लो क सं घ र्ष !
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ऐसा भारतीय शासक जिसने अकेले दम पर अंग्रेजो को नाको -चने -चबाने पर मजबूर कर दिया था |इकलौता ऐसा शासक जिसका खौफ अंग्रेजो में साफ़ -साफ़ दिखता था |एकमात्र ऐसा शासक जिसके साथ अंग्रेज हर हाल में बिना शर्त समझौता करने को तैयार थे |एक ऐसा शासक ,जिसे अपनों ने ही बार -बार धोखा दिया ,फिर भी जंग के मैदान में कभी हिम्मत नही हारी |इतना महान था वो भारतीय शासक ,फिर भी इतिहास के पन्नो में वो कही खोया हुआ है |उसके बारे में आज भी बहुत लोगो को जानकारी नही हैं |
उसका नाम आज भी लोगो के लिए अनजान है |उस महान शासक का नाम है यशवंतराव होलकर |यह उस महान वीरयोद्धा का नाम है ,जिसकी तुलना विख्यात इतिहास शास्त्री एन0 एस 0 ने 'नेपोलियन 'से की है पश्चिमी मध्य प्रदेश की मालवा रियासत के महाराजा यशवंतराव होलकर का भारत की आजादी के लिए किया गया योगदान महाराणा प्रताप और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई से कही कम नही है |यशवंतराव का जन्म 1776 ई0 में हुआ |इनके पिता थे -तुकोजीराव होलकर |,
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‘‘दोहे-खिलते हुए पलाश’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)उच्चारण सुधरा नहीं, बना नहीं परिवेश। अँग्रेजी के जाल में, जकड़ा सारा देश।१। |
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(विचारों का चबूतरा )ये है मिशन लन्दन ओलंपिक !आठ साल बाद मिला है मौका . लक्ष्य हो बस ओलंपिक पुरुष हॉकी GOLD ! भारतीय पुरुष हॉकी टीम को हार्दिक शुभकामनायें ! [यू ट्यूब पर मेरे द्वारा रचित व् स्वरबद्ध यह गीत भारतीय हॉकी टीम को प्रोत्साहित करने वाली भावनाओं से ही ओतप्रोत है .आप सुने व् सुनाएँ .स्वयं भी गायें .] ये है मिशन लन्दन ओलंपिक |
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त्रिंजण और अनुभूतिडॉ. हरदीप कौर सन्धुशब्दों का उजालाअनुभूति वेब पत्रिका पर 27 फरवरी 2012 को मेरे कुछ हाइकु जिनको मैंने त्रिंजण में बाँधा है , प्रकाशित हुए हैं । त्रिंजण शब्द पंजाब की लोक संस्कृति से जुड़ा शब्द है। यह संसार भी एक त्रिंजण है........ हमारा मन भावों का त्रिंजण है..... आज मैं इसी जग त्रिंजण तथा मन त्रिंजण की बात अपने हाइकुओं में कहने जा रही हूँ। आशा है आपको यह प्रयास अच्छा लगेगा। |
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पुत्रवधू का फोन आया - बोली, पापा 'ढोक', घर का फोन उठ नहीं रहा , कहाँ व कैसे हैं आप लोग ? खुश रहो बेटी, कैसी हो ... ठीक हैं हम भी , ईश्वर की कृपा से मज़े में हैं , और- इस समय तुम्हारे कमरे में हैं । क... |
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आगी बरयफागुन आयो रे साँवरिया कलियन भँवरा छेड़ रह्यो॥ मैहर सों लौट आयी कोयलिया सूनी-सूनी बगियन शोर मच्यो।। |
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दोस्तों आजकल प्रगति मैदान में पुस्तक मेला चल रहा है जो आगामी चार मार्च तक चलेगा. अंजू जी के पुस्तक का विमोचन होना था सो मै भी गया था. सभा निपटने के बाद जब स्टाल के चक्कर लगाने शुरुवात की हाल नो ११ से तो शु... |
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सोनिया देश से हर जानकारी छुपाती हैं: संघ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने एक बार फिर सोनिया को निशाने पर लिया है। संघ ने आरोप लगाया है कि सोनिया अपने सार्वजनिक जीवन को लेकर बहुत अधिक रहस्यात्मक हैं। वह देश... |
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खेलते बच्चे मेरे घर के सामने करते शरारत शोर मचाते पर भोले मन के उनमें ही ईश्वर दीखता बड़े नादाँ नजर आते दिल के करीब आते जाते निगाह पड़ी पालकों पर दिखे उदास थके हारे हर दम रहते व्यस्त बच्चों के लालन... |
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सर्वप्रथम सोनु जी का विशेष आभार और आपका सभी का आभार जो ब्लॉग पर आकार मेरे भतीजे दक्ष को जन्मदिन पर शुभकामनाएं और बधाई दी उसके लिए, उम्मीद है आप हमेशा ही उत्साहवर्धन करते रहेंगे! आप लोगों का बहुत -बहुत धन्य... |
10 & 11
अभिनव अनुग्रह गीत : नागेश पांडेय 'संजय' बिना तुम्हारे साथी हर अभियान अधूरा है. आज शोभते राजमार्ग, थीं जहाँ कभी पथरीली राहें, किन्तु चहकती चौपाटी पर जागा हुआ प्रेम रोता है. आज नयन में सिर्फ बेबसी और ह्रदय में ठंडी आहें, एक मुसाफिर थका-थका-सा , यादों की गठरी ढोता है. पागल, प्रेमी और अनमना : अब जग चाहे जो भी कह ले, बिना तुम्हारे साथी हर उपमान अधूरा है. बिना तुम्हारे साथी हर अभियान अधूरा है. न जाने किस बात पर आज उनसे ही उनकी ठनी हुई है जो मेरे प्राणों-पंजर पर विपदा सी बनी हुई है... उनकी आँखें इसतरह से है नम कि बरस रहे हैं मेरे भी घनघोर घन.... रूठे जो होते तो बस मना ही लेती अपने रसबतियों में उन्... |
12 से 19
गुस्ताखी माफ़ -रविकर से प्रस्तुत हैं कुल आठ लिंक झारखंड से भेजता, शुभ-कामना असीम । मन-रंजक, मन-भावनी, इस प्रस्तुति की थीम । इस प्रस्तुति की थीम, नया जो कुछ भी पाया।होता मन गमगीन, पुराना बहुत लुटाया । पर रविकर यह रीत, चुकाते कीमत भारी । नेताओं पर कर रहे, शास्त्री जी जब व्यंग । होली में जैसे लगा, तारकोल सा रंग । तारकोल सा रंग, बड़ी मोती है चमड़ी । नेताओं के ढंग, देश बेंचे दस दमड़ी । बेचारी यह फौज, आज तक बचा रही है । करें अन्यथा मौज, नीचता नचा रही है ।। अपने मन-माफिक चलें, तोड़ें नित कानून । जो इनकी माने नहीं, देते उसको भून । देते उसको भून, खून इनका है गन्दा । सत्ता लागे चून, पड़े न धंधा मन्दा । बच के रहिये लोग, मिले न इनसे माफ़ी । महानगर में एक, माफिया होता काफी ।। चंदा का धंधा चले, कभी होय न मंद । गन्दा बन्दा भी भला, डाले सिक्के चंद । डाले सिक्के चंद, बंद फिर करिए नाहीं । चूसो नित मकरंद, करो पुरजोर उगाही । सर्वेसर्वा मस्त, तोड़ कानूनी फंदा । होवे मार्ग प्रशस्त, बटोरो खुलकर चंदा ।। खुद को सुकून देते हो या उसे ..