फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

रविवार, अप्रैल 17, 2011

रविवासरीय चर्चा (17.04.2011)

नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर हज़िर हूं चर्चा के साथ।


साल (वित्तीय) बीत गया। कर दाता अब नए साल के जोड़-घटाव में लग My Photoजाएंगे। ऐसे में कुछ नई जानकारी और सलाह काफ़ी सहायक सिद्ध होगा। शिक्षामित्र जी हमेशा नई-नई जानकारी पेश करते रहते हैं। इस बार उनका सुझाव है -

नौकरीपेशा लोगों को कृषि आय का देना होगा ब्योरा

पांच लाख रुपए से अधिक आय वाले नौकरीपेशा लोगों को अब कृषि से होने वाली आय का ब्योरा देना होगा। इस वर्ग के लिए तैयार किए गए नए आईटीआर फार्म ‘सहज’ में पहली बार इसका ब्योरा देना पड़ेगा।

पहले कृषि आय कर मुक्त होने के कारण रिटर्न में दर्शाई नहीं जाती थी, लेकिन अब रिकॉर्ड के लिए यह जानकारी इनकम टैक्स विभाग आयकरदाताओं से लेगा।

आकलन वर्ष 2011-12 से अमल में लाया जाने वाला ‘सहज’ नामक आईटीआर फार्म छपाई के लिए तैयार है। दो पेज यह आकर्षक फार्म वास्तव में ‘सरल-2’ का ही सुधरा हुआ रूप है।


*** अगर आप इए टैक्स नेट में है और कृषि से आय भी हो रही है तो तैयार हो जाएं।

इसी तरह ज़ाकिर भाई हमेशा कुछ अच्छी सलाह देते रहते हैं। उनकी हर रचना जागरूक करने वाली होती है। उन्‍होंने देश से अन्‍धविश्‍वास को मिटाने तथा अम जन को जागरूक करने का बीड़ा उठाया हुआ है और उसे मूर्त रूप देने के लिए अथक प्रयत्‍न करते रहते हैं। इस बार सलाह दे रहे हैं “

भगवान के अवतारों से बचिए!” ईश्‍वर पर विश्‍वास करना या अविश्‍वास करना, पूर्ण रूप से व्‍यक्तिगत धारणाओं पर निर्भर होता है। इससे किसी को तब तक कोई हानि नहीं पहुंचती, जब तक खुर्दगर्ज प्रचार द्वारा उसका बारबार शोषण नहीं किया जाता।
धर्म हमारी संस्‍कृति का भाग है। हमारे देश में कई नियम और दार्शनिक विचारधाराएं आदि काल से चली आ रही हैं और हमारे अवचेतन मन में बैठ गयी हैं कि ईश्‍वर उन लोगों के लिए आवश्‍यक है, जिन्‍हें इस सहारे की आवश्‍यकता होती है और जो सहारे के बिना पागल हो जाएंगे। पर मुझे उन लोगों की चिंता है, जो अपनी सामर्थ्‍य से अधिक विश्‍वास कर बैठते हैं और बाद में उससे निराश होने पर मानसिक संतुलन भी खो देते हैं।
*** आपका लेख समकालीन परिदृश्‍य के उन सवालों से रू-ब-रूबरू होता  है, जो लंबे समय से हमारे समाज के केंद्र में रहा है।

Shyam kori 'uday'एक विचारोत्तेजक कविता पेश कर रहे हैं उदय जी। सच सच होता है, चाहे वह कड़वा ही क्यों न हो!

भ्रष्ट, भ्रष्टतम, भ्रष्टाचारी
चक्रव्यूह
हैं गढ़ने वाले
न गढ़ पाएं, चक्रव्यूह वो
हमें, एक ऐसी अलख जगाना है
लड़ना है, लड़ जाना है
फैले भ्रष्टाचार से



चलों, चलें
हम सब मिलकर
हिम्मत, जज्बा, कदम, मिला दें
संग अन्ना के, कदम बढ़ा दें
लड़ लें, जीत लें, हम, फैले भ्रष्टाचार से !!

*** अब यह हम सभी भारतीयों की जिम्मेदारी है कि वे न केवल नींद से जागें, अपितु चौकन्ने होकर ऐसे तत्वों की पहचान करने लगें जो इस मुहिम को कमजोर कर देना चाहते हैं।


मेरा फोटोअब बिना किसी टिप्पणी के पेश करता हूं, प्रतिभा जी द्वारा प्रस्तु नचारी -

नचारी - राम जी

सीता जी की मैया तो सासू तुम्हार भईँ ,राम जी कहाते तुम धरती के भरता ,
ताही सों कैकेयी दिबायो बनबास,तहाँ जाय के निसाचरन के भये संहर्ता.
मंथरा ने जाय के जनाई बात रानी को सुनि के बिहाल भई चिन्ता के कारनैं ,
दोष लै लीन आप ,कुल को बचाय दियो केकय सुता ने अपजस के निवारने ,
*** बहुत सुंदर नचारी, अवश्य पढ़ें।


कुछ लोग मन की अशान्ति को अपने तक ही सीमित रखते हैं… लेकिन कुछ इस अशान्ति को नियन्त्रित नही कर पाते.. एक अशान्त मन… मस्तिष्क, विचार और सोच को कैसे मैनेज कर सकता है?! मणीश इसका उपचार बता रहे हैं,

“एक गहरी साँस लें…. और धीरे-धीरे आहिस्ते से छोड़ दें..यह विधि उनके लिए कारगर है जो हाई ब्लडप्रेशर, शूगर, हाइपर टेंशन से पीड़ित हैं..”

इसे कहते हैं सही समय पर सही मैनेजमेंट… !
मणीश बताते हैं - जो इन्सान खुल कर अपने घर में नहीं हँसा… पत्नी कहते कहते मर गयी कि जरा सा मुस्कुरा भी लिया करो.. लेकिन उनके सिर पर जूँ भी नहीं रेंगी… उल्टे झिड़क देता था “मैं पागल हूँ जो बिना बात के हँसूँ..मुस्कुराऊँ.. और कोई काम नहीं है?”

*** एक मज़ेदार पोस्ट!
My Photoयह बात तो प्रमाणित और सिद्ध है कि तनाव रहित अगर होना है आपको तो योग और ध्यान के सिवा और कोई उपचार नहीं है। स्‍वामी आनंद प्रसाद 'मानस'

मौलुंकपुत्र के प्रश्न और भगवान बुद्ध—

के माध्यम से बता रहे हैं कि ध्‍यान की पूरी प्रक्रिया है: प्रश्‍नों को गिरा देना, भीतर चलती बातचीत को गिरा देना। जब भीतर की बातचीत रूक जाती है। तो ऐ असीम मौन छा जाता है। उस मौन में हर चीज का उत्‍तर मिल जाता है। हर चीज सुलझ जाती है—शब्‍दिक रूप से नहीं, आस्तित्व गत रूप में सुलझ जाती है। कहीं कोई समस्‍या नहीं रह जाती है।
*** बहुत उपयोगी और प्रेरक पोस्ट।
मेरा फोटो“आज अपने सामने बैठे खुद को पाता हूँ नाराज, रुठा हुआ खुद से।” अजी ये मैं नहीं समीर जी कह रहे हैं। अब किस बात पे उनके मन में ऐसा ख़्याल आया यह तो वे ही बता सकते हैं। लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि काश! पहले जान पाते तो कम से कम खुद से खुद तो ईमानदार रहे होते....! लेकिन कोई बात नहीं समीर भाई

मैं हूँ न!!


एक कविता पेश करते हैं और कहते हैं

कल जाग
सारी रात
दिल के दराज से
पुरानी बिखरी
बातों और यादों को सहेज
एक कागज पर उतारा,

करीने से मोड़
लिफाफे में बंदकर
रख दिया है उसे
डायरी के पन्नों के बीच
***

बहुत प्रेरक आलेख, उतनी ही अच्छी एक कविता। एक शे’र याद आ गया। शेयर कर लूं ...
सब सा दिखना छोड़कर खुद सा दिखना सीख
संभव है सब हो गलत, बस तू ही हो ठीक

