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बुधवार, दिसंबर 20, 2017

"शीत की बयार है" (चर्चा अंक-2823)

मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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बचपन की यादें 

बचपन की यादे कितनी अच्छी होती है 
आज उन यादो को ताजा करना अच्छा लगता है 
कहा खो गया वो बचपन वो हसीन दिन 
जब न होती थी कोई फ़िक्र 
खेल में जिंदगी के दिन बीतते थे... 
aashaye पर garima  
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गया कैसे...??..... 

'तरुणा' 

मुझको वो छोड़कर गया कैसे...  
वो तो था हमसफ़र गया कैसे... 
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal  
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7 टिप्‍पणियां:

  1. शीत की बयार चर्चा अंक बहुत खूबसूरत बंद पड़ा है। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। मेरी रचना "अश्क का रुपहला धुआं" को चर्चामंच में स्थान मिलने पर हार्दिक प्रसन्नता हुई। आभार सादर।

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  4. क्रांतिस्वर की पोस्ट को इस अंक में शामिल करने के लिए धन्यवाद।

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