मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"काला अक्षर भैंस बराबर"
काले अक्षर कभी-कभी, तो बहुत सताते है।
कभी-कभी सुख का, सन्देशा भी दे जाते हैं।।
इनका दर्द मुझे बिल्कुल, अपना जैसा लगता है।
कभी बेरुखी कभी प्यार से, सीधी बातें करता है।।
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कालजयी गीत
गीत – कालजयी हैं .....
आदि मानव ने जब खगवृंदों के कल-कंठों का गायन सुना होगा, नदियों-झरनों के नाद घोष में आत्मा की पुकार अनुभव की होगी, उन्मुक्त प्रकृति के प्रांगण में चांद-तारों की रोशनी में, फूलों की हंसी में सौंदर्य भाव बोध को आंकलित किया होगा, गीतों की वाणी तभी से थिरकने लगी होगी। वैदिक ऋषियों का वचन है कि 'तेने ब्रह्म हृदा य आदि कवये'- अर्थात कल्प के प्रारंभ में आदि कवि ब्रह्मा के हृदय में वेद का प्राकट्य हुआ था...
डा श्याम गुप्त
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हे मीत! हे सखे! तुम सांध्यगीत हो...
हारती रही हूँ सदा से मैं तुम मेरी जीत हो...!
जीवन बहुत कठिन है बंधू... तुम
इस नीरवता में मेरे लिए जीवन गीत हो...
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आइसक्रीम वाले ने बताया
कि उसके पापा नहीं हैं
हम अब तक वो बाईक वाले को ही बच्चे का पापा समझ रहे थे, और शायद हर कोई यही समझता। पर बच्चा जो कि समय से पहले ही बड़ा हो गया था, जिसे पता था कि पापा नहीं हैं और उम्र से पहले ही समझदार हो गया होगा। उसने अपने बचपन को खोकर इतना भयावह सत्य देख लिया। मेरे मन में पता नहीं बहुत सी बातें घुमड़ने लगीं, बच्चे का चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम रहा था...
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जीत का मूलमंत्र
जीवन में कुछ अर्थपूर्ण करे
सपनों को अपने पूर्ण करे
जीवन के है अपने कुछ नियम
पालन से सफल होगा जीवन...
सपनों को अपने पूर्ण करे
जीवन के है अपने कुछ नियम
पालन से सफल होगा जीवन...
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निष्प्राण कलम
मेरे मन की गठरी से निकल कर
खो गयें है सारे शब्द ,
ख्याल सिमट गए हैं
दिल की चार दिवारी के बीच...
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इन शब्दों के बिना....!!!
कल रात सपने में...
मेरी शब्दों से मुलाकात हुई...
बिखरे पड़े थे...
इधर-उधर..बैचैन से...
मुझे देखा...बड़ी नारजगी से...
शिकायत थी उन्हें मुझसे...
कि मैंने उन्हें क्यों...
किसी कविता में पिरोया नही...
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डा. तोताराम
आज तोताराम थोड़ा विलंब से आया |
हमने पूछा- क्यों तोताराम,
क्या २१ जून के योग-दिवस की तैयारी कर रहा था ?बोला- क्या कर रहा था, यह बाद में |
पहले मेरा नाम तो ठीक से ले |
अब मैं तोताराम नहीं, डा. तोताराम हो गया हूँ...
झूठा सच - Jhootha Sach
आज तोताराम थोड़ा विलंब से आया |
हमने पूछा- क्यों तोताराम,
क्या २१ जून के योग-दिवस की तैयारी कर रहा था ?बोला- क्या कर रहा था, यह बाद में |
पहले मेरा नाम तो ठीक से ले |
अब मैं तोताराम नहीं, डा. तोताराम हो गया हूँ...
झूठा सच - Jhootha Sach
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राम मिलाई जोड़ी
राम मिलाई जोड़ी कुछ जोड़ी घरवाले जोड़े,
कोई संग टांका जुड़ जाता पर कहते है
सभी जोड़ियां ,ऊपरवाला ,स्वयं बनाता...
काव्य का संसार
राम मिलाई जोड़ी कुछ जोड़ी घरवाले जोड़े,
कोई संग टांका जुड़ जाता पर कहते है
सभी जोड़ियां ,ऊपरवाला ,स्वयं बनाता...
