मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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तुम्हे तो शायद याद भी नहीं होगा
तुम्हे तो शायद याद भी नहीं होगा,
लेकिन मुझे अच्छी तरह से याद है
जब हम पहली बार मिले थे
तब घर के पीछे वाले बंजर टीले की
रेतीली जमीनी पर पहली और आखरी बार
ढेर सारे कंवल खिले थे...
एक प्रश्न
एक प्रश्न वो बेटी ईश्वर से पूछती है,
क्यों भेजा गया मुझे उस गर्भ में,
जहां मेरी नहीं बेटे की चाह थी.... ...
kuldeep thakur
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गुरूदेव को अंग
गुरू को कीजै दंडवत, कोटि कोटि परनाम।
कीट न जानै भृंग को, गुरू करिले आप समान॥
दंडवत गोविंद गुरू, बन्दौं ‘अब जन’ सोय।
पहिले भये प्रनाम तिन, नमो जु आगे होय॥
गुरू गोविंद कर जानिये, रहिये शब्द समाय।
मिलै तो दंडवत बंदगी, नहिं पल पल ध्यान लगाय...
कीट न जानै भृंग को, गुरू करिले आप समान॥
दंडवत गोविंद गुरू, बन्दौं ‘अब जन’ सोय।
पहिले भये प्रनाम तिन, नमो जु आगे होय॥
गुरू गोविंद कर जानिये, रहिये शब्द समाय।
मिलै तो दंडवत बंदगी, नहिं पल पल ध्यान लगाय...
rajeev Kulshrestha
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार....
सादर
सुन्दर शनिवारीय चर्चा। आभार 'उलूक' के अखबार को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
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