एक बेटे ने पिता से पूछा - पापा ये 'सफल जीवन' क्या होता है ? पापा ने कहा आओ बताता हूँ ।
पिता, बेटे को पतंग उड़ाने ले गए। बेटा पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था! थोड़ी देर बाद बेटा बोला, पापा जी ये धागे की वजह से पतंग और ऊपर नहीं जा पा रही
है, क्या हम इसे तोड़ दें !! ये और ऊपर चली जाएगी ! पिता ने धागा तोड़ दिया! पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आइ और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर
गई, तब पिता ने बेटे को जीवन का दर्शन समझाया ! बेटा:- 'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं, हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने
से रोक रही हैं जैसे :
घर, परिवार, अनुशासन, माता-पिता आदि और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं।
वास्तव में यही वो धागे होते हैं जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं। इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा जो बिन
धागे की पतंग का हुआ।
"अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना|
" धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही 'सफल जीवन' कहते हैं।
कोएलो के अल्केमिस्ट को उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति कहा जा सकता है जो उनकी सबसे अधिक भाषाओँ में अनुवादित कृति भी है.अन्य कृतियों में जो हिंदी अनुवाद में उपलब्ध
हैं,उनमें जाहिर,इलेवन मिनट्स,पेड्रा नदी के किनारे,विजेता अकेला,पोर्ताब्लो की जादूगरनी,ब्रिडा प्रमुख हैं.
पर...राजीव कुमार झा
लेकिन यदि मेरी बेटी छूट जाती तो ---. उसके पास तो पैसे भी नही थे !! एक रुपया तक नही था कि वो हमें फोन कर सूचित करती की वो कहां पर है। हमने ये सोच कर बच्चों
को अलग से पैसे रखने पर्स नही दिया था कि बच्चें तो हमारे साथ में ही रहेंगे। उन्हें अलग से पर्स रखने की क्या जरूरत है ?
पर...Jyoti Dehliwal
किसी को कुछ
पता होता है
किसी को कुछ
पता नहीं होता है
ऐसा भी नहीं होता है
खुद का सच खुद को
ही पता नहीं होता है
पर...सुशील कुमार जोशी
भगवान राम की गाथा को
रामचरित मानस के रूप में
जन-जन में प्रचारित करने वाले महाकवि तुलसीदास की स्मृति
उर में संजोए हुए यह लेख मूलरूप में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।
पर...(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
प्रति दिन यह शरारत न सहूंगी |
वह भोली नहीं जानती
है व्यर्थ शिकायत
माँ कान्हां को नहीं मारती
डंडी से यूं ही धमकाती
फिर ममता से आँचल में छिपाती |
है कान्हां भी कम नहीं
कहता माँ यह है झूठी
इसकी बातें नहीं सुनो
तुम मेरा विश्वास करो |
पर...Asha Saxena
इसी सोच को लेकर केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने फेसबुक के साथ '#100महिलाएं पहल' शुरू की है, जिसका उद्देश्य देश की उन महिलाओं को पहचान
और स्वीकृति देना है, जिन्होंने समाज में अपनी अलग पहचान बनाई है। इसके लिए लोग 15 जुलाई से 30 सितंबर 2015 के बीच महिला और बाल विकास मंत्रालय के फेसबुक
पन्ने पर जाकर अपने नामांकन दे सकते हैं और नामांकन फार्म पूरा कर सकते हैं,
पर.....Akanksha Yadav
परिवार चला गया तो वह वहीं डॉक्टर के केबिन में साफ-सफाई करते हुए खुद से बोली –‘बेटी और बेटे की उमर में इतना फरक ! रामजाने कितनी बेटियां मारी होंगी.’
डॉक्टर ने यूं कंप्यूटर ऑन करने का उपक्रम किया कि जैसे उसने कुछ सुना ही न हो.
पर...Kajal Kumar
स्टेटस बार से आपको और कई जानकारियॉ मिल जायेंगी वह भी बिना कोई एक्सेल फार्मूला जाने - इस वीडियो में अाप सीखेगें कि एक्सेल में स्टेटस बार का यूज कैसे करते हैं
फेसबुक ने दुनिया के ज्यादातर नये और पुराने दोस्तों को अापस में जोड रखा हैं, आप फेसबुक पर कई सारे तरीके इस्तेमाल कर फेसबुक सर्च बार से दोस्तों को सर्च
कर सकते हैं, जिसमें ईमेल आईडी, नाम अौर मोबाइल नंबर मुख्य हैं, ये कांटेक्ट इनफार्मेशन आपके दोस्तों तक सीमित रहे तब तक तो ठीक है। लेकिन अगर आपने सही प्राइवेसी
सेंटिग यूज नहीं की है तो आपका ईमेल आईडी समेत आपका मोबाइल नंबर भी गलत हाथों में पड सकता है
पर...Abhimanyu Bhardwaj
जैसे चलाना चाहते हो!
तुम्हारी दमित इच्छाओं की पूर्ति
के निमित्त देश नहीं चलता
परिवर्तन करो समाज का
निर्माण करो नये समाज का
पर...Ravishankar Shrivastava
तभी मेरी बुकमार्क पर तुम आगे बढ़ जाती और तुम्हारी पे मैं। दोनों ख़त्म करते तो आधी तुम पढ़ पाती आधी मैं। कुछ ऐसा करो दोनों साथ ख़त्म कर सके पूरी किताब।
...Misra Raahul
प्यार-मनुहार,
व्यापार-व्यव्हार,
उपकार-उपहार,
कोई न कोई अपेक्षा
वजह ज़रुर होती है हर रिश्ते की,..
पर...Priti Surana
यदि भरत को भी प्रिय हो, श्रीराम का वन में जाना
मृत देह का मुझको उनसे, दाह संस्कार नहीं करवाना
था मेरा दुर्भाग्य तू आयी, तेरे कारण अपयश होगा
मर जाने पर मेरे सुख से, पुत्र सहित राज तू करना
पर...Anita
लेकिन जब किसी धार्मिक ग्रन्थ के वाचन श्रवण की बात होती है तो कई परिवारों में माँ बाप ही मुंह चढ़ाने सिकोड़ने लगते हैं विरोध करते हैं अपने ही वैदिक ग्रंथों
की चर्चा का। पढ़ने की तो कौन कहे। मैंने कई ऐसी मम्मियों को देखा है जिन्हें घर में किसी बुजुर्ग द्वारा सहेज के एकत्र किये गए ग्रन्थ भी बोझा लगते हैं। नाक
भौं सिकोड़ने लगतीं हैं बस इतना कहने की देर है कल को ये पढ़ेंगे यदि घर में देखेंगे इन ग्रंथों को तब ही तो पढ़ेंगे । इन्हीं के लिए संजोया गया है इस विरासत को जबकि
ग्रन्थ सचित्र एवं मॉडर्न प्रिंट्स में नामचीन प्रकाशनों के ही खरीदें गए थे। बच्चों को खासतौर पर केंद्र में रखके ही खरीदे गए थे घर के अधुनातन बुजुर्गों
द्वारा।
पर....Virendra Kumar Sharma
--
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अच्छे दिन कब आयेंगे, मन में यही सवाल।
सस्ता ईंधन हो रहा, लेकिन मँहगी दाल।।
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जमाखोर ही हो रहे, अब तो मालामाल।
मँहगाई की मार से, जनता है बेहाल...
उच्चारण पर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
धन्यवाद...
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