RAJESH MISHRA
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जमीन की सोच है फिर क्यों बार बार हवाबाजों में फंस जाता है
सुशील कुमार जोशी
बाज बाज आता नहीं, भरता रहे उड़ान | नीचे कुछ भाता नहीं, खुद पर बड़ा गुमान | खुद पर बड़ा गुमान, कहाँ उल्लू में दमखम | लेता आँखें मीच, धूप की ऐसी चमचम | पर गुरुत्व सिद्धांत, इक दूजे को खींचे |
रख धरती पर पैर, लौट आ प्यारे नीचे ||
बदतमीजी कर मगर तमीज सेनहीं तो आजादी के मायने बदल जाते हैं
सुशील कुमार जोशी
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पी.सी.गोदियाल "परचेत"
ठेला-ठाली आपकी , भली लगी श्रीमान |बहुत दिनों से ढूँढता, किस कारण व्यवधान | किस कारण व्यवधान , इलेक्शन फिर से आया | मत चुको चौहान, इन्होने बहुत सताया | बदलो यह सरकार, ख़तम कर विकट झमेला | असहनीय यह बाँस, हमेशा रविकर ठेला || |
लिव इन रिलेशनशिप को कानूनन रोका जाये ..
Shalini Kaushik
चढ़े देह पर *देहला, देहात्मक सिद्धांत |लेशन लिव-इन-रिलेशनी, जीने के उपरान्त |जीने के उपरान्त, सोच क्या खोया पाया |हरदम रहे अशांत, स्वार्थ सुख आगे आया |त्याग समर्पण छोड़, ओढ़ ले चादर रविकर |है समाज का कोढ़, वासना चढ़े देह पर ||
*मद्य
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सीढ़ी कोने में खड़ी, इधर बड़ी सी लिफ्ट |
लिफ्ट लिफ्ट देती नहीं, सीढ़ी की स्क्रिप्ट |
सीढ़ी की स्क्रिप्ट, कमर में हाथ डालते |
चूमाचाटी होय, तनिक एहसास पालते |
किन्तु लगे ना दोष, तरुण की कैसी पीढ़ी |
फँसता तेज अधेड़, छोड़ देता ज्यों सीढ़ी ||
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बा -मुश्किल ही पहुँच पातीं हैंऔरतें काम शिखर पर (दूसरी किश्त )
Virendra Kumar Sharma
श्वासों से सरगम बजे, गम से तो उच्छ्वास |क्या है कामानन्द का, सजना सजनी पास | सजना सजनी पास, बराबर चूमाचाटी | पारस्परिक विलास, मार नहिं व्यर्थ गुलाटी | है मैराथन रेस, आतंरिक शक्ति हुमा सो |
बाकी है कुछ काम, ठहर जा लम्बी श्वासों ||
प्रति -गुरुत्व का अस्तित्वकौतुक और विज्ञान गल्प का विषय ज्यादा रहा है। अबूझ पहेली बना रहा है।
Virendra Kumar Sharma
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श्याम स्मृति....अनावश्यक व्यर्थ के समाचार व टीवी चर्चाएँ ....डा श्याम गुप्त ....
दुर्घटना लागे भली, ये मीडिया तमाम |
ताम-झाम दिनभर करे, बाकी न्यूज हराम |
बाकी न्यूज हराम, फैसला तेजपाल का |
आशा का दुष्कर्म, धमाका अभी हाल का |
कुछ फुरसतिया विज्ञ, खा पीकर के डटना |
चर्चा में मशगूल, यही असली दुर्घटना ||
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झरीं नीम की पत्तियाँ(दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ढ)धरती का भार |(३)विनाश |
देवदत्त प्रसून
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डाक विभाग ने शुरू की 'एक्सप्रेस पार्सल'और 'बिजनेस पार्सल' सेवा
Krishna Kumar Yadav
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पाये कटक कमान तो, ताने विशिख कराल |
भूले लेवी अपहरण, भूले नक्सल चाल |
भूले नक्सल चाल, बंद हो जाये हमला |
फिर गांधी मैदान, बनेगा नहीं कर्बला |
कर लो पुनर्विचार, पुलिस नित मुंह की खाये |
नक्सल रहा डकार, नहीं जनता जी पाये ||
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DR. PRATIBHA SOWATY: हमारा होना / न होना
Dr. Pratibha Sowaty
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मोदी को मिला सुनंदा पुष्कर का साथ
chandan bhati
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Dr (Miss) Sharad Singh
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shikha varshney
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जुगाड़ एव प्रबन्ध: (व्यंग)
CS Devendra K Sharma "Man without Brain"
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श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (५९वीं कड़ी)
Kailash Sharma
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Asha Saxena
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फांसी के तख्ते की ओर बढ़ा था यह सेनानी
Vineet Verma
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प्रतिभागी - श्री राजेश कुमार मिश्रा ( आयुर्वेदाचार्य )
आशीष भाई
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SANDEEP PANWAR
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Alokita
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रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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आगे देखिए "मयंक का कोना"
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जुर्म देखो, उम्र नहीं...खुशदीप
देशनामा पर Khushdeep Sehgal
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अकुला रही सारी मही ....
