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बुधवार, अप्रैल 06, 2011

"कैसे इनकार कर दूँ कि डरती नहीं हूँ" (चर्चा मंच-477)

पेश है बुधवार का चर्चा मंच
विशेषता-
सिर्फ कॉपी पेस्ट
लिंक की सूचना किसी को भी नहीं भेज पाऊँगा!
*होते हैं ये मन के सच्चे.* *
* *गंगा जैसा है निर्मल मन,*
*यमुना जैसा चंचल पन.*
इन्टरनेट पर एक अंग्रेजी लघुकथा पढ़ने को मिली।
नन्हें मेढ़कों की दौड़ आयोजित की गयी,
एक बहुत ही ऊँची चट्टान पर मेढ़कों को पहुँचना था।
चढ़ाई एकदम खड़ी थी।

चर्चा मंच परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ!
*नवरात्रि के प्रथम दिवस रानी जयचंद्रन की कविता पर
अनेक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई .
मैं आभारी हूँ , सभी पाठकों का .
--
नवरात्रि पर्व के प्रथम दिवस पर
"शरद कोकास" नामक ब्लॉग पर प्रकाशित कविता-----
अनुवादक--सिद्धेश्वर सिंह जी
दो लोगों के बीच शुरू हुई
बाताबाती दो गुटों के बीच लड़ाई, मार-पीट में तब्दील हो गयी।..
* मार्टिन लूथर किंग की पुण्य तिथि पर
थोडा भारत में भी दलित संघर्ष पर एक संक्षिप्त चर्चा हो जाये !
यह भी उस क्रांतिकारी को याद करने का एक जरिया है !...

*जलते रहकर उजालो को दुआ देते रहो *
*है यही दस्तूर तो आप भी निभाते रहो * *
जब से अन्ना हजारे के आंदोलन के बारे में पढ़ा है तभी से भाततेन्दु हरिश्चंद्र के नाटक अंधेर नगरी चौपट्ट राजा की बहुत याद आ रही है।

भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्‍ना हजारे के साथ जो हैं अभी हजारों में
वे हजारों हिन्‍दी ब्‍लॉगर भ्रष्‍टाचार का करते हैं प्रबल विरोध।

अनुभवी स्त्रियाँ, कई कई रूपों में .... कभी माँ.. कभी मौसी, भाभी या बड़ी दीदी बनकर... या कभी जिठानी, सास, दादी
या पड़ोसन होने के नाते बताती रहती हैं- ...



मिट्टी की पलकें
* मेरी आँखों को एकटक घूरती अनगिनत आँखें
हर आँख में धंसी हज़ार हज़ार...
पहले ही स्पष्ट कर दूँ कि इस समय मैं किसी दबाव में नहीं हूँ
और निष्पक्षमना हो अपने भाव व्यक्त कर रहा हूँ।
यह विषय अब अत्यन्त महत्वपूर्ण हो चला है, घर में भी...
... "थका हूँ.. जब राहों पर.. थामा हाथ..
ढाढ़स बँधाया.. कृतज्ञ हूँ.. माँ..!!!" .
* माउन्ट आबु * # आज से कुछ सालो पहले आबू गई थी
--कुछ स्म्रातियाँ हैं -- ...
वन मस्ट हैव अ गार्डेन एंड अ डिलीट बटन - वन मस्ट हैव अ गार्डेन एंड अ डिलीट बटन फ़ार हैप्पीनेस इन लाइफ़ "ये दिन क्या आये ,लगे फूल खिलने जैसे वसंती वसंती" फ़िल्म रजनीगंधा का ये गीत मानो
वो मुझ से कहने लगा खाट खडी कर दूंगा मैंने जवाब दिया खाट बैठी कहाँ है जो खडी करोगे वो बोला बैठी हो ना बैठी हो तुम्हारी तो खडी करूंगा मैंने दि..
महानगरों की बिगड़ती जीवनशैली, जंक फूड पर निर्भरता, तनावभरी जिंदगी और प्रतिस्पर्द्घा नई-नई बीमारियों को बढ़ा रही है।
उदासी कैसी ?
ख्यालों की किरचें
जीने का सबब बनती हैं
जितना गहरा घाव होता है
उतनी ही शिद्दत से सुबह होती है
** *रश्मि प्रभा *
अपने हक में आये इस दर्द को , आहिस्ता-आहिस्ता पिया है मैंने।
न सहा गया तो भींच कर होंठों को , नाम लेकर तेरा हर पल जिया है मैंने।
समस्या पूर्ति: उफ़ ये थर्टीफर्स्टेनिया और रोला छन्द पर चर्चा:
"उफ़ ये थर्टीफर्स्टेनिया| हर साल आता है और गुजर जाता है|
ये भी जैसे कि एक पर्व बन चुका है,
वो चली गयी सदा के लिये एक लम्बे सफर पर
हम सभी को तनहा छोड़
भावनाए पीछा कर रही लगा रही अब भी दौड़
जानती हूँ वो अब लौट कर कभी नही आएगी ...
*मुझे पता था* *तुम वापस आओगे*
*मगर मेरे रंगों को*
*किसी अंधे कुएं मे* *झोंककर*
*अपनी विवशताओं* *लाचारियों की*
*दुहाई देते*
*क्या तब भी*
*ऐसा ही कर पाते*
- भारत जीत गया है कुँवर कुसुमेश जीत गया है वर्ड कप,
अपना भारत देश. तुम्हें बधाई दे रहे ,
दिल से कवि कुसुमेश. दिल से
कवि कुसुमेश मिठाई बाटें घर घर. ख़ुद ..



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आज के लिए इतने ही लिंक काफी हैं!

9 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी चर्चाएँ .मुझे स्थान दिया,कृतज्ञ हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर चर्चा लगाई है…………सभी तरह के लिंक्स संजो लिये हैं………………आभार्।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सार्थक चर्चा हमेशा की तरह...अच्छे लिंक्स का समायोजन।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी और सार्थक चर्चा ...अच्छे लिंक्स मिले ..मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी वार्ता |बधाई
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी सार्थक चर्चा ... बढ़िया लिंक्स मिल जाते है पढने को बिलकुल अग्रिग्रेटर के तरह काम करता है चर्चा मंच.... प्रस्तुति हेतु बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. लिंक्स काफी भी हैं और अच्छे भी .आभार.

    जवाब देंहटाएं
  8. अनेक विषयों को छूती खास चर्चा| रोला छन्द शामिल करने के लिए आभार| यदि संभव हो तो कृपया समस्या पूर्ति वाला लिंक दीजिएगा, ये वाला
    http://samasyapoorti.blogspot.com/2011/04/blog-post.html

    जवाब देंहटाएं

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