मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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इनकी शहादत तक भूल गये
13 पौष तदानुसार 26 दिसंबर 1705 को जब देश में मुगलों का शासन था और सरहिंद में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह के दो मासूम बेटों सात वर्ष के जोरावर सिंघ तथा पाँच वर्ष के फतेह सिंघ को दीवार में जिंदा चुनवाया गया था.... कहते हैं कि साहिबज़ादों को कचहरी में लाकर डराया धमकाया गया। उनसे कहा गया कि यदि वे इस्लाम अपना लें तो उनका कसूर माफ किया जा सकता है...
kuldeep thakur
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धन्ना सेठों के अधीन लोककलायें
यूँ तो लोककलायें हमारी संस्कृति की ध्वजवाहक है। किन्तु आधुनिकता से निरन्तर संघर्ष कर क्षरित होने को मजबूर है। सदियों पहले "नगर सेठों" का प्रभाव हुआ करता था। नगर वधुएँ भी हुआ करती थी। तब लोककलायें अमूमन नगर सेठो के अधीन हुआ करती थी...
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ई -रिक्शा चालकों के लिए खुशखबरी
आज इलेक्ट्रॉनिक दुनिया है ,सब कुछ ''ई '' होता जा रहा है ,मतलब ई -गवर्नेंस ,ई -कार्ट ,ई -रिक्शा इत्यादि ,ऐसे ही आज आपको जहाँ भी जाना हो अपने स्कूटी ,स्कूटर ,मोटर साइकिल आदि की कोई आवश्यकता नहीं , हर जगह ई -रिक्शा उपलब्ध है और अच्छी बात यह है कि इसे खींचने का काम आदमी नहीं करता बैटरी करती है .पहले इसके लिए कानून में कोई प्रावधान नहीं था और इस कारण पुलिस भी इन्हें सड़कों पर चलने से रोक रही थी किन्तु मोटर यान [संशोधन] अधिनियम ,2015 [ 2015 का 3 ]द्वारा ई -रिक्शा के लिए भी एक्ट में प्रावधान किया गया है किन्तु भारत में अभी भी इस संशोधन की जानकारी कम है इसलिए आये दिन पुलिस द्वारा ई -रिक्शा चालकों को परेशान किया जाता है और इसे चलाने से रोका जाता है जबकि अब इस संशोधन द्वारा ये कानून के दायरे में हैं और रजिस्ट्रेशन कराकर व् मानकों का पालन करते हुए सड़कों पर प्रयुक्त किये जा सकते हैं ...
कानूनी ज्ञान पर Shalini Kaushik
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रस की चाह प्रबल, घट रीते,
शक्ति बिना उत्सव सब फीके।
सबने चाहा, एक व्यवस्था, सुदृढ़ अवस्था, संस्थापित हो,
सबने चाहा, स्वार्थ मुक्त जन, संवेदित मन, अनुनादित हो,
सबने चाहा, जी लें जी भर, हृदय पूर्ण भर, अह्लादित हों,
सबने चाहा, सर्व सुरक्षा, शुभतर इच्छा, आच्छादित हो...
Praveen Pandey
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लिखने वाले को लिखने की बीमारी है
ये सब उसके अपने करम हैं ।
वैधानिक चेतावनी:
(कृपया समझने की कोशिश ना करें)
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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राह...
राह अनगिन हैं जग में
राह का ले लो संज्ञान
कहीं राह सीधी सरल
कहीं वक्र बन जाती
कहीं पर्वत कहीं खाई
कभी नदिया में समाती
सभी पार कर लोगे बंधु
त्याग चलो अभिमान...
राह का ले लो संज्ञान
कहीं राह सीधी सरल
कहीं वक्र बन जाती
कहीं पर्वत कहीं खाई
कभी नदिया में समाती
सभी पार कर लोगे बंधु
त्याग चलो अभिमान...
मधुर गुंजन पर ऋता शेखर 'मधु'
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जिनके लिए दृग बह निकला है
वक्त ने मुझपर किया भला है
दर्द पर मरहम लगा चला है
नये जोश नई उर्जा लेकर
विवश-विकल दिल फिर संभला है ....
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बचा कर के टांगें निकलना पड़ेगा ...
ये किरदार अपना बदलना पड़ेगा
जो जैसा है वैसा ही बनना पढ़ेगा
ये जद्दोजहद ज़िन्दगी की कठिन है
यहाँ अपने लोगों को डसना पड़ेगा...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुंदर चर्चा सूत्र ..
जवाब देंहटाएंआभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए ...
सुन्दर मंगलवारीय चर्चा अंक। आभार आदरणीय 'उलूक' के करम को आज के सूत्रों के बीच जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंमनमोहक चर्चा सूत्र
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर....
आभार आप का.....
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार, सर जी।
जवाब देंहटाएंबे -मिसाल सशक्त लेखन -जीवन की कड़वी सच्चाइयों से रु -ब -रु लेखन।
जवाब देंहटाएंटिट फॉर टैट जैसे को तैसा होना पड़ेगा ,
जो जैसा है उसे वैसा ही कहना पड़ेगा।
नहीं बिलकुल माकूल नहीं ये ज़नाब -
घटिया को भी बढ़िया बहुत बढ़िया कहिये ,
आस्तीन में सहस्र विषधर रखिये। एक प्रतिक्रिया :
http://swapnmere.blogspot.com/ पर।
बचा कर के टांगें निकलना पड़ेगा ...
