कुछ पन्ने ..सजाने वाली मशहूर ब्लॉगर बाबुषा से-देखिए इनकी प्रथम पोस्ट |
खेल - तमाशागुड्डे - गुडिया दही बताशे, रुकता कुछ भी नही यहाँ परजाते एक दिन सभी यहाँ से॥ बचपन ,यौवन और बुढ़ापा - नाटक के सब दृश्य अलग हैं, चार आदमी जब ले जाते, खतम कहानी ,गिरते पट हैं ॥ सुख- दुःख पीड़ा और उल्लास , पल-पल साँसों का उछ्वास , मरघट में जब जलती चमडी - मिटटी होते भोग - विलास ॥ रिश्ते - नाते घर - संसार, हो जाते फिर सब बेकार - राम नाम सत जाप हुआ जब लक्ष्मी , ब्रह्मा सब बेकार ! |
Wednesday, April 20, 2011घोषणा से पहले _मैं ; ये घोषित कर दूँ - डाल दो मेरे पैरों में बेड़ियाँ ! चढ़ा दो मुझे सूली पर ; या फ़िर - पिला दो प्याला ज़हर का ! टांग के सलीब पर ; ठोंक दो कीलें - मेरे , हाथ- पैरों पर ! इससे पहले कि मैं; ये घोषित कर दूँ कि - मैं ही धरती हूँ - मैं ही वायु ; आकाश, जल और अग्नि ! मैं ही हूँ पेड़ ; मैं ही पहाड़ ; नदियाँ - नौतपा; और इन्द्रधनुष! महौट की बारिश भी मैं ; जेठ का सूखा भी मैं - आंधी; बवंडर - सुनामी भी मैं हूँ ! मैं ही कनेर हूँ , गाजरघास हूँ ; बेशरम का फूल - गौतम के सिर खड़ा हुआ बरगद भी मैं ! मैं ही दलदल हूँ; मैं ही गड्ढे ; कूड़ा -करकट; कीचड़ - कचड़ा - मैं ही हूँ ! मैं ही भूख हूँ ; मैं ही भोजन - मैं ही प्यास हूँ ; मैं ही अमृत - मैं दिखती भी हूँ ; छिपती भी हूँ - उड़ती भी हूँ ; खिलती भी हूँ ! मैं देह के , भीतर भी हूँ - और- देह के बाहर भी ! मैं अनंत हूँ ; असीम हूँ ; अविभाज्य हूँ - अमर हूँ मैं ! इससे पहले कि- मैं ये - घोषित कर दूँ ; मार दो गोली - |
Dilbag Virk (दिलबाग विर्क) |
Sunday, December 19, 2010 अग़ज़ल - 1प्यार-मोहब्बत के फरिश्तों का हमजुबां होना सब गुनाहों से बुरा है दिल में अरमां होना . अहसास की आँखों से देखी हैं रुस्वाइयाँ महज़ इत्तफाक नहीं दिल का परेशां होना . नजदीकियां भी बुरी होती हैं दूरियों की तरह जरूरी है कुछ फासिलों का दरम्यां होना . गर गरूर है उन्हें महलों का तो रहने दो मेरे लिए काफी है सिर पे आसमां होना . न जाने क्यों खुदा होना चाहते हैं लोग काफी होता है एक इंसां का इंसां होना . जीना मकसद है जिंदगी का 'विर्क' जीता रह क्यों चाहता है अपने कदमों के निशां होना . |
Saturday, April 16, 2011अगज़ल - 16ये लोग न जाने क्यों जहर पीने की बात करते हैं हम तो सब गम उठाकर भी जीने की बात करते हैं . एक नजर काफी है दोस्त-दुश्मन पहचानने के लिए वो तो नादां हैं , जो साल- महीने की बात करते हैं . जख्म देना जिनका पेशा है ,महफिलों में अक्सर वो हमदर्दी की खातिर , जख्मी सीने की बात करते हैं . हिन्दू-मुस्लमान हैं सब मगर इन्सां कोई नहीं , तभी कभी काशी , कभी मक्के-मदीने की बात करते हैं . गर दगेबाज़ नहीं हैं तो अनजान जरूर होंगे वो पत्थरों से भरकर दामन ,जो नगीने की बात करते हैं . मेरी समझ से तो परे है , ये पागल दुनिया वाले मुहब्बत को छोडकर किस दफीने की बात करते हैं . वो लहू और तलवार की बात ले बैठते हैं ' विर्क ' जब भी हम मेहनत और पसीने की बात करते हैं . |
भाषा और साहित्य के माध्यम से मानवीय मूल्यों को पोषित का करने का प्रयास...... |
उल्लू जी स्कूल गए |
10 April 2011******भ्रष्टाचार : तेरे रूप बेशुमार -डॉ० डंडा लखनवी भ्रष्टाचार की जड़ें सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में व्याप्त हैं। इस रोग से सारा देश पीड़ित है। श्री अन्ना हजारे ने उसके उपाचार का बीड़ा उठाकर सोए हुए भारतीय समाज में हलचल पैदा कर दी है। सदियों से व्यंग्यकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनमत बनाते रहे हैं। व्यंग्य का कार्य ही है समाज में पर्दे के पीछे हो रहे लोक विरोधी कार्यों को सामने लाना है। इससे समाज में जागरूकता उत्पन्न होती है। असमाजिक तत्वों का हौसला पस्त होता है। समाज में मानवीय मूल्य स्थापित होते हैं और प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार होता है। व्यंग्यकार इस काम को स्वत:स्फूर्त होकर करता है। व्यंग्यकार का काम जोखिम भरा है। साहित्य की अन्य विधाओं में इतना जोखिम नहीं है। कबीर ने उस जोखिम को उठाया था। कबीर का नाम हिंदी साहित्य में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। व्यंग्य की तेज छूरी