गोल-गोल कैसे बन
जाती थीं
बर्तन में गारे के बघारे ही बगैर दाल
स्वाद कहाँ से ले
आती थी
उस मासूम दाल को छप्पन मसालों से
जो घिरी हुई पाता
हूँ मैं
याद आती है माँ
कभी-कभी किसी दिन
मेरे कारण
कोई कलह यूँ भी
होता
पीट के मुझको लिपटा कर फिर
ख़ुद रोती और मैं
रोता
गलती भी मेरी होती, रूठता भी मैं ही
और वो उल्टे
समझाती थी
अपराधी भाव से उठा के आधी रात
मुझे हाथों से
अपने खिलाती थी
जब दौड़-धूप से दिन भर थका
बिन खाए ही सो
जाता हूँ मैं
याद आती है माँ
उसके हाथों बोई
हुई सब बेलें
छप्पर तक जातीं
कहीं करेले, कहीं पे लौकी,
कहीं तरोई इतराती
घर था छोटा सा पर, चारों ओर छोर पर
क्या हरियाली छाई
थी
याद है मुझे भी मैंने उसके कहे से
आंगन में तुलसी
लगाई थी
जब बीवी की ज़िद्द पर घर के लिए
कई कैक्टस लिए आता
हूँ मैं
याद आती है माँ
दिखने में कुछ
होने में
कुछ दुनिया दोरंगी
बेटा
सुख में अपने दुख में पराए
ये साथी संगी बेटा
अनमने मन से मैं सुनी-अनसुनी कर
मन ही मन झुंझलाता
था
अपनी समझसे मैं ख़ुद को
समझदार और चालाक
ही पाता था
इन रस्तों पे
लंगड़ाता हूँ मैंजब अपने ही जूते की कील से
याद आती है माँ
(साभार : रमेश शर्मा)
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मैं, राजीव कुमार झा,
चर्चामंच : चर्चा अंक :1454 में, कुछ चुनिंदा लिंक्स के साथ, आप सब का स्वागत करता हूँ. --
एक नजर डालें इन चुनिंदा लिंकों पर...
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करवट बदल-बदल के ही, आँखों में ही सही
कमबख़्त रात ये भी गुज़र जायेगी सही |
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हम भी सुनते है वो जवाब बच्चों से
जो कभी वो हमसे सुना करते थे ,
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डोर से कटी पतंग
बढ़ती स्वच्छंद
अनंत गगन में
अनभिज्ञ अपनी नियति से
कहाँ गिरेगी जाकर,
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इन ऊंचे लोगों को नीचे,नहीं दिखायी देता है !
अपने पेट उघाड़े रहना , राजा आने वाले हैं ! |
अम्मा का लिखा हर दिन टाइप करती हूँ …
जितनी बार किसी किताब को पढ़ो
अर्थ उतने ही स्पष्ट होते हैं !
एक क्षण में हम निर्णयात्मक धारणा नहीं बना सकते
यूँ वह तो वर्षों तक नहीं बनाया जा सकता
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बारिश अभी रुकी नहीं थी और लगता था की ये पूरे कनागत बरसने वाला है। चार दिन तो हो गये थे बसरते - बरसते। इन दिनों कहानियाँ का बिखरना थोड़ा कम है। एक – दूसर से मिलना जितना दुर्लभ है उतना ही इन मिठी और खमोश कहानियाँ का एक – दूसरे के मुँहजोरी करना भी।
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"सत्यमेय जयते " का नारा वे बुलन्द करते रहे
"झूठे,मक्कारों,गुंडों " को अपने दामन में छिपाते रहे /
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RajeevKumar Jha
The mists rained on that chilly night
When the two restless hearts lay miles apart
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विस्मृत नहीं होती छवि
पुनः प्रकाशवान रवि एक स्मृति है सुख की अनुभूति है ....!! |
होंठों पर यूं -हंसी खिली हो
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर५"
आओ देखें कविता अपनी
रंग-बिरंगी -सजी हुयी -है
कितनी प्यारी -
मुझको -तुमको लगता ऐसे ...
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हर्षवर्धन त्रिपाठी
इंदौर के एक लड़के को Google अंकल ने 3 करोड़ रुपये सालाना का प्रस्ताव भेजा है। जाहिर है इतना बड़ा प्रस्ताव आज के युग में कोई क्यों ठुकराएगा।
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एक और शीर्षकविहीन रचना...!
