं .. । हम में से कितने लोग हैं जो इस बात से इंकार करेंगे ? कोई नहीं ना । ग़रीब  से ग़रीब आदमी भी कहता है " हमारी भी कुछ इज़्ज़त है । " वैसे पैसे और इज़्ज़त का कोई सम्बन्ध भी नहीं है । फिर भी कहा जाता है कि इज़्ज़त की फिक्र न पैसे वाले को होती है न ग़रीब को । हाँलाकि इज़्ज़त तो इन दोनो की भी होती है । लेकिन इज़्ज़त के नाम से सबसे ज़्यादा घबड़ाता है एक मध्यवर्गीय । अब ले-दे कर एक इज़्ज़त ही तो होती है उसके पास और जो कुछ भी होता है इसी इज़्ज़त को सम्भालने में ही खत्म हो जाता है । अब ऐसे निरीह प्राणि की भी कोई बेइज़्ज़ती कर दे तो ? बस ऐसे ही एक चरित्र को लेकर गढ़ी गई है यह कविता ।
इज़्ज़तदार  

एक इज़्ज़तदार

बदनामी की हवाओं में     
टीन की छत सा काँपता है   
हर डरावनी आवाज़    
उसे अपना पीछा करते हुए महसूस होती है   
हर दृष्टि घूरती हुई    
चर्चाओं कहकहों मुस्कानों का सम्बन्ध    
वह अपने आप से जोड़ता है    
अपनत्व और उपहास के बोलों को…………..
अरे वाह..! अमिताभ का खौफ किस कदर हाबी है-
aidichoti
भागो कांग्रेसी...बच्चन आया
(उपदेश सक्सेना) 
बचपन में बच्चों को विभिन्न तरीकों से डराया जाता है, कभी उन्हें 'बाबा' द्वारा उठा ले जाने की बात कहकर बहलाया जाता है, तो कभी अँधेरे में भय की आकृति दिखाई जाती है. अमिताभ बच्चन इन दिनों कांग्रेस के लोगों के लिए उसी 'बाबा' का रूप बन गए हैं. अमिताभ अब कांग्रेस के नेताओं के सपनों में आकर 'भूतनाथ' की तरह डराने लगे हैं. दुश्मन के दोस्त को भी दुश्मन मानने वाली कांग्रेस के हाईकमान ने पार्टी नेताओं को बच्चन से दूरियां बनाने के कोई निर्देश निश्चित रूप से नहीं दिए होंगे, मगर कांग्रेसियों के खून में बह रही चाटुकारिता की रक्त कणिकाएं ज्यादा उबाल मार रही हैं. इंदिरा गांघी के प्रादुर्भाव के बाद कांग्रेस में चाटुकारिता की हवा जमकर बही, इसका असर यह हुआ कि, कांग्रेस से जुड़े नेताओं की आत्मा मर गई…
……

पुरानी बातों में दम होता है!

मगर जरा दिल थामकर इस पोस्ट को पढ़ना!

बात पुरानी है !!

मेरा फोटो

हे दुनिया की महान आत्माओं...संभल जाओ....!
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
मेरी गुजरी हुई दुनिया के बीते हुए दोस्तों.....मैं तो तुम्हारी दुनिया में अपने दिन जीकर आ चूका हूँ....और अब अपने भूतलोक में बड़े मज़े में अपने नए भूत दोस्तों के साथ अपनी भूतिया जिन्दगी बिता रहा हूँ....मगर धरती पर बिताये हुए दिन अब भी बहुत याद आते हैं कसम से.....!!अपने मानवीय रूप में जीए गए दिनों में मैंने आप सबकी तरह ही बहुत उधम मचाया था....और वही सब करता था जो आप सब आज कर रहे हो....और इसी का सिला यह है कि धरती अपनी समूची अस्मिता खोती जा रही....
आज
ताऊजी डॉट कॉम
 वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में हैं: सुश्री शिखा वार्ष्णेय -

शिक्षा - टी वी जर्नलिज्म में परास्नातक मोस्को स्टेट युनिवर्सिटी रशिया से.
स्थान - लन्दन
शौक - देश ,विदेश भ्रमण
ब्लाग : स्पंदन
अब अलोकन कीजिए सरस पायस पर प्रकाशित इस प्रेरक बाल गीत का-
मैं भी पढ़ना सीख रही हूँ : आकांक्षा यादव का नया बालगीत
मैं भी पढ़ना सीख रही हूँ

मैं भी पढ़ना सीख रही हूँ,
ताकि पढ़ सकूँ मैं अखबार।
सुबह-सवेरे मेरे द्वार,
हॉकर लाता है अखबार।
कभी नहीं वह नागा करता,
शीत पड़े या पड़े फुहार।
मैं भी ... ... .
आज देखिए! लड़डू क्या बोलता है?
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से.....
ब्लॉगिंग का दो महीना (34 वीं पोस्ट -- 725 पाठक-- 341 कमेंट---10 followers)....गुरू जी, क्या मैं दूसरी कक्षा में जा सकता हूँ ..? - जब मैं करीब सात-आठ साल की उम्र का था तब मेरे पिताजी ने एक बार मुझसे कहा था-" *आदमी को पढ़ना चाहिए*". उस समय मेरे दिमाग में दो बातें समझ में आई . पहला यह क..
अविरल काव्यधारा यहाँ भी तो प्रवाहित हो रही है-
उच्चारण
 “सपनों को मत रोको!”- *मन की वीणा को निद्रा में, * *अभिनव तार सजाने दो! * *सपनों को मत रोको! * *उनको सहज-भाव से आने दो!! * * * *स्वप्न अगर मर गये, * *जिन्दगी टूट जायेगी, * *स्वप्..
नन्हें सुमन
में भी आज एक बाल गीत प्रकाशित हुआ है-
‘‘भँवरा’’ - *गुन-गुन करता भँवरा आया।* *कलियों फूलों पर मंडराया।।* * * *यह गुंजन करता उपवन में।* *गीत सुनाता है गुंजन में।।* * * *कितना काला इसका तन है।* *किन्तु बड़ा ह..



