मित्रों।
चर्चामंच का आज 2000वाँ अंक है।
सोमवार की चर्चा के अंक में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक
और आज तक का लोखा जोखा-
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चर्चा मंच के चर्चाकार
और उनके द्वारी की गयी चर्चाएँ-
1-ललित शर्मा कुल चर्चाएँ-7
2- सरिता भाटिया-10
3- कमल सिंह नारद-23
4- मनोज कुमार-64
5-राजीव उपाध्याय-5
6- राजीव कुमार झा-36
7- चन्द्र भूषण मिश्र ग़ाफ़िल - 80
8-रावेन्द्र कुमार रवि - 15
9- संगीता स्वरूप - 40
10- अरुणेश सी.दवे - 17
11- आशीष भाई - 7
12- ई.प्रदीप कुमार साहनी - 21
13- अपनी माटी-1
14- राहुल मिश्रा-7
15- एस.एम.मासूम -7
16- दीपक मशाल -3
17- ई.सत्यम् शिवम-20
18-अरुण शर्मा अनन्त-33
और उनके द्वारी की गयी चर्चाएँ-
1-ललित शर्मा कुल चर्चाएँ-7
2- सरिता भाटिया-10
3- कमल सिंह नारद-23
4- मनोज कुमार-64
5-राजीव उपाध्याय-5
6- राजीव कुमार झा-36
7- चन्द्र भूषण मिश्र ग़ाफ़िल - 80
8-रावेन्द्र कुमार रवि - 15
9- संगीता स्वरूप - 40
10- अरुणेश सी.दवे - 17
11- आशीष भाई - 7
12- ई.प्रदीप कुमार साहनी - 21
13- अपनी माटी-1
14- राहुल मिश्रा-7
15- एस.एम.मासूम -7
16- दीपक मशाल -3
17- ई.सत्यम् शिवम-20
18-अरुण शर्मा अनन्त-33
19- यशोदा दिग्विजय अग्रवाल-5
20- पं. डी.के. शर्मा वत्स-15
21- डॉ.नूतन गैरोला-12
22- ज्योति खरे-1
23- अनामिका-9
24- श्रीमती राजेश कुमारी-52
25- माणिक-1
26- अतुल श्रीवास्तव- 19
27- शशि पुरवार- 10
28- अभिलेख द्विवेदी- 1
29- अभिषेक कुमार अभी-12
30- श्रीमती विद्या- 20
31- धर्शन कौर धनोए- 5
32- श्रीमती वन्दना गुप्ता- 82
33- शिखा कौशिक-3
34- अदा- 5
35- डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक- 768
36- दिनेश चन्द्र गुप्ता रविकर-300
37- दिलबाग विर्क-201
38- राजेन्द्र कुमार- 68
39- अनूषा जैन-3
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20- पं. डी.के. शर्मा वत्स-15
21- डॉ.नूतन गैरोला-12
22- ज्योति खरे-1
23- अनामिका-9
24- श्रीमती राजेश कुमारी-52
25- माणिक-1
26- अतुल श्रीवास्तव- 19
27- शशि पुरवार- 10
28- अभिलेख द्विवेदी- 1
29- अभिषेक कुमार अभी-12
30- श्रीमती विद्या- 20
31- धर्शन कौर धनोए- 5
32- श्रीमती वन्दना गुप्ता- 82
33- शिखा कौशिक-3
34- अदा- 5
35- डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक- 768
36- दिनेश चन्द्र गुप्ता रविकर-300
37- दिलबाग विर्क-201
38- राजेन्द्र कुमार- 68
39- अनूषा जैन-3
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आपदायें
आपदायें तोड़ने ही नहीं
जोड़ने भी आती है
मानवीयता के अर्थ और पीड़ा के
अभिप्राय समझाने के प्रयोजन से
प्रकृति भी खेलती है कई असह्य खेल...
