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शुक्रवार, मार्च 30, 2012

अत्यधिक समझदार और कुछ लातों के भूत : चर्चा-मंच 834


 (१-A)


संध्या शर्मा का नमस्कार... यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम, लोचनाभ्याम विहीनस्य दर्पणा: किम करिष्यति……। तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग……… तुलसी बाबा 500 बरस पहले लिख गए थे। इन भांति भांति के लोगों में कुछ समझदार, कुछ अत्यधिक समझदार और कुछ लातों के भूत होते हैं। लातों के भूत वो होते हैं जिन्हे कई बार समझाने से समझ नहीं आता। मूर्ख अपने को समझदार मानता है, और समझदार उसे मूर्ख ।  

 (१-B)

  विद्वान पाठक गण !!

  तुलसी के / पर  प्रस्तुत दोहे का क्या कोई और अर्थ निकल सकता है  ??

कृपया अवगत कराएँ ।।

छंद दिखे छल-छंद जब, संध्या जनित प्रभाव। 

दृष्ट जलन्धर की गई, तुलसी प्रति दुर्भाव ||

भावार्थ: माता तुलसी के छंद = रंग-ढंग ( भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने की रीति) को जलंधर सायंकाल के बढ़ते अंधियारे की वजह से (रतौंधी = मतान्ध ) दृष्टि-हीन होकर (भगवान् को नहीं पहचान पाता) कपट और छल समझ लेता है एवं  तुलसी माता के प्रति अपना दुर्भाव प्रदर्शित करता है ।।

 (२-A)

दाही दायम दायरा, दुःख दाई दनु दित्य ।
कच्चा जाता है चबा , चार बार यह नित्य ।


चार बार यह नित्य, रात में ताकत बढती ।
तन्हाई निज- कृत्य, रोज सिर पर जा चढती ।

इष्ट-मित्र घर दूर, महानगरों की *हाही ।
कभी न होती पूर, दायरा **दायम दाही ।।
*जरुरत **हमेशा

B

गायत्री मंत्र रहस्य भाग 3 The mystery of Gayatri Mantra 3

 इस लेख का पिछला भाग यहां पढ़ें-
http://vedquran.blogspot.in/2012/03/3-mystery-of-gayatri-mantra-3.html

टंगड़ी मारे दुष्ट जन, सज्जन गिर गिर जाय ।
विद्वानों की बात को, दो दद्दा विसराय ।

 दो दद्दा विसराय,  आस्था पर मत देना ।
रविकर नहीं सुहाय, नाव बालू में खेना ।

मिले सुफल मन दुग्ध, गाय हो चाहे लंगड़ी । 
वन्दनीय अति शुद्ध, मार ना "सर-मा" टंगड़ी ।।   
  my dreams 'n' expressions..याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शन..

काश यही आकाश का, एकाकी एहसास ।
बरसे स्वाती बूंद सा, बुझे पपीहा प्यास ।।



  नीला अम्बर - 

दो सौ का यह आँकड़ा, मात्र आँकड़ा नाय ।
 अथक कड़ा यह आपका, श्रम नियमन बतलाय । 


श्रम नियमन बतलाय, बधाई देता रविकर ।
कविता आँसू भाव, बहाए है जो मनभर ।

बना सितारे टांक, रहा यह नीला-अम्बर ।
रहा ताक अनुशील, निखारा जिसने तपकर ।।

रेंगे वक्षस्थल  कीड़ा ।
क्या गैर उठाएगा बीड़ा ?
मजा गुदगुदी जो लेता-
सहे वही दंशी पीड़ा ।
  नारद
नारद तो बदनाम है, लगा लगा के चून ।
रंगा-बिल्ला खुब बचे, होत व्यर्थ दातून ।

होत व्यर्थ दातून, मगर हमने मुँह धोया ।
टांग वायलिन खूब, गीत-संगीत डुबोया ।
तपता रेगिस्तान, हरेरी  दिखी मदारी ।
दोस्त खींचते टांग, ताकता रहा करारी ।।
   जो मेरा मन कहे -

अंत सुनिश्चित देह का, कहते श्री यशवंत ।
अजर-अमर है आत्मा, ग्यानी गीता संत ।।

(३)
कोई सर मुड़ा कर नाई की दुकान से निकला ही हो और आसमान से ओले गिरने लगे हों ऐसा छप्पन साल की जिन्दगी में न तो सुना और न ही अखबार में पढ़ा। इस से पहले की किताब में भी इस तरह की किसी घटना का उल्लेख नहीं द...


 (४)

  बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....

नदी के किनारे
यह कहकर
कि वे कभी नहीं मिलते
लोगों ने उतार दिया उन्हें
खलनायक की भूमिका में।
वे निभाते रहे.....  
अपनी भूमिका का चरित्र
बिना किसी परिवाद के
और नदी
बहती रही।
एक दिन लोगों ने देखा
किनारे एक हो गये हैं
पर नदी
अब वहाँ कहीं नहीं थी। 


(५)
  डा. श्याम गुप्त 
* * * * * * * ’ इन्द्रधनुष’* ------ स्त्री-पुरुष विमर्श पर एक नवीन दृष्टि प्रदायक उपन्यास ....*पिछले अंक सात से क्रमश:...*... ...