कार्टून : बिना अमिताभ की 'शोले' !!
Source: Cartoon, Hindi Cartoon, Indian Cartoon, Cartoon on Indian Politcs: BAMULAHIJA
बामुलाहिजा >> Cartoon by Kirtish Bhatt        



परदे के पीछे पर्दानशीं है.............माइकल जैक्सन का भूत
Mar 31, 2010 | Author: 'अदा' | Source: काव्य मंजूषा
हमारे पड़ोस के राज्य क्यूबेक में मुस्लिम औरतों के नकाब पहनने पर पाबन्दी लगा दी गयी है, जो एक अच्छी पहल है,  यह हर तरह से अच्छी शुरुआत है, दिनों दिन बुर्के के भी फैशन में इज़ाफा ही हुआ है, बहुत अजीब से बुर्के लोगों की नज़रों से किसी को बचाते नहीं हैं बल्कि ध्यान आकृष्ट ही करते हैं..                           


मीना कुमारी --एक खूबसूरत अदाकारा --आज उनकी पुण्य तिथि है --

Author: डॉ टी एस दराल | Source: अंतर्मंथन 
आज वितीय वर्ष का क्लोजिंग डे है। इत्तेफाक देखिये , आज ही 5० और ६० के दशक की मशहूर अदाकारा ट्रेजिडी क्वीन मरहूम मीना कुमारी जी की भी पुण्यतिथि है।आज का लेख उन्ही की याद में समर्पित है।             


अंधड़ !
लघु कथा- पिछला टायर ! - वित्तीय बर्ष की समाप्ति और ३१ मार्च को अधिकाँश बैंको में खाते समापने कार्य के तहत सार्वजनिक लेनदेन न होने की वजह से ३० मार्च
को ही वेतन बाँट दिया गया था !..
चर्चा के अन्त में नन्हा मन पर इस पूरी बालकविता का आनन्द लीजिए-
बि‍ल्‍ली बोली म्‍याउं म्‍याउं
इस कविता लिखने का श्रेय मैं देना चाहुंगी राजेशा जी को जिन्होंने प्रथम चार पंक्तियां लिखकर मुझसे कविता पूरी करने को कहा और मैनें एक प्रयास किया , प्रयास कितना सफ़ल है यह आप लोग ही बताएंगे ।
बि‍ल्‍ली बोली म्‍याउं म्‍याउं
दूध पि‍युं या चूहे खाउं
व्रत रखूं या संडे मनाउं
या डॉगी को खूब छकाउं


गंगा में या जा नहाऊं
नहीं तो राजनीति अपनाऊं
बिल्लियों की आवाज़ उठाऊं
या फ़िर जंगल में बस जाऊं
किसी के घर पर कभी न आऊं

या फ़िर माया नगरी जाऊं
फ़िल्मों में जा नाम कमाऊं
या फ़िर खोलुं अस्पताल
करूं मैं चूहों का इलाज़

या कुत्ते के बच्चे पालुं
काम से पैसा खूब कमा लूं
या फ़िर शेर को जा पढाऊं
पेड के ऊपर चढना सिखाऊं

या फ़िर बन जाऊं मैं डांसर
उंगलियों पर नचाऊं बंदर
देखे सपने बहुत हसीन
पांव पडें न पर ज़मीन

इतनें में आया इक मच्छर
बैठ गया बिल्ली के ऊपर
कान के ऊपर जब आ काटा
तब बिल्ली का सपना टूटा
म्याऊं-म्याऊं करके गई भाग
लगी हो ज्यों जंगल में आग        

तुम्हारे लिये लाये सीमा सचदेव *  
आज ही

मंगलवार, मार्च 30, 2010

“प्रेरणा कैसी-कैसी?” (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक - 104
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक
आइए आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं-
देखिए 24 घण्टों के कुछ चुने हुए लिंक्स-
समीर लाल जी को तो प्रेरणा मिल गई! क्या आप भी प्रेरणा की तलाश में हैं?
पढ़ लीजिए जरा ये पोस्ट-
उड़न तश्तरी ....

प्रेरणा कैसी कैसी!! - कभी किसी को देख सुन कर *वो आपको इतना अधिक प्रभावित करता है कि आपका प्रेरणा स्त्रोत बन जाता है.* आप उसके जैसा हो जाना चाहते हैं. ठीक ठीक उसके जैसा न भी ...
क्या आप ताऊ रामपुरिया को बधाई देना भूल गये हैं?
अगर भूल गयें हैं तो यहाँ आकर बधाई दीजिएगा!
ताऊ डॉट इन

