मित्रों!
रविवार के लिए ब्लॉगिस्तान की सैर पर निकला हूँ। देखता हूँ कौन से लिंक चर्चा मंच पर स्थान पाते हैं।
जीवन में जब अंधियारा हो, ह्रदय तलाशता कोई सहारा हो, मन व्यथित हो कर रोता हो, कोई अजनबी ऐसा मिल जाए, सुन हाल तुम्हारे रो जाए सीने से तुम्हें फिर लगा ले.. तो जितना सुकून मिलता उसका व्रणन तो हो ही नहीं सकता। विश्वास.''तुम्हें तो ठहरना था उस घड़ी तक मेरे पास जब तक सांसों की डोर बंधी है मुझसे... और एक मजबूत दरख्त की तरह थामे रहना था मेरे अविश्वास...शायद इसी ऊहापोह में पूरी दुनिया उलझी है। चलो एकला, आया था जस, सबकी नैया लगी किनारे मगर कुछ की किनारे पर आकर भी डूब जाती है। यह अग़ज़ल लिखी है दिलबाग विर्क जी ने - गम के इस दौर में थोड़ी ख़ुशी के लिए लिखता हूँ जिन्दगी को जिन्दगी के लिए .....! हम दोनों ने मिलकर बुढऊ एसोसिएशन बनाया था की एक दिन मिलकर बुढऊ ब्लागरों की तकदीर बदल रख देंगें पर यह एक सपना बन कर रह गया है . एसोसिएशन बनाने के बाद से ताऊ जी फिर याद आये ...। हमारे तो अभिन्न मित्र रहे हैं ताऊ रामपुरिया! जब तेरा नाम. लिया है मैंने * * खुद से इंतकाम लिया है मैंने.... ! मगर क्या करें? "हमें लिखना नही आया, उन्हें पढ़ना नही आया" ....!
नैनीताल शहर के भ्रमण पर जाट देवता का सफ़र नैनी नैनीताल का, पढ़ सुन्दर वृतान्त ....छत पर देखा पेड़, निगाहें बेहद पैनी थी, मगर पेड़ पर वो नहीं दिखाई दी। फ़िक्र करते रहो फ़िक्र का जिक्र भी बराबर करते रहो | कुछ है जिनको फ़िक्र जरुरी है बाकियों की फ़िक्र बस मजबूरी है | काजल की रेख अंदर तक पैठ गई, तमस की आकृतियाँ, अंतर की सुरत हुईं * * * *मन को झकझोर दिया * *गहरी सी सांसों ने.... | तुम मुझे भूले नहीं ये जानकार अच्छा लगा, जैसे किताबों में फूल, सूखे ही सही काफ़ी तो हैं. मिल न सके हम,यादों का आना अच्छा लगा....। सत्यम् शिवम् ब्लॉगिस्तान की दुनिया में एक ऐसा युवा चेहरा है जिसने अपनी लेखनी के बल पर हिन्दी ब्लॉगिंग में अपनी एक पहचान बनाई है और 20 रचनाधर्मियों की 5-5 रचनाओं को अपने काव्य संग्रह "टूटते सितारों की उड़ान" में जगह दी है। जिसकी समीक्षा यहाँ पर है।
बसंती रंग छा गया,... प्रकृति पालकी पर चढकर,देखो ये मधुमास आ गया! विदा हुआ हेमंत आज ....! एक प्रयास पर शब्द चित्र हैं कृष्ण लीला ..के! वादे तो सब करते हैं, किन्तु..निभाने वाले बहुत कम होते हैं, यही तो है " जीवन की आपाधापी "! *खुशियों के पल इंसान के जीवन में कम ही आते है * *ये बहुत बार सुना था ,इसलिए जब भी खुशियाँ मिली * *उनकी तस्वीर बना कर रख दी मैं ने ......फिर क्यों तस्वीरों में खुशियाँ खोजते हो? युद्ध के बाद का विषाद .अर्जुन को महाभारत युद्ध में स्वजनों को देखकर विषाद हुआ था .अर्जुन अवसाद ग्रस्त हो डिप्रेशन की ज़द में जाने लगे थे , राम-राम भाई! पापा के नाम - पापा, आप कहाँ हो? मैं आपको बहुत मिस करता हूँ. मेरे एक्जाम ख़त्म हो गए हैं और मैं हॉस्टल से घर आ गया हूँ. अकेला हूँ, बोर होता हूँ. मम्मी तो अपने ऑफिस चली जाती हैं...