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Wednesday, March 28, 2012

छंद दिखे छल-छंद जब, संध्या जनित प्रभाव। दृष्ट जलन्धर की गई, तुलसी प्रति दुर्भाव || चर्चा-मंच 832


  (1)
ब्रह्मांड कागज़ का गुब्बारा है
ऊर्जा और द्रव्य अक्षर हैं
हम सब शब्द हैं

कागज़ का गुब्बारा फूल रहा है
स्वर से अलग व्यंजन का अस्तित्व नहीं होता
समय बदल रहा है शब्दों के अर्थ
पैदा हो रहे हैं नए महाकाव्य और उपन्यास

कुछ भी नष्ट नहीं होता
शब्द अक्षरों में टूटकर करते हैं नई नई यात्राएँ

 मोटा दाहिज मिल गया, कुलक्षणा जो पूर्व ।
घर-भर की प्यारी बनी, दिव्या हुई अपूर्व ।।

गन्दाजल होती गजल, गन्दी हो जब सोंच ।


(3)

परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण-2011 (भाग-10)

वर्ष-2011 के 100 ब्लॉग






वर्ष-2011 के तीन ब्लॉग चर्चा से संवंधित ब्लॉग


ब्‍लॉग का नामवैश्विक रैंकभारतीय रैंकप्रतिदिन पृष्‍ठप्रतिदिन विजिट
चर्चा मंच  1,892,053 अप्राप्त 900744
ब्लॉग4वार्ता    4,700,083अप्राप्त 600310
चिट्ठा चर्चा  10,108,562  अप्राप्त 470350

सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी
  अशोक कुमार शुक्ला  हिंदी साहित्य पहेली - पर

हजारों क़दमों के चलने से
बनी पगडंडी 
नहीं पहुंचाती 
किसी नयी मंज़िल पर.


  स्वप्न मेरे................
जिस्म काबू में नहीं और मौत भी मिलती नहीं
या खुदाया रहम कर अब जिंदगी कटती नहीं

वक्त कैसा आ गया तन्हाइयां हैं हम सफर
साथ में यादें हैं उनकी दिल से जो मिटती नहीं

  रश्मि प्रभा...   वटवृक्ष -पर

1 -क्रोध उत्पन्न होने का कारण ।
मामूली सा अहं, ईष्या, या भय। (कभी-कभी तो बहुत ही छोटा कारण होता है)

2 -क्रोध आने पर उसका रूप।
अहित करना। (स्वयं का, किसी दूसरे का और कभी निर्जीव चीजो को तोड़-फोड़ कर नुक्सान करता है)

3 -क्रोध के बाद उसके परिणाम
पश्चाताप। ( क्रोध हमेशा पछतावे पर ख़त्म होता है)

4 -क्रोध के परिणाम के बाद उसका निवारण
क्षमा। (जो कि हमेशा समझदार लोगो द्वारा किया जाता है)


पूर्णिया, जाप्र: मैथिली अहांक भाषा थिक। जं अहां अपन भाषा बिसरि जाएब तं संस्कृति बिसरि जाएब। ताहि हेतु नहि बिसरू खराम, हर, पांचा, मटकूर-मटकूरी, उखड़ि-समाठ आ नहि बिसरू अपन माटि। बिहार शताब्दी के वर्ष के मौ...

हम भटके बेचैनीमें तुम ठहरे हातिमताई। हम सहते कितनेलफड़े तुमने खड़ेखड़े बदलेकपड़े ! मेहरबानतुम पर रहती हरदम ही धरती माई। ना जनमलिया ना फूँका तन वैसे कावैसा ही मन कर डाला फिरसुंदर तन कहाँ सेसीखी ...

(10)

"धरती में सोना उपजाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')



धरती का चेहरा निखरा है।
खेतों में सोना बिखरा है।।

(11)

दुश्वारी में सहज, हँसी होंठों पर धरते-

दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक

 ठण्ड कलेजे पै गई, अब न धीर-अधीर ।
दर्शन उनके जो हुवे, करे कैद तश्वीर ।

करे कैद तश्वीर, दूसरा मन न भावे ।
मिली धीर को हीर, चीर हृदय दिखलावे ।
दीवाना दिलदार, शक्ल भायें न दूजे ।
भूल गया संसार, पड़ी जो ठण्ड कलेजे ।।
बड़े पते की बात की , जी मनोज श्रीमान ।
खनक हँसी मुस्कान से, तन मन रहे जवान ।

तन मन रहे जवान, ओढ़ ले ज्ञान लबादा ।
प्रेम नम्रता त्याग, बिठाये जीवन सादा ।

रविकर प्रभु की याद, प्रार्थना नित जो करते ।
दुश्वारी में सहज, हँसी होंठों पर धरते ।।