ताऊ की 500 सौवीं पोस्ट के उपलक्ष्य मे कवि सम्मेलन व मुशायरा - आदरणीय ब्लागर गणों, मैं रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" आप सभी का अभिनंदन करता हूं. और मुझे यह घोषणा करते हुये अपार हर्ष होरहा है कि ताऊ की आज की यह पोस्ट 500 सौ ..
वन्दना अवस्थी दुबे को जन्म-दिन की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
हिंदी ब्लॉगरों के जनमदिन
आज वन्दना अवस्थी दुबे का जन्मदिन है - आज, 30 मार्च को अपनी बात ..., जो लिखा नहीं गया ..., किस्सा कहानी वालीं वन्दना अवस्थी दुबे का जन्मदिन है। इनका ई-मेल पता vandana.adubey@gmail.com है। बधाई व..
लो जी!
साहित्य चोरी का एक प्रकरण और संज्ञान में आया है! जरा यह पोस्ट पढ़कर भी देख लें!
Science Bloggers' Association

साहित्यिक चोरी की एक नई मिसाल- हिन्दी विज्ञान पत्रकारिता : कल आजकल और कल - पिछले दिनों  इसी ब्लॉग पर साहित्यिक चोरी की चर्चा हुयी थी- अभी एक किताब पर नजर पडी़ तो लगा कि जैसे साहित्यिक चोरी की एक नई मिसाल सामने आ गयी हो। किताब का नाम...
अदा जी के दर्द में शामिल होने के लिए इस गजल पर भी दृष्टिपात कर लें-
काव्य मंजूषा

फिर एक घाव उसने और लगाया है... - आज फिर उसने मुझको रुलाया है रूठी हुई थी मैं पर उसने मनाया है ज़ख्मों पर कुछ पपड़ी सी पड़ी थी नाखून से कुरेद कर उसने हटाया है दिल के क़तरनों के पैबंद बन...
बड़ी-बड़ी छोड़ने वाले कुछ मुहावरे यहाँ भी हैं-
अंधड़ ! 
मुहावरे ही मुहावरे ! - *तू डाल-डाल,मैं पात-पात*,*नहले पे दहले* ठन गए, जबसे यहाँ कुछ* अपने मुह मिंया मिट्ठू* बन गए। ताव मे आकर हमने भी कुछ *तरकस के तीर दागे*, बडी-बडी छोडने वाले, ...
एक विरहन की तड़प यहाँ भी तो है- वियोग शृंगार का एक छंद-
GULDASTE - E - SHAYARI

- आपसे मुलाकात न हो तो होती है हमें फ़िक्र, हर वक़्त अपने आपसे करते हैं आपका ज़िक्र, आप जैसा कोई दूजा न होगा हमें नसीब, आप दूर होकर भी सदा रहोगे हमारे करीब !
बेकारी का युग है!
देर मत कीजिए!
पं. डी.के.शर्मा वत्स जी के यहाँ जल्दी से आवेदन कर दीजिए!
कुछ इधर की, कुछ उधर की
  चिट्ठाद्योग सेवा संस्थान द्वारा कवि,गजलकार,लेखक,कार्टूनिस्ट के पदों हेतु आवेदनपत्र आमंत्रित - जैसा कि आप सब लोग जानते हैं कि हिन्दी ब्लागर्स को आ रही समस्यायों को देखते हुए पिछले दिनों हमने आप लोगों की सहायतार्थ "चिट्ठाद्योग सेवा संस्थान" नाम से एक ...
बुन्देलखण्डी गीत का आनन्द लेने के लिए इस पोस्ट को अवश्य पढ़ें!
मसि-कागद

आज मुनईयाँ के ससुरे सें चिट्ठी आई है------->>>मशाल - साहित्यप्रेमियों के सामने एक बुन्देलखंडी गीत प्रदर्शित कर रहा हूँ.. जो कि एक लडकी जो अपने ससुराल में है और कई दिनों तक अपने मायके(पीहर) से कोई खोज-खबर ना ल...
अनुवाद करने में सिद्धहस्त डॉ. सिद्धेश्वर सिंह आज सुनवा रहें हैं-
नासिर काजमी साहब की एक ग़ज़ल आबिदा परवीन के जादुई स्वर में ...
कर्मनाशा

चलो अब घर चलें दिन ढल रहा है - ** * *'कर्मनाशा' पर इधर कुछ समय से अपनी और अनूदित कविताओं की आमद अपेक्षाकृत अधिक रही है और यह भी कि अपनी कई तरह की व्यस्तताओं और यात्राओं के कारण बहुत कम...
और मित्रों हमें भी अवुवाद का शौक चर्राया है! आज पढ़िए मेरी पहली अनूदित रचना!
उच्चारण
“John Masefield की Beauty कविता का हिन्दी अनुवाद” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) - *मित्रों! आज से **उच्चारण** पर विदेशी कवियों की कविताओं के अनुवाद की श्रंखला प्रारम्भ कर रहा हूँ! इस कड़ी में आज प्रस्तुत है- * ** *John Masefield की Bea...
 
कल फिर ग्यारह चिट्ठों की चर्चा लेकर उपस्थित हो जाऊँगा!