आखिर पिता की याद तो आती ही है। डालें दिन में दस दफा, बिना भूख के अन्न । पेटू भोजन-भट्ट का, धर्म-कर्म संपन्न । धर्म-कर्म संपन्न, बैठ के रोटी तोड़े । चूहे रहे मुटाय, आलसी बने निगोड़े... । चहकते हैं ...बुलबुल की बोली में ... मन की झोली में .. अबकी होली में ... मेरी बुलबुल मुझे बहुत भाती है ... ! - जब भूगोल पढ़ना प्रारम्भ किया तब कहीं जाकर समझ में आया कि बचपन में जो भी पानी हमने पिया, वह यमुना का नहीं चम्बल का था। आगरा की यमुना में कुछ जल शेष ही नहीं...पीना ही जरूरी है तो...सोझ समझ कर पीना, यह चम्बल का पानी । मेरे पड़ोस में रहते हैं - रावण सिंह - वे रामायण के रावण जैसे नहीं दिखते// वे इन्कम-टैक्स भरते है वे होल्डिंग टैक्स भरते हैं वे वेल्थ -टैक्स भरते है...! फ़ुरसत में … गोद में बच्चा और कोना में ढिंढोरा ! आँखों में तिरते सवाल , चाहते हैं जबाब देगा कौन ? कसाब [कसाई ] या भीड़ जिसने बेच दी अपनी भेड़ , खिला कर दाने निचोड़ा दूध ....उन्नयन पर है यह सामयिक रचना। जीना भी एक बहुत बड़ा....... जुर्म है आखिर...... * *शायद ! इसी लिए हर शख्स को सज़ाए-मौत मिलती है...जीवन की दौड़ .....मृत्यु की और .... ! RTE के अंतर्गत पहली से लेकर आठवीं तक के किसी भी विद्यार्थी को फेल नहीं करना , उसका नाम नहीं काटना । पत्र-पत्रिकाओं में यह सूचना इतने जोर-शोर से बताई गई कि...अध्यापक माथा पीटकर रह गये..आप भी पढ़ लीजिए...शिक्षा का हाल बताते दो किस्से! क्यों भला आया है मुझको पूजने है नहीं स्वीकार यह पूजा तेरी , मैं तो खुद चल कर तेरे घर आई थी क्यों नहीं की अर्चना तूने मेरी ? यही तो आक्रोश है मन का!
स्पंदन SPANDAN में भी शायद कुछ जरूर होगा आत्मसात करने के लिए। गाय और बाघ - एक जंगल में एक बाघ रहता था| उसका एक बच्चा भी था| दोनों एक साथ रहते थे| बाघ दिन में शिकार करने जंगल में चला जाता था, पर बच्चा अपनी मांद के आस-पास ...! शव पिताजी - *(प्रख्यात कवि वीरेन डंगवाल की कविता! चैत के पहले दिन मैं और तुम - 1. राह चलते बस में मेट्रो में दफ्तर में हर जगह तुम्हें पहचानने की कोशिश करता हूं हर चेहरे को इतना घूरकर देखता हूं कि लोग मुझे खतरनाक समझने लगते हैं क्या करूँ...? क्या लिखूँ ? मैं सोच रहा हूँ जो तुमको भा जाऊं ! अ ब स द ... क ख ग घ ए बी सी डी ... एक्स वाय जेड ९ २ ११ ... ५ ३ १८ कुछ न कुछ लिख जाऊं जग को छोडो ... ..! योग्यता की संरचना ( structure of ability ) - हे मानवश्रेष्ठों, यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है....। राजकुमार और परी - पहले समय मे एक प्रदेश मे एक राजा राज्य करते थे उन का नाम था जयेंदर उन का राज्य काफी दूर दूर तक फैला हुआ था .राजा दयालु थे .. आगे भी है मगर लिंक पर तो जाइए। पांचाली - श्री पंचमी - वसंतागम का संदेश! माघ बीता जा रहा है सूर्य उत्तरायण हो गये. दिवस का विस्तार देख रात्रियाँ सिमटने लगीं. दिवाओं में नई ओप झलकने लगी , मैं इश्क की आवाज़ हूँ मैं प्यार का अन्दाज़ हूँ… मैं हुस्न की मासूमियत ..मैं इक अदा-ए-नाज़ हूँ.. मैं ग़म-ए-जहाँ से दूर हूँ ... मैं मस्ती का सुरूर हूँ ....? सामीप्य के कुछ मानक भेज रहे हैं...!
