मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गीत
"सवाल पर सवाल हैं"
सवाल पर सवाल हैं, कुछ नहीं जवाब है।
राख में ढकी हुई, हमारे दिल की आग है।।
गीत भी डरे हुए, ताल-लय उदास हैं.
पात भी झरे हुए, शेष चन्द श्वास हैं,
दो नयन में पल रहा, नग़मग़ी सा ख्वाब है।
राख में ढकी हुई, हमारे दिल की आग है...
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एक ग़ज़ल :
वो जो राह-ए-हक़ चला है.....
वो जो राह-ए-हक़ चला है
उम्र भर साँस ले ले कर मरा है
उम्र भर जुर्म इतना है ख़रा
सच बोलता कठघरे में जो खड़ा है...
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२०१.
शुरुआत
बहुत उजाला है यहाँ,
दिए यहाँ बेबस लगते हैं,
पता ही नहीं चलता कि वे जल रहे हैं.
यहाँ दियों का क्या काम,
चलो, समेटो यहाँ से दिए...
कविताएँ पर Onkar
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'' उजड़ी राह चल रहा '' नामक नवगीत ,
स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह -
'' एक अक्षर और '' से लिया गया है -
गुनहगार है चाँद , कि
जिसने स्वप्न मुझे दे डाले
उससे ज्यादा गुनहगार मैं ,
लगा न पाया ताले...
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ध्येय और प्रेम
आज फिर क्यों याद आयी,
नाव फिर से डगमगाई ।
ध्येय में क्या आज,
अपने भी पराये हो चुके हैं,
ध्येय ही जीवन है,
क्या और अब कुछ भी नहीं है ।
ध्येय की वीरानियों में,
एक स्वर देता सुनाई ।
आज फिर क्यों याद आयी ।।१।।...
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ज़िंदा मुर्दों के देश में
वो रात जैसे ख़त्म ही न हो रही थी
एक नौजवान की मौत हुई थी
और जैसे सदियों के दर्द से कराहती आत्मायें
नींद से जाग गयीं थीं और की
दर्द की पराकाष्ठा पर कराह रहीं थी...
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वो किसी से टूटकर जब प्यार करके आ गये
आज फिर वो इश्क़ का इज़हार करके आ गये
ज़िन्दगी इस क़द्र भी दुश्वार करके आ गये..
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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पानी – राकेश रोहित
लघुकथा पानी
"पानी पी लूँ?" उसने विनम्रता से पूछा। "पानी के लिए पूछते हैं! पीने के लिए ही तो रखा है। जरूर पीजिए!" कहते हुए वे थोड़ा गर्व से भर गये। "यही तो हमारी सभ्यता- संस्कृति है। पानी हम सबको पिलाते हैं...
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जो आसरा कुछ दिया था
हो गयी है बाग़ वो खाली जहाँ कभी हरियाली थी
पेड़ों पर झूला और उन पर नन्हों की खुशहाली थी
फसल कटी नहीं जब तलक नियमित रखवाली थी
कटने के बाद लोकगीत और खेतों में दीवाली थी...
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प्रभात
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