सोमवार, मार्च 29, 2010

“मुस्कानों की सुंदर झाँकी” (चर्चा मंच)


"चर्चा मंच" अंक - 103 
चर्चाकार : रावेंद्रकुमार रवि

आइए आज मुस्कराते हुए
"चर्चा मंच" सजाते हैं,
कुछ ऐसी मुस्कानों से,
जिन्हें देखकर सबके मन सज जाते हैं
मुस्कराती हुई ख़ुशियों से -

सबसे पहले आपको दिखाते हैं पाखी की मुस्कान,
जिसने 25 मार्च को अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में
अपना जन्म-दिन मनाया है!
पाखी बहुत धीरे से मुस्कराती है,
पर बहुत अच्छे से मुस्कराती है -

पाखी के जन्म-दिन की झलकियाँ 
आज (25 मार्च) मेरा जन्म-दिन है
जन्म-दिवस पर पाखी के लिए उपहार
पाखी को जन्म-दिवस की बधाइयाँ
अब मिलते हैं आदित्य की मुस्कान से,
जिसे देखकर हम सबको
हरपल मुस्कराते रहने की प्रेरणा मिलती है -

बबुआ विल राईट फ्रॉम बैंकोक..
नन्हा हीरो..
और अब मिलते हैं
एक ऐसी ब्लॉगपरी से,
जिसके मुस्कराने से झरते हैं
ख़ुशियों के फूल -
4

सलाम नमस्ते 

आपने की है कभी ऐसी शरारत ?

अब आपको मिलवाते हैं
बाल-उद्यान में उगे हुए
आलू की अनोखी मुस्कान से
जिसे देखकर बरबस ही मुस्करा उठते हैं
हमारे ओंठ-

मैं सभी सब्जियों का हूँ राजा
और ये हैं माधव
जिनकी मुस्कान से तो
फूल भी मुस्कराना सीखते हैं!
यक़ीन न हो तो ख़ुद ही देख लीजिए -
कैसा लगता हूँ मै ?
पहली बार आइसक्रीम का लुत्फ़
और अब देखिए इन महाशय की मुस्कान,
जो नन्हा मन के स्कूल में
पिटकर भी मुस्करा रहे हैं -

बंदर गया स्कूल
फिरंगी भी मुसकराता है,
नन्हे सुमन प्रांजल और प्राची के साथ
उनकी गोद में लेटकर!
कुछ इस तरह -

वफादार है बड़े काम का
और यह रही
नित्या शेफ़ाली की मोहक मुस्कान,
जिसमें नज़र आ रही है
चंचल गौरैया की सुंदर मुस्कान -

मेरी प्यारी गौरैया
अब मैं सरस पायस को कैसे भूल सकता हूँ,
जो हर पल सबके मन में सजाने को तैयार रहता है, 

ख़ुशियों से झिलमिलाती मनमोहक मुस्कान - सुन, ओ सरस, सुन!मेरी शोभा प्यारी है

रविवार, मार्च 28, 2010

“कैसे बन गये इतने सारे? टिम टिम करते तारे!” (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक-102
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक
आइए आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं-
देखिए 24 घण्टों के कुछ चुने हुए लिंक्स-
कैसे बन गये इतने सारे टिम टिम करते तारे?
Mar 28, 2010 | Author: Manoj Bijnori | Source: Science Bloggers' Association
आये दिन हम अन्तरिक्ष में होने वाले अनेक परीक्षणों के बारे में जानते रहते है पर कभी कभी हमारे दिमाग में एक सवाल उठने लगता है की आकाश में ये जो तारे हैं इनका निर्माण कैसे हुआ होगा ये अन्तरिक्ष की जानकारी भी बहुत रोचक है और इस अन्तरिक्ष को सही से जाननेके लिए हज़ारो वर्ष भी कम है।…..
कैसा हो कलियुग का धर्म ??
Mar 28, 2010 | Author: संगीता पुरी | Source: गत्‍यात्‍मक चिंतन
प्रत्‍येक माता पिता अपने बच्‍चों को शिक्षा देते हैं , ताकि उसके व्‍यक्तित्‍व का उत्‍तम विकास हो सके और किसी भी गडबड से गडबड परिस्थिति में वह खुद को संभाल सके। पूरे समाज के बच्‍चों के समुचित व्‍यक्तित्‍व निर्माण के लिए जो अच्‍छी शिक्षा दे, वो गुरू हो जाता है। इसी प्रकार सारी मानव जाति के कल्‍याण के लिए बनायी गयी शिक्षा धर्म और उसे देनेवाले धर्म गुरू हो जाते हैं। इस शिक्षा का मुख्‍य उद्देश्‍य ज्ञान की प्राप्ति होनी चाहिए, जिसका आज गंभीर तौर पर अभाव है। सिर्फ गणित और विज्ञान को पढकर शिक्षा तो प ...
जनसत्‍ता के संपादक ओम थानवी जी ने आज जनसत्‍ता में लिखा है कि ...... (अविनाश वाचस्‍पति)
 
Mar 28, 2010 | Author: अविनाश वाचस्पति | Source: नुक्कड़
इमेज पर करके क्लिक आप पढ़ लीजिए पढ़ कर अपनी राय दीजिए आप करते हैं क्‍या महसूस कहिए आप भी विशेष कुछ।…
“पिता जी को पड़पोते ने साबुन मलकर नहलाया”
| Source: पिताजी
   आज का बिल्कुल ताजा संस्मरण पोस्ट कर रहा हूँ! मेरे पिता जी की आयु इस समय 90 वर्ष की है। इस उम्र में भी वे अपने दैनिक कार्य स्वयं ही करते हैं। यों तो उनके लिए निचली मंजिल पर भी स्नानगृह बना है। मगर उसमें गीजर नही लगा है। इसलिए पूरे जाड़ों-भर वह प्रति दिन सुबह 10 बजे स्नान करने के लिए ऊपर ही आ जाते हैं। आज भी वह स्नान के लिए आये और नहा कर जब बाहर निकले तो उनके पूरे शरीर पर नील पुता था।  ...
सोचा ना था....

