कुछ अद्यतन लिंकों के साथ इसको आज रविवार (15-12-13) को प्रकाशित किया जा रहा है। -- आदरणीय राजीव कुमार झा जी से एक निवेदन है कि आप अपनी पोस्ट को स्वयं ही शैड्यूल कर दिया करें। आभारी रहूँगा। -- चलते-चलते थके पथिक जो
उन्हें नीड़ का
पंथ दिखाएँ
गहराया है तिमिर
जहाँ पर
वहाँ शीघ्र ही
दीप जलाएँ
आँखों में सपने
हैं सुन्दर
नहीं सत्य से
रिश्ता जोड़ा
मंज़िल से विपरीत
दिशा में
दौड़ रहा है मन का
घोड़ा
उजड़े जीवन के
खेतों में
अरमानों की पौध उगाएँ
चाह उजाला पाने
की पर
तम की चादर बिछी
सामने
खोज रहे हैं सबल
सहारा
जीवन की पतवार
थामने
घाव हरे जो
अन्तर्मन के
उन पर मरहम आज
लगाएँ
थी उमंग उर में
हँसने की
किन्तु आँसुओं ने
आ घेरा
जीवन की पोथी
लिखनी थी
लिखा गया पर एक न
पैरा
लेखन में अवरोध
बनी उन
दीवारों को तोड़
गिराएँ
(साभार : कनकप्रभा)
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मैं, राजीव कुमार झा,
चर्चामंच : चर्चा अंक :1462 में, कुछ चुनिंदा लिंक्स के साथ, आप सब का स्वागत करता हूँ. --
एक नजर डालें इन चुनिंदा लिंकों पर...
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अपने-अपने पैमाने
हमने अपने-अपने तराजू बना रखे है। पैमाना भी सबका अपना -अपना है... अंतर्नाद की थाप पर Kaushal Lal |
(अहिंसक) लड़ाई के प्रतीक महात्मा गांधी ऐसे बने कि आज तक देश के राष्ट्रपिता बने हुए हैं। यहां तक कि मोहनदास करमचंद गांधी के प्रयोगों को भी प्रतीकों के तौर पर त्याग के प्रयोग मान लिया जाता है। |
तेरा आना
लम्बे इंतजार
के बाद
बहुत सुकून देता है,
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गुनाह कुछ तो मुझे बेतरह लुभाते हैं...
सौरभ शेखर मिला न खेत से उसको भी आबो-दाना क्या किसान शह्र को फिर इक हुआ रवाना... मेरी धरोहर पर yashoda agrawal - |
हद ए नज़र से आगे, क्या है किसे ख़बर,
तू है मुख़ातिब जो मेरे, अब रूह ए आसमानी से क्या लेना, न है किसी मंज़िल की |
सुनो ! कुछ कहना है मुझे
न जाने कितने दिनों से स्वयं को बहुत टटोला मैने अंतर्मन से न जाने कितने |
राजीव कुमार झा
उनके प्यार की
यह कैसी अदा
हमें उनके ख़त
कोरे आते रहे...
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"विविध दोहावली-पच्चीस दोहे"
(१)
उल्लू को भाता नहीं, दिन का प्यारा साथ।
अंधकार को खोजता, सदा मनाता रात।।
(२)
चिड़िया बैठी गा रही, करती यही पुकार।
सदा महकता ही रहे, जीवन का संसार।।
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विजयलक्ष्मी
खुशबू उडी अहसास की दूर तलक नजर गये
लकदक महके इसकदर की गुलशन संवर गये. कुछ तारीकियों के साए तन्हा से रोके हुए राह बंद हुए खुद में औ सितारे फलक पर संवर गये. |
गई उम्मीद तुमको पाने की ...
करूं क्यों चाहत तुम्हे बुलाने की ... मौत से बढ़कर तेरे जाने का पैगाम लगा जिंदगी हर घड़ी लगती है बस एक सज़ा |
उपासना सियाग
बात एक युद्ध के
बादलों से बरसते बमों की काली रात में प्यार और ममता की है |
सुरेश स्वप्निल
कितना विचित्र अंधकार है
प्रकाश की संभावना नज़र ही नहीं आती इस देश में ! |
डॉ. पवन के. मिश्रा
मैं कैसे हूँ ?
