मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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अकविता ‘‘उल्लू और गदहे’’
...अब दोनों की,
किस्मत निखर गई है
सारे उल्लुओं
और
गदहों की
जिन्दगी सँवर गई है...
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उदास खामोशी
एक दिन हम भी
साथ चले थे
एक पथ पर
एक बहाव में
एक थे कल
आज दो हैं
इन दोनों
नदियों की तरह...
साथ चले थे
एक पथ पर
एक बहाव में
एक थे कल
आज दो हैं
इन दोनों
नदियों की तरह...
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मानव जिजीविषा
बदली अर्थात ट्रान्सफर वाली नौकरी के कई लाभ हैं तो बहुत सी हानियाँ। लाभ यह है कि आप और आपका परिवार कूपमंडूप नहीं बना रहता। हर दो या तीन साल के बाद, एक नई जगह, नया प्रदेश, नई भाषा, नए लोग, नया खानपान, नई संस्कृति देखने समझने को मिलती है...
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झील में चाँद
...दूर आकाश में चमक रहा था चाँद,
सब देख रहा था वह,मुस्करा रहा था अपनी चालाकी पर,
रात वह भी तो उतर गया था
झील में चुपके से,
इतना चुपके से
कि झील को पता ही नहीं चला....
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तग़ज़्ज़ुल
शेर कहने में तग़ज़्ज़ुल का ख़ास महत्व है। तग़ज़्ज़ुल यानी शेर में किसी चमत्कृत करने वाली बात से गहराई लाना। तग़ज़्ज़ुल के बिना शेर सपाट बयानी हो कर रह जाता है जो फन्ने-अरूज़ के लिहाज़ से शेर की ज़रूरतों को पूरा नहीं करता, भले ही वज़्न/अरकान,बहर आदि के लिहाज़ से वो एकदम दुरुस्त ही क्यों न हो। तग़ज़्ज़ुल को माहिरे-फ़न उस्ताद ख्वाब अकबराबादी ने तीन हिस्सों में परिभाषित किया है।
1-क़दीमी तग़ज़्ज़ुल:-रिवायती लबो-लहज़े में चमत्कृत करने वाली बात,
मसलन-हुस्नो-इश्क़ और जामो-मीना पर
2-जदीदी तग़ज़्ज़ुल:-हुस्नो-इश्क़ और जामो-मीना से इतर चमत्कृत करने वाली बात
3-फ़िक्री तग़ज़्ज़ुल:-कोई गहरी चिंतनपरक चमत्कृत करने वाली बात...
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साध्वी प्राची की आवाज़ सुनो
साध्वी प्राची की आवाज़ सुनो पता लगाओ ऐसी कौन सी जमात है जो याक़ूबों के पक्ष में उतर आती है राष्ट्रपति के पास उसकी माफ़ी के लिए काफिला बनकर जाती है। अगर कोई हमारे देश पर हमला कर दे तो उसका समर्थन करने वाला देश द्रोही नहीं कहलायेगा...
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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अगर दिल हों मिले तो फ़ासिला क्या
न हो दिल में कसक तो राब्ता क्या
अगर दिल हों मिले तो फ़ासिला क्या
मुझे गुमसुम सा देखा पूछ बैठे
तिरा भी इश्क़ का चक्कर चला क्या...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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माए से उपजा मायका
...स्वप्न अब ढूँढने में लग जाती माँ
एक अदद अलादीन का चिराग मिलते ही
जिन्न से मांगे वो सिर्फ और सिर्फ
अपनी लाडली का सुखमय जीवन
तभी तो माँ से ही होता मायेका
और माँ से ही जीवन...
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याद आया मनभावन सावन
सावन लग गया है लेकिन पता नहीं चल रहा है। आज गाँव की बहुत याद आ रही है। मेरे मन में जो छोटा सा कवि बैठा है न वो इस महीने में कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो जाता था गाँव में। जब बारिश होती थी तो अक़्सर मैं भीगते हुए निकल पड़ता था खेतों की ओर....बादलों से बात करने...
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कश्मीर की घाटी
(Kashmir ki ghati)
सिंहासन पर बैठ गए तुम,
भारत की पहचान नहीं।
रोती हैं कश्मीर की घाटी,
जन-गण-मन का गान नहीं...
भारत की पहचान नहीं।
रोती हैं कश्मीर की घाटी,
जन-गण-मन का गान नहीं...
Anmol Tiwari
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भारत है गांवों का देश
भारत है गावों का देश
हरियाली है इसकी वेश
रीति-रस्म-रिवाज विशेष
उपेक्षित कुंठित नेत्र निमेष.
बुराइयाँ हो लाखों हजार
वो होते हों भले गंवार
उर में उनके बसते है प्यार
निश्छल प्रेम करते व्यवहार...
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क्या गणित में हर प्रश्न का जवाब
‘=’ में ही होता है ?
इसमें कोई शक नहीं कि गत्यात्मक ज्योतिष ब्लागिंग की मदद से अपनी पहचान बना पाने में कामयाबी प्राप्त करता जा रहा है , पर कुछ दिनों से पाठकों द्वारा इसके द्वारा ज्योतिष के विज्ञान कहे जाने के विरोध में कुछ आवाजें भी उठ रही हैं। वैसे तो सबसे पहले मसीजीवी जी ने ज्योतिष को विज्ञान कहे जाने पर आपत्ति जतायी थी , पर अभी हाल में ज्ञानदत्त पांडेय जी के द्वारा यह प्रश्न उठाया गया तो मुझे काफी खुशी हुई , क्योंकि उनकी सकारात्मक टिप्पणियां हमेशा ही मेरा उत्साह बढाती आयी है। उनके बाद एक दो और पाठक भी इसी प्रकार के प्रश्न करते मिले हैं। आज उन सबके द्वारा उठाए गए प्रश्न का तर्कसंगत जवाब ...
गत्यात्मक ज्योतिष पर संगीता पुरी
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विनम्र श्रद्धांजलि
ब्लागर निलॉय नील
...श्रद्धांजलि नम आँखों
के साथ निलॉय नील
शहादत मारेगी जरूर
तुम्हारी बहुत जोर
उठेगी आवाजें उसी तरह
सत्य की सत्य के लिये
बहुत सारी पुरजोर
श्रद्धांजलि और नमन
की आवाज है
आज हर ओर...
के साथ निलॉय नील
शहादत मारेगी जरूर
तुम्हारी बहुत जोर
उठेगी आवाजें उसी तरह
सत्य की सत्य के लिये
बहुत सारी पुरजोर
श्रद्धांजलि और नमन
की आवाज है
आज हर ओर...
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