अन्त में देखिए यह कार्टून!

नैनीताल शहर के भ्रमण पर जाट देवता का सफ़र नैनी नैनीताल का, पढ़ सुन्दर वृतान्त ....छत पर देखा पेड़, निगाहें बेहद पैनी थी, मगर पेड़ पर वो नहीं दिखाई दी। फ़िक्र करते रहो फ़िक्र का जिक्र भी बराबर करते रहो | कुछ है जिनको फ़िक्र जरुरी है बाकियों की फ़िक्र बस मजबूरी है | काजल की रेख अंदर तक पैठ गई, तमस की आकृतियाँ, अंतर की सुरत हुईं * * * *मन को झकझोर दिया * *गहरी सी सांसों ने.... | तुम मुझे भूले नहीं ये जानकार अच्छा लगा, जैसे किताबों में फूल, सूखे ही सही काफ़ी तो हैं. मिल न सके हम,यादों का आना अच्छा लगा....। सत्यम् शिवम् ब्लॉगिस्तान की दुनिया में एक ऐसा युवा चेहरा है जिसने अपनी लेखनी के बल पर हिन्दी ब्लॉगिंग में अपनी एक पहचान बनाई है और 20 रचनाधर्मियों की 5-5 रचनाओं को अपने काव्य संग्रह "टूटते सितारों की उड़ान" में जगह दी है। जिसकी समीक्षा यहाँ पर है।
बसंती रंग छा गया,... प्रकृति पालकी पर चढकर,देखो ये मधुमास आ गया! विदा हुआ हेमंत आज ....! एक प्रयास पर शब्द चित्र हैं कृष्ण लीला ..के! वादे तो सब करते हैं, किन्तु..निभाने वाले बहुत कम होते हैं, यही तो है " जीवन की आपाधापी "! *खुशियों के पल इंसान के जीवन में कम ही आते है * *ये बहुत बार सुना था ,इसलिए जब भी खुशियाँ मिली * *उनकी तस्वीर बना कर रख दी मैं ने ......फिर क्यों तस्वीरों में खुशियाँ खोजते हो? युद्ध के बाद का विषाद .अर्जुन को महाभारत युद्ध में स्वजनों को देखकर विषाद हुआ था .अर्जुन अवसाद ग्रस्त हो डिप्रेशन की ज़द में जाने लगे थे , राम-राम भाई! पापा के नाम - पापा, आप कहाँ हो? मैं आपको बहुत मिस करता हूँ. मेरे एक्जाम ख़त्म हो गए हैं और मैं हॉस्टल से घर आ गया हूँ. अकेला हूँ, बोर होता हूँ. मम्मी तो अपने ऑफिस चली जाती हैं...आखिर पिता की याद तो आती ही है। डालें दिन में दस दफा, बिना भूख के अन्न । पेटू भोजन-भट्ट का, धर्म-कर्म संपन्न । धर्म-कर्म संपन्न, बैठ के रोटी तोड़े । चूहे रहे मुटाय, आलसी बने निगोड़े... । चहकते हैं ...बुलबुल की बोली में ... मन की झोली में .. अबकी होली में ... मेरी बुलबुल मुझे बहुत भाती है ... ! - जब भूगोल पढ़ना प्रारम्भ किया तब कहीं जाकर समझ में आया कि बचपन में जो भी पानी हमने पिया, वह यमुना का नहीं चम्बल का था। आगरा की यमुना में कुछ जल शेष ही नहीं...पीना ही जरूरी है तो...