मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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सारा सब कुछ अभी ही लिख देगा क्या
माना लिख भी लेगा
तो आगे फिर लिखने के लिये
कुछ भी नहीं बचेगा क्या ?
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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हाँ मैं कह न सका
तुमसे मुझे प्यार है
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दो पल की जिंदगी......
अवधेश प्रसाद
दो पल की जिंदगी मुझे कोई उधार दे दे
पतझड़ सी जिंदगी मे थोडी बहार दे दे...
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal
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प्रेम का पुनः अंकुरण
कुछ देर
मेरे पास भी बैठ लो
धूप में
पहले जैसे
जब खनकती चूड़ियों में
समाया रहता था इंद्रधनुष
मौन हो जाती थी पायल
और तुम
अपनी हथेली में
मेरी हथेली को रख
बोने लगती थी
प्रेम के बीज...
उम्मीद तो हरी है .........पर Jyoti Khare
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कागज की टीस
...जैसे ही कलम ने स्पर्श कागज का पाया
फिर से ठ्हरों का स्वर कानों से टकराया
मै हूँ तुम्हारे लेटर पैड का पीला पड गया पन्ना
कर ही दी तुमने आज पूरी मेरी अधूरी तमन्ना...
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धूप एक नन्हीं सी
चावल हैं चुने हुए
दाल भी भुने हुए
लहसुन की कलियाँ
छीलकर मँगवाई
कटे हुए कटहल में
मसालों के चूरन से
कूकर में झटपट
सब्जी बनाई
देती है बार बार
थकन की दुहाई...
दाल भी भुने हुए
लहसुन की कलियाँ
छीलकर मँगवाई
कटे हुए कटहल में
मसालों के चूरन से
कूकर में झटपट
सब्जी बनाई
देती है बार बार
थकन की दुहाई...
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और बचा लो इज़्ज़त -
बेटी तो फालतू है ना
भले ही अपराधी 302 आई.पी.सी.में हत्या का दोषी हो सजा भुगते पर ऐसे में अपनी बच्ची की तो झूठी इज़्ज़त के नाम पर आप बलि चढ़ा रहे हैं जबकि अगर समय से अपराध पर कार्यवाही कर अपराधी को एक या तीन साल की सजा करा दी जाये तो अपराधी पर से एकतरफा प्रेम का भूत भी उतर सकता है और अगर नहीं उतरता तो कम से कम ये पछतावा तो नहीं रहता कि हमने अपनी बच्ची को खुद मौत के मुंह में धकेल दिया .अब ये आप पर है कि आप अपने स्नेह-प्यार के नाम पर अपनी बेटी को बचाएंगे या झूठी इज़्ज़त के नाम पर अपराधी को -सोचिये और निर्णय कीजिये .
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
[कानूनी ज्ञान ]
कानूनी ज्ञान पर Shalini Kaushik
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गुमनाम हसरतें
गुमनाम हसरतों को यूँ आवाज़ ना दो ऐ जिंदगी
कुछ सब्र करो फ़कीरी कहीं तमाशा ना बन जाए
चादर मैली समझ किस्मत ठुकरा ना जाए
गुजारिश इसलिए बस इतनी सी हैं
उन गुमनाम हसरतों को यूँ आवाज़ ना दो ऐ जिंदगी...
RAAGDEVRAN पर MANOJ KAYAL
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पुराने अखबार में रात ....
डॉ. इन्दिरा गुप्ता
खबर ओढ़ कर सो गई नई खबर
चुपचाप कल रात फुटपाथ पर पैदा हुई नई खबर
शीत काल ! सिकुड़ कर अखबार के
एक कॉलम को भर गई
पुराने अखबार में
रात एक ज़िंदगी लिपट गई...
विविधा.....पर yashoda Agrawal
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दोहे
"रखो रेडियो पास में"
(राधा तिवारी)
टीवी पर ही देखते, दुनिया के सन्देश।।
लाये फिर से रेडियो, मेरे भाई साब।
मिलता हमको है नहीं, इसका कोई जवाब।।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
क्रांतिस्वर की यह पोस्ट इस लिंक में देने हेतु आभार एवं धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। 'उलूक' के सूत्र को आज की चर्चा शीर्षक पर स्थान देने के लिये आभार आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक चर्चा... आभार
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा
जवाब देंहटाएंकमाल का संयोजन अग्रज
सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
आभार
जवाब देंहटाएं