( अन्नपूर्णा बाजपेई )
अकुला रही सारी मही
किसको पुकारना है सही ।
सोच रही अब वसुंधरा
कैसा कलुषित समय पड़ा बालक बूढ़े नौजवान
गिरिवर तरुवर आसमान
किसको पुकारना .....
आपका ब्लॉग
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आशाओं की डिभरी
कंक्रीट के जंगल में
जो दिख रहें हैं
सतरंगी खिले हुए
दर्दीले फूल
अनगिनत आंख से टपके
कतरे से खिलें हैं ---
उम्मीद तो हरी है .........पर jyoti khare
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कार्टून :-
वोट चाहिए तो मेरे ब्रॉंड की दारू दो
काजल कुमार के कार्टून
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"कुछ तो बात जरूरी होगी"
--
अज्ञात
प्रिय तुम मधु हो जीवन की,
तुम बिन कैसी मधुशाला?
जिसमे तुम न द्रवित हुए ,
किस काम की है ऐसी हाला...
आपका ब्लॉग पर abhishek shukla
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कैसे चढ़ते तरुण, चढ़ी है जिनके दारु
जीना ऊपर था खड़ा, लिफ्ट लताड़ लगाय |नीचे वापस क्या हुई, जीना दे समझाय...|
बेसुरम्
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स्मार्टफ़ोनों के लिए
सर्वोत्तम हिंदी कीबोर्ड
छींटे और बौछारें पर
Ravishankar Shrivastava
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कार्टून :- मुझ सा भला कोई और कहॉं
काजल कुमार के कार्टून
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लोग क्या कहेंगे --
आजकल कोई कुछ नहीं कहता !
अक्सर सुनने में आता है -- लोग क्या कहेंगे। इसी कहने के डर से लोग कुछ करने में डरते हैं। लेकिन लगता है कि यह कहने की बात पुऱाने ज़माने में होती थी। अब कुछ कहने वाले बचे ही कहाँ हैं। आधुनिकता की दौड़ में लोगों को सोचने की ही फुर्सत नहीं है , फिर कुछ कहने के लिए समय कहाँ से आएगा...
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल
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जुर्म देखो, उम्र नहीं...खुशदीप
देशनामा पर Khushdeep Sehgal
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अकुला रही सारी मही ....
( अन्नपूर्णा बाजपेई )
अकुला रही सारी मही
किसको पुकारना है सही ।
सोच रही अब वसुंधरा
कैसा कलुषित समय पड़ा बालक बूढ़े नौजवान
गिरिवर तरुवर आसमान
किसको पुकारना .....
आपका ब्लॉग
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आशाओं की डिभरी
कंक्रीट के जंगल में
जो दिख रहें हैं
सतरंगी खिले हुए
दर्दीले फूल
अनगिनत आंख से टपके
कतरे से खिलें हैं ---
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कार्टून :-
वोट चाहिए तो मेरे ब्रॉंड की दारू दो
काजल कुमार के कार्टून
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"कुछ तो बात जरूरी होगी"
महक रहा है मन का आँगन,
दबी हुई कस्तूरी होगी।
दिल की बात नहीं कह पाये,
कुछ तो बात जरूरी होगी।।
सूरज-चन्दा जगमग करते,
नीचे धरती, ऊपर अम्बर।
आशाओं पर टिकी ज़िन्दग़ी,
अरमानों का भरा समन्दर।
कैसे जाये श्रमिक वहाँ पर,
जहाँ न कुछ मजदूरी होगी।
कुछ तो बात जरूरी होगी।।
उच्चारण--
अज्ञात
प्रिय तुम मधु हो जीवन की,
तुम बिन कैसी मधुशाला?
जिसमे तुम न द्रवित हुए ,
किस काम की है ऐसी हाला...
आपका ब्लॉग पर abhishek shukla
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कैसे चढ़ते तरुण, चढ़ी है जिनके दारु
जीना ऊपर था खड़ा, लिफ्ट लताड़ लगाय |नीचे वापस क्या हुई, जीना दे समझाय...|
बेसुरम्
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स्मार्टफ़ोनों के लिए
सर्वोत्तम हिंदी कीबोर्ड
छींटे और बौछारें पर
Ravishankar Shrivastava
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कार्टून :- मुझ सा भला कोई और कहॉं
काजल कुमार के कार्टून
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लोग क्या कहेंगे --
आजकल कोई कुछ नहीं कहता !