My Photoजब भी आप अपने कंप्यूटर पर कुछ भी काम करते हो तो काम करते टाइम बहुत सी ऐसी फालतू की फाइल आपके कंप्यूटर में जगह बना लेती है जिनका कोई काम नहीं होता और ये ही फाइल आपके कंप्यूटर की स्पीड स्लो कर देती है वेसे तो बहुत से टूल है जो आपके कंप्यूटर की टेम्परेरी फाइल हटा देते है लेकिन वो पूरी तरह से हटाने में सफल नहीं हो पाते। इस समस्या का समाधान लेकर आए हैं Mayank Bhardwaj। इस आलेख को पढें और 

बस एक ही क्लीक से करे अपने कंप्यूटर को फास्ट!!
*** मयंक भाई बहुत काम की जानकारी दी है आपने।

clip_image002‘मनोज’ ब्लॉग पर प्रस्तुत की गई है जाने-माने रंगकर्मी जितेन्द्र त्रिवेदी की रचना

फ़ुरसत में … जंतर मंतर से ..! आज के भारत में प्रत्येक आदमी, जो सोते-जागते यह जानता है कि भ्रष्टाचार के मगरमच्छ ने राष्ट्ररूपी जहाज को छतविक्षत कर दिया है और उसके मस्तूल और पतवार दोनों को यह मगरमच्छ निगल चुका है, सारे देश के लोग निरुपाय होकर मात्र दर्शक बने रहना ही अपनी नियति समझ बैठे थे साथ ही यह मानने लग गये थे कि वे महाभारत के निर्वीर्य धृतराष्ट्र की तरह घटनाओं के द्रष्टा भर हैं। जो कुछ होना है वह होकर रहेगा इसलिये केवल देखते जाने और सब कुछ सहते जाने में ही उनकी भलाई है। नाहक अपना खून जलाने से क्या फायदा?
*** इस यथार्थपूर्ण आलेख में उठाए गए प्रश्न हमारे सामाजिक सरोकारों को बेहद ईमानदारी से प्रस्तुत करते हैं। यह प्रश्न ऐसे समय पर उठाए गए है जब समग्र देश भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान में स्वतः स्फूर्त ढंग से आंदोलित है, इसलिए इस रचनात्मक कार्य की महत्ता और बढ़ जाती है।
वैसे तो यह विषय नया नहीं है फिर भी राजभाषा हिन्दी पर दिया जा रहा है, उपन्यास साहित्य – प्रेमचंद : जीवन परिचय। प्रेमचंद ने 1901 मे उपन्यास लिखना शुरू किया। कहानी 1907 से लिखने लगे। उर्दू में नवाबराय नाम से लिखते थे। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों लिखी गई उनकी कहानी सोज़ेवतन 1910 में ज़ब्त की गई , उसके बाद अंग्रेज़ों के उत्पीड़न के कारण वे प्रेमचंद नाम से लिखने लगे। 1923 में उन्होंने सरस्वती प्रेस की स्थापना की। 1930 में हंस का प्रकाशन शुरु किया। इन्होने 'मर्यादा', 'हंस', जागरण' तथा 'माधुरी' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया।

My Photoबहुत सारी उम्मीदों के बीच बीच अनुराग शर्मा जी की 

नाउम्मीदी - कविता

बहुत अच्छी लगती है।

जितनी भारी भरकम आस उतना ही मन हुआ निरास
राग रंग रीति इस जग की अब न आतीं मुझको रास
सागर है उम्मीदों का पर किसकी यहाँ बुझी है प्यास
तुमसे भी मिल आया मनवा फिर भी दिन भर रहा उदास