डार्लिंगजी :पुस्तक समीक्षा - नर्गिस और सुनील दत्त की जोड़ी हमेशा हमारे लिए एक आयडियल जोड़ी रही है...लेकिन उनके मिलने की कहानी भी किसी फ़िल्मी कहानी से कम पेंचीदा नहीं है....जहाँ एक ओर बचप...
बगीची

कंप्‍यूटर एक्‍सपर्ट होने के लिए उम्र के कोई मायने नहीं हैं (अविनाश वाचस्‍पति)वाचस्‍पति) - खबर तो यही कहती है पर आप क्‍या कहते हैं जानें ऐसा जमाने में तो अच्‍छा लगता है छोटा बच्‍चा जान के ...
ललितडॉटकॉम

अल्पना के ग्रीटिंग्स की एक प्रदर्शनी-आर्ट गैलरी रायपुर मे-27मार्च से 31 मार्च तक - ललित शर्मा द्वारा निर्मित सृजनशील हाथ सृजन कार्य मे निरंतर लगे रहते हैं, यह एक साधना है, इस साधना से नई कृतियों का जन्म होता है, जिसमें सृजनकर्ता ...
मानसी

एक सपना जी रही हूँ - * * *एक सपना जी रही हूँ पारदर्शी काँच पर से टूटते बिखर रहे कण हँसता खिलखिला रहा है आँख चुँधियाता हर इक क्षण थोड़े दिन का जानकर सुख मधु कलश सा पी रही हूँ ए..
Fulbagiya

खुली खुली खिड़की सी दीदी - ** ** ** * खुली खुली खिड़की तुम हमको अच्छी बहुत बहुत लगती हो हमको तो तुम प्यारी प्यारी बिलकुल दीदी सी लगती हो। जैसे बिजली के जाने पर दीदी हमको पंखा झलती ..
आरंभ Aarambha

बस्तर मे आदिवासियों का माटी तिहार और उल्लास - बस्तर के आदिवासियों का जीवन तथा सारा अस्तित्व जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत माटी से ही जुड़ा होता है। माटी के बिना वह स्वयं की कल्पना नहीं कर सकता। बस्तर के आद..
Rhythm of words...

भूख! - ऐ जिंदगी! बस इतना बता दे मुझको तू उम्मीद की जगह क्यों मुझे में भूख बोती है मैं चाहकर भी सुकून से सो नहीं पाता रात का चाँद भी मुझको लगता 'रोटी' है ॥ झांकत..
saMVAdGhar संवादघर

परंपराओं वाले बबुआ - कई बार अपने या दूसरों के ब्लागस् पर अपनी या दूसरों की कुछ टिप्पणियां ऐसी लगती हैं कि मन होता है इन्हें ज़्यादा महत्व देकर ज़्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहिए।...
देशनामा

बच्चे आप से कुछ बोल्ड पूछें, तो क्या जवाब दें...खुशदीप - बड़े दिन से हंसी ठठे वाली पोस्ट लिख रहा था...आज कुछ सीरियस लिखने का मूड है...पहले मैं इस विषय को ब्लॉग पर लिखने को लेकर बड़ा ऊहापोह में था...लिखूं या न लिख...
काव्य मंजूषा

जाने क्या है ये..... - जाने क्या है ये ! मुझे सताने का मंसूबा या तुम्हारी जीतने की जिद्द, जो सारे दरवाज़े बंद कर देते हो छोड़ देते हो मुझे अकेला...! छोटी सी नाव में बिन पतवार ...
पंछी पंख-विहीन....
- जीवन के स्वयं समर्पण को मैं जीत कहूं या हार कहूं? मैने देखी प्राचीर-रश्मि देखा संध्या का अंधकार, पूनों की रजत ज्योत्सना में, लख सका अमा का तम अपार, इन काली-..
मिसफिट:सीधीबात

