मित्रों। आज बुधवार है और मैं आपके साथ साझा कर रहा हूँ अपनी पसंद के 5 ब्लॉगों की प्रथम और अद्यतन पोस्ट को। |
आज सबसे पहले चर्चा में है
संवादी देखिए इनकी पहली और अद्यतन पोस्ट |
शुक्रवार, १६ अक्तूबर २००९ओबामाओबामा पचास साल पहले मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने देखा था एक सपना अलगाव की हथकडी और भेदभाव की जंजीरों में जकडे भौतिक सम्पन्नता के हहराते समुद्र में निर्धनता के एकाकी द्वीप की तरह अपनी ही धरती पर निर्वासित कालों का एक सपना चिलचिलाती धूप में समानता और स्वतंत्रा के महकते वसंत का सपना एक ऐसा मरूद्यान जहां बच्चे रंग की चारदीवारी से मुक्त हों और रंग नहीं कार्य दमके कलह को भ्रातृत्व के राग में ढल जाने का सपना जो अंततः अमेरिका का ही सपना था बराक हुसैन ओबामा को क्या उस स्वप्न की याद है कहते हैं ओबमा विचार नही वह तो एक चेहरा है एक ऐसा चेहरा जिससे जुड़ गयी हैं कुछ अस्मितापरक आशाएँ ४२ श्वेत राष्ट्रपतियों के बाद एक अश्वेत को बैठाकर अमेरिका अपने अपराध बोध से बाहर निकल रहा है अंततः ओबामा को एक बुश ,किलन्टन , या रीगन ही होना है वह मार्टिन लूथर नहीं हो सकता केन्या के उस सुदूर गावँ की रंगहीन शामों में शायद ही कोई फर्क आए जहां उसके नन्हें पैरों के निशान हैं शायद ही कोई फर्क आए विश्व में भर गये अमेरिकी धुएँ के कसैलेपन में उसके अहम के अट्टहास में इस नये चहरे से अमेरिका उतार रहा है अपनी थकान बराक के कन्धे पर श्वेत अमेरिका का बोझ है | सोमवार, २१ मार्च २०११छलछल अगर मैं कहता हूँ किसी स्त्री से तुम सुंदर हो क्या वह पलट कर कहेगी बहुत हो चुका तुम्हारा यह छल तुम्हारी नज़र मेरी देह पर है सिर्फ देह नहीं हूँ मैं अगर मैंने कहा होता तुम मुझे अच्छी लगती हो तो शायद वह समझती कि उसे अच्छी बनी रहने के लिए बने रहना होगा मेरे अनुकूल और यह तो अच्छी होने की अच्छी – खासी सज़ा है मित्र अगर कहूँ तो वह घनिष्ठता कहाँ जो एक स्त्री-पुरूष के शुरूआती आकर्षण में होती है दायित्वविहीन इस संज्ञा से जब चाहूँ जा सकता हूँ बाहर और यह हिंसा अंततः किसी स्त्री पर ही गिरेगी सोचा की कह दूँ कि मुझे तुमसे प्यार है पर कई बार यह इतना सहज नहीं रहता बाज़ार और जीवन-शैली से जुडकर इसके मानक मुश्किल हो गए हैं और अब यह सहजीवन की तैयारी जैसा लगता है जो अंततः एक घेराबंदी ही होगी किसी स्त्री के लिए अगर सीधे कहूँ कि तुम्हरा आकर्षण मुझे स्त्री-पुरूष के सबसे स्वाभाविक रिश्ते की ओर ले जा रहा है... तो इसे निर्लज्जता समझा जायेगा और वह कहेगी इस तरह के रिश्ते का अन्त एक स्त्री के लिए पुरूष की तरह नही होता.. भाषा से परे मेरी देह की पुकार को तुम्हारी देह तो समझती है भाषा में तुम करती हो इंकार और सितम की भाषा भी चाहती है यह इंकार. |
