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Sunday, January 10, 2016

"विवेकानन्द का चिंतन" (चर्चा अंक-2217)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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जैसे हिलती सी परछाई 

यूं ही कभी पर राजीव कुमार झा  
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शिक्षक से 

माँ हमारी प्रथम गुरू 
उनके बाद आप ही हो 
जिसने वादा निभाया 
हमें इस मुकाम तक पहुचाया 
आज हम जो भी हैं 
आपके कारण बने हैं ... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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जाम में ज़हर... 

हौसले पर मेरे नज़र रखिए 
तो बहुत दूर तक ख़बर रखिए 
शौक़ परवाज़ का किया है तो 
ख़्वाहिशों में हसीन पर रखिए... 
Suresh Swapnil 
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वो औरत नहीं" 

स्त्रियों की अस्मत और अस्मिता से जुड़े सवाल पर मेरा आलेख ... "वो औरत नहीं" घना कोहरा सा दबा हुआ दर्द मासूम मजबूर का , आहिस्ता -आहिस्ता फैलता हुआ समेट लेता है संपूर्ण जीवन के हर कोण को | परिवर्तन और परावर्तन के नियम से कोसों दूर उसका संवेग और सोचने की क्षमता बस लांघना चाहती है उस उठते लपट को जिसने घेर कर बना रखी है शोषक और शोषित के बीच की एक मजबूत सी दीवार और कुछ रेखाएँ | यह कुदरत के नियम का कैसा मखौल है... 
रजनी मल्होत्रा नैय्यर 
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त्याग अगर बांटा जा सकता तो 

ईश्वर भी कितना अजीब है कितने निश्वार्थ भाव से कभी कभी इस पृथ्वी पर कुछ ऐसे मनुष्यों को छोड़ जाता है जिनमें कुछ की जिन्दगी केवल कुछ ही समय के लिए होती है, कुछ को जिन्दगी भर मौत से लड़ते रहना होता है, कुछ को दास बनकर रहना पड़ता है... 
प्रभात 
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तो क्या हुआ ? 

वो साल बुरा था.. तो क्या हुआ ?
वो बस 12 महीने का ही तो था !!!!
वो महीना बुरा था.. तो क्या हुआ ?
वो बस चार हफ़्तों का ही तो था !!!!... 
Dipanshu Ranjan  
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जीवेत शरद: शतम् 

एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में प्रतिदिन २०,००० लोग साठ वर्ष की उम्र पार करते जा रहे हैं. औसत आयु बढ़ने से वृद्ध जनों की संख्या में लगातार इजाफा होना स्वाभाविक है. ग्रामीण या शहरी क्षेत्रों में रहने वाले वृद्ध जनों के बारे में लोगों की सोच अलग अलग तरह की होती है. गांवों में जहां भी सभ्य लोग रहते हैं, बुजुर्गों के प्रति सम्मान दर्शाते हैं, लेकिन अधिकाँश निम्न-मध्यवर्गीय परिवारों में बुड्ढों को बूढ़ा बैल सा समझ कर रखा/पाला जाता है... 
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय 
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तुम भी इस घर में आते हो....!!! 

जब भी रात में दरवाज़े के हिलने की, 
आहट सी रहती है... 
यूँ ही लगता है कि.... 
जैसे हवा के झोंके के साथ... 
तुम भी इस घर में आते हो..... 
'आहुति' पर Sushma Verma 
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गीत "सूरज ने मुँहकी खाई"

कुहरे और सूरज दोनों में,जमकर हुई लड़ाई।
जीत गया कुहरासूरज ने मुँहकी खाई।।

ज्यों ही सूरज अपनी कुछ किरणें चमकाता,
लेकिन कुहरा इन किरणों को ढकता जाता,
बासन्ती मौसम में सर्दी ने ली अँगड़ाई... 
उच्चारण 
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पर्यावरण की रक्षा पर 

दिल्ली ने दम दिखलाया है... 

प्रेमरस पर Shah Nawaz 
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कुछ ख़ास गवाँ बैठे 

कुछ ख़ास गवाँ बैठे गोया है सफ़र ज़ारी
अल्लाह करे हम हों मंज़िल की पनाहों में
सोचो तो ज़रा के अब क्यूँ सह्‌म से जाते हैं
आते ही नज़ारे सब इंसान के राहों में... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 

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