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शुक्रवार, जनवरी 29, 2016

"धूप अब खिलने लगी है" (चर्चा अंक-2236)

 आज की चर्चा में आपका हार्दिक अभिनन्दन है। 
हम देखते हैं हमारे चारों ओर ऐसे कई लोग हैं, जो सफलता के लिए कठोर श्रम करते हैं पर सफलता कुछ गिने-चुने लोगों को ही मिलती है। हम इसे तकदीर का खेल कहते हैं। पर यदि विश्लेषणात्मक नजरिए से हम देखें तो पाएंगे कि सफल एवं असफल व्यक्तियों में एक मूलभूत अंतर है। यद्यपि कठोर श्रम दोनों करते हैं, पर सफल व्यक्तियों के पास एक स्पष्ट दृष्टिकोण होता है। वे अंधेरे में तीर नहीं चलाते। उन्हें प्रस्तुत समस्या की समझ होती है और उसके निदान की एक तर्कपरक, व्यावहारिक योजना होती है।
आनन्द पाठक 
उन्हें हाल अपना सुनाते भी क्या
 भला सुन के वो मान जाते भी क्या
 अँधेरे उन्हें रास आने लगे
 चिराग़-ए-ख़ुदी वो जलाते भी क्या 
अभी ख़ुद परस्ती में है मुब्तिला
 उसे हक़ शनासी बताते भी क्या
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कायदे से धूप अब खिलने लगी है।
लेखनी को ऊर्जा मिलने लगी है।।

दे रहा मधुमास दस्तक, शीत भी जाने लगा,
भ्रमर उपवन में मधुर संगीत भी गाने लगा,
चटककर कलियाँ सभी खिलने लगी हैं।
लेखनी को ऊर्जा मिलने लगी है।।
शशि पुरवार 
एक छोटा सा समाचार साझा करना चाहतें है , जो अनुभव वहां हुआ उसे जल्दी ही एक रूप देंगे , यह समाचार प्रकाशित हुआ है वही यहाँ साझा कर रहें है
शशि पुरवार भारत में से १०० महिला अचीवर्स में से एक है , शशि पुरवार का चयन लिटरेचर कैटेगरी अंतर्गत हुआ था केंद्रीय महिला और बाल कल्याण विभाग, भारत सरकार द्वारा यह पुरस्कार भारत देश की १०० महिलाओं को 20 कैटेगरी में विशेष योगदान हेतु दिया गया है।
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  साधना वैद     
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वह एक किताब थी , 
किताब में एक पन्ना था , 
पन्ने में हृदय को छू लेने वाले 
भीगे भीगे से, बहुत कोमल, 
बहुत अंतरंग, बहुत खूबसूरत से अहसास थे ।
नीतीश तिवारी 
आज कुछ ख़याल नहीं आ रहे हैं ,
चलो तुम्हे लिख देता हूँ। 
तुम्हारी हँसी लिख देता हूँ ,
तुम्हारी ख़ुशी लिख देता हूँ।
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अजित वडनेरकर
‘ख़ातून’ भी हिन्दी क्षेत्र का जाना-पहचाना लफ़्ज़ है। इसमें भी बेग़म या खानुम की तरह कुलीन,प्रभावशाली स्त्री, साम्राज्ञी, भद्र महिला का भाव है जैसे मध्यकाल की ख्यात कश्मीरी कवयित्री हब्बा ख़ातून। बेग से बेगम और खान से ख़ानुम की तरह ख़ातून का रिश्ता 'क्षत्रप' से है।
अनामी शरण 
सोलह दिसम्बर की घटना और उसमें एक किशोर की भूमिका ने भारत के बाल न्याय कानून पर गंभीर प्रश्न खड़े किये हैं। अगर बच्चे अपराध करते हैं और अगर ये अपराध गंभीर हैं तो उन्हें वयस्क अपराधियों की तरह ही दंडित किया जाए।
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विकेश कुमार वडोला 
अनारक्षित आदमी
आज लोकतंत्र में गुम है
उसे तंत्र की तरफ से
इतनी भी
सुविधा नहीं
कि वह अपना दुख प्रकट करे
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आराधना राय 
My Photo
मौन रहूँ या सब तुमसे कह दूँ
प्रीत की अनबुझी पहेलियाँ
अपने ह्दय पर हाथ रखूं
कैसे धुप मारी किलकारियाँ
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अतुल कुमार अक्स 
"ज्यों शमा करती है इंतज़ार किसी परवाने का,
तू भी आकर देख ले हाल अपने दीवाने का,
दीवानावार भटकता रहता है वो दर बदर,
होश कहाँ रहा उसे अब इस ज़माने का"
रविकर जी
 चाटुकारिता से चतुर, करें स्वयं को सिद्ध |
इसी पुरानी रीति से, माँस नोचते गिद्ध ||

अपने पे इतरा रहे, तीन ढाक के पात |
तुल जाए तुलसी अगर, दिखला दे औकात ||
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सुरेन्द्र शुक्ल 
SURENDRA SHUKLA BHRAMAR5
मृग नयनी
दो नैन तिहारे
प्यारे प्यारे
प्यार लुटाते
भरे कुलांचे
इस दिल उस दिल
घूम रहे हैं
मोहित करते
वीरेन्द्र कुमार शर्मा 
भारत के दलित सावधान रहें रक्तरंगी लेफ्टीयों (फासिस्ट्स-वादी मार्क्स-वादी )और जेहादी मानसिकता के उन लोगों से जिन्होनें एक हिंदू दलित चेहरे को आगे करके अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकी और लगातार सेंक रहे हैं। गरमाए हुए हैं रोहिथ वेमुला की आत्मग्लानि जन्य आत्म हत्या को।
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वो जगह
राजीव उपाध्याय
ढूँढ रहा हूँ जाने कब से
धुँध में प्रकाश में
कि सिरा कोई थाम लूँ
जो लेकर मुझे उस ओर चले
जाकर जिधर
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