अनुपमा पाठक |
वर्षा
सब इंस्पेक्टर अमृता सोलंकी जैसी कामकाजी महिलाओं को सलाम है जो फ़र्ज़ और कर्त्तवय की राह में कभी आत्मसम्मान कुर्बान नहीं करती।
लगता है यह लड़कियों के मुखर होने का समय है। वे हिम्मत बटोरने लगी हैं |
वीरेन्द्र कुमार शर्मा
अक्सर पब्लिक प्लेस पर किसी कॉन्फरेंस हाल या ऑडिटोरियम में किसी को ठंड लगती है तो किसी को गर्मी। हरेक व्यक्ति की ताप -गर्मी-ठंडी सहने की क्षमता अलग अलग रहती है। कोई एक तापमान और आद्रता सबके अनुकूल नहीं रहती है।
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सर्द हवाओं में ठिठुरते अहसास और तुम
इन दिनों बहुत सर्दी है यहाँ |
उपासना सियाग
कभी- कभी मैं
यह सोचती हूँ तेरा-मेरा रिश्ता एक मुस्कान का है |
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
दिल में वो ज़ज़बात नही हैं जाने क्यों ?
सुधरे कुछ हालात नही हैं जाने क्यों ? कहते हैं ,कोशिश की थी पूरे दम से, तीन ढाक के पात वही हैं जाने क्यों ? |
आशीष भाई
अपने ब्लॉग में दिए गये लेख को नकल से कैसे बचाएं , हम जानते है , आप सभी ब्लॉगर बन्धु अपने ब्लॉग से बहुत प्यार करते है , और अपने ब्लॉग पे दिए गये लेख पर बड़े दिल से मेहनत करते है , इसके साथ साथ वो तमाम जतन करते है ,
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"दोहे-लोकतन्त्र में वोट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')
बिना धाँधली हों अगर, निर्वाचन सम्पन्न।
अपना भारत देश फिर, होगा नहीं विपन्न।।
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जनसेवक खुद पालता, चमचे और दलाल।
इसीलिए गलती यहाँ, मक्कारों की दाल।।
हिन्दुवत्वादियों द्वाराबाबरी मस्जिद का ध्वंससबसे बड़ी आतंकी घटना..लो क सं घ र्ष ! परRandhir Singh Suman6 दिसम्बर 1992 – श्री चम्पत राय जी, महामंत्री- विश्व हिन्दू परिषद 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या – स्थित विवादित ढाँचे को गिरा दिया गया. आज 6 दिसम्बर, 2013 को लगभग 21 वर्ष बीत चुके है. आपकी क्या प्रतिक्रिया है ... वसुधैव कुटुम्बकम_पर राजीव गुप्ता -- कार्टून :- जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो काजल कुमार के कार्टून -- ज़िंदगी लिख रही हूँ... लकड़ी के कोयले से आसमान पर ज़िंदगी लिख रही हूँ उन सबकी जिनके पास शब्द तो हैं पर लिखने की आज़ादी नहीं,.. लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम -- करे तो सही कोई समझौता वो करना सिखाना चाहता है जानवर को पालतू हो जाने में कोई परेशानी नहीं होती है काबू में आसानी से आ जाता है कोशिश करता है सामंजस्य बैठाने की हर अवस्था में ... उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी - -- महिलाओं से इतना डर क्यों फारुख अब्दुल्ला साहब अपना दुःख बयां कर रहे हैं, कि महिलाओं से इतना डर लगने लगा है कि उन्हें पीए बनाने से पहले भी सोचें ... शब्द-शिखर पर Akanksha Yadav -- मौन की शक्ति मौन की शक्ति गूढ़ अपार जीवन शिक्षण के आधार... BHARTI DAS -- क्या होगा 8 दिसम्बर को... सब कह रहे हैं भाजपा जीतेगी लेकिन हमें लगता है कि... MODIRAJ LAO BHARAT BACHAO पर सुनील दत्त -- सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट : माह (अक्टूबर - २०१३) सन्निधि संगोष्ठी पर अरुन शर्मा अनन्त - -- दो गज़लें : अरुन शर्मा 'अनन्त' खूबसूरत हँसी परी होगी, सोचता हूँ जो जिंदगी होगी, सादगी कूटकर भरी होगी, श्याम जैसी वो साँवरी होगी... दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की) -- माननीय उच्चत्तम न्यायालय का जस्टिस गांगुली