आखिर तुमने पूछ ही लिया ना बिलकुल वैसा बेतरतीब, आलसी, तकरीबन निठल्ले जैसा तुम्हे भी तो पसंद था मेरा बेतरतीब होना। -- धन्यवाद ! |
आगे देखिए "मयंक का कोना"
याद आते हैं गंगा चाचा... [समापन क़िस्त] कभी गंगा चाचा घर आते और पिताजी से कहते--"मैं तुम्हारे लिए सिर्फ पंद्रह मिनट का वक़्त निकालकर किसी तरह भाग आया हूँ। तुम कुछ नहीं कहोगे, मैं जल्दी से अपनी बात कह लूँ तो चलूँ।" लेकिन जब वह बैठ जाते और बातें शुरू हो जातीं तो दो-ढाई घंटे कैसे बीत जाते, पता ही नहीं चलता। घड़ी पर नज़र पड़ते ही वह घबरा कर उठ खड़े होते और यह कहते हुए चल देते--"तुमने आज मेरा बहुत नुक्सान कर दिया 'मुक्त'! अब चलता हूँ, फिर मिलते है।" मुक्ताकाश.... पर आनन्द वर्धन ओझा -- साहित्य की पहुँच कहाँ तक?? आज का समय अनेक विसंगतियों से जूझ रहा है। पूंजीवीदी विकास की अवधारण औरवैश्वीकरण नें समाज में गहरी खांइयां डाल दी हैं। सदियों से हमारे देश कीपहचान रहे गाँव,किसान हमारी अद्वितीय संस्कृति पर संकट के घनघोर बादलमंडरा रहे हैं। पूरी अर्थव्यवस्था एवं न्यायव्यवस्थ भ्रष्टाचारकी भेंट चढ चुकी है। संस्कृति जिसके बूते हमारे राष्ट्र की पताका विश्वमें फहराया करती थी,आज... पाश्चात्य के अन्धेनुकरण की दौड़ में रौंदी जारही है। जब सभी मनोरंजन के साधन उबाऊ सिद्ध हो रहे है,ईमानदार,नि:सहाय और आमआदमी की सुनने वाला कोई नहीं रहा.... Wings of Fancy पर Vandana Tiwari -- ईमानदार को भी अब नकाब चाहिए इस मुफलिसी के दौर का, जबाब चाहिए। जुर्मो सितम का अब हमें, हिसाब चाहिए॥ बे खौफ हो गया है यहाँ आम आदमी । शायद सियासतों में इंकलाब चाहिए... तीखी कलम से पर Naveen Mani Tripathi -- कार्टून :- फ़ेसबुक जॉकी के बारे में सुना क्या ? काजल कुमार के कार्टून -- ग़ाफ़िल सलाम करता है ग़ाफ़िल की अमानत पर चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ -- मैंने इश्क की इबादत कब की ? ये रवायत थी कवायद कब की ... Shabd Setu पर RAJIV CHATURVEDI -- बहुत दिनो के बाद.... बिटिया हॉस्टल से घर आई बहुत दिनो के बाद मैं भी दूर शहर से आया बहुत दिनो के बाद ठाकुर जी के बरतन चमके बहुत दिनो के बाद सभी फूल इक थाल सजे हैं बहुत दिनो के बाद... बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय -- "ब्लॉगरों के लिए उपयोगी सुझाव" मयंक की डायरी -- शिक्षा ली सरकार ने गांधी जी के तीन बन्दर देते सीख बुरा मत देखो बुरा मत सुनो ,बुरा मत बोलो सब लेते सीख अपने हिसाब से दीखती यह सरकार भी उन जैसी होता रहता अत्याचार, अनाचार पर आँखें बंद किये है कुछ देखती नहीं ... Akanksha पर Asha Saxena -- "नया राष्ट्र निर्माण करेंगे" बालकृति नन्हें सुमन से एक बालकविता "नया राष्ट्र निर्माण करेंगे" हम भारत के भाग्य विधाता, नया राष्ट्र निर्माण करेंगे । निज-भारत के लिए निछावर, हँस-हँस अपने प्राण करेंगे ।। गौतम, गाँधी, इन्दिरा जी की, हम ही तो तस्वीर हैं, हम ही भावी कर्णधार हैं, हम भारत के वीर हैं, भेद-भाव का भूत भगा कर, चारु राष्ट्र निर्माण करेंगे । देश-प्रेम के लिए न्योछावर, हँस-हँस अपने प्राण करेंगे ।। नन्हे सुमन -- गधे /कुत्तों का बगावत चुनाव का माहोल है चारो ओर हवा गरम है दिल दिमाग में गर्मी है आरोप प्रत्यारोप का दौर अब चरम सीमा पर है | गाली गलौज का नया शब्दकोष बन रहा है ... सृजन मंच ऑनलाइन पर कालीपद प्रसाद -- जन्मदिन पर 'लालबत्ती के