सफ़ेद मुसली खिलाडियों के वरदान और खिलाड़ी अनजान : अलका सरवत मिश्रा -
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आरजू - अब कोई तमन्ना नहीं बाकी, अब कोई आरजू नहीं बाकी। उनके कूंचे से निकले जनाजा मेरा, है बाकी तो ये आरजू बाकी। इश्क तो बाकी है अभी हममें, उनमें मगर वफा नहीं बाकी,.
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[नाम पुराण-4] एक घटिया सी शब्द-चर्चा… - *पिछली कड़ियां-A.**[नामपुराण-1]**B.**[नामपुराण-2]**c.**[image: Ghatam]** [नामपुराण-3]* न दी-तटीय बस्तियों के साथ *घाट *शब्द का प्रयोग भी बहुधा मिलता है। ये ...
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“आओ ज्ञान बढ़ाएँ:पहेली-26” (अमर भारती) - * रविवासरीय साप्ताहिक पहेली-26 में * *आप सबका स्वागत है।* आपको पहचान कर निम्न चित्र का नाम और स्थान बताना है।[image: khatima copy] *उत्तर देने का समय 30..
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सुमन के भीतर आग है - हार जीत के बीच में जीवन एक संगीत। मिलन जहाँ मनमीत से हार बने तब जीत।। डोर बढ़े जब प्रीत की बनते हैं तब मीत। वही मीत जब संग हो जीवन बने अजीत।। रोज परिन्दों ...
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से.....
महिला आरक्षण. और.सीटी प्रकरण के बाद . कुछ नेता सेक्स परिवर्तन..की फ़िराक में .... - महिला आरक्षण के कट्टर विरोधी कुछ नेताओं को जब उनकी बीबियों ने घर के बाहर का रास्ता दिखाया,.. तो वे ना घर के रहे ना घाट के... उधर संसद में सीटी प्..
उच्चारण
  “प्रजातन्त्र की जय बोलो!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) - *लोकतन्त्र की जय बोलो! प्रजातन्त्र की जय बोलो!! रंगे स्यार को दूध-मलाई, मिलता फैनी-फैना है। शेर गधे बनकर चरते हैं, रूखा-शुष्क चबेना हैं।। लोकतन्त्र क..
डा. कुमार विश्वास आज जोधपुर मे
Mar 28, 2010 | Author: HARI SHARMA | Source: हरि शर्मा - नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे
आज हिन्दी कवि सम्मेलनो के सबसे चर्चित युवा गीतकार डा कुमार विश्वास जोधपुर मे है और शाम को ६ बजे एस एल बी एस कालेज मे उनका कार्यक्रम है. पहले मुलाकात हुई हवाई अड्डे पर फिर राजपूताना होटल के उनके कमरे मे. शाम को उनका कार्यक्रम है. मुलाकात का शेष भाग उसके पश्चात ब्लोग पर लिखेगे.   उनके स्वागत मे उन्ही का एक नया गीत प्रस्तुत है
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'इस्कॉन' को झटका: अमेरिकी अदालत ने हवाई अड्डों पर दान लेने के लिए याचना का अधिकार ठुकराया
Mar 28, 2010 | Author: लोकेश Lokesh | Source: अदालत
'क्रिश्चियन साइंस मॉनीटर' के मुताबिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में पहले संशोधन के तहत लास एंजेलिस हवाईअड्डे पर दान लेने के लिए याचना करने का अधिकार पाने के लिए 13 सालों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे 'इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस'(ISKCON) के लिए अदालत का यह फैसला जाहिर तौर पर अंतिम हार है।…
अल्लाह के घर महफ़ूज़ नहीं हैं
Mar 28, 2010 | Author: Suman | Source: लो क सं घ र्ष !
महफ़ूज़ नहीं घर बन्दों के, अल्लाह के घर महफूज़ नहीं। इस आग और खून की होली में, अब कोई बशर महफ़ूज़ नहीं॥ शोलों की तपिश बढ़ते-बढ़ते, हर आँगन तक आ पहुंची है। अब फूल झुलसते जाते हैं, पेड़ों के शजर महफ़ूज़ नहीं॥ कल तक थी सुकूँ जिन शहरों में, वह मौत की दस्तक सुनते हैं । हर रोज धमाके होते हैं, अब कोई नगर महफ़ूज़ नहीं॥ दिन-रात भड़कती दोजख में, जिस्मों का ईधन पड़ता है॥ क्या जिक्र ..

मनोज

अपनी भावनाएं, और विचार बांट सकूं।

काव्यशास्त्र : भाग 8
आचार्य वामन
--आचार्य परशुराम राय

आचार्य वामन आचार्य उद्भट के समकालीन थे। क्योंकि महाकवि कल्हण ने अपने महाकाव्य राजतरङ्गिणि में लिखा है कि आचार्य उद्भट महाराज जयादित्य की राजसभा के सभापति थे और आचार्य वामन मंत्री थे। जयादित्य का राज्य काल 779 से 813 ई. माना जाता है।
आचार्य वामन काव्यशास्त्र में रीति सम्प्रदाय प्रवर्तक है। ये रीति (शैली) को काव्य की आत्मा मानते हैं। इन्होंने एकमात्र ग्रंथ काव्यालङ्कारसूत्र लिखा है
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Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून

कार्टून:- आज की नमस्ते भाषाविदों को. -
कार्टून : कहाँ भाग खड़े हुए कांग्रेसी ?
Mar 28, 2010 | Author: Kirtish Bhatt, Cartoonist | Source: Cartoon, Hindi Cartoon, Indian Cartoon, Cartoon on Indian Politcs: BAMULAHIJA
 कार्टून को बड़ा देखने लिए उस पर क्लिक करें  बामुलाहिजा :  Cartoon by Kirtish Bhatt



आज के इस अंक में 
बस इतना ही!
राम-राम!

शनिवार, मार्च 27, 2010

“अंग्रेजी घर तो चकाचक! हिंदी के कमरे रीते हैं—” (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक-101
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"

आइए आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं-
देखिए कुछ चुने हुए लिंक्स-
मसि-कागद

अंग्रेजी घर तो चकाचक हिंदी के कमरे रीते हैं------->>>दीपक 'मशाल' - आबादी में इतने आगे होकर भी आबाद नहीं सरकारी एडों में सुनते हम बिलकुल बर्बाद नहीं सुनते हैं इतिहास मगर अब कहते हम इरशाद नहीं तन से तो हम मुक्त हो गए मन से पर...
अंधड़ ! 
अर्थ हावर ???? - जानना चाह रहा था कि आज अर्थ हावर के दौरान मैं सड़क पर ड्राइव कर रहा हूँगा, क्या गाडी लाईट बंद करके चलानी पड़ेगी ?
प्रतिभा की दुनिया ...!!!
रेनर मरिया रिल्के की कविता- निष्ठा - मेरी आंखें निकाल दो फिर भी मैं तुम्हें देख लूंगा मेरे कानों में सीसा उड़ेल दो पर तुम्हारी आवाज़ मुझ तक पहुंचेगी पगहीन मैं तुम तक पहुंचकर रहूंगा वाणीहीन मै..
कुछ इधर की, कुछ उधर की
मेर धर्म महान!!! - *चींटी का धर्म* *पंक्तिबद्ध हो चलना.........* *हाथी का धर्म* *समूह में विचरना..........* *वानर का धर्म* *डाली डाली उछलना..........* *मानव का धर्म* *सर्वधर्म ..
गीत-ग़ज़ल
   थपक कौन सी - ** *चुनरी सितारों से जड़ा रक्खी है बिरहन ने कोई अलख जगा रक्खी है रात कटती नहीं सब्र भी टूटा नहीं दिल के साज पे बाशिन्दों को थपक कौन सी सुना रक्खी है बिरहन ..
chavanni chap (चवन्नी चैप)
फिल्‍म समीक्षा : वेल डन अब्बा: - हंसी-खुशी के बेबसी -अजय ब्रह्मात्‍मज इन दिनों हम कामेडी फिल्मों में क्या देखते-सुनते हैं? ऊंची आवाज में बोलते एक्टर, बैकग्राउंड का लाउड म्यूजिक, हीरोइन...
नन्हा मन
   
