मित्रों।
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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गुज़र रही है ज़िन्दगी तन्हा
गुज़र रही है ज़िन्दगी तन्हा
जिस तरह अपनी शा’इरी तन्हा
हो गया शाह पर सुकून नहीं
हो गयी जूँ कोई ख़ुशी तन्हा
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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पेट और पेट के लिए
जब निवाले तक के लिए करना था मोहताज
तो हड्डियों के ढांचे में के आवरण में
सागर सा गहरा नितान्त अतृप्त
जो मजबूरियों से परे हो
अपनी आवश्यकताओं के लिए
तो हड्डियों के ढांचे में के आवरण में
सागर सा गहरा नितान्त अतृप्त
जो मजबूरियों से परे हो
अपनी आवश्यकताओं के लिए
हलचल मचा देने वाला
निर्मम पेट क्यों दिया...
निर्मम पेट क्यों दिया...
आपका ब्लॉग पर
Sanjay kumar maurya
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चमकता तारा सूरज हमारा
[बाल कथा ]
पिंकी ने आज फिर राजू के हाथ में किताब देख ली ,बस मचल गई ,''भैया कहानी सुनाओ न ,क्या लिखा है इस किताब में ,बताओ न ''?अपने प्यारे भैया के हाथ से किताब ले कर नन्ही पिंकी उसमे बनी तस्वीरे देख कर बोली,''भैया यह जो गोल गोल है वह हमारी धरती है न,यह बीच में हमारा सूरज है न''|पिंकी की उत्सुकता देख राजू बोला ,''हाँ मेरी प्यारी बहना यह सूरज है...
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तू जिसे ढूँढ रहा है
तू जिसे ढूँढ रहा है , वो तो इश्क है हक़ीकी
दुनिया की महफ़िलों में , मिलता है वो रिवाजी
ज़माने की आँधियों में , रहना है तुझे साबुत
मिले न भले कुछ भी , हर हाल में हो राजी...
दुनिया की महफ़िलों में , मिलता है वो रिवाजी
ज़माने की आँधियों में , रहना है तुझे साबुत
मिले न भले कुछ भी , हर हाल में हो राजी...
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१४. बरखा रानी नाम तुम्हारे-
कल्पना रामानी
बरखा रानी! नाम तुम्हारे,
निस दिन मैंने छंद रचे
रंग-रंग के भाव भरे,
सुख-दुख के आखर चंद रचे...
निस दिन मैंने छंद रचे
रंग-रंग के भाव भरे,
सुख-दुख के आखर चंद रचे...
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सुनहरी सफ़र-नामा ...
चमकते मकान, लम्बी कारें, हर तरह की सुविधाएँ, दुनिया नाप लेने की ललक, पैसा इतना की खरीद सकें सब कुछ ... क्या जिंदगी इतनी भर है ... प्रेम, इश्क, मुहब्बत, लव ... इनकी कोई जगह है ... या कोई ज़रुरत है ... और है तो कब तक ... कन्फ्यूज़न ही कन्फ्यूज़न उम्र के उतराव पर ... पर होने को तो उम्र के चढ़ाव पर भी हो सकता है ...
इससे पहले की झरने लगे प्रेम का ख़ुमार
शांत हो जाए तबाही मचाता इश्क का सैलाब
टूटने लगें मुद्दतों से खिलते जंगली गुलाब...
इससे पहले की झरने लगे प्रेम का ख़ुमार
शांत हो जाए तबाही मचाता इश्क का सैलाब
टूटने लगें मुद्दतों से खिलते जंगली गुलाब...
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दोहे "संसद के सारे सुमन होवें पानीदार"
...मौसम के अनुसार हो, धनवा की टंकार।
जल जीवन आधार है, जल से ही संसार।।
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मुक्त दाग़ियों से रहे, भारत की सरकार।
रामराज की कल्पना, होगी तब साकार।।
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विनय यही जगदीश से, निर्मल हो परिवार।
संसद के सारे सुमन, होवें पानीदार।।
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