मित्रों।
भाई बहन के निश्छल प्यार के प्रतीक
रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
आज के चर्चा के अंक-2083 में
आपका स्वागत है।
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गीत"भाई के ही कन्धों पर, होता रक्षा का भार"
हरियाला सावन ले आया, नेह भरा उपहार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।
यही कामना करती मन में, गूँजे घर में शहनाई,
खुद चलकर बहना के द्वारे, आये उसका भाई,
कच्चे धागों में उमड़ा है भाई-बहन का प्यार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।
तिलक लगाती और खिलाती, उसको स्वयं मिठाई,
आज किसी के भइया की, ना सूनी रहे कलाई,
भाई के ही कन्धों पर, होता रक्षा का भार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।
पौध धान के जैसी बिटिया, बढ़ी कहीं पर-कहीं पली,
बाबुल के अँगने को तजकर, अन्जाने के संग चली,
रस्म-रिवाज़ों ने खोला है, नूतन घर का द्वार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।
रखती दोनों घर की लज्जा, सदा निभाती नाता,
राखी-भइयादूज, बहन-बेटी की याद दिलाता,
भइया मुझको भूल न जाना, विनती बारम्बार।
कितना पावन, कितना निश्छल राखी का त्यौहार।।
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भाई से सन्देश ये कहना
अम्बर के चंदा जरा सुनना
भाई से सन्देश ये कहना
जब से गये हैं हमसे बिछड़कर
एक नजर ना देखी पलभर
उन सा कोई और कही ना....
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राखी का दिन----।![]()
राखी का दिन जब आयेगा
बहुत सबेरे उठ जाऊंगी
छोटे भैया को भी जगा के
अपने संग मैं नहलाऊंगी।
राखी का दिन...
Fulbagiya पर डा0 हेमंत कुमार
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...बहनें अब जाग रही हैं...
सदियों से अटूट समझा जाता था भाई-भहन का पावन रिश्ता शायद इस लिये क्योंकि विवाह के बाद बहन का सब कुछ भाई का ही हो जाता था... जब से बहन भी मांगने लगी अधिकार अपना अपने घर से तब से राखी का महत्व भी घटने लगा ये बंधन भी अटूट नहीं रहा ...बहनें अब जाग रही हैं... ये पहाड़ जो खड़े हैं आज गर्व से छाती ताने इन से पूछो इन्हे ये मजबूति किसने दी है सब देखते हैं इनको उन्हें कोई नहीं देखता वो तो कहीं दबे पड़े हैं..
मन का मंथ पर kuldeep thakur
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लघुव्यंग्य –
विधायक जी के भाई लोग वे विधायक प्रतिनिधि बन गए , बड़े जलवे खीच रहे हैं | उनके ठाठ देखते बनते हैं | धमकाते रहते हैं अधिकारियों और कर्मचारियों को... sochtaa hoon......! |
मेरा कोई भाई नहीं ...
नहीं जानती
कैसे उठती है उमंग
इस रिश्ते के लिए
नहीं जानती कैसे
इस रिश्ते की
ऊष्मा से लबरेज
बाँध लेते हैं सारा प्यार
मोली के एक तार से...
vandana gupta
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सारे मेरे तन के छाले हैं साहिब
जो भी दिखते काले काले हैं साहिब
सारे मेरे तन के छाले हैं साहिब
किसको है मालूम कि हम इन हाथों से
चावल भूसी साथ उबाले हैं साहिब...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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संथारा -- कायरतापूर्ण आत्महत्या है---ड़ा श्याम गुप्त
बात अन्न जल त्यागने की संथारा की है तो आत्मा के रूप में शरीर में ब्रह्म के उपस्थिति मानी जाती है , शरीर को स्वयं पिंड अर्थात ब्रह्माण्ड का ही रूप माना जाता है | कोई भी ज्ञानी से ज्ञानी नहीं जानता कि मृत्यु कब निश्चित है , अतः अन्न जल छोड़कर तिल तिल कर शरीर को मारना एवं आत्मा को कष्ट देना एवं शरीर को जान बूझकर अक्षम बनाते जाना , अकर्मण्यता, कायरता, कर्म से दूर भागने का चिन्ह है , वीरों का कृत्य नहीं...
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जाते जाते - -![]()
कुछ लम्हात यूँ ही और नज़दीक रहते,
कुछ और ज़रा जीने की चाहत बढ़ा जाते।
ताउम्र जिस से न मिले पल भर की राहत,
काश, कोई लाइलाज मर्ज़ लगा जाते...
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राखी का त्यौहार....ड़ा श्याम गुप्त.....
भाई औ बहन का प्यार दुनिया में बेमिसाल,
यही प्यार बैरी को भी राखी भिजवाता है |
दूर देश बसे , परदेश या विदेश में हों ,
एक एक धागे में बसा असीम प्रेम बंधन,
राखी का त्यौहार रक्षाबंधन बताता है |
निश्छल अमिट बंधन, श्याम'धरा-चाँद जैसा ,
चाँद इसीलिये चन्दामामा कहलाता है ...
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बन्धन होकर भी जो] स्वतंत्रता का] अहसास करा दे] बहना की] एक मुस्कुराहट पर] भाई] अपना सर्वस्व लुटा दे] वही राखी कहलाती है।
durga prasad Mathur
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