खुश होने के कारण तो अपने पास होते हैं सामनेवाला ( अधिकांशतः ) आंसू देखने में सुकून पाता है अब फैसला तुम्हारे हाथ है खुद को सुकून देते हो या उसे .. - रश्मि प्रभा दूजे के दुःख में ख़ुशी, दुर्जन लेते ढूँढ़ । अश्रु बहाते व्यर्थ ही, निर्बल अबला मूढ़ ।। सुनिए प्रभू पुकार, आर्तनाद पर शांत क्यूँ । हाथ आपके चार, क्या शोभा की चीज है । सारी दुनिया त्रस्त, कुछ पाखंडी लूटते । भक्त आपके पस्त, बढती जाती खीज है ।। आशा के विश्वास को, लगे न प्रभु जी ठेस । होवे हरदम बलवती, धर-धर कर नव भेस ।। कल की खूबी-खामियाँ, रखो बाँध के गाँठ । विश्लेषण करते रहो, उमर हो रही साठ । उमर हो रही साठ, हुआ सठियाना चालू । बहुत निकाला तेल, मसल कर-कर के बालू । दिया सदा उपदेश, भेजा अब ना खा मियाँ । देत खामियाँ क्लेश, कल की खूबी ला मियाँ ।। |
कुमार रवीन्द्र
बदल गई घर-घाट की, देखो तो बू-बास।
बाँच रही हैं डालियाँ, रंगों का इतिहास।१।
बदल गई घर-घाट की, देखो तो बू-बास।
बाँच रही हैं डालियाँ, रंगों का इतिहास।१।
लोकेश ‘साहिल
थोड़ी-थोड़ी मस्तियाँ, थोड़ा मान-गुमान।
होली पर 'साहिल' मियाँ, रखना मन का ध्यान।५।
थोड़ी-थोड़ी मस्तियाँ, थोड़ा मान-गुमान।
होली पर 'साहिल' मियाँ, रखना मन का ध्यान।५।
अनवारेइस्लाम
किस से होली खेलिए, मलिए किसे गुलाल।
चहरे थे कुछ चाँद से डूब गए इस साल।१।
किस से होली खेलिए, मलिए किसे गुलाल।
चहरे थे कुछ चाँद से डूब गए इस साल।१।
योगराज प्रभाकर
रंग लगावें सालियाँ, बापू भयो जवान।
हुड़ हुड़ हुड़ करता फिरे, बन दबंग सलमान।५।
समीर लाल 'समीर'
नयन हमारे नम हुए, गाँव आ गया याद।
वो होली की मस्तियाँ, कीचड़ वाला नाद।२।
रंग लगावें सालियाँ, बापू भयो जवान।
हुड़ हुड़ हुड़ करता फिरे, बन दबंग सलमान।५।
समीर लाल 'समीर'
नयन हमारे नम हुए, गाँव आ गया याद।
वो होली की मस्तियाँ, कीचड़ वाला नाद।२।
महेन्द्र वर्मा
कलियों के संकोच से, फागुन हुआ अधीर।
वन-उपवन के भाल पर, मलता गया अबीर।२।
कलियों के संकोच से, फागुन हुआ अधीर।
वन-उपवन के भाल पर, मलता गया अबीर।२।
मयंक अवस्थी
सब चेहरे हैं एक से हुई पृथकता दंग।
लोकतंत्र में घुल गया साम्यवाद का रंग।१।
सब चेहरे हैं एक से हुई पृथकता दंग।
लोकतंत्र में घुल गया साम्यवाद का रंग।१।
वंदना गुप्ता
होली में जलता जिया, बालम हैं परदेश।
होली में जलता जिया, बालम हैं परदेश।
मोबाइल स्विच-ऑफ है, कैसे दूँ संदेश।१।
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