बाद लाल वाहन' और जन्मदिन महोत्सव चित्र नुक्कड़ -- मधु सिंह : हे कपोतिनी ! तुम सुनो आज बन कपोत प्रेमी तेरा जब , डैनें गुम्बद पर लहराएगा गिर -गिर कर तेरी बाँहों में वह आशिक तेरा कहलाएगा जरा गिरा ले पट घूँघट के ,और सजा ले सपन नयन में इतिहास के स्वर्णिम पन्नो में नया नाम जुड़ जाएगा... मधु मुस्कान -- आप से भी खूबसूरत ‘आप’ के अंदाज हैं ‘दिल्ली दूर है’ वाली कहावत झूठी साबित हो चुकी है. आम आदमी ने यह साबित कर दिखाया है कि उसे सिर्फ राजनीति का छिद्रान्वेषण करना ही नहीं, बल्कि लाइलाज हो चुके मर्ज का इलाज करना भी आता है. हालिया संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) को नयी दिल्ली में भले ही सिर्फ 28 सीटें ही मिल पायीं, पर उसने 15 वर्षो से सत्तासीन कांग्रेस को खदेड़ दिया. इस चक्कर में भाजपा कहीं की नहीं रह गयी. सबसे अधिक 32 सीटें हासिल करके भी भाजपा की स्थिति ‘सब धन 22 पसेरी’ वाली है. लेकिन यहां हम बात करेंगे ‘आप’ की... अ-शब्द -- अगर हम बंदर होते… - chulbuli -- घनाक्षरी वाटिका | पंचम कुञ्ज (गीता-गुण-गान) ‘गीता-ग्रन्थ-मंत्र’ सारे जग को सुनाइये |निर्लिप्त रह के, कर्म सारे ही निभा के आप,‘सत्य-मूल-‘प्रभु’ को तो अपना बनाइये || त्याग मनमाने पन्थ, भेद-दुर्भाव तज,सारे धर्म छोड़, एक धर्म अपनाइये || -- |
सुप्रभात| अभी एक भी रचना नहीं पढी है सभी को शाम तक पढूंगी |कुछ अधिक ही व्यस्तता है |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सुव्यवस्थित चर्चा।
जवाब देंहटाएंराजीव कुमार झा जी आपका आभार।
रोचक व पठनीय सूत्र..
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सुव्यवस्थित
जवाब देंहटाएंरचना शामिल करने के लिए आभार
बढ़िया चर्चा-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
बढ़िया लिंक्स व प्रस्तुति , आ० राजीव भाई व मंच को धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन -: घरेलू उपचार( नुस्खे ) भाग - ६
बहुत सुंदर सूत्रों के साथ सजी है आज की चर्चा !
जवाब देंहटाएंsundar link sanyojan
जवाब देंहटाएंराजनीति और समाज की विसंगतियों ,प्रकृति की खूब सूरती को एक साथ उद्घाटित करती दोहावली।
जवाब देंहटाएंराजनीति की बिछ रहीं, चारों ओर बिसात।
आम आदमी पर पड़ी, केवल शह और मात।।
नौका लहरों में फँसी, बेबस खेवनहार।
ऐसा नाविक चाहिए, जो ले जाये पार।।
महँगाई की मार से, जन-जीवन है त्रस्त।
निर्धन, श्रमिक-किसान के, हुए हौसले पस्त।।
उल्लू को भाता नहीं, दिन का प्यारा साथ।
अंधकार को खोजता, सदा मनाता रात।।
क्या बात है दोस्त लय छंद ताल में गीता ज्ञान कह दिया।
जवाब देंहटाएंचाहे गीता बांचिये या पढ़िए कुरआन ,
तेरा मेरा (आत्मा -परमात्मा )प्रेम ही हर पुस्तक की जान।
--
घनाक्षरी वाटिका |
पंचम कुञ्ज
(गीता-गुण-गान)
‘गीता-ग्रन्थ-मंत्र’ सारे जग को सुनाइये |निर्लिप्त रह के, कर्म सारे ही निभा के आप,‘सत्य-मूल-‘प्रभु’ को तो अपना बनाइये || त्याग मनमाने पन्थ, भेद-दुर्भाव तज,सारे धर्म छोड़, एक धर्म अपनाइये ||
प्रसून
जुड़े केजरीवाल से, पाने लगे सलाम-
जवाब देंहटाएं*सत्तारी बैठे रहे, तब सत्ताइस आम |
जुड़े केजरीवाल से, पाने लगे सलाम |
*फुर्सत में
पाने लगे सलाम, काम दे देती दिल्ली |
लेकिन कई कुलीन, उड़ाते इनकी खिल्ली |
रविकर करे सचेत, छेड़ मत मधु का छत्ता |
आये इनके हाथ, आज-कल में ही सत्ता ||
क्या बात है क्या भविष्य कथन है .
