रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
मुखौटे राम के पहने हुए रावण जमाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
दया के द्वार पर, बैठे हुए हैं लोभ के पहरे,
मिटी सम्वेदना सारी, मनुज के स्रोत है बहरे,
सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
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udaya veer singh
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Alpana Verma अल्पना वर्मा
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अनुपमा पाठक
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Priti Surana
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Satish Saxena
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Kajal Kumar
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ये लक्ष्यहीन जीना कैसा
जिसमें न हो कोई सपना
विवशतायें मेरी सीख नहीं
तुम धीर मेरे इतना सुनना...
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शहरों की ओर जाते रहे...
घर नहीं, मकान बनाते रहे
रंगीन नकाशियों से, चमकाते रहे,
मकान तो बन गया राजमहल सा
सब शहरों की ओर जाते रहे...
मन का मंथन पर kuldeep thakur
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