अब चर्चा में लेते हैं आज का दूसरा ब्लॉग
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SATURDAY, OCTOBER 13, 2007आँखेंकितनी मासूम हैं तेरी आँखेंरु-ब-रु बैठ आ के मेरे पास एक लम्हे को भूल जाऊँ मैं अपने हर इक गुनाह का एहसास |
SATURDAY, APRIL 9, 2011दीवाना है दीवाना .......दोस्त गर है तो मेरा साथ दे, अकेला हूँ मैं वैसे जीने को तो तन्हा भी जिया करता हूँ और दुश्मन है तो दो चार ज़ख्म ही दे दे तू जो कोई नहीं क्यों याद तुझे करता हूँ कोई ज़रूर तो नहीं कि जब कभी भी मुझे ख्वाब आयें तो उन में तेरा गुज़र भी हो ही गोया तू मेरे ही इन ख़्वाबों की अमानत है यूं है नहीं, मैं यूं ही सोच लिया करता हूँ तुझ को ये इल्म भला हो भी अगर, क्योंकर हो कि मैं ने ख़्वाबों के कितने ही महल तोड़े हैं पर तुझे क्या, कि ये हक़ीक़तें तो मेरी हैं ख्वाब को भी मैं हक़ीक़त शुमार करता हूँ मुझ से तू आशना है, और बात है ये मगर आशनाई ये काश मेरे दिल से भी होती किसी दिन तुझ को कभी इल्म ये भी हो जाता बग़ैर तेरे मैं न जीता हूँ न मरता हूँ |
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Monday, September 07, 2009रिश्तों के नामबहुत अरसा तो नहीं हुआ उस बात को जब घर आने पर ताई चाची का भाई होता था हम सभी का मामा और बहिन होती थी पूरे खानदान की ही नही पूरे मोहल्ले और गाँव की मौसी, कहाँ सिमट कर रह गए सारे रिश्ते? तुम्हारी नज़र में मैं रह गई सिर्फ एक नारी देह दुनिया बदल गयी, पर मुझे आज भी प्रतीक्षा है उस दिन की जब लौट आएगी रिश्तों की वो ही खूबसूरती गंवार हूँ ? पर मुझे आज भी छू जाते है वो पल जब 'वो' ला कर माथे पर ओढा देते थे माँ के, ओढ़नी 'गाँव की बहिन बेटी' के रिश्ते से भीतर तक भीग जाती थी माँ चाहती हूँ मैं भी जीना वो ही पल ... पर अब, डरा देता है मुझे भीतर तक अखबार के कोने में छपा एक छोटा - सा समाचार 'नन्ही बच्ची से बलात्कार' और छिपा लेना चाहती हूँ उसे ही नहीं दुनिया की सारी बेटियों को अपने में , पूछती हूँ खुद से बदलाव के नाम पर क्या यही माँगा था हमने? डरी सहमी बेटियाँ भी पूछती है हमसे कैसे खेल लेती थी माँ तुम या नानी रात देर तक कभी अकेले कभी अपनी सब सखियों सहेलियों बच्चों के साथ नीम के तले ? Posted by इंदु पुरी गोस्वामी at १:०९ अपराह्न |
Thursday, April 14, 2011पहलनोएडा की दो बहनों की घटना तो सभी को पता है.ऐसा सब देख सुन कर मन विचलित हो उठता है.ये सब हो जाने के बाद हम भाषण देते हैं मिडिया,समाज,पड़ोसी,रिश्तेदार और...समाजसेवी.पर....हम सभी के होते हुए यदि ऐसा कुछ घटित होता है तो क्या हमारे लिए शर्म की बात नही.क्या करें?कुछ याद आया.यूँ हम भूल चुके थे किन्तु आज बताऊंगी.आप कुछ भी सोचे...कहें. एक दिन एक फोन आया -'' गोस्वामी भाभी! मैं मिसेज राय ...