नया वर्ष आने वाला है ... सभी मित्रों को २०१८ की बहुत बहुत शुभकामनाएं ... २०१७ की अच्छी यादों के साथ २०१८ का स्वागत है ...
ये किरदार अपना बदलना पड़ेगा
जो जैसा है वैसा ही बनना पड़ेगा
ये जद्दोजहद ज़िन्दगी की कठिन है
यहाँ अपने लोगों को डसना पड़ेगा
बहुत भीड़ है रास्तों पर शिखर के
किसी को गिरा कर के चलना पड़ेगा
कभी बाप कहना पड़ेगा गधे को
कभी पीठ पर उसकी चढ़ना पड़ेगा
अलहदा जो दिखना है इस झुण्ड में तो
नया रोज़ कुछ तुमको करना पड़ेगा
यहाँ खींच लेते हैं अपने ही अकसर
बचा कर के टांगें निकलना पड़ेगा
रोटी का अस्तित्व है, जीवन में अनमोल।
जवाब देंहटाएंदुनिया में सबसे अहम, रोटी का भूगोल।।
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जीवन जीने के लिए, रोटी है आधार।
अगर न होती रोटियाँ, मिट जाता संसार।।
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हो रोटी जब पेट में, भाते तब उपदेश।
रोजी-रोटी के लिए, जाते लोग विदेश।।
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फूली रोटी देखकर, मन होता अनुरक्त।
हँसी-खुशी से काट लो, जैसा भी हो वक्त।।
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फूली-फूली रोटियाँ, मन को करें विभोर।
इनको खाने देश में, आये रोटीखोर।।
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नगर-गाँव में बढ़ रहे, अब तो खूब दलाल।
रोटीखोरों ने किया, वतन आज कंगाल।।
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कुनबे और पड़ोस में, अच्छे रखो रसूख।
तब रोटी अच्छी लगे, जब लगती है भूख।।
भूखे भजन न होय गोपाला ,
टंटा सारा रोटी का समझ गए हैं चोर
लेकर सत्ता हाथ में कितने भावविभोर। रोटी का विज्ञान सबको रोटी की उपलब्धता पुख्ता हो- सबके लिए ज़रूरी है भारत में रोज़ी रोटी।बेहद सटीक सामयिक रूचि का लेखन कर रहें हैं शास्त्री जी। चर्चामंच और इसको समर्पित लोग ,नव वर्ष पर सुखी रहें ये ब्लॉगिंग को समर्पित लोग।
veeruji05.blogspot.com
एक शक्ति पसरी शासन की,
जवाब देंहटाएंएक शक्ति संचित जनमन की,
एक क्षरित, दूजी उच्श्रंखल,
डटी नहीं यदि, दोनों निष्फल,
निष्कंटकता पनप न पाये,
साझा प्रायोजन बन जाये,
साम्य प्रयुक्ता सृजन सभी के,
शक्ति बिना उत्सव सब फीके।
शक्तिदत्त अधिकार अभीप्सित,
जन प्रबद्ध आकार प्रतीक्षित,
जीवन धारा सतत प्रवाहित,
एक व्यवस्था, सर्व समाहित,
बन ऊर्जा जन-तन-मन भरती,
सूर्य सभी का, सबकी धरती,
रस वांछित पायें सब हिय के,
शक्ति बिना उत्सव सब फीके।
'प्रायोजन' और 'प्रबद्ध' शब्द का अभिनव प्रयोग किया गया है इस परिवेश प्रधान कविता में।
जनबद्ध रहा न शासक कोई ,
प्रतिबद्धता बिला गई है।
शासन की सबकी सब कुंजी ,
किसी एक में समा गई हैं। पांडे जी प्रवीण बहुत दिनों के बाद टिपण्णी कर पाना मुमकिन हुआ किन्हीं तकनीकी कारणों से निलंबित था। समस्त चर्चा मंच परिवार को मेरा नमन।
एक शक्ति पसरी शासन की,
जवाब देंहटाएंएक शक्ति संचित जनमन की,
एक क्षरित, दूजी उच्श्रंखल,
डटी नहीं यदि, दोनों निष्फल,
निष्कंटकता पनप न पाये,
साझा प्रायोजन बन जाये,
साम्य प्रयुक्ता सृजन सभी के,
शक्ति बिना उत्सव सब फीके।
शक्तिदत्त अधिकार अभीप्सित,
जन प्रबद्ध आकार प्रतीक्षित,
जीवन धारा सतत प्रवाहित,
एक व्यवस्था, सर्व समाहित,
बन ऊर्जा जन-तन-मन भरती,
सूर्य सभी का, सबकी धरती,
रस वांछित पायें सब हिय के,
शक्ति बिना उत्सव सब फीके।
'प्रायोजन' और 'प्रबद्ध' शब्द का अभिनव प्रयोग किया गया है इस परिवेश प्रधान कविता में।
जनबद्ध रहा न शासक कोई ,
प्रतिबद्धता बिला गई है।
शासन की सबकी सब कुंजी ,
किसी एक में समा गई हैं। पांडे जी प्रवीण बहुत दिनों के बाद टिपण्णी कर पाना मुमकिन हुआ किन्हीं तकनीकी कारणों से निलंबित था। समस्त चर्चा मंच परिवार को मेरा नमन।
मुर्गे सब के सब रक्षित हैं,कटती हैं केवल माताएं
जवाब देंहटाएंveeruvageesh.blogspot.com
बहुत अच्छी प्रस्तुति....जगह देने के लिए बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएं