रविकर
"कुछ कहना है"
मना मना जन गण मना, लोकपर्व गणतंत्र। किन्तु मना षडयंत्र, सदा रहिये चौकन्ना। हारेगा आतंक, बचेगा कहीं नाम ना। बहुत बहुत शुभकामना, किन्तु मना षडयंत्र। बने राष्ट्र सिरमौर, यही तो दिली तमन्ना। आए सुख- समृद्धि, शान्ति से ध्वजा थामना।। --
सुनो, समझो, कुछ कह रहा है।
हम भूल रहे हैं संविधान को
देते हैं गाली राष्ट्र गान को...
--
गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई |
Kunwar Kusumesh
|
lokendra singh
|
udaya veer singh
|
'' एक देशद्रोही का आत्म - कथ्य '' नामक नवगीत ,स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह -'' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है -
शीश नहीं , हम तो बस सिर्फ़ हैं कबन्ध।
अपना तो परिचय है - जाफ़र - जयचन्द।
खड़े हुए काई पर पाँव धरे ,
बड़े हुए मगर बँटे औ ' बिखरे ;
नाटक के पात्रों - सा रखकर सम्बन्ध...
|
दशकों से गणतन्त्र पर्व पर, राग यही दुहराया है।
होगा भ्रष्टाचार दूर, बस मन में यही समाया है।।
सिसक रहा जनतन्त्र हमारा, चलन घूस का जिन्दा है,
देख दशा आजादी की, बलिदानी भी शर्मिन्दा हैं,
रामराज के सपने देखे, रक्षराज ही पाया है।
होगा भ्रष्टाचार दूर, बस मन में यही समाया है।१।
|
Tarun Thakur
|
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
|
shyam gupta
|
Asha Saxena
|
रविकर
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।