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ग़ज़ल
"सुराखानों में दारू के नशीले जाम ढलते हैं"
वही साक़ी वही मय है, नई बोतल बदलते हैं
सुराखानों में दारू के नशीले जाम ढलते हैं
कोई गम को भुलाता है, कोई मस्ती को पाता है,
तभी तो शाम होते ही, यहाँ अरमां निकलते हैं...
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अच्छा नहीं लगा
हिन्दी का सम्मेलन ,अंगरेजियत का पैगाम
अच्छा नहीं लगा -
आए थे श्रद्धांजलि सभा में जन्मदिन का बयान
अच्छा नहीं लगा...
अच्छा नहीं लगा -
आए थे श्रद्धांजलि सभा में जन्मदिन का बयान
अच्छा नहीं लगा...
उन्नयन पर udaya veer singh
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कहानी मैगी से आगे भी है,
जो अनसुनी है
मैगी पर देश भर में बैन लग जाने के बाद ये लग रहा है मानों पूरे देश में खाद्य पदार्थ पूरी तरह से सुरक्षित हो गए हैं लेकिन सच इससे परे है...
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राष्ट्रीय विभूतियों पर
कब्जा जमाने की संघी कवायद
...कुछ विभूतियों की भूमिका को बढ़ाचढ़ा कर प्रस्तुत करने और कुछ की छवि बिगाड़ने के खेल में आरएसएस पुराना उस्ताद है,यद्यपि अन्य राजनैतिक समूह भी ऐसा करते रहे हैं। संघ की मशीनरी, कुछ नेताओं का महिमामंडन, कुछ को नजरअंदाज करने और कुछ को बदनाम करने का काम दशकों से करती आई है...
लो क सं घ र्ष ! पर Randhir Singh Suman
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सीमा विवाद
सीमा पर आये दिन
हादसे होते रहते है
माँ की ममता लिपटी ध्वज में
चिर निद्रा में सो जाती |
एक तमगा मरणोपरांत
सैनिक को मिलता है
परिवार को भेट किये जाते है
चन्द सिक्के उसके बाद...
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जूही बेला मोंगरा की कली
जूही बेला मोंगरा की कली
खिलती बाबुल के अँगना
महकती महकाती
संवारती घर पिया का
गाती गुनगुनाती .
पीर न उसकी जाने कोई
दर्द सबका अपनाती
खुद भूखी रह कर भी
माँ का फ़र्ज़ निभाती...
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हम विषपायी जन्म के...
आजकल भगवान भास्कर पाँच बजे ही निकलूँ-निकलूँ हो जाते हैं | अभी बरामदे में खड़े आँखों पर पानी के छींटे मार ही रहे थे कि पोलीथिन बीनने वालों जैसा एक बड़ा सा कट्टा कंधे पर रखे तोताराम जयपुर रोड़ की तरफ से आता हुआ दिखाई दिया | हमने हँसते हुए पूछा- क्यों, यह काम कब से शुरू कर दिया...
झूठा सच - Jhootha Sach
आजकल भगवान भास्कर पाँच बजे ही निकलूँ-निकलूँ हो जाते हैं | अभी बरामदे में खड़े आँखों पर पानी के छींटे मार ही रहे थे कि पोलीथिन बीनने वालों जैसा एक बड़ा सा कट्टा कंधे पर रखे तोताराम जयपुर रोड़ की तरफ से आता हुआ दिखाई दिया | हमने हँसते हुए पूछा- क्यों, यह काम कब से शुरू कर दिया...
झूठा सच - Jhootha Sach
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सूरज ढूढ़ रहे अंधों में
स्वार्थ दृष्टिगत संबंधों में,
जीवन बीता अनुबंधों में,
ढक कर सर पर बोरे डाले,
सूरज ढूँढ़ रहे अंधों में...
न दैन्यं न पलायनम्
स्वार्थ दृष्टिगत संबंधों में,
जीवन बीता अनुबंधों में,
ढक कर सर पर बोरे डाले,
सूरज ढूँढ़ रहे अंधों में...
न दैन्यं न पलायनम्
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बस कुछ नमी हो...!
अनुशील
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