सुनीता राय बोल रही हूँ.आपसे बात करनी है'''' हाँ बोलिए सुनीताजी!'' मैंने जवाब दिया. ' देखिये सबसे पहले तो मुझे माफ कर दीजिए मैंने आपसे बिना पूछे मिसेज शर्मा को कह दिया कि वो आपसे अपनी बात कहे. आप उनकी जरूर मदद करेंगी'' '' कोई बात नही किन्तु उन्हें मेरी क्या मदद चाहिये और वो कौन है कहाँ रहती है?'' ''गोस्वामी भाभी! वो आपके सामने वाली लाइन में ही रहती है.कुछ समय से उनके पति जबर्दस्त डिप्रेशन में है.ना ड्यूटी पर जा रहे हैं. ना कुछ खाते पीते है ना बात करते हैं आप कुछ करिये'' दूसरों को क्या दोष दूँ मुझे नही मालूम कि मेरे पडोस में कौन कौन रहता है? बाहर निकलने पर बाते सबसे कर लेती हूँ किन्तु....कहीं आना जाना ???? हम दोनों पति पत्नी की बहुत बडी कमी,गलती है या मजबूरी जॉब के कारण. गोस्वामीजी और मैं दोनों उनके घर गये.भाभीजी से बात की.उनकी बेटी और पति दोनों की मानसिक स्थिति सही नही थी.क्यों,कैसे ? ना पूछा? ना जानना चाहा. कोई यूँ ही डिप्रेशन में नही चला जाता. कई पारिवारिक कारण भी हो सकते हैं जिन्हें व्यक्ति किसी बाहरी व्यक्ति के साथ शेअर नही करता या नही करना चाहता. किन्तु शरीर की तरह मन और मस्तिष्क भी अस्वस्थ हो जाते है और इसका इलाज भी होता है. मानसिक बीमारियों का इलाज करवाने को लेके आज भी हमारा पढा लिखा वर्ग भी सतर्क नही है. 'हम पागल हैं क्या जो डॉक्टर को बताए?डिप्रेशन का अंत कितना भयानक हो सकता है ये पहले कोई नही सोचता,बाद में सोचते हैं. शर्माजी रजाई से पूरी तरह लिपटे हुए थे.उनकी पत्नी ने उठाना चाहा.उन्होंने खुद को और कसके रजाई से लपेट लिया. जब हमने बहुत प्यार से उन्हें उठाना चाहा तो वे उठ कर पलंग पर दौड़ने लगे.हड्डियों का ढांचा मात्र,बड़े बड़े बाल,बेतरतीब बढ़ी दाढ़ी, एक महीने से ना नहाये न ब्रश किया था.उनकी हालत देख ...हम कांप उठे.क्या हालत बना ली उन्होंने खुद की ! एम्बुलेन्स बुलाई गई.बहुत मिन्नते की किन्तु वे तैयार ही नही थे.जबरन ले जाने की कोशिश करनी चाही तो उनकी पत्नी ने बताया कि बाईपास सर्जरी हुई है कहीं कुछ हो न जाए आप लोग जबरदस्ती मत कीजिये.'पास पड़ोसियों को बुलाया. वे आ गये किन्तु शर्माजी की एक ही रट थी 'नही जाना'और फिर रजाई ओढ़ कर लेट गये.सारे पड़ोसी लौट गये.हम दोनों बैठे रहे.मैंने धीरे से उनकी रजाई खींची.अचानक वे झापट लेके झपटे. गोस्वामीजी और शर्माजी की पत्नी कमरे से बाहर भाग गये.मैं डर तो बुरी तरह गई थी किन्तु उनके सामने बैठी रही. ''आप मुझे मारेंगे? मुझे मारने से आपको शान्ति मिलती है तो लो मार लो.''-मैंने कहा.''बेशर्म औरत !''- वो बोले.''बाहर आ जाओ तुम ! ये तुम्हारे लगा देंगे कहीं''-गोस्वामीजी ने आवाज लगाई.''जानांजी ! ये अपने होश में नही है.