मित्रों।
आज श्री राजीव कुमार झा का दिन था चर्चा का।
उन्होंने चर्चा लगाई भी होगी।
जिसकी सूचना भी उन्होंने लोगों को दी है।
लेकिन चर्चा शैड्यूल नहीं है।
इसलिए मैंने ही श्री राहुल मिश्राजी से
आज चर्चा करने के लिए निवेदन किया था।
शायद किन्हीं तकनीकी कारणों से उनसे डिलीट हो गयी होगी।
आभार सहित।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
शुभ प्रभातम.....
आप सभी को 14-12-13 का सर्द-भरा प्रणाम....।।
आज श्री राजीव कुमार झा का दिन था चर्चा का।
उन्होंने चर्चा लगाई भी होगी।
जिसकी सूचना भी उन्होंने लोगों को दी है।
लेकिन चर्चा शैड्यूल नहीं है।
इसलिए मैंने ही श्री राहुल मिश्राजी से
आज चर्चा करने के लिए निवेदन किया था।
शायद किन्हीं तकनीकी कारणों से उनसे डिलीट हो गयी होगी।
आभार सहित।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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शुभ प्रभातम.....
आप सभी को 14-12-13 का सर्द-भरा प्रणाम....।।
सर्वप्रथम डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी का आभार जो हमे यह अवसर दिया.....
मित्रों....आज नियमित चर्चाकार श्री राजीव कुमार झा की जगह
मैं "ई॰ राहुल मिश्रा" शनिवारीय चर्चा के लिंक प्रेषित कर रहा हूँ....।।
मैं "ई॰ राहुल मिश्रा" शनिवारीय चर्चा के लिंक प्रेषित कर रहा हूँ....।।
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मेरा मन पंछी सा
नहिं व्यवहारिक ज्ञान, मन्त्र ना तंत्र तार्किक |
गया पाय लाइसेंस, एक पंजे के मारे |
कुछ कहना हैं
कस्बा qasba
महान कलाकार माइकलेंजिलो ने कहा था-“ व्यक्ति अपने दिमाग से पेंट करता है हाथों से नहीं,शायद यही वजह है कि हर कलाकार की कलाकृति उसके हस्ताक्षर होते हैं | आज मैं आपको मिलवाती हूँ एक ऐसी महान कलाकार से जिन्होंने मात्र 28 वर्ष के छोटे से जीवन काल में एक इतिहास रंग डाला और रंगों से भावनाओं का ऐसा इन्द्रधनुष उकेरा कि लोगों ने दाँतों तले उँगलियाँ दबा लीं- मिलिए हिन्दुस्तान की “फ्रिडा काह्लो”, “अमृता शेरगिल” से |
my dreams 'n' expressions.....
जेठ की सुबह जब ‘प्रालेय’ बिस्तर से उठकर बैठा तो दिल में कुछ अलग सा एहसास अंगड़ाईयां ले रहा था | ह्रदय विचलित हो रहा था और नामालूम क्यों एक अनकहा सा डर दिल को ज़ोरों से धड़का रहा था | कुछ सोचते हुए उसने इधर-उधर नज़रें दौड़नी चाहि पर अलसाई अधखुली आँखों ने धुंधले परिदृश्य सामने उकेरने शुरू कर दिए .....
तमाशा-ए-जिंदगी
हथेली में तिनका छूटने का अहसास
Rahul
यह अंतर्वेदना कैसी है...???
असाध्य क्लेश सा पीर क्यों है ?
Amrita Tanmay
--
मेरा मन पंछी सा
नहिं व्यवहारिक ज्ञान, मन्त्र ना तंत्र तार्किक |
गया पाय लाइसेंस, एक पंजे के मारे |
कुछ कहना हैं
कस्बा qasba
महान कलाकार माइकलेंजिलो ने कहा था-“ व्यक्ति अपने दिमाग से पेंट करता है हाथों से नहीं,शायद यही वजह है कि हर कलाकार की कलाकृति उसके हस्ताक्षर होते हैं | आज मैं आपको मिलवाती हूँ एक ऐसी महान कलाकार से जिन्होंने मात्र 28 वर्ष के छोटे से जीवन काल में एक इतिहास रंग डाला और रंगों से भावनाओं का ऐसा इन्द्रधनुष उकेरा कि लोगों ने दाँतों तले उँगलियाँ दबा लीं- मिलिए हिन्दुस्तान की “फ्रिडा काह्लो”, “अमृता शेरगिल” से |
my dreams 'n' expressions.....
जेठ की सुबह जब ‘प्रालेय’ बिस्तर से उठकर बैठा तो दिल में कुछ अलग सा एहसास अंगड़ाईयां ले रहा था | ह्रदय विचलित हो रहा था और नामालूम क्यों एक अनकहा सा डर दिल को ज़ोरों से धड़का रहा था | कुछ सोचते हुए उसने इधर-उधर नज़रें दौड़नी चाहि पर अलसाई अधखुली आँखों ने धुंधले परिदृश्य सामने उकेरने शुरू कर दिए .....