सोझ समझ कर पीना, यह चम्बल का पानी । मेरे पड़ोस में रहते हैं - रावण सिंह - वे रामायण के रावण जैसे नहीं दिखते// वे इन्कम-टैक्स भरते है वे होल्डिंग टैक्स भरते हैं वे वेल्थ -टैक्स भरते है...! फ़ुरसत में … गोद में बच्चा और कोना में ढिंढोरा ! आँखों में तिरते सवाल , चाहते हैं जबाब देगा कौन ? कसाब [कसाई ] या भीड़ जिसने बेच दी अपनी भेड़ , खिला कर दाने निचोड़ा दूध ....उन्नयन पर है यह सामयिक रचना। जीना भी एक बहुत बड़ा....... जुर्म है आखिर...... * *शायद ! इसी लिए हर शख्स को सज़ाए-मौत मिलती है...जीवन की दौड़ .....मृत्यु की और .... ! RTE के अंतर्गत पहली से लेकर आठवीं तक के किसी भी विद्यार्थी को फेल नहीं करना , उसका नाम नहीं काटना । पत्र-पत्रिकाओं में यह सूचना इतने जोर-शोर से बताई गई कि...अध्यापक माथा पीटकर रह गये..आप भी पढ़ लीजिए...शिक्षा का हाल बताते दो किस्से! क्यों भला आया है मुझको पूजने है नहीं स्वीकार यह पूजा तेरी , मैं तो खुद चल कर तेरे घर आई थी क्यों नहीं की अर्चना तूने मेरी ? यही तो आक्रोश है मन का!
स्पंदन SPANDAN में भी शायद कुछ जरूर होगा आत्मसात करने के लिए। गाय और बाघ - एक जंगल में एक बाघ रहता था| उसका एक बच्चा भी था| दोनों एक साथ रहते थे| बाघ दिन में शिकार करने जंगल में चला जाता था, पर बच्चा अपनी मांद के आस-पास ...! शव पिताजी - *(प्रख्यात कवि वीरेन डंगवाल की कविता! चैत के पहले दिन मैं और तुम - 1. राह चलते बस में मेट्रो में दफ्तर में हर जगह तुम्हें पहचानने की कोशिश करता हूं हर चेहरे को इतना घूरकर देखता हूं कि लोग मुझे खतरनाक समझने लगते हैं क्या करूँ...? क्या लिखूँ ? मैं सोच रहा हूँ जो तुमको भा जाऊं ! अ ब स द ... क ख ग घ ए बी सी डी ... एक्स वाय जेड ९ २ ११ ... ५ ३ १८ कुछ न कुछ लिख जाऊं जग को छोडो ... ..! योग्यता की संरचना ( structure of ability ) - हे मानवश्रेष्ठों, यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है....। राजकुमार और परी - पहले समय मे एक प्रदेश मे एक राजा राज्य करते थे उन का नाम था जयेंदर उन का राज्य काफी दूर दूर तक फैला हुआ था .राजा दयालु थे .. आगे भी है मगर लिंक पर तो जाइए। पांचाली - श्री पंचमी - वसंतागम का संदेश! माघ बीता जा रहा है सूर्य उत्तरायण हो गये. दिवस का विस्तार देख रात्रियाँ सिमटने लगीं. दिवाओं में नई ओप झलकने लगी , मैं इश्क की आवाज़ हूँ मैं प्यार का अन्दाज़ हूँ… मैं हुस्न की मासूमियत ..मैं इक अदा-ए-नाज़ हूँ.. मैं ग़म-ए-जहाँ से दूर हूँ ... मैं मस्ती का सुरूर हूँ ....? सामीप्य के कुछ मानक भेज रहे हैं...!
अन्त में देखिए यह कार्टून!

आज के लिए केवल इतना ही-
अगले शनिवार और रविवार को
फिर मिलूँगा!
कुछ अपनी पसंद के लिंकों के साथ!
तब तक के लिए नमस्ते!!
सुन्दर चर्चा!