इनके कहे का क्या बुरा मानना''वे बहुत पूजा पाठ वाले आदमी हैं मैंने कहा- ''आपको भजन सुनाऊं? फिर आप मुझे डॉक्टर के पास ले चलिए मेरे हाथ में चोट लगी है.देखिये. 'ये' तो ले जाते ही नही है.'''मुझे भजन नही सुनना.और मैं क्यों ले जाऊं गोस्वामीजी ले जायेंगे आपको. मैं जीना नही चाहता.मरना चाहता हूँ''-शर्माजी ने कहा.''जानां जी ! देखो इनकी हालत अभी काबू में है.इन्हें ये मालूम है कि मैं गोस्वामीजी की पत्नी हूँ.मेरे हर प्रश्न का जवाब इन्होने उसी क्रम में दिया है.इसका मतलब है.हम पेशेंस से काम ले तो .....''....................................अगले दिन हम फिर गये.मुझे देखते ही वो उठ कर बैठ गये. सामने कुर्सी पर मैं बैठ गई. मैंने उन्हें भजन सुनने को तैयार कर लिया.कुछ भजन सुनाये.कुछ पूजा पाठ धर्म ध्यान की बातें की और घर आ गई. चार पांच दिन यही सिलसिला चला.वो मेरी तरफ देख कर मेरी बात सुनते.अब शांत भी रहने लगे थे. '' योगेश भैया ! आपने कभी भाभीजी के बारे में सोचा? अपनी बेटी के बारे में? '' ''मेरा कोई नही है.मुझे नही जीना.'' ''इतने लोग मरे ,दुनिया खत्म हो गई?उनके बिना रुक गई? जिन्दा रहते तो जाने कितने अच्छे अच्छे काम करते.ईश्वर से नजर तो मिला पाते.स्साले ना इधर के रहे ना उधर के.कायर थे सब जान दे देने वाले. आप तो इतना ईश्वर को मानने वाले हैं न? '' ............जाने किस बात ने असर दिखाया. नही मालूम यूँ भी इतना बक बक करती हूँ कि याद ही नही रोज क्या क्या बात करती थी.किन्तु...... वे तैयार हो गये. उनके भाई ,पिता को बुला कर समझाया कुछ दिन चित्तोड होस्पिटल में रहने के बाद वे अहमदाबाद इलाज के लिए भी तैयार हो गये.उनकी बेटी का इलाज भी शुरू हो चूका था. ...एक दिन मंदिर में मैंने एक व्यक्ति को पीली पगड़ी पहने अपनी पत्नी के साथ हवन करते देखा. किसी से पूछा.मालूम पड़ा कि ये शर्माजी है योगेश शर्मा जी.आश्चर्य! एकदम अलग लग रहे थे अब.हेल्द भी अच्छी हो गई थी.गोरे चिट्टे स्मार्ट-से. मैं जाने के लिए पलटी ही थी कि एक आवाज आई -'' भाभी जी!'' दोनों पति पत्नी मेरे पैर छूना चाहते थे कि मैं पीछे हट गई. ''क्या कर रहे हैं आप?' ''''मिसेज बता रही थी कि मैंने आप पर हाथ उठाया....मुझे माफ...'''''वो' 'ये' वाले योगेश जी नही थे....मार भी देते तो क्या फर्क पड़ता ? हा हा हा -मैंने ठहाका लगाया. किन्तु सच बताऊं उन्हें और उनकी बेटी को देख कर मन खुश हो जाता है.आत्मश्लाघा?? अरे ऐसिच हूँ मैं फटे में अपना पाँव फंसाने वाली. आप भी फंसाइए प्लीज़. बाकी ....कुछ हो जाने के बाद ....सब भाषणबाजी लगती है मुझे तो. किसी भी पूजा से ज्यादा सुकून मिलेगा ये सब करके सच्ची. कब तक हम यूँ निर्दयी बनके जियेंगे? कल शर्माजी थे आज मेरा नम्बर भी तो हो सकता है न? और....भगवान ना करे आप.....का भी. Posted by इंदु पुरी गोस्वामी at ५:१९ अपराह्न |
मुक्ति !