अक्सर सुनने में आता है -- लोग क्या कहेंगे। इसी कहने के डर से लोग कुछ करने में डरते हैं। लेकिन लगता है कि यह कहने की बात पुऱाने ज़माने में होती थी। अब कुछ कहने वाले बचे ही कहाँ हैं। आधुनिकता की दौड़ में लोगों को सोचने की ही फुर्सत नहीं है , फिर कुछ कहने के लिए समय कहाँ से आएगा...
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसूत्र विविधता लिए |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
पठनीय व रोचक सूत्र
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सूत्रों से सजी आज की चर्चा में उल्लूक के दो दो फंडे "जमीन की सोच है फिर क्यों बार बार हवाबाजों में फंस जाता है" और "बदतमीजी कर मगर तमीज से नहीं तो आजादी के मायने बदल जाते हैं" को स्थान दिया आभार !
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति , हम सबकी रचना को स्थान देने हेतु , आदरणीय रविकर सर व मंच को धन्यवाद
जवाब देंहटाएं॥ जै श्री हरि: ॥
शानदार प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई रविकर जी....
जवाब देंहटाएंआभारी हूं कि आपने मेरी रचना को भी इसमें शामिल किया.....
बहुत सुन्दर और रोचक लिंक्स...आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंसधे हुए रविकर के करकमलों से
जवाब देंहटाएंचर्चा का 1451वाँ कमल मुस्करा रहा है।
आभार।
सुंदर टिप्पणियाँ सुंदर सूत्र !
जवाब देंहटाएंshukriya.
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ....आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स..बहुत अच्छा लगा..हार्दिक आभार..
जवाब देंहटाएंशोख़ लिफ़ाफ़ों को यहाँ तक लाने के लिए तहेदिल से शुक्रिया रविकर सर :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया,बेहतरीन पठनीय सूत्र ..!
जवाब देंहटाएं----------------------------------
Recent post -: वोट से पहले .
जवाब देंहटाएंवो ख़्वाबों में आए ....
Dr (Miss) Sharad Singh
Sharad Singh
अभिव्यक्ति का शिखर छू रही है ये रचना।, अभिनव और परम्परा गत प्रतीकों का सुन्दर निर्वाह हुआ है मय रूपक तत्व के। शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया !
मौन हुए साधू सभी, मुखरित हैं अब चोर।
जवाब देंहटाएंबाढ़ दिखाई दे रही, दौलत की सब ओर।।
सदाचार का हो गया, दिन में सूरज अस्त।
अब अपनी करतूत में, दुराचार है मस्त।।
अब तो सेवाभाव का, खिसक रहा आधार।
मक्कारों की बाढ़ में, घिरा हुआ संसार।।
फसल हुई चौपट सभी, फैली खर-पतवार।
नष्ट हो गयी सभ्यता, भ्रष्ट हुआ परिवार।।
बहुत प्रासंगिक सवर हैं दोहावली की
जवाब देंहटाएंसुन्दर स्वर प्रेम और विश्वास के
मन मेरा बहुत उदास प्रिये!
आ जाओ अब तो पास प्रिये!
कहीं खो न जाये आस प्रिय ,
अब भी तुम पर विश्वास प्रिय।
तुम बिन जीवन निस्सार प्रिय।
मैं नैया तुम पतवार प्रिय ,
जवाब देंहटाएंएक तुम मेरा आधार प्रिय।
जवाब देंहटाएंसेतुओं का बहु भावी गुलदस्ता लाये ,
भइआ रविकर चर्चा लाये।
बिंदास जियो प्यारे। किस्मत हमारे साथ है जलने वाले जला करें। सरदार जी को सलाम।
जवाब देंहटाएंलोग क्या कहेंगे --
आजकल कोई कुछ नहीं कहता !
अक्सर सुनने में आता है -- लोग क्या कहेंगे। इसी कहने के डर से लोग कुछ करने में डरते हैं। लेकिन लगता है कि यह कहने की बात पुऱाने ज़माने में होती थी। अब कुछ कहने वाले बचे ही कहाँ हैं। आधुनिकता की दौड़ में लोगों को सोचने की ही फुर्सत नहीं है , फिर कुछ कहने के लिए समय कहाँ से आएगा...
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल
बढ़िया चर्चा . आभार
जवाब देंहटाएं