तमाशा-ए-जिंदगी
हथेली में तिनका छूटने का अहसास
Rahul
यह अंतर्वेदना कैसी है...???
असाध्य क्लेश सा पीर क्यों है ?
Amrita Tanmay
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सप्ताह के अंत में
होता था तुम्हारा आना …
वो एक शाम
जो गुजारा करते थे
तुम मेरे नाम .......
"सौजन्य: रीना मौर्या जी "
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कारें चलती देश में, भर डीजल-ईमान |
अट्ठाइस गण साथ पर, नहिं व्यवहारिक ज्ञान |
*स्नेहक पुर्जे बीच, नहीं ^शीतांबु हार्दिक |
*लुब्रिकेंट ^ कूलेंट
तो स्टीयरिंग थाम, चला दिखला सर-कारें ||
"सौजन्य : दिनेश गुप्ता जी"
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अचानक नज़र इस छुटकु ट्रैक्टर पर पड़ी तो पचीस साल पहले की घटना याद आ गई । पटना में किसी ने मित्शुबिशी ट्रैक्टर की डीलरशिप ली थी । सवा लाख का सफ़ेद रंग का छोटा सा ट्रैक्टर । बेहद ख़ूबसूरत । लगा कि ये तो कमरे में आ जाएगा और हम भी जापानी तकनीक से खेती में क्रांति कर देंगे । बात आई गई होगी । किसी ने ख़रीदा नहीं तो दुकान बंद हो गई । मित्शुबिशी का वो ट्रैक्टर बड़े ट्रैक्टर का लघु रूप नहीं था जैसा कि महिंद्रा का युवराज 215 है । हमारे पास इसका बड़ा भाई स्वराज हुआ करता था ।
"सौजन्य : रविश कुमार जी"
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सौजन्य : अनुलता राज नायर जी
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"सौजन्य : तुषार राज रस्तोगी जी"
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चलती जाती जिन्दगी में तेरा याद आना
हाय जान जाती है
तू क्यों मुझे दिल से
नहीं बुलाती है
कहां छुपी है तेरी मुहब्बत
कहां मैं तेरे दिल को जान लूंगा...
"सौजन्य : विकेश कुमार बडोला जी"
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जिन छंदो में पीड़ा झलके,
शोक जनित भावार्थ ही छलके
वैसे युग्म समूहो में
मैं शब्दो को न ढालूँगा
त्रस्त भाव को अनुभव कर भी
हर्षित पद रचाऊंगा । ।
अंतर्नाद की थाप
"सौजन्य : कौशल लाल जी"
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दुःख की गांती बांधे
क्यों दिख रही है मुझे
बासी भात की खुशबू ?
पीड़ा की काई पर
क्यों पनप रहा है
बेचारगी का वृक्ष ?
सवाल इससे ज्यादा है....
"सौजन्य : राहुल जी"
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यह अनुताप कैसा है ?
वाणी-विहीन रंध्रों से फूटता
यह आकुल आर्द्र आलाप कैसा है ?
नैन-कोर में ठहरा नीर क्यों है ?
अनमनी व्यथा की छटपटाहट
कुछ विरचने को अधीर क्यों है ?
"सौजन्य : अमृता तन्मय जी"
--
धन्यवाद
आगे देखिए.."मयंक का कोना"
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जाने कब आएगा
मेरा वक़्त जब पंख मेरे
और परवाज़ मेरी
दुनिया की सारी सौगात मेरी
फूलों की खुशबू
तारों की छतरी
मेरे अँगने में
सदा खिली रहे चाँदनी...
और परवाज़ मेरी
दुनिया की सारी सौगात मेरी
फूलों की खुशबू
तारों की छतरी
मेरे अँगने में
सदा खिली रहे चाँदनी...
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''गांधी का यह देश नहीं ,बस हत्यारों की मंडी है ,
राजनीति की चौपड़ में ,हर कर्ण यहाँ पाखंडी है .''
! कौशल ! पर Shalini Kaushik
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कवि ऐसे मत डोलो*
*अर्थ अनर्थ करे*
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चुनावों में बुरी तरह पिटी कांग्रेस को एक मुद्दा तो मिला। चुनावों का मूल आधार तो वोट है और वोटों पर इस समय दबदबा नौजवानों का है। तो ऐसे में नौजवानों का वोट हासिल करने के लिए यदि समलैंगिकों को समर्थन दिया जाता है तो कांग्रेस के लिए यह घाटे का सौदा नहीं है और खासकर तब जब टाइम्स आफ इंडिया जैसे प्रतिष्ठित अखबार के सम्पादक -मंडल का कोई व्यक्ति ऐसा परामर्श और प्रेरणा दे रहा हो। उनका सुझाव बहुत बढ़िया है। सोना तो सोना है ,चाहे कीचड़ या मल में क्यों न पड़ा हो उसे उठा ही लेना चाहिए...
