आज के चर्चा मंच पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है।
"आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें"
"आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें"
कविता रावत
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हमारे भारतवर्ष में मकर संक्रांति, पोंगल, माघी उत्तरायण आदि नामों से भी जाना जाता है। वस्तुतः यह त्यौहार सूर्यदेव की आराधना का ही एक भाग है। यूनान व रोम जैसी अन्य प्राचीन सभ्यताओं में भी सूर्य और उसकी रश्मियों को भगवान अपोलो और उनके रथ के स्वरूप की परिकल्पना की गई है।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आया है उल्लास का, उत्तरायणी पर्व।
झूम रहे आनन्द में, सुर-मानव-गन्धर्व।१।
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जल में डुबकी लगाकर, पावन करो शरीर।
नदियों में बहता यहाँ, पावन निर्मल नीर।२।
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कुलदीप ठाकुर
मकर संक्रांति वर्ष में,
दिवस है सब से पावन,
जीवन और वातावरण में
होता है दिव्य परिवर्तन।
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गगन शर्मा
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बाप-बेटे में कितनी भी अनबन क्यों ना हो रिश्ते तो रिश्ते ही रहते हैं। अपने फर्ज को निभाने और दुनियां को यह समझाने के लिए मकर सक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश कर उनका भंडार भरते हैं।
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अनीता शर्मा
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पारम्परिक रूप से मकर संक्राति सम्पन्नता को समर्पित त्योहार है। कहते हैं त्योहार कभी अपना या पराया नही होता, इसी का जिवंत उदाहरण है, संक्राति पर्व जो फसल की कटाई के उत्सव का पर्व है
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फ़िरदौस खान
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लोहड़ी उत्तर भारत विशेषकर हरियाणा और पंजाब का एक प्रसिद्ध त्योहार है. लोहड़ी के की शाम को लोग सामोहिक रूप से आग जलाकर उसकी पूजा करते हैं.
लोहड़ी का गीत
सुंदर मुंदरीए होए
तेरा कौन बचारा होए
दुल्ला भट्टी वाला होए
तेरा कौन बचारा होए
दुल्ला भट्टी वाला हो
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राजेन्द्र कुमार
मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत में किसी न किसी रूप में अवश्य मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है।
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कंचन सिंह चौहान
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दुबली पतली सी वह, बड़ी सी आँखों वाले साँवले चेहरे और थोड़े से भरे होंठ के साथ,हाथ में चाय की ट्रे लिये सिमटी सकुचाई खड़ी थी। शायद हाथ काँप रहे थे उसके।
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प्रवीण चोपड़ा
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बड़े शहरों में जब मैंने पहली बार देखा कि वहां पर मेन रास्तों पर लगी ऊंची ऊंची स्ट्रीट लाइटों की साफ़ सफ़ाई या मुरम्मत के लिए एक ट्रक के ऊपर बड़ी सी सीड़ी लगाई जाती है, मुझे हैरानगी हुई थी...
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राजीव कुमार झा
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कवियों और साहित्यकारों में उपनाम रखने की एक लंबी परंपरा रही है.लेकिन ख़त्म होती परंपराओं के साथ इसका भी नाम जुड़ गया है.कभी हम इन कवियों और साहित्कारों को उपनाम से ही जानते थे.आम बोलचाल में भी उपनाम का ही प्रयोग होता था.
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रश्मि प्रभा
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सूई है
धागा भी
बस हाथ थरथराने लगे हैं
नज़र कुछ कमज़ोर हो गई है
जीवन को सी लेना
इतना भी आसान नहीं
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जयकृष्ण राय तुषार
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यह प्रयाग है
यहाँ धर्म की ध्वजा निकलती है |
यमुना आकर यहीं
बहन गंगा से मिलती है |
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संजीव वर्मा
कोशिश रंग ला पाती इसके पहले ही तूफ़ान ने कदमों को रोक दिया, धूल ने आँखों के लिये खुली रहना नामुमकिन कर दिया, पत्थरों ने पैरों से टकराकर उन्हें लहुलुहान कर दिया, वाह करनेवाला जमाना आह भरकर मौन हो रहा।
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प्रतिभा
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अपने असली दांत गवांने के बाद होने वाली असुविधा को वही समझ सकता है जिसने यह कष्ट भोगा हो। कृत्रिम दांत लगवाने के तरीको से वह सहजता नहीं आ पाती थी। लेकिन इम्प्लांट के आने के बाद कृत्रिम दांत लगवाना और इनसे भोजन करना बहुत सुविधाजनक हो गया है।
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अर्पणा खरे
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgPB_FuAqdilBTnxJcvtlUH0cQXwshCqsvqcnhar61A0zfCW0tQTQnC_xDsyCUPHQkZs95FQLhvxtby7mOHpdcVHj3dttmyXlqBw-csef8w0wtYU_OKdDtyGeMilMnGYZr3Pzz3qYe4Tf0/s320/FB_IMG_1446573834109.jpg)
बुढ़ाते पिता
युवा होती बेटी
घटता पुरुषाथ
बढ़ता यौवन
अब सब कुछई
पहले सा नहीं रहा
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यशोदा अग्रवाल
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0ICBGaUTdtOwpUxAZD6vbrQbzabV9_qUWpdk7dL1zM7I5DI91FmxHllVDei-kXOoJgDYR2T9G9tKHN98yiYdakbmHcfXfwe8nsHgK19VrCTdvlDG-J3Se1YyzMQAieQgTg7m21qL7-3A/s320/%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25AE%25E0%25A4%25B2+%25E0%25A4%2597%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%25A7%25E0%25A5%2580.jpg)
समझ नहीं पाता है इंसान।
कभी - कभी.....
जिंदगी दिखाती है रास्ते बहुत॥
खड़ी करती है सवाल बहुत।
किस राह जाऊँ किस राह नही जाऊँ॥
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साधना वैद
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7PnRgW4GMh5Tn6ZX_kzjSXoPoxaL45wkdIAo4aEhw28A6ZuJLbM6IPzDYHojevRgCxRkUPfLKt9XPGEJ3mrxr5F_6b8J0c4RwMEZqkI2GCE6fF4q3Mf2QCxuk5P8JIati49qBudHItaH7/s320/flowers.jpg)
जीवन जीने के लिये दो इतना अधिकार
चुन कर दुःख तुम पर करूँ सुख अपने सब वार !
हर पग पर मिलती रहे तुम्हें जीत पर जीत
फ़िक्र नहीं मुझको मिले कदम कदम पर हार !
बिखराने को पंथ में चुन कर लाई फूल
सँजो लिये अपने हृदय काँटों के गलहार !
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शशि पुरवार
![मेरा फोटो](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNHwBi6XvTLjBq0UK2vei5baGQTX3wbKFb4ObztxiqDvfaB7Tn80OK9qAyDnRhUx8x1KTc0YcaS7H9rH4uWepCor6w6Wx5KpzoAH3cmnwBp6O9L8_BH9CXmnw2PJOexq0al1DqMPLhYQMi/s320/IMG-20151124-WA0006-1.jpg)
जयकृष्ण राय तुषार के नवगीत संग्रह "सदी को सुन रहा हूँ मैं" की सहज अभिव्यक्ति और सरल शैली विशेष रसानुभूति का आभास कराती है। पाठकों से संवाद स्थापित करते
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धन्यवाद, आपका दिन मंगलमय हो।
धन्यवाद, आपका दिन मंगलमय हो।
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