गधे नें बसता एक लिया - गधे नें बसता एक लिया विद्यालय में पहुंच गया ए.बी.सी. जब बोली मिस लिया वहां से गधा खिसक बसता कक्षा में ही छोडा देख रहा था सब कुछ घोडा गधे की जगह पे जाकर ब...
आदित्य (Aaditya)
 
बबुआ विल राईट फ्रॉम बैंकोक.. - सभी तैयारी हो चुकी है.. सामान पैक हो चुका है.. दादा दादी.. नाना नानी.. चाचा चाची.. मामा मामी.. मासी.. और सभी से जोधपुर में मिल लिया..आज मम्मी के साथ जोधपुर..
रचनाकार  
यशवन्त कोठारी का व्यंग्य : लोकतंत्र की लँगोट - [image: Image025 (Mobile)] किसी देश के किसी प्रांत की किसी राजधानी में एक विधान सभा थी। विधान सभा वैधानिक कार्यों के लिए थी मगर प्रजातंत्र का आनंद था। स...
ताऊ डॉट इन

ताऊ पहेली - 67 - प्रिय बहणों और भाईयों, भतिजो और भतीजियों सबको शनीवार सबेरे की घणी राम राम. ताऊ पहेली *अंक 67 *में मैं ताऊ रामपुरिया, सह आयोजक सु. अल्पना वर्मा के साथ आपका ...
ताऊजी डॉट कॉम

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : सुश्री रानी विशाल - प्रिय ब्लागर मित्रगणों, हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई है...
भारतीय नागरिक - Indian Citizen

कितनी मेहनत करती है - कितनी मेहनत करती है, फूलों-फूलों फिरती है. करती है मकरन्द इकठ्ठा, मधु जिससे बनता है.मम्मी-पापा, दादा-दादी सबको अच्छा लगता है….
Gyanvani

लापता हुए गाँवों और कस्बों का पता ...लापतागंज में जरुर देखे .... - गाँधीजी का कहना था कि " भारत का ह्रदय गांवों में बसता है"। आज भी हमारी ८५ प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। गाँव में ही भारत की सच्ची तस्वीर देखी जा सकती ह...
काव्य मंजूषा

तन्हाई, रात, बिस्तर, चादर और कुछ चेहरे.... - तन्हाई, रात, बिस्तर, चादर और कुछ चेहरे, खींच कर चादर अपनी आँखों पर ख़ुद को बुला लेती हूँ ख़्वाबों से कुट्टी है मेरी और ख्यालों से दोस्ती जिनके हाथ थामते...
साहित्य योग

तुम्ही निकले ........... - सुख चैन छीन कर कहते हो सजा तो नहीं है जलाकर कपूर कहते हो राख तो नहीं है जाऊं भी तुम्हे छोड़ कर तो कहाँ जाऊं *मंदिर, मस्जिद और भगवान भी तुम्ही निकले * अ..
अमीर धरती गरीब लोग
     जो दवा के नाम पे ज़हर दे? - इस देश मे नियम बनने के पहले ही उसके तोड़ ढूंढ लिये जाते हैं।और उसी तोड़ की आड़ मे बड़े-बड़े खेल किये जाते हैं मगर ये सब बड़े लोगों के लिये ही है,छोटे-मोटे लोग अग...
देशनामा
   
बड़े घर की बेटी...खुशदीप - आज आपको एक सच्चा किस्सा सुनाने जा रहा हूं...ये मेरे एक नज़दीकी रिश्तेदार के घर की बात है...इसे पढ़ने के बाद आपको लगेगा कि हमारे बुज़ुर्गों में भी कितना गजब...
कुमाउँनी चेली
    हो कहीं भी जूतियाँ, लेकिन पैर में ही रहनी चाहिए. - सीटियाँ प्रतीक हैं राष्ट्र की एकता का अखंडता का और साम्प्रदायिक सौहार्द का| सीटी बजाने वाले की जाति या मजहब नहीं पूछी जाती | यहाँ ना कोई छोटा होता है ना..
आरंभ Aarambha