(६)
गांधी और गांधीवाद-105
धार्मिक जिज्ञासा
GhandiZarz12

मनोज 
गांधी जी की जहां एक ओर आत्मा के आंतरिक जीवन के प्रति उत्सुकता बनी रहती थी, वहीं दूसरी ओर वे शारीर की उचित देखभाल के प्रति भी काफ़ी जिज्ञासु थे। जब हम थोड़ा गहरे जाकर उनको समझने का प्रयत्न करते हैं तो पाते हैं कि उनकी चाहे जो भी व्यावसायिक और राजनीतिक प्रतिबद्धताएं रही हों, नैतिक नियमों के अनुरूप कर्म करना और स्वास्थ्य या प्रकृति के नियमों के अनुसार जीवन जीने के उनके विचार को सत्य की खोज के अंगों के रूप में ही देखा जा सकता है।


(७)
पल - पल ,
बीतते वक़्त के साथ 
बीत जाते हैं 
हम भी ,


(८)

"कालजयी रचना कहाँ?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


लुप्त हुआ है काव्य का, नभ में सूरज आज।
बिनाछन्द रचना रचें, ज्यादातर कविराज।१।

जिसमें हो कुछ गेयताकाव्य उसी का नाम।
रबड़छंद का काव्य में, बोलो क्या है काम।२।

अनुच्छेद में बाँटिए, कैसा भी आलेख।
छंदहीन इस काव्य का, रूप लीजिए देख।३।

चार लाइनों में मिलें, टिप्पणियाँ चालीस।
बिनाछंद के शान्त हों, मन की सारी टीस।४।


(९)

साक्षात्कार: वरिष्‍ठ जनगीतकार नचिकेता के साथ अवनीश सिंह चौहान की बातचीत

नचिकेता

क्रांति का बीज बोकर नया सवेरा लाने की चाह रखने वाले नचिकेता जी के गीतों में मजदूर-किसान और मेहनतकश इंसान की आवाज़ को जाना-समझा जा सकता है, शायद तभी वे कहते हैं- "हम मज़दूर-किसान चले, मेहनतकश इंसान चले / चीर अंधेरे को हम नया सवेरा लायेंगे ! / ताकत नई बटोर क्रान्ति के बीज उगायेंगे!" और यह सब वे कैसे करेंगे उसका संकेत भी देते हैं इसी गीत में- "श्रम की तुला उठाकर उत्पादन हम बाँटेंगे / शोषण और दमन की जड़ गहरे जा काटेंगे / करते लाल सलाम चले, देते यह पैग़ाम चले / समता और समन्वय का संसार बसायेंगे !"


(१०)

  लो क सं घ र्ष !
कारपोरेट एवं बैंकर्स फाउन्डेशन के सबसे बुद्धिमान एवं सर्वश्रेष्ठ पश्चिमी विचारकों ने सिफारिश की है कि विभिन्न देशों के संसाधनों, वित्त एवं राष्ट्रीय बजटों को नियंत्रित करने एवं उनके हाईड्रोकार्बन एवं खनिज पदार्थों को हड़पने का सबसे अच्छा तरीका युद्ध है। इसके माध्यम से वे अफगानिस्तान के नारकोटिक्स व्यापार को भी नियंत्रित कर रहे हैं जिससे प्राप्त आय को वे पश्चिमी बैंकों एवं प्रमुख आर्थिक संस्थाओं में जिनमें कि साख निर्गमन की सर्वाधिक शेयर होल्डिंग रखने वाली संस्थाएँ भी सम्मिलित हैं, लगाते हैं। 

(११)

रस्ता होवे पार, प्रभु उस नाव चढ़ाओ-

दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक 

कलम माँगती दान है, कान्हा दया दिखाव ।
ऋतु आई है दीजिये, नव पल्लव की छाँव ।

नव पल्लव की छाँव, ध्यान का  द्योतक पीपल।
फिर से गोकुल गाँव, पाँव हो जाएँ चंचल ।

छेड़ो बंशी तान, चुनरिया प्रीत उढ़ाओ ।
रस्ता होवे पार, प्रभु उस नाव चढ़ाओ ।।


B
 ram ram bhai 
दर्शन जीवन का लिए, गीता-गीत-सँदेश |
अगर कुरेदे दिन बुरे, बाढ़े रोग-कलेश |

बाढ़े रोग-कलेश, आज को जीते जाओ |
जीते रविकर रेस, भूत-भावी विसराओ |

मध्यम चिंता-मग्न, जान जोखिम में डाले | |
दोनों ग्यानी मूर्ख, करें मस्ती मत वाले |