से उन्होंने ने सामाजिक शल्य-चिकित्सा बड़े कौशल से की थी। आज व्यंग्य का फलक और उसका स्वरूप बहुत विस्तृत हो चुका है। आधुनिक काल में व्यंग्य की एक स्वतंत्र विधा के रूप में पहचान बन चुकी है। व्यंग्य भ्रष्टाचार से लड़ने का कारगर हथियार है। यह भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों के लिए जमीन तैयार करता है। जिस तरह से खद्दर के वस्त्र पहन भर लेने से कोई व्यक्ति सच्चा-जनसेवी नहीं बन जाता है उसी तरह से साधुओं जैसा मेकअप कर लेने से व्यक्ति चरित्रवान नहीं बन जाता है। धर्म और राजनीति का रिस्ता चोली और दामन जैसा रहा है। धर्म और चरित्र दोनों की प्रकृति अलग-अलग है। यदि ध्रर्म व्यक्ति को चरित्रवान बनाता तो विभिन्न धर्मों में परस्पर संघर्ष न होते और न सांप्रदायिक इकाईयों के अलग-अलग धड़ों में परस्पर टकराव होते। धर्मभीरुता चरित्रवान होने की गारंटी नहीं है। कोई भी धर्म न ही अपने समस्त अनुयायियों के चारित्रिक शुद्धता का दावा कर सकता है। चरित्र मानवीय-मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता से सवंरता है। चरित्रवान के लिए आत्म-निरीक्षण और अवगुणों से छुटकारा पहली शर्त है। संयम और त्याग की आँच पर ख़ुद को तपाना पड़ता है। हरामख़ोरी से बचना होता है। दूसरों के साथ वही व्यवहार करना पड़ता है जैसा हम अपने लिए दूसरों से चाहते हैं। चरित्र बाहरी दिखावा नहीं अभ्यांतरिक शुद्धता है। चरित्र व्यक्ति के आचरण और व्यवहार से झलकता है। @ चरित्र-प्रमाण पत्र की सभी को आवश्यकता पड़ती है। आपको भी पड़ी होगी। क्या कभी आपने सोचा है कि जो व्यक्ति आपको चरित्र प्रमाण-पत्र जारी कर रहा है वह चरित्र के मामले में पूर्ण रूपेण खरा है? वह कदाचारी भी हो सकता है। कई बार आप उसके चरित्र के विषय में जानते भी होंगे। कदाचारी व्यक्ति सदाचार का प्रमाण-पत्र का प्रमाण-पत्र जारी करता है? यह कैसी विडंबना है? @ रिश्वतख़ोर व्यक्ति को जब खरी-खोटी सुनाई जाती है तो वह कहता है-"आपको मौका नहीं मिला है इसलिए ऐसी बातें करते हो।" यह कह कर वह कहना चाहता है -"उसे मौका मिला है। वह अपनी मर्जी का मालिक है। वह जो चाहे सो करे उस पर कोई उंगली न उठाए।" @ सभी लोग जानते हैं कि दहेज एक सामाजिक अभिशाप है। इसे रोकने के लिए कानून भी बना है। कानून किनारे धरा है। महंगी शादियों का मीडिया द्वारा भोड़ा प्रदर्शन खूब किया जाता है। सबको दिखाकर दहेज लेना और देना बदस्तूर जारी है। यह कैसी ईमानदारी है? @ एक व्यंग्यकार से प्रश्न किया गया कि आजकल भ्रष्टाचार का ग्राफ ऊँचा क्यों है? उसका उत्तर था कि अधिकांश लोग चाह्ते हैं कि सरदार भगतसिंह यदि पुर्न जन्म लें तो पड़ोसी के घर में लें और माइकेल जैक्शन अथवा नटवर लाल उनके घर में। अत: अगर कोई आफ़त आवे तो पड़ोसी के घर में आवे और उसका घर सुरक्षित रहे। अन्ना हजारे.....जिन्दाबाद! |
RAMPATIदेखिए इनकी प्रथम पोस्ट |
स्पर्शमृदुल स्पर्श मुस्कान मोहिनी मन को बहुत लुभाती है बंद नयन स्वपन में भी सोयी चाहत सहलाती है . रेशम धागे सा प्रेमपाश चाबुक काम न आता है उनका छूना हौले हौले दिल को भी छू जाता है . स्पर्श देह का नेह नहीं ह्रदय भी नम हो जाता है मन से मन का मेल नहीं भाव भी कम हो जाता है . मेल मिलाप से परे हो तुम धड़कन का है आना जाना गहन स्पंदन बसे हो तुम दूर नहीं तुम बस जाना . राह निहारेंगे दो लोचन सन्देश समीर पहुंचाएगी जब साथ रहेगी तन्हाई याद बहुत फिर आएगी . |
पूछे सखियाँ मन की बात कहो प्रिये क्या है राज कहने में लाज आती मैं छुईमुई हो जाती दर्पण में निहारती स्वयं को संवारती देख उसमें उनकी छवि मैं छुईमुई हो जाती अलकें उलझ जाती कैसे मैं सुलझाती हर लट याद दिलाती मैं छुईमुई हो जाती गालों की लाली और सुर्ख हो जाती खुशबू तुम्हारी महकाती मैं छुईमुई हो जाती प्रतीक्षा में रहती नजरें राह तकती आती उनकी पाती मैं छुईमुई हो जाती आने की आहट मन को हर्षाती धड़कन बढ़ जाती मैं छुईमुई हो जाती बदरी गहराती काली गर्जना मेघ की डराती बरखा मन भिगो जाती मैं छुईमुई हो जाती . |
बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंकुछ ब्लोगर्स की प्रथम और अद्यतन पोस्ट प्रकाशित करके आपने चर्चा मंच पर नयापन पैदा किया है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया है.
