मित्रों।
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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माँ
लाडले को अपने आँचल की साये से
चूमती पूचकारती खिलाती नहलाती
बैठकर आँचल मेंं लिए सुलाती
तब तक सोती नहींं
जब तक मुन्नर सो न जाए
कितना स्नेह करती है वो अपनी बच्चे से
यही है उसकी ममता
और इसिलिए वो है मांं…
आपका ब्लॉग पर
Sanjay kumar maurya
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सब तुम्हारे नाम करते हैं...!!
...धरा गगन को
फिर हम प्रणाम करते हैं
जितना स्नेह है मेरी झोली में
सब तुम्हारे नाम करते हैं...
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सबसे बड़ा गुनाह है
फिर भी लड़कियाँ प्यार करती हैं
बेटी बहन प्रेमिका पत्नी नानी
फिर भी लड़कियाँ प्यार करती हैं
बेटी बहन प्रेमिका पत्नी नानी
और दादी के बदलते रूपों में
भी प्यार करती हैं
क्योंकि
क्योंकि
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नारी मुक्ति ...!!
नारी मुक्ति का मतलब है,
नारी बेटी, पत्नी, बहू और
माँ के साथ-साथ वो जो चाहें,
वो बन सकती है!
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नारी मुक्ति का मतलब है,
नारी को बेटी, पत्नी, बहू
और माँ के अलावा,
एक इंसान भी समझा जाए...
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छू लिया आसमान
बचपन से वह उस पहाड़ी को
देखती आ रही थी।
उबड़ खाबड़ रास्ते फैले झाड़ झंखाड़
और फिसलन के बीच से
उसकी चोटी पर वह बड़ा सा पत्थर
सिर उठाये खड़ा था।
मानों चुनौती दे रहा हो दुनिया को...
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राजनीति में जातिवाद का
ज़हर फैलाने वाले गुलामवंशी ...
राजनीति में जातिवाद का ज़हर फैलाने वाले गुलामवंशी ...
इन दिनों जाति सूचक शब्द मोदी को बदनाम कर रहें हैं।
आजकल ये कुछ चुनिंदा शब्द बोल रहे हैं
जैसे बड़ा मोदी ,छोटा मोदी
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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एक ग़ज़ल :
तेरे बग़ैर भी...
तेरे बग़ैर भी कोई तो ज़िन्दगी होगी
चिराग़-ए-याद से राहों में रोशनी होगी...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
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कब तुम्हारा स्मरण हो
आज कोई दुख नहीं है,
निशा सुख में डूबती है,
समय का आवेग भी
निश्चिन्त बहता जा रहा है,
जब समुन्दर राग और
आह्लाद के लेते हिलोरें,
सुध स्वयं की ही नहीं है,
कब तुम्हारा स्मरण हो...
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तुम्हे मेरी खामोशी पढ़ने का
तजुर्बा जब भी होगा...
तो ये दुनियां मुझसे मिलने को
बेताब बहुत होगी
मैं निकल चुका होऊंगा
हजारों का सहारा बन कर
तब जब दुनियां बेसहारा बनकर
मुझे ढूंढ रही होगी...
प्रभात
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ब्लॉगिंग के 10 वर्ष पूर्ण..
बहुत सी बातें
और बहुत सी यादें
आज से ठीक पाँच वर्ष पूर्व हमने अपने पाँच वर्ष पूर्ण होने पर यह पोस्ट लिखी थी और अब हमें ब्लागिंग में दस वर्ष पूरे हो गये हैं, आज यह 1100 वीं पोस्ट है और हमारे लिये यह जादुई आँकड़ा है, और उससे कहीं ज्यादा प्रतिक्रियाएँ मिली हैं। ब्लॉगिंग जब शुरू की थी तब हिन्दी कंप्यूटर पर लिखना इतना मुश्किल नहीं था पर हाँ सीमित साधनों के चलते वेबसाईट पर लिखना बहुत ही कठिन था...
Vivek Rastogi
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इज़हारे- ख़याल
ये उम्र अपनी इतनी भी कम न थी,
अपनों को ढूंढने में गुजार दी दोस्तों.
पांव में छाले पड़े है इस कदर,
अपनों में, अपने को खो दिया दोस्तों...
रचना रवीन्द्र पर रचना दीक्षित
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पक्षी प्रेम
धरती जागी
अम्बर जागा
पृथ्वी का कण कण
हुआ चेतन |
पर एक नन्हीं चिड़िया
नहीं उड़ी
ना ही चहकी
वह थी उदासी से घिरी...
Akanksha पर Asha Saxena
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कौन कहता है अच्छे दिन नहीं आये
देखिये तो ज़रा
कितने अच्छे दिन आ गए
चोर उच्चक्के सब बिलों में दुबक गए
चोरी डाके सब बंद हो गए
लूटपाट सीनाजोरी का बाजार नर्म हो गया
झूठ मक्कारी दगाबाजी जाने कहाँ
सो गए बलात्कार के किस्से तो
बस स्वप्न हो गए...
vandana gupta
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