C
  स्वास्थ्य-सबके लिए  
साँसत में न जान हो, रखो साँस महफूज  ।
सूजे ब्रोंकाइल नली, गए फेफड़े सूज ।

 गए फेफड़े सूज, चिलम बीडी दम हुक्का ।
प्राण वायु घट जाय, लगे गर्दन में धक्का ।

रंगे हाथ फँस जाय, करे या धूर्त सियासत ।
उलटी साँस भराय, भेज दे जब *घर-साँसत ।
* काल-कोठरी
अगर टिप्पणी अनर्गल लगे तो माफ़ करें ।








25 टिप्‍पणियां:

  1. शुभप्रभात रविकर जी
    सुंदर लिंक्स से सुसज्जित बहुत बढ़िया लगी आज कि चर्चा |

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  2. सुन्दर दोहे रच रहे, टिप्पणियों में मित्र।
    अनुशंसा की रीत भी, होती बहुत विचित्र।१।
    --
    जो आये हैं जायेंगे, ये दुनिया की रीत।
    ले डूबेगा दर्प ही, करो स्वभाविक प्रीत।२।
    --
    बहुत सुन्दर चर्चा की है आपने मित्रवर रविकर!
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर दोहे रच रहे, टिप्पणियों में मित्र।
    अनुशंसा की रीत भी, होती बहुत विचित्र।१।
    --
    जो आये हैं जायेंगे, ये दुनिया की रीत।
    दर्प नहीं करना कभी, करो स्वभाविक प्रीत।२।
    --
    बहुत सुन्दर चर्चा की है आपने मित्रवर रविकर!
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. आभार गुरु जी |

    गुनगुनाओ और गुनगुनाते रहो |
    पास आओ और पास आते रहो
    पहले में आज्ञा है तो दूसरे में आदत
    पास आने की आदत थी पोस्ट पर पास आने की |

    वो विदुषी हैं और मैं ठहरा लातों का भूत |
    जो क्षमा मांगने के बाद भी
    लतियाया जा रहा है |

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  5. आये हैं सो जायेंगे, राजा, रंक फकीर।
    दुःशासन बनकर यहाँ, खींच रहे क्यों चीर!
    --
    पत्थर रक्खो हाथ में, टूट जाएगी ईंट।
    जनता की इक ठेस से, जाता उतर किरीट।।

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  6. आदरणीय मित्र रविकर जी, ब्लॉग4वार्ता का इंट्रो चर्चा मंच पर लगाने का आशय मैं नहीं समझा और किन विद्वानों से क्या राय मांगी जा रही है स्पष्ट करें।

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय ललित जी आपसे प्रत्यक्षत: हमारी पहली मुलाक़ात है |
    १) इंट्रो के शब्द-अर्थ अत्यंत प्रभावी लगे इसलिए चर्चा मंच पर हैं |
    २)
    छंद दिखे छल-छंद जब, संध्या जनित प्रभाव।

    दृष्ट जलन्धर की गई, तुलसी प्रति दुर्भाव ||


    इस दोहे पर विद्वान जनों से निवेदन किया गया है |
    क्योंकि चर्चा मंच के इस शीर्षक को पढने के बाद चर्चा मंच का एक समर्थक कम हो गया |
    यह जान्ने के लिए कि कहीं कुछ अनर्गल तो नहीं है, इस शीर्षक में |
    यदि अनर्गल हो तो मैं क्षमा मांग सकूँ ||

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  8. शास्त्री जी.....आप भी ना....गज़ब ही हो...आप पर मैं क्या कलम उठाऊं....{उर्रे कलम का तो जमाना ही गया....}मेरा मतबल है कि आप पर क्या बटन दबाऊं....!!

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर चर्चा , मेरी रचना " चचा का पान " को स्थान देने के लिए आभार ,

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर लिंक्स से सुसज्जित बहुत बढ़िया लगी.

    जवाब देंहटाएं
  11. फिर रविकर जी चर्चा लाये ,

    रंग रूप आस्वाद लुभाए .

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत बढ़िया सार्थक चर्चा
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  13. आपकी कविताएं चार चांद लगा रही हैं प्रस्तुति में।

    जवाब देंहटाएं
  14. सुन्दर....
    ------पर टिप्पणी...विवाद रहित , संयत, शालीन क्या होती है....जैसी रचना होगी वैसी ही टिप्पणी...

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत बहुत धन्यवाद सर! मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए।


    सादर

    जवाब देंहटाएं
  16. वाह ! ! ! ! ! बहुत खूब रविकर जी
    सुंदर लिंकों का चयन बहुत अच्छा लगा...बधाई

    जवाब देंहटाएं
  17. रविकर जी ..बहुत सुन्दर संयोजन है ..
    मिश्रित लिनक्स चहु ओरआभा बिखेर रहे हैं
    'कलमदान ' को स्थान देने के लिए धन्यवाद ..
    kalamdaan.blogspot.in

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  18. charcha munch ki prastuti har bar ki tarah badhiya hai ..
    http://jadibutishop.blogspot.com

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