very different and very beautiful ...!!
जवाब देंहटाएंbahut badhia hai aaj ka charcha manch ..!!
बहुत नए प्रकार की चर्चा.. स्थापित ब्लोगरों की प्रथम और अद्यतन रचना पढवाने के साथ ही ब्लॉग जगत में हुई तमाम प्रगति और रूझान का संकेत भी मिला.. श्रीमती रामपती जी की दोनों कवितायेँ अच्छी लगी... लखनवी जी का ब्लॉग और बाबुशा जी का ब्लॉग भी प्रभवित किया..
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर अपनी कविताओं की तुलना देख बहुत खुश हूँ . उत्साहवर्धन के लिए आभार. मंझे हुए ब्लोगर्स की कविताओं की तुलनात्मक विवेचना एक नवीव प्रयोग है . बधाई स्वीकार करें.
नवीव की जगह "नवीन " पढ़ा जाए .
जवाब देंहटाएंनया अन्दाज़ बेहद भा रहा है……………सार्थक और सटीक चर्चा के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंsarthak blogs uttam bloggars.sarthak prastuti.badhai.
जवाब देंहटाएंbehatarin parichay karata blogaron se
जवाब देंहटाएंaapka prayas sarahniya hai . dhanyavad.
अरे वाह ! क्या बात है ! मुझे तो बड़ा अचरज है की 'मैं' कुछ भी नहीं, फिर भी मेरी चर्चा है !
जवाब देंहटाएंसच में, सच में, सच में , मैं कुछ भी नहीं !
आदरणीय शास्त्री जी , मैं आभारी हूँ की आपने ख़ाकसार को यहाँ जगह दी !
सभी लिनक्स अच्छे लगे !
आभार !
-बाबुषा
डॉ.मयंक जी
जवाब देंहटाएंआपका मार्गदर्शन तो मुझे मिल ही रहा है .अब आपने चर्चा मंच के पाठकों को मेरे ब्लॉग का लिंक बता कर जो उपकार है किया है उसके लिए मैं तहे-दिल से आपका आभारी हूँ
रही चर्चा मंच की बात तो यह एक बेहतरीन ब्लॉग है और सभी सदस्य मेहनत भरा काम करके पाठकों को बेहतरीन रचनाएं पढने का मौका उपलब्ध करवाते हैं .
sahityasurbhi.blogspot.com
shastri ji...behad sundar aur bilkul alag tarah se kee is charchaa me to you might like this par bhi kai anya kai link hee link dekhne ko mileY..
जवाब देंहटाएंaur bahut achhe links ..kai links par gayi... aur abhi dekhne baaki hain... aapkaa Abhaar is sundar charcha ke liye.... aur bilkul alag tarah se rasmayi charcha..
naye naye andaaz charcha manch ke hamko lubhate hain.
जवाब देंहटाएंhar din ham apke manch par khinche chale aate hain.
shandar charcha par shastri ji ko badhayi.
पठनीय प्रस्तुति के लिए आपकी स्तुति करनी ही होगी . बधाई .
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखने वालों का अच्छा परिचय.. सुंदर संयोजन..
जवाब देंहटाएंमा० शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंचर्चा-मंच अपनी रचनात्मकता से चर्चा में रहता है। मंच के इस अंक में ब्लागरों के प्रथम रचना के साथ उसकी नवीनतम रचना का परिचय कराना एक अच्छी पहल है। इससे ब्लागर की रचनात्मक यात्रा का आंकलन करना सहज होगा है। शानदार प्रस्तुति के लिए साधुवाद!
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"डंडा" संत स्वभाव की, यही मुख्य पहचान।
दीप जला कर ज्ञान का, करते जन कल्याण॥
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
सार्थक और सटीक चर्चा
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत बढ़िया...
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