मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अलाव
आओ, अलाव जलाएँ,
सब बैठ जाएँ साथ-साथ,
बतियाएँ थोड़ी देर,
बांटें सुख-दुख,
साझा करें सपने,
जिनके पूरे होने की
उम्मीद अभी बाक़ी है.
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दोहे
''आलू है पर्याप्त ''
(राधा तिवारी)
सबजी में आलू रहा , पहले से सरताज ।
आलू के बिन है नहीं, बनता कोई काज।।
लौकी-कद्दू बन रहे, या बनता हो साग।
चलता सबके साथ में, आलू का ही राग...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुंदर लिंक्स. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ...बहुत बधाई ,आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ..
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