फागुन में नीके लगें, छींटे औ' बौछार।
सुन्दर, सुखद-ललाम है, होली का त्यौहार।१।
ऋता शेखर ‘मधु’
फगुनाहट की थाप पर,बजा फाग का राग।
पिचकारी की धार पर, मच गइ भागम भाग।१।
फगुनाहट की थाप पर,बजा फाग का राग।
पिचकारी की धार पर, मच गइ भागम भाग।१।
धर्मेन्द्र कुमार ‘सज्जन’
सूखे रंगों से करो, सतरंगी संसार।
पानी की हर बूँद को, रखो सुरक्षित यार।४।
सूखे रंगों से करो, सतरंगी संसार।
पानी की हर बूँद को, रखो सुरक्षित यार।४।
सौरभ शेखर
पल भर हजरत भूल कर, दुःख,पीड़ा,संताप।
जरा नोश फरमाइए, नशा ख़ुशी का आप।४।
पल भर हजरत भूल कर, दुःख,पीड़ा,संताप।
जरा नोश फरमाइए, नशा ख़ुशी का आप।४।
साधना वैद
अबके कुछ ऐसा करो, होली पर भगवान।
हर भूखे के थाल में, भर दो सब पकवान।१।
अबके कुछ ऐसा करो, होली पर भगवान।
हर भूखे के थाल में, भर दो सब पकवान।१।
आशा सक्सेना
गहरे रंगों से रँगी, भीगा सारा अंग।
एक रंग ऐसा लगा, छोड़ न पाई संग।१।
राणा प्रताप सिंह
सौरभ पाण्डेय
फाग बड़ा चंचल करे, काया रचती रूप।
भाव-भावना-भेद को, फागुन-फागुन धूप।१।
गहरे रंगों से रँगी, भीगा सारा अंग।
एक रंग ऐसा लगा, छोड़ न पाई संग।१।
राणा प्रताप सिंह
बच्चे, बूढ़े, नौजवाँ, गायें मिलकर फाग।
एक ताल, सुर एक हो, एकहि सबका राग।१।
सौरभ पाण्डेय
फाग बड़ा चंचल करे, काया रचती रूप।
भाव-भावना-भेद को, फागुन-फागुन धूप।१।
विजेंद्र शर्मा
इंतज़ार के रंग में, गई बावरी डूब।
इंतज़ार के रंग में, गई बावरी डूब।
होली पर इस बार भी, आये ना महबूब।१।
डा. श्याम गुप्त
गोरे गोरे अंग पै, चटख चढि गये रंग।
गोरे गोरे अंग पै, चटख चढि गये रंग।
रंगीले आँचर उडैं, जैसें नवल पतंग ।१।
महेश चंद्र गुप्ता ‘ख़लिश’
हो ली अन्ना की 'ख़लिश', जग में जय जयकार।
हो ली अन्ना की 'ख़लिश', जग में जय जयकार।
शायद उनको हो रही, अब गलती स्वीकार।५।
रविकर
शिशिर जाय सिहराय के, आये कन्त बसन्त ।
अंग-अंग घूमे विकल, सेवक स्वामी सन्त ।१।
रविकर
शिशिर जाय सिहराय के, आये कन्त बसन्त ।
अंग-अंग घूमे विकल, सेवक स्वामी सन्त ।१।
अखिलेश तिवारी
इन्द्र-जाल चहुँ फाग का, रंगों की रस-धार।
हुई राधिका साँवरी, और कृष्ण रतनार।१।
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
होली होली हो रही, होगी बारम्बार।
होली हो अबकी बरस, जीवन का श्रृंगार।१।
ज्योत्सना शर्मा [मार्फत पूर्णिमा वर्मन]
भंग चढ़ाकर आ गई, खिली फागुनी धूप ।
कभी हँसे दिल खोलकर, कभी बिगारे रूप।१।
पूर्णिमा वर्मन
रंग-रंग राधा हुई, कान्हा हुए गुलाल।
वृंदावन होली हुआ, सखियाँ रचें धमाल।१।
डा. जे. पी. बघेल
बंब बजी, ढोलक बजी, बजे ढोल ढप चंग।
फागुन की दस्तक भई, थिरकन लागे अंग।१।
फागुन की दस्तक भई, थिरकन लागे अंग।१।
राजेन्द्र स्वर्णकार
रँग दें हरी वसुंधरा, केशरिया आकाश !
इन्द्रधनुषिया मन रँगें, होंठ रँगें मृदुहास !१!