गौतम, गाँधी, इन्दिरा जी की, हम ही तो तस्वीर हैं,
जवाब देंहटाएंहम ही भावी कर्णधार हैं, हम भारत के वीर हैं,
भेद-भाव का भूत भगा कर, चारु राष्ट्र निर्माण करेंगे ।
देश-प्रेम के लिए न्योछावर, हँस-हँस अपने प्राण करेंगे ।।
प्रेरक बाल गीत राष्ट्र गौरव के प्रतीकों का गुण गायन करता गीत।
--
जवाब देंहटाएंमधु सिंह : हे कपोतिनी ! तुम सुनो आज
बन कपोत प्रेमी तेरा जब , डैनें गुम्बद पर लहराएगा
गिर -गिर कर तेरी बाँहों में वह आशिक तेरा कहलाएगा
जरा गिरा ले पट घूँघट के ,और सजा ले सपन नयन में
इतिहास के स्वर्णिम पन्नो में नया नाम जुड़ जाएगा...
मधु मुस्कान
खूब सूरत विश्लेषण किया है आपने अखिलेश्वर जी पांडे। "आप "लम्बी रेस का सारथि है। दिल्ली की संसदीय सीटों को अब कांग्रेस -बी जे पी के लिए प्राप्त करना आसन नहीं होगा। यही अनुपात रहेगा वहाँ भी।
जवाब देंहटाएंआप से भी खूबसूरत ‘आप’ के अंदाज हैं
‘दिल्ली दूर है’ वाली कहावत झूठी साबित हो चुकी है. आम आदमी ने यह साबित कर दिखाया है कि उसे सिर्फ राजनीति का छिद्रान्वेषण करना ही नहीं, बल्कि लाइलाज हो चुके मर्ज का इलाज करना भी आता है. हालिया संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) को नयी दिल्ली में भले ही सिर्फ 28 सीटें ही मिल पायीं, पर उसने 15 वर्षो से सत्तासीन कांग्रेस को खदेड़ दिया. इस चक्कर में भाजपा कहीं की नहीं रह गयी. सबसे अधिक 32 सीटें हासिल करके भी भाजपा की स्थिति ‘सब धन 22 पसेरी’ वाली है. लेकिन यहां हम बात करेंगे ‘आप’ की...
अ-शब्द
सादर धन्यवाद ! आदरणीय शास्त्री जी. आभार.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा ,सुन्दर सूत्रl.मेरा ब्लॉग है krishnbrug (कृष्णभृंग) l मुझे ख़ुशी होगी यदि आप अपनी चर्चा में मेरे ब्लॉग को भी देखें और अपनी प्रतिक्रया देंl मेरा रुझान वैकल्पिक चिकित्सा है और मैं हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखना पसंद करता हूँ l
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सार्थक चर्चा प्रस्तुति ..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा,चर्चा..!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: एक बूँद ओस की.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसभी सुधी रचनाकारों को गीता-जयंती की वधाई !
जवाब देंहटाएंआज का चर्चा-मंच वास्तव में समयानुकूल है ! भारतीय संस्कृति के सारे प्रतीक दिखाई दे रहैं इस में | निश्चय ही यह मंच साहित्य की सामुचित शिवो मय सेवा कर रहा है |