कहते हैं समय ठहरता नहीं ,
मौसम बदलते हैं ,तेवर बदलते हैं ,चाँद भी पूर्णता से परे होता है और अमावस की रात आती है ...यूँ कहें अमावस जीवन का सत्य है,एक अध्यात्म की खोज -जहाँ से ज्ञान मार्ग शुरू होता है .कभी राम, कभी कृष्ण , कभी बुद्ध , कभी साई, कभी श्री ...जो अमावस को प्रकाशमय करते हैंऔर कहते हैं - समय, मौसम, तेवर ,पूरा चाँद सब तुम्हारे भीतर हैं ,थोड़ी देर रुको खुद को पहचानोऔर जानो...........वटवृक्ष एक ठहराव है, खुद को जानने का, दुनिया को बताने का.......() रश्मि प्रभा!!मुक्ति!!मेरे पास चिट्ठियों का अम्बार था,आदतन,जिन्हें संभाल कर रखती थीगाहे-बगाहे उलटते-पुलटते,समय पाकर लगा-अधिकाँश इसमें निरर्थक हैं-रद्दी कागजों की ढेर!फिर.....मैंने उन्हें नदी में डलवा दिया !मेरे पास कुछेक सालों की लिखी डायरियों का संग्रह था,फुर्सत में-पलटते हुए पाया,उनके पृष्ठों पर आँसुओं के कतरे थे-बाद में ये कतरे किसी को भिंगो सकते हैं,ये सोच-मैंने मन को मजबूत किया,फिर उन्हें भी नदी के हवाले कर दिया!अब,....मेरे पास कुछ नहीं,सिर्फ़ एक पोटली बची है-जिंदगी के लंबे सफर की!यादें, जिसमें भोर की चहचहाती चिडियों का कलरव है!यादें,जिसमें नदी के मोहक चाल की गुनगुनाहट है!दिल जीतनेवाली अटपटी बातों की मधुर रागिनी है!बोझिल क्षणों को छू मंतर करनेवाले कहकहों की गूंज हैजीत-हार और रूठने-मनाने का अनुपम खेल है!खट्टी-मीठी बातों की फुलझडी हैदिन का मनोरम उजास है,रात की जादुई निस्तब्धता है,छोटी-छोटी खुशियों की फुहार में भीगने का उपक्रम हैऔर कभी न भुलाए जानेवाले दर्द का आख्यान भी है!ख्याल आता है,पोटली को बहा देती तो मुक्ति मिल जाती!........पर अगले ही क्षण हँसी आती है- मुक्ति शब्द -प्रश्न-चिन्ह बनकर खड़ा हो जाता है,जिसका जवाब नहीं!!!तो, जतन से सहेज रखा है -यादों की इस पोटली कोजिस दिन विदा लूंगी -यह भी साथ चली जायेगी!
()सरस्वती प्रसाद
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TUESDAY, APRIL 19, 2011देखिए जी, कब चुकेगा
ज़िन्दगी ही क़र्ज़ है
सबको ही चुकाना है
जब तक है साँसें
चुकाते ही जाना है
रश्मि प्रभा
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देखिए जी, कब चुकेगा
देखिए जी, कब चुकेगा ?
कर्ज थोड़ा इधर भी है,
कर्ज थोड़ा उधर भी है।
चुकाना है किसे कितना
पूर्णतः अस्पष्ट है,
किंतु पूरा मिले भी,
इस बात का भी कष्ट है।
कभी लगता, मूल से
ज्यादा यहाँ तो ब्याज है,
कभी लगता ब्याज सच है,
मूल में कुछ राज है।
कभी लगता करोड़ों से
भी नहीं चुक पाएगा,
कभी लगता किसी के भी
हाथ कुछ ना आएगा।
देखिए जी, कब दिखेगा ?