नवीन सी. चतुर्वेदी
तुमने ऐसा भर दिया, इस दिल में अनुराग।
हर दिन, हर पल, हर घड़ी, खेल रहा दिल फाग।१।
आभार ज्ञापन
अनुरागी सब आ गये, लिए फाग-अनुराग
तुमने ऐसा भर दिया, इस दिल में अनुराग।
हर दिन, हर पल, हर घड़ी, खेल रहा दिल फाग।१।
आभार ज्ञापन
अनुरागी सब आ गये, लिए फाग-अनुराग
ठाले-बैठे ब्लॉग के, खूब खुले हैं भाग
जब-जब दुनिया में बढ़ा, कुविचारों का वेग
तब तब ही साहित्य ने, क़लम बनायी तेग
मेरे भतीजे दक्ष राजपुरोहित के जन्मदिन की कुछ फोटो को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंकों के साथ अच्छी पोस्ट. आदरणीय श्री दिनेश गुप्ता "रविकर"जी को बधाई. आपका आभार
जवाब देंहटाएंआप सभी सम्माननीय दोस्तों एवं दोस्तों के सभी दोस्तों से निवेदन है कि एक ब्लॉग सबका
( सामूहिक ब्लॉग) से खुद भी जुड़ें और अपने मित्रों को भी जोड़ें... शुक्रिया
बहुत अच्छे लिंकों के साथ,
जवाब देंहटाएंस्तरीय चर्चा के लिए आदरणीय रविकर जी का आभार!
2 दिनों के लिए बाहर जा रहा हूँ! नेट पर आना सम्भव नहीं होगा!
शनिवार की चर्चा भाई दिलबाग सिंह विर्क लगायेंगे और रविवार की चर्चा रविकर जी के जिम्मे है!
अच्छी चर्चा कई लिंक्स हैं |तस्वीरें बहुत अच्छी हैं
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
बढियां सकारात्मक प्रयास नए सृजनात्मक प्रयोगों की आहट ,सम्भावनाये सरस एवं ग्राह्य रचनाओं का सम्मिलन अच्छा लगा , साधुवाद जी /
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanyavad nd aabhar khaskr aapke comments ke liye jisne mere dil ko choo liya.prastuti bahut achchi hai.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंकई लिंक्स की चर्चा है सो अब देखना शुरू करते हैं..
धन्यवाद.
वाह रविकर जी क्या छींटे दिए हैं फाग के तन मन सबही भिगोय दियो ,इससे बढ़िया क्या होरी के रंग होंगें चर्चा के संग ,बज रही मृदंग ,चांग ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंvistrit charcha prastut ki hai aapne .achchhe links sanjoyen hain .mere mission olympic ko isme sthan dene hetu hardik dhanyvad .YE HAI MISSION LONDON OLYMPIC !
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा .
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..सभी लिनक्स पढेंगे
जवाब देंहटाएंbdhiya charcha hai,shukriya
जवाब देंहटाएंइतने सारे रंगों को समेटे हुई इस चर्चा के लिए आपका बहुत बहुत आभार। मुझे स्थान देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंफगुनाहट से डोलती चर्चा के लिए बधाई..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएं--अच्छे लिन्क्स व अच्छी दोहेदार होली....और सबसे अच्छा तो यह दोहा...
जवाब देंहटाएंजब-जब दुनिया में बढ़ा, कुविचारों का वेग
तब तब ही साहित्य ने, क़लम बनायी तेग ...बधाई...
बहुत ही अच्छे लिंक्स का चयन ..आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंकों के लिए...रविकर जी बहुत२ बधाई
जवाब देंहटाएंvistrit charcha prastut kee iske liye aabhar,sath me prastut kijiye apne thode se udgar.
जवाब देंहटाएंबड़े ही रुचिकर सूत्र..
जवाब देंहटाएंरविकर जी हार्दिक धन्यवाद और बधाई भी...
जवाब देंहटाएं