आधारित हर जश्न क्यूँ |
क्यों अँधेरे का नहीं सम्मान है
भाग्य में उसके बड़ा अपमान है
क्यों सदा ही रोशनी की जय कहें
सर्वदा हम क्यूँ हमारा क्षय सहें
आंकते क्यूँ लोग हैं बदतर हमें
न समझ आया कभी चक्कर हमें 
मिथ्या जगत में है बराबर योग 
पर पक्ष में तेरे खड़े हैं लोग
सब रात-दिन का देखते संयोग--
फिर मानसिकता रुग्न क्यूँ ??
तम सो मा ज्योतिर्गमय पर
आधारित हर जश्न क्यूँ ??

अनुशासित सैनिक रहें, पूरी सच्ची बात ।
द्रोही मंत्री शत्रु का, सहते हैं व्याघात ।

सहते हैं व्याघात, आपका कहना माना ।
नेता जांय सुधर, बदल यह जाय ज़माना ।
यह दलाल गठजोड़, तोड़ना सबसे भारी ।
लागा फेविकोल, रोज बढती दुश्वारी ।।
दद्दा रे दद्दा गजब, अजब खेल भगवान् ।
एक पल्लवाधार  के, दो  पल्लव अनजान ।
दो पल्लव अनजान, पल्लविक भाव पनपते ।
हो जाते कामांध, युवाजन लगे बहकने ।
पानी-पानी होंय, लगे यह कितना भद्दा ।
अंतरजाली जाल,  हाल दद्दा रे दद्दा ।। 


"उल्लूक टाईम्"
लल्लो-चप्पो चाहता, यह अदना इंसान ।
मठ-मंदिर में जा फंसे, इसी हेतु  भगवान् ।
इसी हेतु भगवान्, मिले न उनको फुर्सत।
बन जाते मेहमान, चढ़ाए जो भी रिश्वत ।
 है नजरों का खेल, भेंट करिए नजराना ।
बढे हमेशा मेल, रहेगा आना जाना ।।
  (12)
रोजमर्रा के जीवन में छोटी-मोटी लापरवाहियों के चलते चोट लगना एक आम बात है। लेकिन कई बार ये छोटे-मोटे एक्सीडेंट्स बड़ी परेशानी का का कारण बन सकते हैं। कुछ घाव ऐसे होते हैं जो जल्द भर जाते हैं और कुछ को भरने...

(13)
गर्भ धारण के मौके बढ़ाती है गर्मागर्म चाय .यह कमाल है उस एंटी -ओक्सिडेंट का जो चाय में पसरा रहता है .बोस्टन विश्वविद्यालय के रिसर्चरों के अनुसार जो महिलायें नियमित चाय का सेवन करतीं हैं उनके गर्भधारण करने क..

21 comments:

  1. बहुत सुन्दर और रंग-बिरंगी चर्चा!
    नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  2. स्नेहिल सरस रस भींगी चर्चा सुयोग्य हाथो से सुशोभित व सफल है शुभकामनाएं जी /

    ReplyDelete
  3. लयबद्ध प्रवाहित चर्चा!! आभार

    ReplyDelete
  4. "उल्लूक टाईम्स " के उल्लू की चर्चा करने के लिये
    आभार ।

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  5. चर्चा मंच को बधाई, यही स्तर बनाये रखें।

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  6. उत्तम चर्चा.....अति उत्तम लिंक्स...

    आभार.

    सादर

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  7. वाह !!!!! बहुत सुंदर लिंक्स,..
    मेरी रचना स्थान देने के लिए आभार,....

    MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

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  8. अच्छी लिंक्स लिए वार्ता |
    आशा

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  9. वाह ... सुन्दर चर्चा है ... शुक्रिया मुझे भी शामिल करने का ...

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  10. बहुत उपयोगी। आभार स्वीकार कीजिए।

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  11. सुन्दर लिंक्स..बहुत रोचक चर्चा...आभार

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  12. बहुत सुंदर लिंक्स .

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  13. बेहतरीन लिंक्स, मुझे शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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  14. सुन्दर चर्चा... शानदार लिंक्स...
    सादर आभार.

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  15. बहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सार्थक चर्चा प्रस्तुति के लिए आभार!

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  16. कुछ दिनों से अपनी उपस्थिति नहीं दे पा रही हूँ ,कंप्यूटर खराब हो गया है ..
    चर्चा मंच के सभी लिनक्स बहुत अच्छे हैं ..
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  17. इस काव्यमयी चर्चा से मन हुआ प्रसन्न!

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  19. ... शानदार लिंक्स...

    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है

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