चर्चा-मंच 808
व्यंगकार का हो नहीं, सकता तब उद्धार ।
खंजर घोपे पीठ जब, छोड़ शब्द की मार ।
छोड़ शब्द की मार, मारता हरदम जाए ।
पड़े तनिक चिचियाय, पोस्ट भी तुरत लगाए ।
पर रविकर कंजूस, रखो अभ्यास मार का ।
यूँ जाओ ना रूस, मामला व्योपार का ।।
---रविकर
'व्यंग्य का शून्यकाल' का लोकार्पण करते हुए डॉ. शेरजंग गर्ग साथ में हैं कथाकार संजीव, डॉ. राजेन्द्र अग्रवाल, अविनाश वाचस्पति एवं कवि मदन कश्यप नईदिल्ली। मैंने पढ़ा है कि शब्दों के साथ किस तरह खेलते ह... |
परीक्षा की विधियाँ
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बेसुरम् - दोहे शिशिर जाय सिहराय के, आये कन्त बसन्त । अंग-अंग घूमे विकल, सेवक स्वामी सन्त । मादक अमराई मुकुल, बढ़ी आम की चोप । अंग-अंग हों तरबतर, गोप गोपियाँ ओप ।। 4-B My Unveil Emotionsगीत क्या लिक्खें कोईगीत क्या लिक्खें कोई गीत क्या लिक्खें कोई जब मुट्ठी में जकड़े काल के भूख का दानव भयंकर रूप धरता जा रहा है सामने फैलाये मुख सुरसा सी महगाई खड़ी है क्रोध में तपते रवि की तपन जैसा दौर है मेघ में गर्जन , चपलता शेष चपला में नहीं गीत क्या लिक्खें कोई जब... घर गए मालिक के लेने स्वयं लुट कर आ गए सुदामा के चावलों को संतरी ही खा गए नेह के बदले नयन से टपकता है लहू जब सिसकते बचपन के सर पर कर नहीं ममता का कोई गीत क्या लिक्खें कोई |
*रामराम सा ! * *होळी घणी दूर कोनीं । सगळां रौ मूड मौज-मस्ती रौ होवणो शुरू हो'ग्यो है । तो आजएक हास्य ग़ज़ल आप सब री निजर है सा* *इशक म्हारौ इ **right **है* *चिगावै **whole day ** **तूंअर रुवावै **whole nig... |
| 6 आत्मकथा....सत्यकथा नहीं.... | my expressions.....याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शन..इन्हें मेरी डायरी के कुछ पन्ने समझ लें..बिखरे से | तुमसे मिली...जुदा हुई...भीड़ में भी मैं तनहा हुई...अब तुम्हारा ज़िक्र करूंगी अपनी कहानियों में.. बेनक़ाब कर दूँगी तुमको ज़माने में... -अनु |
(पुरुषोत्तम पाण्डेय) खीमसिंह के घर कमांडर की तरफ से तार आया कि वह लापता है. लापता का मतलब होता था कि शायद ही ज़िंदा होगा. खीमसिंह अपने लगभग २०० साथियों के साथ एक कैम्प में ज़िंदा बचा रहा. कैदियों के साथ कैसा सलूक किया गया? कितना सताया गया? वह तो अकल्पनीय है क्योंकि तब वहाँ रेडक्रास या मानवाधिकार जैसी कोई निगरानी संस्था नहीं थी. जब बाद में मित्र देशों की सेना की तरफ से जापान के बड़े शहर हिरोशिमा तथा नागासाकी पर परमाणु बम डाल कर तबाह कर दिये गए, तब जापान ने हथियार डाल दिये. बचे हुए बंदी सैनिक बाद में छुड़ा लिए गए. जब खीमसिंह टक्करें खाते हुए गाँव लौटा तो माँ-बाप भाई-बहिन तो खुशी के मारे फूले नहीं समाये लेकिन खीमसिंह को ये सुनकर दारुण आघात लगा कि उसको मरा समझ कर उसकी पत्नी बगल के अनरसा गाँव में नौली बन कर चली गयी थी. |
हर बच्चा अपने आप में खास होता है, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जो किन्हीं वजहों से शारीरिक तौर पर कुछ कमतर रह जाते हैं। उनकी मदद के लिए आज हमारे पास तमाम तकनीकें मौजूद हैं। इनके जरिए उनकी जिंदगी आसान और बेह... |
परिस्थितिवश अनुपयोगी साबित हो रही तस्वीरें उसी तरह हैं जैसे कुछ कम कुछ ज्यादा बची, कुछ ताजी, कुछ बासी सब्जियां, जिनके बारे में तय नहीं हो पाता कि क्या बनाया जाय तो अक्सर इसका आसान हल निकलता है, मिक्स वेज। यह किसी की रुचि और जायके का हो न हो, नापसंद शायद ही कोई करता है। इसी भरोसे तस्वीरों वाली, मसाला फिल्मों की तरह भक्त और भगवान, भ्रष्टाचार-घोटाला, परी, दिल, शिक्षा, पैसा, ज्योतिष, इलाज, राजनीति और गांधी तक शामिल यह पंचमेल तस्वीरों वाली पोस्ट। |
स्त्री सृष्टि की अद्वितीय कृति है। वह सौंदर्य का पर्याय है। मेरा सदैव मत रहता है- दुनिया में कोई भी स्त्री असुंदर नहीं। अंतर मात्र इतना है कि कोई कम सुंदर है और कोई अधिक सुंदर। भारतीय संस्कृति में स्त्री के चित्र सदैव सुरूप दिखाए गए। उसे नग्न करने की जब-जब कोशिश हुई, समाज ने तीव्र विरोध जताया। |
नीलकमल वैष्णव *कोई रूठे यहाँ तो कौन मनाने आता है * *रूठने वाला खुद ही मान जाता है, * *ऐ अनिश दुनियां भूल जाये कोई गम नहीं * *जब कोई अपना भूल जाये तो रोना आता है...* *जब महफ़िल में भी तन्हाई पास हो * *रौशनी में भी अँधेरे... |
होली पर दोहे गहरे रंगों में रंगी ,भीगा सारा रंग | एक रंग ऐसा लगा ,छोड़ ना पाई संग || विजया सर चढ़ बोली ,तन मन हुआ अनंग | चाग संग थिरके कदम ,उठाने लगी तरंग || कह डाली बात मन की, ओ मेरे ढोलना | तेरे प्यार ... |
13शास्त्री जी की पोस्ट है, पाठक बेहद ख़ास ।क्रम-संख्या सुनिए जरा, बारह सौ पच्चास ।बारह सौ पच्चास, गुरु है बारहबानी ।बारहमासी रास, नहीं है कोई सानी ।लगा चुके हैं आप, आज पच्चीस पचासा ।इन्तजार है पाक, करें हम सौ की आशा ।।--रविकर"दोहे-होली का त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मनोज -
भाया ओज मनोज का, उल्लू कहती रोज ।
सम्मुख माने क्यूँ भला, देती रहती डोज ।
देती रहती डोज, खोज कर मौके लाती ।
करूँ कर्म मैं सोझ, मगर हरदम नखराती ।
मनोजात अज्ञान, मने मनुजा की माया ।
चौबिस घंटे ध्यान, मगर न मुंह को भाया ।।
हँसी ख़ुशी से कर रही, वर्षों से मनुहार ।
मुखड़े पर मुस्कान की, है कबसे दरकार ।
है कबसे दरकार, उदासी तन्हाई है ।
सदा जोहता बाट, संदेशा पहुंचाई है ।
सुन रे ऐ नादान, ख़ुशी जमकर इतराती ।
जहाँ रहे मुस्कान, वहाँ मैं पहले आती ।।
जोखू ने जोखा सही, यही है भैया रीत ।
पीढ़ी दर पीढ़ी बनत, भरत-जनों की मीत ।भरत-जनों की मीत, ढीठ *दिग्गीश्वर जैसा ।*इंद्र
माँ को एकै रोग, ठिकाने जमता पैसा ।
द्रव्य सदी से सोख, चले देने फिर धोखा।
जमा बाप का माल, सही जोखू ने जोखा ।।
कंधे कुल्हाड़ी रखे, चला कृषक अनजान ।
सूरज की छाया मिले, चन्दा पथ की शान ।
चन्दा पथ की शान, हरे पत्ते फल लाली ।
यह नीला आकाश, काम के बने सवाली ।
हल की पकड़ी मूठ, चला गहरे वो गहरे ।
गन की गोली झूठ, लगा चाहे सौ पहरे ।।
बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई
बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई
नहीं कालिया-डाह था, गया जगह था छोड़ ।
रीढ़-विहीनों में लगी, रही तभी से होड़ ।
रही तभी से होड़, छुपा कर रक्खा फन को ।
मिलें आज हर मोड़, करें त्रस्त सज्जन गन को ।
तीन फनी यह सर्प, भूल से आया सम्मुख ।
भगा देखकर दर्प, दुर्जनों के लाखों मुख ।।
आगरा मे चौपाल के दौरान समय मिला तो मैं और संदीप पहुंच गए ताजमहल...
और अंत में --
आधा सच..
चालिसवाँ मन भर गया, मन भर मने चुनाव ।
नगर-नगर भटका किये, घूम हजारों गाँव ।
घूम हजारों गाँव, खबर राहुल की बढ़िया ।
एस पी खेली दाँव, पकेगी सत्ता-हड़िया ।
भाजप फूंके छाछ, गाछ से बसपा नीचे ।
राज न जाना राज, अजित हैं आँखे मीचे ।।
आगरा मे चौपाल के दौरान समय मिला तो मैं और संदीप पहुंच गए ताजमहल...
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार!
होलीकोत्सव की शुभकामनाएँ।
होली पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंअच्छी रही चर्चा |आभार मेरी लिंक शामिल करने के लिए |
आशा
बहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंचर्चामंच में स्थान पाकर अभिभूत हूँ...
आपका बहुत आभार.
कई नये और उत्कृष्ट ब्लॉगों से परिचय हुआ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंलिंक्स भी हर रंग के...
शुक्रिया...
सुन्दर चर्चा , रचनात्मक प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा..धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
बहुत बढ़िया प्रस्तुति अच्छे शूतर
जवाब देंहटाएंभूले सब सब शिकवे गिले,भूले सभी मलाल
होली पर हम सब मिले खेले खूब गुलाल,
खेले खूब गुलाल, रंग की हो बरसातें
नफरत को बिसराय, प्यार की दे सौगाते,
NEW POST...फिर से आई होली...
बढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...चर्चा
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा..
जवाब देंहटाएंमुझे भी स्थान देनेके लिए बहुत बहुत आभार
आपकी प्रस्तुति एक खुशबूदार गुलदस्ते की तरह संवारा गया है, हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंहोरी के दिग्गी बाण लिए आई है चर्चा तेरा क्या होगा अब मंद मति ,अख्लिलेश की हंडिया पकी ...
जवाब देंहटाएंबुरा न मानो होरी है ,रंगों की बार जोरी है ,
बहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सार्थक चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक संयोजन्।
जवाब देंहटाएंहोली पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंअच्छी रही चर्चा
बहुत सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंकुछ घंटे पहले ही लौटा हूं प्रवास से। आपके प्रयास के बाद कुछ और तलाशने की ज़रूरत नहीं।
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