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शनिवार, फ़रवरी 24, 2018

"सुबह का अखबार" (चर्चा अंक-2891)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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तुम्हे तो शायद याद भी नहीं होगा 

तुम्हे तो शायद याद भी नहीं होगा,  
लेकिन मुझे अच्छी तरह से याद है  
जब हम पहली बार मिले थे  
तब घर के पीछे वाले बंजर टीले की  
रेतीली जमीनी पर पहली और आखरी बार  
ढेर सारे कंवल खिले थे... 

एक प्रश्न 

एक प्रश्न वो बेटी ईश्वर से पूछती है,  
क्यों भेजा गया मुझे उस गर्भ में,  
जहां मेरी नहीं बेटे की चाह थी.... ... 
kuldeep thakur  
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मधुऋतु - - 

Shantanu Sanyal  
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गुरूदेव को अंग 

गुरू को कीजै दंडवत, कोटि कोटि परनाम।
कीट न जानै भृंग को, गुरू करिले आप समान॥
दंडवत गोविंद गुरू, बन्दौं ‘अब जन’ सोय।
पहिले भये प्रनाम तिन, नमो जु आगे होय॥
गुरू गोविंद कर जानिये, रहिये शब्द समाय।
मिलै तो दंडवत बंदगी, नहिं पल पल ध्यान लगाय... 
rajeev Kulshrestha  

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर शनिवारीय चर्चा। आभार 'उलूक' के अखबार को जगह देने के लिये।

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