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मंगलवार, अगस्त 25, 2015

"देखता हूँ ज़िंदगी को" (चर्चा अंक-2078)

 मित्रों।
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए कुछ अद्यतन लिंक।




चुनाव 

...उसके तरीके उसके से निराले
अजब ढंग हैं प्यार जताने के
अब हैं तो हैं
जो है जैसा है वो
चुनाव तो मेरा है... 
ज़िन्दगीनामा पर Nidhi Tandon 

तुम झूठलोक के झूठ से 

कभी ऊबते क्यों नहीं ?  

जय श्री गुरुदेव, गुरूजी मेरा एक प्रश्न है कि चलते फिरते भजन कैसे करें ? क्योंकि चलते फिरते भजन करने पर ध्यान तो भटकेगा । और जब तक मन एक स्थान पर नहीं है । तो वो ध्यान कैसे हुआ ... 
RAJEEV KULSHRESTHA 






कहानी होकर रह गई 

baithii udaas के लिए चित्र परिणाम
बैठी उदास
गुमसुम गुमसुम
बहाती नीर
नयनों से छमछम 
संयम न रख पाती
खुद पर 
वेदना अंतस की 
किसे बताए 
कोई प्यार नहीं करता 
उसे स्वीकार नहीं करता ... 
Akanksha पर Asha Saxena 

मैं श्रृंगार करुँगी..... 

फिर आज... 
मैं श्रृंगार करुँगी... 
जब तक... 
तुम से जी भर कर, तारीफे नही सुन लुंगी... 
तब तक ना... 
तुमसे प्यार करुँगी... 
फिर आज... 
मैं श्रृंगार करुँगी... 
'आहुति' पर Sushma Verma 

दुआएं 

रचना रवीन्द्र पर रचना दीक्षित 

आप जैसा मुझे सोचता कौन है 

अब सिवा आपके आश्ना कौन है 
आप जैसा मुझे सोचता कौन है 
साथ देने को राज़ी हज़ारों हैं पर 
मैं न जानू के वा’दावफ़ा कौन है... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 



पर किसी की काल  का 

इंतजार नहीं है... 

अब जब भी चाहो 
कहीं भी कर लेते हैं बातें जी भरके 
मोबाइल पर एक दूसरे के साथ... 
पर बार बार बातें करने में भी 
नहीं मिलता वो आनंद 
जो मिलता था बार बार 
एक ही चिठ्ठी पढ़ने में... 
मन का मंथन  पर kuldeep thakur 


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