अतिथि देवो भव -
अभ्यागत गतिमान यदि, दुर्गति से बच जाय।
दुख झेले वह अन्यथा, पिये अश्रु गम खाय।
पिये अश्रु गम खाय, अतिथि देवो भव माना।
लेकिन दो दिन बाद, मारती दुनिया ताना।
कह रविकर कविराय, करा लो बढ़िया स्वागत।
शीघ्र ठिकाना छोड़, बढ़ो आगे अभ्यागत।।
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हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज
गौतम राजऋषि
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अकेली विदाई
smt. Ajit Gupta
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किताबों की दुनिया -163
नीरज गोस्वामी
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मगर मंज़िल नही मिलती, बिना मेहनत किए डटकर-
रविकर
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बिन डगमग करते दिखे, दो डग मग में कर्म
रविकर
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उघारि लीय मुँह
रेवती रमण झा "रमण"
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सुबह के मन का आलस या जिद बहुत खतरनाक होते हैं।
Vivek
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जन्मदिवस की बधाई गुरु जी
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पुस्तक विमोचन की बधाई गुरु जी
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सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार रविकर जी।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन प्रस्तुति
सादर
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
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