हर्ज थोड़ा इधर भी है,
हर्ज थोड़ा उधर भी है।
कभी लगता खोजने के
नाम पर खुद खो गए,
कभी लगता जगाने के
नाम पर खुद सो गए।
कभी लगता मुक्त हैं हम,
कभी लगता फँस रहे।
कभी लगता स्वयं को ही
लूटकर हम हँस रहे।
कभी लगता जीत से भी
प्रीतिकर यह हार है,
कभी लगता हारकर तो
जिंदगी यह भार है।
देखिए जी, कब मिटेगा ?
मर्ज थोड़ा इधर भी है,
मर्ज थोड़ा उधर भी है।
कभी लगता-एक दूजे
के लिए सब छोड़ दें,
कभी लगता कंटकों-सी
वर्जनायें तोड़ दें।
कभी लगता अलग करते
रास्तों को मोड़ दें,
कभी लगता अलग होती
मंजिलों को जोड़ दें।
कभी लगता आत्मघाती
बन न हम, सब कुछ सहें,
कभी लगता कह चुके हैं-
बहुत कुछ, अब चुप रहें।
देखिए कैसे निभेगा ?
फर्ज थोड़ा इधर भी है
फर्ज थोड़ा उधर भी है।
देखिए जी, कब चुकेगा ?
कर्ज थोड़ा इधर भी है,
कर्ज थोड़ा उधर भी है।
डॉ. नागेश पांडेय "संजय
मूलत : बाल साहित्यकार ,
बड़ों के लिए भी गीत एवं कविताओं का सृजन ;
जन्म: ०२ जुलाई १९७४ ; खुटार ,शाहजहांपुर , उत्तर प्रदेश .
माता: श्रीमती निर्मला पांडेय ,
पिता : श्री बाबूराम पांडेय ;
शिक्षा : एम्. ए. {हिंदी, संस्कृत }, एम्. काम. एम्. एड. , पी. एच. डी.
[विषय : बाल साहित्य के समीक्षा सिद्धांत }, स्लेट [ हिंदी, शिक्षा शास्त्र ] ;
सम्प्रति : प्राध्यापक एवं विभागाद्यक्ष ,
बी. एड. राजेंद्र प्रसाद पी. जी. कालेज , मीरगंज, बरेली .
१९८६ से साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय , .
प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में गीत एवं कविताओं के अतिरिक्त
बच्चों के लिए कहानी , कविता , एकांकी , पहेलियाँ
और यात्रावृत्त प्रकाशित .
बाल रचनाओं के अंग्रेजी, पंजाबी , गुजराती , सिंधी ,
मराठी , नेपाली , कन्नड़ , उर्दू , उड़िया आदि अनेक भाषाओं में अनुवाद .
अनेक रचनाएँ दूरदर्शन
तथा आकाशवाणी के नई दिल्ली ,
लखनऊ , रामपुर केन्द्रों से प्रसारित .
प्रकाशित पुस्तकें
आलोचना ग्रन्थ : बाल साहित्य के प्रतिमान ;
कविता संग्रह : तुम्हारे लिए ;
बाल कहानी संग्रह :
१. नेहा ने माफ़ी मांगी
२. आधुनिक बाल कहानियां ३.
अमरुद खट्टे हैं ४.
मोती झरे टप- टप ५.
अपमान का बदला ६.
भाग गए चूहे ७.
दीदी का निर्णय ८.
मुझे कुछ नहीं चहिये ९.
यस सर नो सर ;
बाल कविता संग्रह :
१. चल मेरे घोड़े २. अपलम चपलम ;
बाल एकांकी संग्रह : छोटे मास्टर जी
सम्पादित संकलन :
१. न्यारे गीत हमारे
२. किशोरों की श्रेष्ठ कहानियां ३.
बालिकाओं की श्रेष्ठ कहानियां
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आज के लिए बस इतना ही- अगले बुधवार को फिर पाँच ब्लॉगों की चर्चा करूँगा। |
आज तो पाँचों बड़े चुनिंदा ब्लॉग्स ले कर आये हैं यह तो हमारी पसंद उकेर दी आपने...आभार.
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी नमस्कार ..!!
