आज की मंगलवारीय चर्चा में आप सब का स्वागत है राजेश कुमारी की आप सब को नमस्ते , आप सब का दिन मंगल मय हो, अब चलते हैं आपके प्यारे ब्लॉग्स पर
जीवन ही संभव नहीं है मेरी....
Junbishen 120
बालार्क ………सातवीं किरण
खुल जाये हर गाँठ
घर से माल कमाने निकले, रंग बदलते गंदे लोग -सतीश सक्सेना
इतनी अकल तो....
मुज़़फ्फरनगर का सांप्रदायिक दंगा - भाग-8
रिक्त मनुज का शेष रहेगा
431. मन (हाइकु)
आम में खास खास में आम समझ में नहीं आ पा रहा है
तेरी क़ुर्बत के लिए ...!
आज की
चर्चा यहीं समाप्त करती
हूँ फिर चर्चामंच पर
हाजिर होऊँगी
कुछ
नए सूत्रों के साथ
तब तक के लिए
शुभ विदा बाय बाय ||
आगे देखिए.."मयंक का कोना"
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चिड़िया समझके लड़कियों के पंख कटवाते हैं ,
बेशर्मी खुल के कर सकें वे इसलिए मिलकर
पैरों में उसे शर्म की बेड़ियां पहनाते हैं . …
भारतीय नारी पर Shalini Kaushik
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अलबेला खत्री
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फेसबुक से.. उड़ रही हैं पतंगें लगा रही हैं ठुमके लड़ रहे हैं
पेंचे कट रही हैं गिर रही हैं लूटने के लिए
बढ़ रहे हैं हाथ मचा है शोर…
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय
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ख़्वाब ढले - हाइगा में हिन्दी-हाइगा पर ऋता शेखर मधु
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इथेनॉल ! गाड़ी चलेगी दारू पीकर,
ड्राईवर भले ही ना पिए !!
भारत में इथेनॉल मिले पेट्रोल की स्थिति के बारे में जानकारी देता आलेख ....
ज़िंदगी के मेले पर बी एस पाबला
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विकास या विनाश जंगल उजड़ते रहे,
उपवन उजड़ते रहे,
खेत और खलिहान उजड़ते रहे...
अभिनव रचना (Hindi Poems) पर ममता त्रिपाठी
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लॉन्च हुआ दुनिया का पहला
क्वाड्रा एचडी डिस्प्ले स्मार्टफोन
अपना - अंतर्जाल पर Dinesh Prajapati
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"आगे बढ़कर देखो तो..."
काव्य संग्रह "धरा के रंग" से
एक गीत
"आगे बढ़कर देखो तो..."
"आगे बढ़कर देखो तो..."
तुम मनको पढ़कर देखो तो!
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!! चन्दा है और चकोरी भी,
रेशम की सुन्दर डोरी भी,
सपनों में चढ़कर देखो तो!
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!!
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दुनिया मात्र बारात हैं----- पथिक अनजाना (सतनाम सिंह साहनी )
बुद्धिमता की सर्वोच्च पहचान क्या होती है
सजाया कैसे उत्तम ढंग से जीवन मोती हैं
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क्या जमाना दे रहा है - चाहता है आदमी क्या जमाना दे रहा है -
इंसान को दगा तो , इंसान दे रहा है -
कोशिश तमाम उम्र की परवान न हुई
इंसानियत के सेज पर शैतान सो रहा है..
उन्नयन पर udaya veer singh
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंराज कुमारी जी सूत्र अच्छी लगे बहुआयामी हैं |
बहुत सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएं--
आभार बहन राजेशकुमारी जी।
आज की सुंदर चर्चा में उल्लूक का "आम में खास खास में आम समझ में नहीं आ पा रहा है" को शामिल करने के लिये आभार !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनओं में मेरी लिखी कहानी का अंश शामिल करने का बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंविविध रंगी सुंदर चर्चा राजेश जी, आभार !