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सेहतनामा :
जोर जोर से बोल बोलके पढ़ना
और शिशुओं और नौनिहालों ,बालकों से बतियाना
दिमागी विकास को एड़ लगाता है
आपका ब्लॉग पर
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सेहतनामा :
जोर जोर से बोल बोलके पढ़ना
और शिशुओं और नौनिहालों ,बालकों से बतियाना
दिमागी विकास को एड़ लगाता है
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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कितने दिनों से बड़े जंक्शन के स्टेशन की भीड़ में लिखा हुआ एक छोटा सा नाम था अब भीड़ से अलग पुराने घने उस पेड़ की छांव मेंसचमुच का है नागभीडएक छोटा सा रेलवे स्टेशन ...
सतीश का संसार
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कल तक मस्त वज़ीर थे, आज हुए हैं त्रस्त।
आम आदमी ने किये, सभी हौसले पस्त।।
दशकों से खाते रहे, नोच-नोचकर देश।
वीराना सा कर दिया, उपवन का परिवेश।।
छेद स्वयं के पात्र में, करने लगे दलाल।
हुए एकजुट लोग तब, दशा देख विकराल।।
मत के प्रबल प्रहार से, दुर्ग कर दिया ध्वस्त।
आम आदमी ने किये, सभी हौसले पस्त।।
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डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' -
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उलझन में हूं कि
नींद चुनूं या तारे...!
नींद में सपने है तेरे—मेरे
और आसमान के तारों में
सच्चाई है तेरी—मेरी...
swatikisoch पर swati jain
नींद चुनूं या तारे...!
नींद में सपने है तेरे—मेरे
और आसमान के तारों में
सच्चाई है तेरी—मेरी...
swatikisoch पर swati jain
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किन्तु केजरीवाल, विधायक क्षमता तोले-
लालच में जन-गण फंसे, बिजली पानी मुफ्त |
इत पंजे से त्रस्त मन, उत मंसूबे गुप्त
इत पंजे से त्रस्त मन, उत मंसूबे गुप्त
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर
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बाल कृति
"हँसता गाता बचपन" से
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे"
लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे,
नारंगी-से कितने सारे!
बच्चे इनको जमकर खाते,
लड्डू सबके मन को भाते!
रोचक व पठनीय सूत्रों से सजी चर्चा।
जवाब देंहटाएंतरह तरह के सूत्रों से सजा आज का चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंहर सूत्र पर जाने का प्रयास लगता नहीं सरल
फिर भी प्रयत्न तो पूरा होगा दोपहर में या शाम |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |
बढ़िया रोचक पठनीय सूत्र...!...आभार
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: मजबूरी गाती है.
सुंदर चर्चा के साथ राजीव जी की चर्चा नहीं देख पाने का अफसोस भी ! उल्लूक का "बात कोई नई नहीं कह रहा हूँ आज फिर हुई कहीं बस लिख दे रहा हूँ " को स्थान देने पर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा...ढेर सारे link मिले weekend का इंतजाम हो गया :-)
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को शामिल करने का शुक्रिया !!
सादर
अनु
बहुत सुन्दर और रोचक लिंक्स...आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा-
जवाब देंहटाएंस्वागत है आदरणीय आपका -
sundar aur roachak links
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा....आभार..
जवाब देंहटाएंचर्चा में पहली बार शामिल हुआ...और मुझे शामिल करने के लिए हार्दिक आभार...
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स ..
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए
बहुत बहुत धन्ययवाद...
:-)
सुंदर चर्चा ! राहुल जी.बेहतरीन लिंक्स.
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स व प्रस्तुति , धन्यवाद मंच व मिश्रा जी
जवाब देंहटाएं॥ जै श्री हरि: ॥
bahut sundar charcha
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार!
जवाब देंहटाएंखूब सूरत विश्लेषण किया है आपने अखिलेश्वर जी पांडे। "आप "लम्बी रेस का सारथि है। दिल्ली की संसदीय सीटों को अब कांग्रेस -बी जे पी के लिए प्राप्त करना आसन नहीं होगा। यही अनुपात रहेगा वहाँ भी।
जवाब देंहटाएंनिर्धन को धनवान सा, सुलभ सदा हो न्याय।
जवाब देंहटाएंनहीं किसी के साथ हो, भेद-भाव अन्याय।।
भारत माता कर रही, कब से यही पुकार।
भ्रष्ट सियासत की नहीं, भारत को दरकार।।
संसद में पहुँचे नहीं, रिश्वत के अभ्यस्त।
आम आदमी ने किये, सभी हौसले पस्त।।
बेहतरीन सामयिक रचना आइना दिखाती सत्ता के थोक दलालों को।
सुन्दर प्रस्तुति ...बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंसादर !
आभार आपका ....यहाँ स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएं