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सोमवार, दिसंबर 18, 2017

"राम तुम बन जाओगे" (चर्चा अंक-2821)

मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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उसी ओर बढ़ रहे हैं 

आँख होते हुये भी दृष्टिगोचर नहीं होता  
कान होते हुये भी श्रवणगोचर नहीं होता।  
यद्यपि वह इतना सूक्ष्म नहीं कि 
खुली आँखों से भी गोचर नहीं होता... 
अभिनव रचना पर Mamta Tripathi  
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सहांश 

Purushottam kumar Sinha  
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एक दिन की जिन्दगी 

जिंदगी चार दिन की नहीं 
फकत एक दिन की होती है। 
हर दिन नई सुबह नया दिन नई शाम 
और.. अंधेरी रात होती है... 
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 
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9 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा चर्चा..
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात।
    चर्चामंच पर विविध रचनाओं का समागम मिलता है। पाठक जीभर के रसानंद से सराबोर होते हैं। आदरणीय शास्त्री जी का अथक प्रयास सराहनीय ,अनुकरणीय और प्रसंशनीय है. सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।

    जवाब देंहटाएं
  3. आज की सदाबहार प्रस्तुति में 'उलूक' के पन्ने का भी जिक्र करने के लिये आभार आदरणीय । सुन्दर चर्चा।

    जवाब देंहटाएं
  4. बांगलादेश की आज़ादी पर क्रांतिस्वर की पोस्ट को इस अंक में स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर सार्थक चर्चा ! मेरी रचना को आज की चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर चर्चा, पठनीय लिंक्स...आभार मेरी रचना शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं

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