जवाब देंहटाएंश्रद्धानंद जी वाले लेख को स्थान देने हेतु आभार एवं धन्यवाद । सभी लिंक अच्छे हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंबढ़िया सार्थक चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रोचक व पठनीय सूत्र।
जवाब देंहटाएंबढ़िया सूत्र व चर्चा , मंच को धन्यवाद
जवाब देंहटाएं॥ जै श्री हरि: ॥
सुन्दर संकल्पों की रचना
जवाब देंहटाएंसिक्कों में नहीं बिकेंगे मन,
सत्ता ढोयेंगे पावन जन,
अब नहीं चलेंगी वक्र-चाल।
आने वाला है नया साल।।
सुन्दर संकल्पों को नया रंग देती अप्रतिम रचना
जवाब देंहटाएंतुम मनको पढ़कर देखो तो!
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!!
चन्दा है और चकोरी भी,
रेशम की सुन्दर डोरी भी,
सपनों में चढ़कर देखो तो!
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!!
कुछ छन्द अधूरे से होंगे,
अनुबन्ध अधूरे से होंगे,
कुछ नूतन गढ़कर देखो तो!
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!!
सागर से मोती चुन लेना,
माला को फिर से बुन लेना,
लहरों से लड़कर देखो तो!
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!!
जवाब देंहटाएंलिखे हुऐ से ही
हो जा रहा है
“उल्लूक” तो बस
इतना पता करना
चाह रहा है
खास कभी भी
नहीं हो पाया जो
उसे क्या आम में
अब गिना जा रहा
आम औ ख़ास प्रजा तंत्र के दो पहलू अब बदलेंगें, अब आम ही होंगे ख़ास आम के फिर भी बिलकुल पास।
तहलका करने वालों ,गांगुलियों और परदे के पीछे सब कुछ करने वालों को आइना दिखलाती
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना। यही लोग हैं जो शाहबानो का हक़ छीन लेते हैं।
बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं .
अबला समझके नारियों पे बला टलवाते हैं,
चिड़िया समझके लड़कियों के पंख कटवाते हैं ,
बेशर्मी खुल के कर सकें वे इसलिए मिलकर
पैरों में उसे शर्म की बेड़ियां पहनाते हैं . …
भारतीय नारी पर Shalini Kaushik
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राजेश जी , आज की सुंदर चर्चा के लिये आभार...
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा में सभी सूत्र एक से एक सुंदर हैं...मेरी ग़ज़ल इस चर्चा में सम्मिलित करने हेतु आदरणीया बहन राजेश कुमारी जी का बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लिंक्स ,बहुत सुंदर चर्चा |
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स अच्छे लगे..!.सुंदर चर्चा ,
जवाब देंहटाएं=======================
RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.
चर्चा मंच साहित्य के साथ साथ ..नए विषयों पर भी लिंक देता है .. साधुवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकल्पों को नया रंग देती अप्रतिम रचना
जवाब देंहटाएंतुम मनको पढ़कर देखो तो!
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!!
चन्दा है और चकोरी भी,
रेशम की सुन्दर डोरी भी,
सपनों में चढ़कर देखो तो!
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!!
कुछ छन्द अधूरे से होंगे,
अनुबन्ध अधूरे से होंगे,
कुछ नूतन गढ़कर देखो तो!
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!!
सागर से मोती चुन लेना,
माला को फिर से बुन लेना,
लहरों से लड़कर देखो तो!
कुछ आगे बढ़कर देखो तो!!
लो साल पुराना बीत गया।
जवाब देंहटाएंअब रचो सुखनवर गीत नया।।
नया सूर्य अब चमकेगा,
सारा अँधियारा हर लेगा।
जब सुख के बादल बरसेंगे,
तब “रूप” देश का दमकेगा।
मनधावक बाजी जीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।
सृजन के आशावादी क्षण बांधे है ये रचना।
क्रिसमस की बधाई एवं चर्चामंच पर शिरकत करने वाले सभी मित्रों का हार्दिक आभार .
जवाब देंहटाएंwonder and useful collections.Wish you and readers a HAPPY CHRISTMAS
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा...उपयोगी लिंक्स...आभार !!...
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