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शुक्रवार, अगस्त 14, 2015

"आज भी हमें याद है वो" (चर्चा अंक-2067)

नमस्कार मित्रों! 
आज की चर्चा में आपका हार्दिक अभिनन्दन है। 
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ। 
चर्चा का आरम्भ भूपेन्द्र जायसवाल जी की कविता से करते हैं। 
स्वतंत्रता दिवस जब आता है
हम सब में जोश भर जाता है
लाखों ने दी थी अपनी कुर्बानी
कइयो ने न्योछावर कि अपनी जवानी

वीरो ने लड़ी थी ये लड़ाई
सदियों बाद हमें जीत मिल पाई
कोई नहीं कर पायेगा उनकी भरपाई
जिन्होंने आजादी कि लड़ाई में जान गवाई

आज भी हमें याद है वो
आजादी के लिए लड़े थे जो
पर देश कि सरकार रही है सो
आजादी का सही मतलब रहा है खो

आमजनो कि आजादी रही है छीन
बर्ताव हो रहा इनके साथ औरो से भिन्न
आओ मिलकर एक ऐसा देश बनाए
सब रहे खुशी से ऐसा परिवेश बनाए
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डरा रही नर-नार को, बन्दूकों की छाँव।
नहीं सुरक्षित अब रहे, सीमाओं पर गाँव।।
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देख दुर्दशा गाँव की, मन में बहुत मलाल।
विद्यालय जाँये भला, कैसे अपने बाल।।
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आजादी के जश्न को, मना रहा है देश।
लेकिन मेरे गाँव का, बिगड़ रहा परिवेश।।
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पावन धरती देश की 
कल्पना रामानी जी 
पावन धरती देश की, कल तक थी बेपीर।
कदम कदम थीं रोटियाँ, पग पग पर था नीर।
पग पग पर था नीर, क्षीर पूरित थीं नदियाँ
हरे भरे थे खेत, रही हैं साक्षी सदियाँ।
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नवेदिता दिनकर

तिरंगे को देख 
जज़्बाती होना,
 गर्व से माथे का उठना 
एकदम स्वाभाविक …
सुशील कुमार जोशी 
बहुत सुकून सा 
महसूस हो रहा है 
वो सब देख कर जो 
सामने से हो रहा है
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श्यामल सुमन 
घर मेरा है नाम किसी का
और निकलता काम किसी का

मेरी मिहनत और पसीना
होता है आराम किसी का

कोई आकर जहर उगलता
शहर हुआ बदनाम किसी का
उदय वीर सिंह 
प्रज्ञा - परचम अंबर लहराये
आधार स्तम्भ सृजन कर लो
जीवन -मृत्यु अनुवंध खुले हैं
वांछित क्या है चयन कर लो
खुशदीप सहगल 
संसद में जो कुछ आज हुआ, पहले कांग्रेस के सवाल और फिर सुषमा स्वराज के जवाब, उसे सुनकर फिल्म दीवार और उसमें लिखे सलीम-जावेद के डॉयलॉग बहुत याद आए...
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वीरेन्द्र कुमार शर्मा 
संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से ही जारी कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के हंगामे के बीच मंगलवार को कागज़ फाड़ कर उछाले गए और अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इसे
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चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’

हमारे जी में कोई ख़्वाब पलना भी ज़ुरूरी था
दिले नादान को उस पर मचलना भी ज़ुरूरी था

किसी की शोख़ियों ने क्या ग़ज़ब का क़ह्र बरपाया
ज़रर होने से पहले ही सँभलना भी ज़ुरूरी था
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कविता वर्मा 
मुंबई इंदौर से होते हुए देश के अनेक शहरों में फैले गणपति उत्सव को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस उद्देश्य से शुरू किया था कि धार्मिक माहौल में इस तरीके से ...
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भारत में तीर्थस्‍थलाें का अपना सुदीर्घ सिलसिला है। ये तीर्थ केवल भ्रमण के लिए ही नहीं, आत्मिक शांति प्रदान करते हैं और आध्‍यात्मिक निष्‍ठा को चिरायु करते हैं। यह तीर्थों का देश है। ग्राम-ग्राम ही नहीं, पर्वत-पर्वत और नदी-नदी भी तीर्थों का सुंदर समागम है।
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पूर्णिमा दूबे 
बड़े से आँगन के बीचोंबीच एक चौड़े चबूतरे पर बनी एक पिंडी जिसके ऊपर लगा है तुलसी का वह घना पौधा। सौ-डेढ़ सौ साल पुराना तो जरूर होगा यह चबूतरा। चार पीढ़ी पहले बनवाया गया था। तब ईंट और मिट्टी का बना था वह। उस आँगन की चौथी पीढ़ी आज सिर्फ इतना ही जानती है इस पिंडी के विषय में।
रेखा श्रीवास्तव 
लिखते लिखते कितनी यादें छूट जाती हैं लेकिन उनका तारतम्य तो कहीं न कहीं बिठाना पड़ता है। जब मेरी छोटी बेटी हुई तो लगा लोगों पर पहाड़ टूट पड़ा। मेरे घर में तो नहीं हुआ ऐसा। वह ६ महीने की ही थी कि मुझे आई आई टी में जॉब मिल गयी।
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वीणा सेठी 

भारतीय चिंतन वास्तव में इंसान की चेतना से जुड़ा है. किया लोग चेतना को मन से जोड़करदेखते है जबकि मन आवारा बदल की तरह केवल डोलना जानता और वह किसी भी तरह के बंधन का हामी नहीं होता,है जबकि चेतना स्वतः नियंत्रित होती है. जब हम मन को साधना सीख जाते हैं तो हमारी चेतना जागृत होती है और फिर  …। 
वन्दना गुप्ता 
अक्सर फिल्म हो ,कविता या कहानी 
सबमें दी जाती है एक चीज कॉमन 
जो संवेदनहीनता और मार्मिकता का बनती है बायस 
और हिट हो जाती है कृति
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"जय हिन्द "  

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