मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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स्टेशन
मैं चुपचाप जा रहा था ट्रेन से,
न जाने तुम कहाँ से चढ़ी मेरे ही डिब्बे में
और आकर बैठ गई मेरे ही बराबरवाली सीट पर.
धीरे-धीरे बातें शुरू हुईं
और बातों ही बातों में हमने तय कर लिया कि
हम एक ही स्टेशन पर उतरेंगें...
कविताएँ पर Onkar
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कौन जाने ?!
समय हमें आहत करता है कि
समय ही हमसे हमारे क्रिया-क्लापों से
आहत है कौन जाने ?!
किन कंदराओं में छिपी है वो
जो कहीं ज़रा सी राहत है
अनुशील पर अनुपमा पाठक
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लोहे का घर-32
लघुशंका जाने से पहले पत्नी को जगा कर गये हैं वृद्ध। पत्नी की नींद टूटी। पहले बैग की तरफ निगाह थी, अब करवट बदल ऊपर के बर्थ की ओर मुंह कर सीधे लेटी हैं। नींद में दिखती हैं पर नींद में नहीं हैं। चौकन्नी हैं। सोच रही होंगी.. "सामने बैठा अधेड़ बड़ा स्मार्ट बन मोबाइल चला रहा है, दिखने में तो शरीफ दिखता है मगर क्या ठिकाना...
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शुभ प्रभात
ReplyDeleteआभार
सादर
विविधताओं से परिपूर्ण आकर्षक प्रस्तुति के मध्य मेरी रचना को भी शामिल करने हेतु सादर धन्यवाद। संयोजक और तमामललेखकों कवियों को नमन व बधाई। सुप्रभात।
ReplyDeleteशुभ दिवस!
ReplyDeleteआभार!
सुन्दर चर्चा. आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व सार्थक चर्चा, मेरी दो पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद
ReplyDeleteसुन्दर रविवारीय चर्चा में 'उलूक' के सूत्र को भी स्थान देने के लिये आभार आदरणीय।
ReplyDeleteक्रांतिस्वर की पोस्ट को इस अंक में स्थान देने हेतु धन्यवाया।
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ,...
ReplyDeleteBahut khoob
ReplyDeleteI am a Ayurvedic Doctor.
Cancer Treatment, Kidney Care and Treatment, HIV AIDS,