मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हे केजरीवाल तुम गधा से
आदमी कब बनोगे..
हे केजरीवाल तुम गधा से आदमी कब बनोगो.. (डिस्क्लेमर:- यह एक व्यंग रचना है और यह पूरी तरह से काल्पनिक, मनगढ़ंत और एक गधा के द्वारा ही लिखा गया है। इसका किसी भी राजनीतिक व्यक्ति, पार्टी अथवा समर्थक से कोई सरोकार नहीं है...
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क्षणिकाएं
1:
पहचान यूँ तो उनसे हमारी जान पहचान बरसों की है पर....
फिर लगता है कि क्या उन्हें सचमुच जानते हैं हम
2:...
मेरी जुबानी पर
Sudha's insights
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभर
सादर
ताज़गी भरा चर्चामंच ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रविवारीय चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर रविवारीय चर्चा. मेरी रचनाओं को स्थान मिला, मन अति प्रसन्न है. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी सादर
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