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शनिवार, अगस्त 01, 2015

"गुरुओं को कृतज्ञभाव से प्रणाम{चर्चा अंक-2054}

मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आप सबका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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दोहागीत 

"गुरूपूर्णिमा पर गुरूदेव का ध्यान" 

यज्ञ-हवन करके करो, गुरूदेव का ध्यान।
जग में मिलता है नहींबिना गुरू के ज्ञान।।
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भूल गया है आदमी, ऋषियों के सन्देश।
अचरज से हैं देखते, ब्रह्मा-विष्णु-महेश।
गुरू-शिष्य में हो सदा, श्रद्धा-प्यार अपार।
गुरू पूर्णिमा पर्व को, करो आज साकार।
गुरु की महिमा का करूँ, कैसे आज बखान
जग में मिलता है नहींबिना गुरू के ज्ञान...
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नमन गुरुवर ! 

ज्योति-कलश पर ज्योति-कलश 
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मन की वीणा 

मन की वीणा विकल हो रही है 
तुम्हारे दरस की ललक हो रही है 
जाएँ तो जाएँ कहाँ गुरुवर 
ज्ञान का दीप जलाएं कहाँ... 
एक प्रयास पर vandana gupta 
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झुलस रहा है देश 

मेरे देश के नेताओं की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता, अहिंसा के नाम पर किसी भी हद तक जाकर आतंक और आतंकवाद का समर्थन कर स्वयं को उदारवादी या अहिंसक कहना, मार्क्सवाद की कुछ घटिया और बक़वास किताबें पढ़ कर ईश्वर को झूठ और देश को कुरुक्षेत्र समझने की परम्परा ने देश को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है। धर्मनिरपेक्षता तो मेरे समझ में आज तक नहीं आयी... 
वंदे मातरम् पर abhishek shukla 
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अनजाना फासीवाद 

लोकतंत्र का मतलब इतना ही नहीं कि किसी भी संस्‍था के हर फैसले को किसी भी कीमत पर उचित ही मान लिया जाए। वैधानिक ढांचे के कायदे से चलती संस्थाओं की कार्यशैली और निर्णय भी। उन पर स्‍वतंत्र राय न रख पाने की स्थितियां पैदा कर देना तो नागरिक दायरे को तंग कर देना है। स्‍वतंत्र राय तो जरूरी नागरिक कर्तव्‍य है, जो वास्‍तविक लोकतंत्र के फलक को विस्‍तार देती है। सहमति और असहमति की आवाज को समान जगह और समान अFkksZa में परिभाषित करने से ही लोकतंत्र का वास्‍तविक चेहरा आकार ले सकता है। ऐसे लोगों का सम्‍मान किया जाना चाहिए जो बिना धैर्य खोये भी असहमति के स्‍वर को सुनने का शऊर रखते हैं... 
लिखो यहां वहां पर विजय गौड़ 
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मेरी भारतीय रुह 

मेरी भारतीय रुह भी आहत होती है ऊधम सिंह की रुह की तरह जब देखती हैं मानव संहार कहीं भी भारत से दूर मदन लाल ढींगरा या ऊधम सिंह की फांसी की खबर सुनकर वो भी बहुत रोई थी अपने वतन में अपनों के साथ। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी से भारत मां के साथ मेरी रुह भी आहत है आज तक आज तक मेरी रुह फांसी को केवल निर्मम हत्या मानती थी क्योंकि ये सब निर्दोष थे फांसी केवल निर्दोषों को मिला करती थी। पर आज जब अफजल, कसाब या मेमन को फांसी दी गयी मेरी आत्मा आहत नहीं हुई... 
मन का मंथन  पर  kuldeep thakur 
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वो अदम्य साहस का देवता 

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याद बन के वो जब उठता है 
कितनी बारिश ये सावन ले गुज़री 
प्यास दिल का मगर न बुझता है... 
Lekhika 'Pari M Shlok' 
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माँ की महिमा 

माँ कितनी महान होती है 
उसके चरणों में जन्नत होती है 
माँ की महिमा का क्या करुँ शब्दों में 
वो तो सारे बरम्हांड की माँ होती है, 
देवता भी जिन्हे पूजते नहीं थकते 
ऐसी माँ हम सबकी पहचान होती है... 
aashaye पर garima 
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नागपंचमी आई। साठे के जिन्दादिल नौजवानों ने रंग-बिरंगे जांघिये बनवाये। अखाड़े में ढोल की मर्दाना सदायें गूँजने लगीं। आसपास के पहलवान इकट्ठे हुए और अखाड़े पर तम्बोलियों ने अपनी दुकानें सजायीं क्योंकि आज कुश्ती और दोस्ताना मुकाबले का दिन है। औरतों ने गोबर से अपने आँगन लीपे और गाती-बजाती कटोरों में दूध-चावल लिए नाग पूजने चलीं। साठे और पाठे दो लगे हुए मौजे थे। दोनों गंगा के किनारे। खेती में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती थी इसीलिए आपस में फौजदारियाँ खूब होती थीं। आदिकाल से उनके बीच होड़ चली आती थी। साठेवालों को यह घमण्ड था कि उन्होंने पाठेवालों को कभी सिर न उठाने दिया... 

जो मेरा मन कहे पर Yashwant Yash 
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पर उपदेश कुशल बहुतेरे 

जीवन में बहुत से जन 
ऐसे भी मिल जायेगे 
भूले से गर कुछ पूछो उनसे 
प्रवचन देंगे वह अनेक 
भीतर से कायर बुज़दिल 
देंगे भाषण वीरता का 
कंजूस मक्खीचूस भी बन जाता 
बातों में दानवीर कर्ण... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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