सामूहिकता का आनंद और संस्‍कार - क्षमा करें मित्रों मैं मित्रों के कुछ सामूहिक ब्‍लॉगों, जिनसे मैं बतौर लेखक जुडा था, से अपने आप को अलग कर रहा हूँ, वैसे भी मैं इन सामूहिक ब्‍लॉगों में कोई ..
"सच में!"
     कातिल की बात ! - मैं कभी करता नहीं दिल की भी बात, पूछते हो मुझसे क्यूं,महफ़िल की बात? दिलनशीं बुतो की परस्तिश तुम करो, हम उठायेगें, यहां संगदिल की बात। ज़ालिम-ओ-हाकिम यहां..
"पति-पत्नी के निजी एकांतिक संसार की तरह बच्चो में भी प्राइवेसी का आग्रह बढ़ने लगा है "----------मिथिलेश दुबे
  Mar 27, 2010 | Author: Mithilesh dubey | Source: Dubey
सभ्यता और संस्कृति के विकास का आरंभ परिवारसंस्था के साथ जोड़ा जा सकता है । पौराणिक और आध्यात्मिक दृष्टि से इसके उद् भव की जो भी गाथायें या कारण हैं, समाज शास्त्रीय दृष्टि से मनुष्य के भीतर जन्मे सहयोग और अनुराग को परिवार का आधार कहा जाता है । सहयोग और सदभाव का जन्म ना होता तो न स्त्री-पुरुष साथ रहते , न संतानों का जिम्मेदारी से पालन होता और न ही इस तरह बनं कुटुंब के निर्वाह के लिए विशिष्ट उद्दम करते बनता । बच्चो को जन्म और प्राणी भी देते है । एक अवस्था तक वे साथ रहते हैं और अपना आहार खुद लेन ...
'एम. एफ. हुसैन को अदालत या देश का प्रधानमंत्री भी भारत लौटने पर मजबूर नहीं कर सकता': सुप्रीम कोर्ट
Mar 27, 2010 | Author: लोकेश Lokesh | Source: अदालत
सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को कहा कि निर्वासित जीवन बिता रहे मशहूर पेंटर एम. एफ. हुसैन को अदालत या देश का प्रधानमंत्री भी भारत लौटने पर मजबूर नहीं कर सकता। यह कहते हुए अदालत ने हुसैन के खिलाफ देश में चल रहे आपराधिक मामलों को रद्द करने संबंधी जनहित याचिका भी खारिज कर दी। जेएंडके पैंथर्स पार्टी के मुखिया और वरिष्ठ अधिवक्ता भीम सिंह ने हुसैन के खिलाफ चल रहे केसों को खत्म करने के लिए जनहित याचिका दाखिल की थी। अदालत ने कहा कि अगर कोई इंसान दोहा (कतर की राजधानी) में रहने का फैसला करता है तो उसमें ...
“बहारों के बिना सूना चमन है”
Mar 27, 2010 | Author: डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक | Source: उच्चारण
“गज़ल”                                             
सितारों के बिना सूना गगन है।
बहारों के बिना सूना चमन है।।

भजन-पूजन, कथा और कीर्तन हैं, 
सुधा के बिन अधूरा आचमन है।
बहारों के बिना सूना चमन है।।
मिलने जब आउंगा 
Mar 27, 2010 | Author: अजय कुमार | Source: गठरी
सुन लो हे प्राणप्रिये , मिलने जब आउंगा । सारी रात पूनम की , जाग कर बिताउंगा ॥
शब्द नहीं चित्र---मौसम है विचित्र
Mar 27, 2010 | Author: ललित शर्मा | Source: ललितडॉटकॉम
शब्द नहीं चित्र---मौसम है विचित्र
धर्म के बारे में लिखने ..एवं ..टिप्पणी करने बाले.. तोता-रटंत.. के बारे में यह पोस्ट ....
Mar 27, 2010 | Author: कृष्ण मुरारी प्रसाद | Source: लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से.....
जीसस जन्म से क्रिश्चन नहीं ...यहूदी थे.  ....पैगम्बर मोहम्मद जन्म से मुसलमान नहीं थे....भगवान बुद्ध जन्म से बौद्ध नहीं थे.....भगवान महावीर जन्म से जैन नहीं थे......गुरू नानक जन्म से सिक्ख नहीं थे....हिंदू धर्म में भी बहुत सी धाराएं हैं......कई वेद...कई पुराण....कई उपनिषद.....कई ग्रन्थ हैं......
कार्टून : वो कांग्रेसी अमिताभ की फिल्म देख रहा था !!!
Mar 27, 2010 | Author: Kirtish Bhatt, Cartoonist | Source: Cartoon, Hindi Cartoon, Indian Cartoon, Cartoon on Indian Politcs: BAMULAHIJA
बामुलाहिजा >>
Cartoon by Kirtish Bhatt
अर्थ आवर ( सायं 8.30 से 9.30 )
Mar 26, 2010 | Author: देवेश प्रताप | Source: विचारों का दर्पण
विकास पाण्डेय


यादव राजनेताओं का बहिष्कार ??
Mar 27, 2010 | Author: Ram Shiv Murti Yadav | Source: यदुकुल
जाति या समुदाय किसी भी व्यक्ति की बड़ी ताकत होती है। जाति के पक्ष-विपक्ष में कहने वाले बहुत लोग मिलेंगे, पर इसकी सत्ता को कोई नक्कार नहीं सकता। यह एक आदर्श नहीं व्यवहारिकता है। यही कारन है कि जातीय-संगठन भी तेजी से उभरते हैं. सबसे ज्यादा संगठन आपको ब्राह्मणों और कायस्थों के दिखेंगें. ये संगठन जहाँ सामाजिक आधार प्रदान करते हैं, वहीँ कई बार राजनीति में भी अद्भुत गुल खिलाते हैं.



आज की चर्चा यहीं पर समाप्त!


राम-राम