पनी चोट दिखायें किसको

जग को आता बस उपहास
*** इन बातों में हक़ीक़त है।

वीडियो गेम

काइनेक्ट 

के चहेतों के बारे में आपकी क्या अवधारणा है? मेरा बचपन वीडियो गेम के स्थान पर फुटबाल और तैराकी जैसे स्थूल खेलों में बीता है अतः वीडियो गेम के प्रभावों का व्यक्तिगत अनुभव मुझे कभी नहीं मिला। प्रवीण पांडेय जी बता रहे हैं काइनेक्ट एक ऐसा वीडियो गेम है जिसमें आप ही उस खेल के एक खिलाड़ी बन जाते हैं। एक सेंसर कैमरा आपकी गतिविधियों का त्रिविमीय चित्र सामने स्थिति स्क्रीन पर संप्रेषित कर देता है और आप उस वीडियो गेम के परिवेश का अंग बन जाते हैं। आप स्क्रीन से लगभग 8फीट की दूरी पर रहते हैं और खेल में भाग लेने के लिये आपको उतना ही श्रम करना पड़ता है जितना कि वास्तविक खेल में। गति और दिशा, दोनों ही क्षेत्रों में पूर्ण तदात्म्य होने को कारण कुछ ही मिनटों में आपको लगने लगता है कि स्क्रीन में उपस्थित खिलाड़ी आप ही हैं। यह अनुभव ही खेल का उन्माद चरम पर पहुँचा देता है। 
*** आजमाइए ना, रोचक है!!

AIbEiAIAAAAjCNut-8ux2cTvmQEQroWd49T5ifTRARjUjdXGmbLy8pwBMAFkA3w0g-7cypY8vgzrpx6GNnUxZQराधारमण जी बता रहे हैं

16 एंटीबायोटिक दवाओं पर लगेगी रोक

‘सुपरबग’ जैसे और बैक्टीरिया पैदा न हों, इसके लिए मंत्रालय देश में पहली बार थर्ड जेनरेशन की सभी एंटी-बायोटिक दवाओं की सार्वजनिक बिक्री पर अंकुश लगाने जा रही है।

इस तरह की 16 एंटी-बायोटिक दवाओं की आम बिक्री पर रोक की अधिसूचना सोमवार को जारी होने वाली है।
*** पता नहीं इनमें से कौन-कौन और कब कब हम खाते रहते हैं। बहुत अच्छी पोस्ट।
My Photoआज जब चर्चा मंच के लिए पोस्ट के लिंक संकलन कर रहा था तो कुछ

यादें

ताज़ा हो गईं। यह बच्ची (प्रतिमा राय) छोटी थी, जब हम मेदक में पोस्टेड थे। आज उसकी कविता पढकर उसकी इस विधा में निहित संभावना नज़र आई। कविता अच्छी लिख गयी है। कहीं-कहीं टंकण की त्रुटियाँ रह गयी हैं। इस बनती हुई कवयित्री के पिता हमारे ब्लॉग ‘मनोज’ के सक्रिय सहयोगी हैं। आप इसे आशीर्वाद और मार्गदर्शन दें।


वो कडाके की सर्दियों में,

 
आप खिलते धुप से खड़े थे,

 
कुछ सर्द रातें
और आग की लपटें थीं,

 
आपका दूर होकर भी पास होना,

 
याद है आज भी हमें,

 
वो हमारी नादानियों पे मुस्कुराना,

 
तमाम रात साथ बैठना
*** कुछेक टंकण अशुद्धियों को छोड़ दें तो इस कविता में प्रयुक्त ताज़ा बिम्बों-प्रतीकों-संकेतों से युक्त आपकी भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम भर नहीं, जीवन की तहों में झांकने वाली आंख है।

My Photoदर्शन कौर धनोए जी के साथ

माउंट आबू ( 3 ) Mount abu ( 3 )

की सैर का आनंद लीजिए। शब्दों से कम चित्रों से ज़्यादा! क्योंकि इनका कहना है, कल बहुत थक गए थे --सुबह देर से नींद खुली --अभी हमारे पास पुरे ६दिन     है --आज हमने रूम पर ही आराम किया --सुबह किचन में ही मस्त दाल -चावल बनाए और खाकर आराम किया --शाम को सिर्फ सन -सेट देखने जाएगे—!