ReplyDeleteआभार!
सर समीक्षा बहुत अच्छी लगी |
ReplyDeleteचर्चा मंच खूब फल फूल रहा है इस हेतु भी बधाई और शुभ कामनाएं |
कई लिंक्स |
आशा
सबसे पहले चर्चा-मंच की पूरी टीम को बधाई कि आप रोज प्रतिदिन ... मोती खोज कर हम लोगों को देते है ॥
ReplyDeleteमैं खुब्नासिब हूँ ... कि मेरी कविताओ के लिनक्स दिए जाने के कारण बहुत सारे पाठक मेरे ब्लॉग से जुड़ रहे है
आप छुट्टियों को ऐसे ही
ReplyDeleteज्ञानवर्धक और मनोरंजक बनाते रहें |
ईश्वर से यही प्रार्थना है ||
nice
ReplyDeleteबेहतरीन चर्चा....
ReplyDeleteलाजवाब लिंक्स............
आपका बहुत धन्यवाद शास्त्री जी...
दिन शुभ हो.........
सादर.
शुभप्रभात ...!!
ReplyDeleteजीवन की आपाधापी की बेहतरीन चर्चा ....
आभार शास्त्री जी मेरी रचना को स्थान दिया ....!!
सुन्दर लिंक्स से सजे प्रतिष्ठित चर्चामंच में मेरी रचना को आपने स्थान दिया आभारी हूँ शास्त्री जी ! धन्यवाद एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चर्चा।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग को सामिल करने के लिए धन्यवाद।
शुक्रिया।
ReplyDeletebahut sundar ...
ReplyDeletenirantartaa banee rahe ... shubhakaamanaayen ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिंको की प्रस्तुति,...
ReplyDeleteमेरी रचना को मंच में स्थान देने के लिए शास्त्री जी बहुत२ आभार,.....
ati sundar
ReplyDeleteसुन्दर चर्चा………लाजवाब लिंक्स्।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण पर आपका स्वागत है।
charchaa kee parstuti me taartamy aur rochaktaa bani rahi aakhiri pravishti tak .mubaarak
ReplyDeletecharchaa kee parstuti me taartamy aur rochaktaa bani rahi aakhiri pravishti tak .mubaarak
ReplyDeleteजीवन की आपाधापी की बेहतरीन चर्चा ....
ReplyDeleteआभार शास्त्री जी मेरी रचना को स्थान दिया ....!!
kripya hardik aabhar swikar kren
ReplyDeleteइस मर्तबा की चर्चा में एक तारतम्य दिखलाई दिया है लिंक्स के बीच .सहानुभूति पूर्ण समालोचनात्मक दृष्टि भी .
ReplyDeleteरविवार छुट्टी का दिन .व्यस्त दिनचर्या ..
ReplyDelete.परन्तु समय निकाल कर देखा तो चर्चा मंच पर सुन्दर लिनक्स पाए..
आभार
kalamdaan.blogspot.in
सुन्दर संकलन...
ReplyDeleteसादर आभार.
bahut badiya charcha prastuti..aabhar!
ReplyDeleteबेहतरीन रोचक चर्चा ...
ReplyDeleteआभार !
सच में आपकी मेहनत मंच पर दिखाई देती है। वक्त तो लगता ही है, संयम और धीरज भी तो होना चाहिए।
ReplyDeleteबहुत सुंदर चर्चा, बहुत सुंदर लिंक्स
mehnat se saji sundar charcha.badhai.
ReplyDeleteपूरी एक कहानी सी व्यक्त आज की चर्चा..
ReplyDeletevistrit charcha-achchhe links .aabhar
ReplyDeleteकार्टून को भी सम्मिलित करने के लिए आपका आभार
ReplyDeleteबेहतरीन चर्चा
ReplyDeletedin par din badhiyaa charchaa ho rahee hai
ReplyDeletebadhaayee
बेहतरीन चर्चा.....मुझे शामिल करने के लिए धन्यवाद। सारे पोस्ट तो नहीं पढ़ पाई। मगर कल जरूर पढ़ूंगी। धन्यवाद।
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