यौन शोषण प्रकरण में निर्णय! एक असहाय स्थिति। Swatantra Vichar पर Rajeeva Khandelwal - -- कोई राह तन्हा जूँ बन रही इक कारवाँ और कुछ नहीं ये पड़ाव भी क्या पड़ाव है मिला सब यहाँ और कुछ नहीं कोई राह तन्हा जूँ बन रही इक कारवाँ और कुछ नहीं ... ग़ाफ़िल की अमानत पर चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ -- यह मोहन निर्झर भांति-भांति के जीव-निजीर्वों से भरी है यह आभाषी दुनिया। कौन कब कहां क्या शिगूफा या जहर उगलकर लीपने में जुट जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में किसी विचारवान व्यक्ति का सक्रिय रहना कितना राहत देने और भरोसा बनाए रखने वाला हो सकता है, फेसबुक पर आदरणीय अग्रज मोहन श्रोत्रिय की उपस्थिति-सक्रियता इसे बाकायदा साबित करती चलती है... शब्द श्यामल पर Shyam Bihari Shyamal -- जीवन बदरंग Sudhinama पर sadhana vaid -- वर्षगाँठ चालीसवीं, रचता रविकर छंद- "लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर -- "डस्टर कष्ट बहुत देता है" बालकृति नन्हें सुमन से एक बालकविता "डस्टर कष्ट बहुत देता है" खुद तो धूल भरा होता है, लेकिन सबकी धूल हटाता। ब्लैकबोर्ड पर लिखे हुए को, जल्दी-जल्दी यह मिटाता।। विद्यालय अच्छा लगता, पर डस्टर बहुत कष्ट देता है। पढ़ना तो अच्छा लगता, पर लिखना बहुत कष्ट देता है।। नन्हे सुमन -- न्यूरो -ट्रांस -मीटर्स (जैविक रसायन ) को प्रभावित करते हैं खाद्य। मिज़ाज़ को भी। पूअर फूड्स मूड स्विंग्स की वजह बन सकते हैं. सेहत -- नुसखे और आरोग्य समाचार हफ्ते में एक बार एक ही समय और स्थान पर एक ही स्केल (वेइंग मशीन )पर अपना वजन कीजिये। तभी सही कयास लगा पायेंगें आप वेट लॉस या वेट गेन का। |
सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंआभार!
सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंआज की आकर्षक चर्चा में उल्लूक का "करे तो सही कोई समझौता वो करना सिखाना चाहता है" को शामिल करने के लिये आभार !
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स चयन !!हृदय से आभार मेरी रचना चर्चा मंच पर लेने हेतु ,राजीव जी ॥!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति व बढ़िया सूत्र , हम सबकी रचनाओं को स्थान देने हेतु श्री राजीव भाई व चर्चा मंच को धन्यवाद
जवाब देंहटाएं॥ जै श्री हरि: ॥
राजीव कुमार झा जी।
जवाब देंहटाएंआपमें सीखने की ललक है।
आज की चर्चा पोस्ट इसका प्रमाण है।
--
इस सुन्दर चर्चा के लिए आपका आभार।
वाह! आभार शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर सुव्यवस्थित प्रस्तुतीकरण शानदार लिंक्स संयोजन आदरणीय गुरुदेव श्री मेरी रचनाएँ सम्मिलित करने हेतु हृदयतल से हार्दिक आभार आपका.
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ राजीव जी मेरी प्रस्तुति 'जीवन बदरंग' को आज की चर्चा में शामिल करने के लिये ! अन्य सभी लिंक्स भी बहुत आकर्षक हैं ! सधन्यवाद !
जवाब देंहटाएंव्यर्थ रेप कानून, कहे इत खुल्लम खुल्ला-
जवाब देंहटाएंमहिलाओं से इतना डर क्यों
फारुख अब्दुल्ला साहब अपना दुःख बयां कर रहे हैं,
कि महिलाओं से इतना डर लगने लगा है कि
उन्हें पीए बनाने से पहले भी सोचें ...
शब्द-शिखर पर Akanksha Yadav
अब्दुल्ला दीवानगी, देख बानगी एक |
करे खिलाफत किन्तु फिर, देता माथा टेक |
देता माथा टेक, नेक बन्दा है वैसे |
किन्तु तरुण घबराय, लिफ्ट की लिप्सा जैसे |
व्यर्थ रेप कानून, कहे इत खुल्लम खुल्ला |
उसका राज्य विशेष, जानता उत अब्दुल्ला ||
माननीय उच्चत्तम न्यायालय का
जवाब देंहटाएंजस्टिस गांगुली यौन शोषण प्रकरण में निर्णय!
