मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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बसंत आया (ताँका).....
डॉ. सरस्वती माथुर

1. बसंत राग धरा गगन छाया
सुमन खिलाने को ऋतुराज भी
कोकिल सा कूकता
मधुबन में आया...
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ख़ुशी
आज यूँ ही याद आई,वो दोपहर गर्मी की,स्कूल से थक कर,पसीने-पसीने घर लौटना,पँखे की हलकी-हलकी हवा में,ढंडा -ढंडा पानी पीना,आह, क्या ख़ुशी मिलती थी...
आज यूँ ही याद आई,वो दोपहर गर्मी की,स्कूल से थक कर,पसीने-पसीने घर लौटना,पँखे की हलकी-हलकी हवा में,ढंडा -ढंडा पानी पीना,आह, क्या ख़ुशी मिलती थी...
anjana dayal
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आज विज्ञान
उस मुकाम तक पहुंच गया है
जहां भ्रूर्ण को एम्ब्र्यो रूप
अनंत काल तक
बनाये रखा जा सकता है
Virendra Kumar Sharma
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अरे भाई साहब
यह वाक् मात्र ध्वनि तरंगों का
एक ख़ास समुच्चय ही नहीं रहा है
सौ फीसद फलीभूत भी हुआ है।
पूरब का दर्शन (Oriental Science )
शब्द को ही प्रमाण मानता है।
शब्द जिसे सुना गया है
इसीलिए श्रुति भी इसे कहा गया है।
आगमनिगम वेद पुराण भी।
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आज मैं माँ हूँ....
निधि सिंघल
अक्सर माँ डिब्बे में
भरती रहती थी कंभी मठरियां ,
मैदे के नमकीन तले हुए काजू ..
और कंभी मूंगफली तो
कभी कंभी बेसन के लड्डू...
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देह के जाने के बाद
देह के पञ्च तत्वों में
विलीन हो जाने पर भी
खोजती है उसे ,
उस घर का आँगन
उस घर की दीवारें
उस घर का छोटा सा आसमान,
सुनना चाहती है
उसके कदमों की आहट भी...
नयी उड़ान + पर Upasna Siag
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ग़ज़ल - वादे तमाम कर के उजाले गुजर गए
यूँ तीरगी के साथ ज़माने गुज़र गए ।
वादे तमाम करके उजाले मुकर गए ।।
शायद अलग था हुस्न किसी कोहिनूर का ।
जन्नत की चाहतों में हजारों नफ़र गए...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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सुबह दूर है बहुत कि अभी तो रात है
गहन अँधेरे में
तारों भरा आसमान
देख रहे थे
उन्हें गिन-गिन
विस्मित हुए जाते थे
आसमान की समृद्धि पर...
अनुशील पर अनुपमा पाठक
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शुभ प्रभात..
ReplyDeleteआभार....
सादर....
सुन्दर शनिवारीय चर्चा ।
ReplyDeleteउम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद शास्त्री जी।
ReplyDeleteआभार!
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन संयोजन
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन चर्चा
ReplyDeleteसुन्दर चर्चा
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