काव्य का संसार
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प्रचारक का स्त्री चिन्तन
जुबां फिसलती है और शायद बहुत अनर्थ करा देती है।
बांगलादेश की जनाब मोदी की ‘सफल यात्रा’ के बाद उनके हिमायती शायद यही सोचते हैं। यह अकारण नहीं कि ‘स्त्री होने के बावजूद शेख हसीना द्वारा किए गए कामों की तारीफ कर’ बुरी तरह आलोचना का शिकार हुए प्रधानमंत्री मोदी के चीअरलीडर्स का कहना रहा है कि यह जुबां फिसलने का मामला है और उसकी इतनी आलोचना ठीक नहीं है।
अगर सन्देह का लाभ देकर इस मसले पर बात न भी की जाए, मगर आप इस मौन की किस तरह व्याख्या करेंगे कि उन छत्तीस घंटों में उन्होंने एक बार भी सुश्री इंदिरा गांधी का नाम नहीं लिया, जो बांगलादेश की मुक्ति के वक्त भारत की प्रधानमंत्री थीं । अटल बिहारी वाजपेयी के नाम बांगलादेश सरकार द्वारा दिया गया पुरस्कार स्वीकार किया, मगर बांगलादेश की मुक्ति के बाद जिन वाजपेयी ने उन्हीं इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’ के तौर पर सम्बोधित किया था, उनका एक बार नामोल्लेख तक नहीं किया।...
Kafila
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रहस्यमयता को श्रद्धांजलि
वही पचास-साठ का दशक, किसे पता था कि पंजाब के गुरदासपुर में जन्मे नेक चंद सैनी नामक युवक में, जो चंडीगढ़ में रोड इंस्पेकटर के साथ ही पब्लिक वर्क्स विभाग में काम करता था, टूटे-फूटे, बेकार, लोगों द्वारा फेंक दिए गए कबाड़ में भी सौंदर्य खोज उसे एक अनोखा रूप देने की निकालने की क्षमता है। अपने खाली समय में वे कबाड़ को इकट्ठा कर उसे नया रूप देते रहते थे तथा उसे सुखना झील के पास की वीरान जगह पर अपने तरीके से सजाते रहते थे। पर इस क्षमता को आंकने में सरकार को करीब बीस साल लग गए। जब नेक चंद ने 13 एकड़ पर एक सपनों की नगरी बसा डाली थी। भले ही सरकार को इतना समय लगा हो पर लोगों ने नेक चंद की मेहनत पर सफलता की मोहर बहुत पहले लगा दी थी। चंडीगढ़ में उनका सपना "रॉक गार्डन" के रूप में साकार हो चुका था। समय के साथ नेक चंद की ख्याति सात समुन्द्र भी लांघ गयी जब उन्हें अमेरिका तथा इंग्लैण्ड में वैसा ही म्यूजियम बनाने का प्रस्ताव दिया।
1984 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाजा।
पिछले गुरुवार 11 जून को उन्हें शायद ऐसा ही कुछ रचने के लिए स्वर्ग बुला लिया गया।
इस तरह दो शख्शियतें, एक रहस्यमय माहौल में रहने वाली तथा दूसरी ऐसे ही माहौल को रचने वाली, चार-पांच दिनों के अंतराल में एक तीसरे रहस्यमय माहौल की ओर अग्रसर हो गयीं। श्रद्धांजलि।
पचास-साठ का दशक। जेम्स बॉन्ड की फिल्मों के साथ ही एक और तरह की फिल्मों का भी इंतजार रहा करता था और वे थीं ड्रैकुला के चरित्र वाली डरावनी फिल्में। उनमें ड्रैकुला के पात्र को सजीव किया करते थे क्रिस्टोफर ली। वैसे तो उन्होंने फिल्मों और टी.वी.पर करीब 250 चरित्र अभिनीत किए जिनमें ममी और ड्रैकुला जैसी रहस्यमयी फिल्मों के साथ-साथ द मैन विद द गोल्डन गन,स्टार वॉर,लार्ड ऑफ द रिंग्स,जैसी अनेकों सफल हैं। पर उन्हें ख्याति मिली ड्रैकुला के चरित्र के कारण। इतनी गहराई से उन्होंने इसे निभाया था कि वे एक दूसरे के पर्याय ही बन गए थे। छह फुट से ऊपर निकलते कद, भारी गंभीर आवाज और मंजे हुए अभिनय के कारण उनकी अपनी पहचान बन चुकी थी। उन्हें "नाइट" की उपाधि से भी नवाजा जा चुका था। पिछले रविवार,सात जून को 93 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हो गया। क्रिस्टोफर ली को श्रद्धांजलि।
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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