एक असहाय स्थिति।
Swatantra Vichar पर
Rajeeva Khandelwal -
काजी तो सठिया गया, कहे उच्चतम सृंग |
अपने बस में अब नहीं, पा'जी गंगू भृंग |
पा'जी गंगू भृंग, कुसुम कलिकाएँ चूसा |
ना आशा ना तेज, नहीं तो भरता भूसा |
रविकर है निरुपाय, अगर दोनों है राजी |
कलिका सुने पुकार, पुकारे जब भी काजी |
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सूत्र संयोजन किया .. पढने को यहाँ है बहुत कुछ ..
जवाब देंहटाएंझिलमिल चर्चा ... सुन्दर संयोजन ...
जवाब देंहटाएंWhen each night they lay with sorrow
जवाब देंहटाएंIt was washed away by that salty spring
They slept praying to the Lord in silence.
Have mercy on us Oh! Lord
Let us not suffer for that mortal love
Take us into the immortal world
Where our desires may be fulfilled.
This is devotion which is a path to Golok /Vaikunthh /Krishna lok ,THE SEPARATION FOR THE BELOVED .
Immortal Love !
RajeevKumar Jha
The mists rained on that chilly night
When the two restless hearts lay miles apart
बेहद प्रभावी चर्चा ,खूबसूरत सेतु चयन संयोजन।
जवाब देंहटाएंबेहद प्रभावी चर्चा ,खूबसूरत सेतु चयन संयोजन।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !सुन्दर बाल गीत।
खुद तो धूल भरा होता है,
लेकिन सबकी धूल हटाता।
ब्लैकबोर्ड पर लिखे हुए को,
जल्दी-जल्दी यह मिटाता।।
जल्दी जल्दी खूब मिटाता।
जवाब देंहटाएंकोई रौशनी किसी रात का जो हसीन ख़्वाब जला गयी
फिर सहर थी, अख़बार थे व बयाँ बयाँ और कुछ नहीं
ये जो गर्द अब तक उड़ रही इसे देख कर हैराँ न हो
इसी मोड़ से गुज़रा है फिर कोई नौजवाँ और कुछ नहीं
हाँ नहीं तो!
रवानी है गज़ल में ज़िंदगानी है ,किसी शायर दुनिया का जला हुआ , की पूरी कहानी है।
एक बार जो पा गया, लोकतन्त्र में वोट।
जवाब देंहटाएंसात पीढियों के लिए, कमा गया वो नोट।।
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जनसेवक के वास्ते, आजादी है मन्त्र।
लेकिन जनता के लिए, है ये केवल तन्त्र।।
वोट तंत्र पर सुन्दर कटाक्ष।
nice
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआँखों देखा हाल, जब्त ए के सैतालिस |
सैतालिस से राष्ट्र, कर रहा मक्खन-पॉलिश |
रविकर के अंदाज़ बहुत हैं आज निराले ,
बूट पालिश भी किसी से आज करा ले .
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर
हिन्दुवत्वादियों द्वारा बाबरी मस्जिद का ध्वंस सबसे बड़ी आतंकी घटना..
जवाब देंहटाएंभारतीय इतिहास में आज़ादी के बाद हिन्दुवत्वादियों द्वारा बाबरी मस्जिद का ध्वंस सबसे बड़ी आतंकी घटना है। यह घटना 6 दिसंबर 1992 को जर्मन नाजीवादी विचारधारा से लैस हिन्दुवत्वादियों ने की थी और भारतीय लोकतंत्र उसको न बचा पाने पर शर्मिंदा हुआ था। फेसबुक पर मित्रों के निम्नलिखित विचार आयें हैं :-
लो फिर आ गए रक्त रंगी लेफ्टिए ,
लिए अयोध्या प्रलाप
Rajendra Singh
जवाब देंहटाएंहम 6 दिसम्बर को ही भारत के संविधान को तार-तार करने वाली घटना भी हुई थी। मैं मुस्लिम भाइयो से बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए माफ़ी मांगता हूँ। हमारे समुदाय के लोगो ने जो गलत किया इस बात के लिए।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
एक माफ़ी तो भाई साहब शाहबानो मामले पर भी बनती है। संविधानिक संस्थाओं को बेअसर करने की कोशिश जस्टिस सिन्हा को धकियाके इंदिराजी ने शुरू की थी एक माफ़ी उसके लिए भी मांग लो भैया तबसे एक के बाद एक संविधानिक संस्थाएं टूट रहीं हैं थमने का नाम नहीं। आखिर कब तक चलेगा ये सिलसिला।
सदा की तरह ही सुन्दर और पठनीय सूत्रों की चर्चा।
जवाब देंहटाएंभाई साहब हमें खुशी है कि गलत साबित हुए । आपकी चर्चा बहुत ही बढ़िया ढंग से प्रसतुत की गई। हमारी शंका को भी जगह मिली इसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद
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