*** भई इस सैर सपाटा का हमने तो ख़ूब लुत्फ़ उठाया।

मेरा फोटो१९८६ में अविभाजित रूस में विश्व इतिहास में सबसे दुखद नाभकीय दुर्घटना चर्नोबिल में हुआ था. लाखों लोग आज भी इसके प्रभाव से कैंसर से पीड़ित हो रहे हैं. रूस का विभाजन नहीं हुआ होता तो शायद ही इस दुर्घटना के प्रभाव के बारे में दुनिया वाकिफ होती. चर्नोबिल नाभकीय संयत्र प्रिप्यात नदी के तट पर बसा था जो आज रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण एकाकी है. इसी नदी के एकाकीपन को बांटते हुए अरुण रॉय न्र एक कविता लिखी है

चर्नोबिल के बाद एकाकी प्रिप्यात नदी

फिर उस रात
चेर्नोबिल में
शांतिकाल का नाभिकीय बम
रिस पड़ा
रेडियोधर्मी आइसोटोप्स
फ़ैल गए पर्यावरण में
प्रिप्यात नदी में घुल गए
रेडियोन्युक्लैड्स
और प्रिप्यात हो गई
दुनिया की सबसे प्रदूषित नदी

जिसका जल हो गया अभिशापित 

अभिशप्त हो गयी नदी 
***

त्रासद जीवन की करुण कथा कविता में है।

इस कविता की स्थानिकता इसकी सीमा नहीं है, इसकी ताक़त है। प्रगतिशीलता, सभ्यता के विकास और चकाचौंध में किस तरह हमारी ज़िन्दगी घुट रही है प्रभावित हो रही है, उसे आपने दक्षता के साथ रेखांकित किया है।

गीत लवों पर खिल आता है..... जी, हां। अगर यकीन न हो तो

सुषमा गुप्ता जी का एक गीत....

पढिए!

चूल्हे चौके की खटपट में,

समय भला कब मिल पाता है |

सब्जी कढ़ी दाल अदहन में,

गीत भला कब बन पाता है ||

चूल्हे चौके की खट पट में,

समय कहाँ फिर मिल पाता है |

मन में प्रिय रागिनी बसी हो,

गीत लवों पर खिल आता है ||
***

· स्त्री जीवन के सामान्य उपकरणों चूल्हे चौके, सब्जी कढ़ी दाल अदहन, तवा कडाही कलछा चिमटा, दूध चाय पानी, थाली बेलन चकले, आदि के द्वारा आपने जीवन के बड़े अर्थों को सम्प्रेषित करने की सच्ची कोशिश की है।
आज बस इतना ही। अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे। तब तक के लिए हैप्पी ब्लॉगिंग।

22 टिप्‍पणियां:

  1. dhyanakrshit karte lekh va rachnayen
    achhe lage . charchamanch ki sima ko
    vistrit karne ki avshykta hai . sadhuvad.

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छी चर्चा लीक से हटकर और बहुरंगी भी. चयन प्रक्रिया में समय और श्रम दोनों ही लगा लेकिन फल भी उतना ही अधक स्वादिष्ट. बधाई...इतनी रोचक और उपयोगी जानकारी हेतु.

    जवाब देंहटाएं
  3. विविधता लिए हुए अच्छे लिंक्स.

    जवाब देंहटाएं
  4. इस सार्थक चर्चा के लिए आपका आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. मनोज कुमार जी!
    सुन्दर चर्चा के लिए धन्यवाद!
    आज की चर्चा से पता लगा कि पोस्ट की उपयोगिता क्या है?
    जिसके कारण इसे चर्चा में शामिल किया गया है।
    बहुत-बहुत आभार!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही शानदार चर्चा की है……………सभी लिंक्स पढने वाले…………बेहतरीन्।

    जवाब देंहटाएं
  7. Aap ki charcha manch bahut hi gyaanwardhak hai. charcha manch par meri rachna ko shamil karne ke liye main tahe dil se aapki aabhari hun.

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत उम्दा चर्चा ...अच्छे लिंक्स मिले ..आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

    जवाब देंहटाएं
  10. मनोज जी ,

    तीसरी और पांचवीं पोस्ट के लिंक कैसे खोले जाएँ ? मुझे नहीं मिल रहे हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत बढ़िया!
    न केवल लिंक्स बल्कि टिप्पणी / चर्चा..

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही सुंदर चर्चा.....।सभी लिंक्स पढने वाले…………बेहतरीन्।

    जवाब देंहटाएं
  13. चर्चामंच काफी रोचक लगा। साथ ही कई रचनाओं के लिंक मिलने से एक स्थान से सबकुछ पढ़ने को मिल गए। आभार।

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।