जवाब देंहटाएंअलग तरह से सजा चर्चा मंच बहुत आकर्षक लग रहा है आज ...!!
बहुमूल्य लिनक्स हैं |
आभार.
भावपूर्ण कवितायेँ और अच्छी चुनी हुई पोस्ट पढ़ना अच्छा लगा |
जवाब देंहटाएंपर पूरी तो दोपहर में ही हो पाएंगी |
चर्चा का नयास्टाइल भी अच्छा है |बाभार
आशा
sarthak charcha .badhai
जवाब देंहटाएंpanch k panch blog jo aapne chune hain vastav me pasand hone hi chahiye aakhir parkhi bhi to aapke jaisa guni vyaktitva vala vyakti hai.shandar charcha.badhai.
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक रचनाकारों की रचनाओं का संकलन किया है आपने...
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी नमस्कार
जवाब देंहटाएंआज चर्चा मंच पर नये - नये लोगों से मिलना बहुत अच्छा लगा |
बहुत - बहुत शुक्रिया |
priy mayank ji
जवाब देंहटाएंsadar pranam
sidhast hanthon se sankalit blogs aur rachnaye swikary va sarahniy hain ,bibhutiyon se unki rachana dharmita se
parichit hokar mohak va aandayak laga,
prashansniya kary ke liye ,sadhuvad .
ब्लॉगसागर के बेहतरीन मोतियों को चुनने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंजय हिंद,,,
बहुत ही प्रभावशाली चर्चा - शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआज का चुनाव पंचामृत समान । आभार सहित...
जवाब देंहटाएंआपका ये अन्दाज़ बहुत पसन्द आ रहा है ……………सच मे शानदार व्यक्तित्व से परिचित करवा रहे है……………चर्चा का यही अन्दाज़ होना चाहिये।
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत खूब यह चर्चा मंच तो आज चर्चा में है ... शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली चर्चा
जवाब देंहटाएंkuch jane pehchane kuch naye se jane
जवाब देंहटाएंkulmilakar selection shaandar he ji
पञ्च रत्नों से सुसज्जित चर्चा अच्छी लगी .
जवाब देंहटाएंचर्चा का ये अंदाज़ बेहद प्रभावित कर गया .......ब्लाग्स का चुनाव भी अच्छा है ....आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंअत्यंत सधा हुआ .
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंउत्तम पसंद ..और उत्तम चर्चा ...आभार
जवाब देंहटाएंअपनी पसंद में स्पंदन को स्थान देने के लिए मैं तहे दिल से आभारी हूँ.इस मान के लिए शास्त्री जी का बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सधी हुई चर्चा के लिए आभार
अच्छी जानकारी देने वाली पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ।
blog jagat ke panch pandav se mila diya aapne...:)
जवाब देंहटाएंsach me ye pancho dhurandhar hain...:)
bahut sundar.....sabhi diggaz....ko
जवाब देंहटाएंlekar hazir hain....
abhar swikar karen dadda....
pranam.
Behtareen andaaz charcha ka !
जवाब देंहटाएंBahut accha laga eksaath in sabko yaha padhna.... Aabhaar, Shukriya :)
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी नमस्कार ..! आदरणीया रश्मि प्रभा जी की कृपा से मेरी इस रचना को इतना अधिक सम्मान स्नेह प्राप्त हो गया . आपके इस अनुग्रह के प्रति किन शब्दों में अपने उद्गार व्यक्त करूँ !
जवाब देंहटाएंभावों की माला गूँथ सकें,
वह कला कहाँ !
वह ज्ञान कहाँ !
व्यक्तित्व आपका है विराट्,
कर सकते हम
सम्मान कहाँ।
उर के उदगारों का पराग,
जैसा है-जो है
अर्पित है।
आभार.
अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंbahut chundinda bloggers se ru-b-ru kara diya aapne...aage bhi intzar rahega.
जवाब देंहटाएंapki mehnat ko salam.
बहुत सुंदर चर्चा...सुंदर अंदाज में।
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